रविवार, 28 मार्च 2010

धीरे से आना अखियन में

जिस तरह से हम सभी के लिए खाना जरुरी है, ठीक उसी तरह हमारे लिए नींद भी जरुरी है। अक्सर हम नींद को अपनी दिनचर्या का एक सामान्य हिस्सा मानकर उसकी महत्ता को अनदेखा कर देते है। लेकिन क्या आप जानते है कि आपके शरीर के बढ़ते वजन, दिनभर लगने वाली थकान, आँखों के नीचे बढ़ते काले घेरे, पीठ में दर्द, हाथ-पैरों में आई सूजन का कारण कुछ और नहीं बल्कि नींद पूरी न होना है। कैसे बेहतर नींद पायें, आईये इस विषय के जानकारी पाने के लिए इस लेख को पढ़ते है।

नींद पूरी न हो तो आप दिनभर अपने आपको थका-थका और चिढचिढ़ा महसूस करते है। अधिकतर समय की कमी हमारी नींद को पूरा होने से रोकते है, मगर कई बार आपकी दिनचर्या भी आपकी नींद को प्रभावित कर सकती है। डॉ संजय मनचंदा, सीनियर कंसलटेंट, स्लीप मेडिसन, सर गंगा राम अस्पताल के अनुसार, याददाश्त के मजबूत होने का कार्य गहरी नींद में होता है। नींद में शरीर आराम करता है ताकि वह अगले दिन के लिए कार्य कर सकें। नींद में केवल कुछ हे आधारभूत फंक्शन एक्टिव रहते है और बाकी सभी प्रक्रियाएं रिचार्ज मोड़ की तरफ चली जाती है।

आइये कुछ महत्वपूर्ण बातों पर नजर डालते है : -

  • अपने सोने के घंटों के साथ खिलवाड़ करना बंद करें। हर रोज कम से कम छह से सात घंटे नींद अवश्य ले। डॉ मनचंदा ने सुझाव देते हुए बताया है कि "आप पूरे सप्ताह तक अपनी सामान्य दिनचर्या में निर्धारित किये गए सोने के समय को बनायें रखे। बार-बार सोने से समय में बदलाव करने से शरीर के भीतर की बायोलोजिकल घड़ी में गड़बड़ी हो सकती है जो नींद सम्बन्धी समस्याओं को जन्म देती है।" उन्होंने यह भी कहा है कि " यदि आप पार्टी एनिमल है तो पार्टी को कम करें और नींद पूरी करने को पूरा समय दें। ये आपके शरीर व मस्तिष्क दोनों के लिए अच्छा विचार होगा। साथ ही वीकेंड में भी अपने निर्धारित समय पर उठने का प्रयास करें।
  • यदि आप ऐसे कार्य क्षेत्र जैसे - कॉल सेंटर आदि से जुड़े है तो आपकी दिनचर्या सामान्य व्यक्ति से एकदम उलट होती है। इसलिए आप कुछ बातों का विशेष ध्यान रखे। दिन के समय सोते हुए कमरे में अँधेरा कर सोये। और यदि संभव हो तो ऐसे कमरे में सोये जहाँ एकांत हो और जहाँ घर में सबसे कम गतिविधियाँ होती हो। इससे आपको रात का अहसास होगा और आपका शरीर गहरी नींद सोया पायेगा।
  • रात के समय काम करने वाले लोगों के विषय में चर्चा करते हुए डॉ अनिल अरोरा, गेसटरोअन्तरोलोजिस्ट, सर गंगाराम अस्पताल ने बताया है कि मैंने देखा है कि आजकल युवा वर्ग अक्सर हार्ट बर्न और पाचन सम्बन्धी समस्याओं की शिकायत लेकर आते है। इन् लोगों में से एक बहुत बड़ा हिस्सा बीपीओ क्षेत्र से जुड़ा हुआ था जोकि अपनी बायोलोजिकल घड़ी के विपरीत जाकर कार्य करते है। गलत समय पर खाना और बहुत हाई कैलरी वाले स्नेक्स - पिज्जा, बर्गर, कैंडी, चोकलेट, आदि का सेवन करने से पाचन तंत्र को क्षति पहुचती है। इन सभी को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर अरोरा ने कुछ सुझाव दिए है : -

(क) घर में बना खाना खाएं। खाना बनाते समय मसालों व तेल का कम मात्र में प्रयोग करें। एक बात का विशेष ध्यान रखें कि आप ऑफिस जाने से पहले अपने घर में भोजन अवश्य करें। घर का बना पोष्टिक भोजन आपको भूखा रहने से बचाएगा। साथ ही यह आपको कार्यस्थल पर जंक फ़ूड खाने से भी बचाएगा क्योंकि आपका पेट भरा हुआ होगा तो आप भोजन का सेवन चाहकर भी नहीं करेंगे।

(ख) अपने शरीर की नमी को बनायें रखने के लिए पानी पर निर्भर रहे।

(ग) अगर आपको स्नेक्स अपनी तरफ खींचते है तो आप अपने डेस्क पर पोष्टिक स्नेक्स रखे। नट्स, भुने चने, मुरमुरे, घर का बना पोष्टिक सेंडविच या कोई हेल्दी स्नेक अपने पास रखे।

  • अपने बेडरूम में टीवी बिलकुल न लगायें। अक्सर हम देर रात तक टीवी देखते रहते है। यदि टीवी आपके रूम में नहीं होगा तो आप देर रात तक टीवी देखकर अपनी नींद को परेशान नहीं करेंगे।
  • रात में सोने से पहले कैफीन या एल्कोहल का सेवन न करें। कहने का तात्पर्य है कि किसी भी प्रकार का पेय या खाद्य पदार्थ जिसका सेवन करने के बाद नींद उड़े ऐसे पदार्थों का सेवन करने से बचे।
  • व्यायाम हर समस्या में मदद करता है। डॉ जितेन्द्र नागपाल, मनोवैज्ञानिक, मूलचंद मेडिसिटी के अनुसार, योग और ध्यान न केवल आपको तनाव को दूर करता है। अगर आप तनाव ग्रस्त नहीं होंगे तो आप अच्छी नींद ले पाने में सफल रहेंगे। मगर योग और ध्यान या किसी भी प्रकार का व्यायाम हमेशा भोजन को खाने के बाद कम से कम दो से तीन घंटे के बाद ही करें।
  • मोबाइल फोन सबसे ज्यादा आपकी नींद में खलल डालती है। इसलिए रात में सोते समय अपने मोबाइल फोन को या तो स्विच ओफ कर दे या फिर आप मोबाइल का साइलेंट मोड़ में पर रखे।

नींद हम सभी के लिए जरुरी है। आप चाहे कितना भी पोष्टिक भोजन का सेवन करें। आप तब तक स्वस्थ नहीं रह पायेंगे जब तक आप नींद पूरी न कर ले।

गुरुवार, 25 मार्च 2010

स्पिरुलिना - दि सुपर फ़ूड

प्रकृति ने हमें देन के रूप में बहुत सी जड़ी-बूटियां दी है। आयुर्वेद में इन्हीं जड़ी बूटियों का प्रयोग कर स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को दूर किया जाता है। आज हम इन् जड़ी बूटियों यानी हर्ब की दुनिया में से एक हर्ब स्पिरुलिना के बारें में चर्चा करते है।

दि सुपर फ़ूड, जी हाँ स्पिरुलिना को इस नाम से जाना जाता है। एक कम्पलीट फ़ूड सोर्स होने के कारन हो इससे इस उपाधि से नवाजा गया है। स्पिरुलिना, एक बेहतरीन डायट्री सप्लीमेंट है, जिसे आप टेबलेट और पाउडर के रूप में आसानी से बाजार से प्राप्त कर सकते है। स्पिरुलिना विटमिन ऐ का बेहतरीन स्रोत है और इसमें प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा मीट में मिलने वाली मात्रा से लगभग पांच गुना अधिक होती है। इन सबके अलावा इसमें मिनरल्स की भी कोई कमी नहीं है। इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, सिलेनियम, जिंक आदि प्रचुर मात्रा में होते है। विटमिन श्रेणी की बात करें तो आप इसका सेवन कर विटमिन बी१, बी२, बी३, बी६ की खूबियाँ पा सकते है।

स्पिरुलिना में जरुरी फैटी एसिड जैसे गामा लिनोलेनिक एसिड जीएलऐ, एल्फा लिनोलेनिक एसिड एएलए, लिनोलेनिक एसिड भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।

स्पिरुलिना का सेवन करने से -
  • स्ट्रोक की गंभीरता में कमी आती है।
  • किमो थेरपी के कारण होने वाले हृदय को नुकसान से बचाता है।
  • बढती उम्र में मैमोरी लोस नहीं होता है।
  • हे फीवर से बचाव हो सकता है।
  • वजन बढ़ने में मदद मिलती है।
  • एनीमिया को दूर करने में मदद मिलती है।
  • कोलेस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।

इसका सेवन करने से बचे, यदि -

  • आप हायपर पैरा थायरोडिजम के रोगी है।
  • आपको सी फ़ूड या सी वीड से गंभीर एलर्जी हो।
  • बहुत तेज बुखार हो।

साइड इफेक्ट -

सामान्यतोर पर इस हर्ब का सेवन करने पर कोई साइड इफेक्ट देखने को नही मिलता है। मगर कुछ लोग को इसका सेवन करने पर हल्का बुखार महसूस हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्यूँकी शरीर को प्रोटीन को बर्न करने के लिए अतिरिक्त एनर्जी की जरुरत होती है। इसके अलावा थोडा चक्कर आना, उलटी आना, प्यास लगना, कब्ज की समस्या होना, स्किन पर रैशेज पड़ना और पेट में दर्द होने जैसे कुछ लक्षण भी देखने को मिल सकते है।

ध्यान दे -

  • स्पिरुलिना एक सुरक्षित हर्ब है। मगर बिना डॉक्टर की सलाह लिए इसका सेवन करना समस्या को निमत्रण देने जैसा होगा। इसलिए हमेसा डॉक्टर द्वारा बताई गयी डोज का ही सेवन करें। ओवर डोज के कारन शरीर में हाई प्रोटीन के कारन यूरिक एसिड बढ़ सकता है और लीवर को नुकसान पंहुचा सकता है।
  • एक बात का विशेष ध्यान रखे कि इसका सेवन करने पर आपको सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा पानी पीना चाहिए। ज्यादा यानी करीब आधा लिटर ज्यादा पानी अवश्य पिए।
  • इसका काफी, चाय, जूस और साफ्ट ड्रिंक के साथ सेवन न करें। इसका सेवन करने से शरीर के एंजाइम और स्पिरुलिना के पोषक तत्व नष्ट हो सकते है।

(डॉ दीप्ति धरा, तुलसी होलिस्टिक क्लिनिक, आयुर्वेद आचार्य के साक्षात्कार पर आधारित)

रविवार, 21 मार्च 2010

गुणकारी त्रिफला


आयुर्वेद में त्रिफला के बारें में बहुत कुछ लिखा गया है और इसका प्रयोग भी बहुत किया जाता रहा है। त्रिफला, तीन फलों का एक अद्वितीय मेल है। त्रिफला का अर्थ है तीन फल। इसमें हरद, बहेड़ा, आंवला तीन बराबर हिस्सों में होता है। यहीं कारन है की इसे त्रिदोषिक रसायन भी कहा जाता है।



हरद - यह ह्रदय, दिमाग के लिए टोनिक की तरह कार्य करता है और वात दोष को संतुलित करता है।

बहेड़ा - यह लीवर और ह्रदय सम्बन्धी समस्याओं को कम करता है और साथ ही यह दृष्टी और बालों के विकास में मदद करता है। यह कफ को संतुलित करता है।

आंवला - आंवला एक बेहतरीन एंटी ओक्सिडेंट की तरह कार्य करता है। यह शरीर के भीतर रोग प्रतिरक्षात्मक क्षमता को भी बूस्ट करता है। इसके अलावा यह पित्त को संतुलित करता है।



त्रिफला की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यह वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को नियंत्रित करने में मदद करता है। यदि शारीर के भीतर सभी दोषों को नियंत्रित किया जाता है तब शारीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। त्रिफला आपको स्वस्थ रहने में मदद करता है।



अनमोल विशेषताएं : -



त्रिफला एक शक्तिशाली रसायन है जो शरीर की भीतर से क्लींजिंग और डिटाक्स करने में मदद करता है। अध्ययनों से यह साबित हो गया है कि त्रिफला एंटी केन्सरिओजेनिक क्षमता युक्त होता है। इसमें बयोफ्लेवानोयड, जरुरी अमीनो एसिड और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है। आईये इसकी विशेषताओं के बारें में जानते है -




  • आंवला इसमें एंटी ओक्सिडेंट कि विशेषता को बढाता है। एंटी ओक्सिडेंट रोग प्रतिरक्षात्मक क्षमता को बढाने में मदद करता है और शरीर को रोगों से ग्रस्त होने से बचाता है।


  • त्रिफला, ब्लड प्यूरीफायर की तरह काम करता है। ब्लड प्यूरीफायर की तरह काम करने के कारण यह ब्लड सम्बन्धी समस्याओं और स्किन सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है।


  • पाचन को दुरुस्त करने में मदद करता है और अपच, पेट दर्द, कब्ज़ की समस्या को दूर करता है और भूख को भी बढाता है।


  • अगर आप एनीमिया का शिकार है तो त्रिफला आपकी मदद कर सकता है। त्रिफला शरीर में हिमोग्लोबिन बढाता है।


  • यह स्किन टोन या रंगत को सुधारता है। साथ ही देखने की क्षमता और बालों के विकास को भी बढाता है।


सचेत रहें : -



मोसम के अनुसार आयुर्वेद में अलग अलग दवाइयों के साथ त्रिफला को मिलकर दिया जाता है ताकि इसका बेहतर परिणाम निकल सकें। त्रिफला बेहतरीन हर्ब है जिसका सेवन आप केप्सूल, पाउडर और टेबलेट के रूप में कर सकते है। मगर इसका सेवन करने से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखना जरुरी है।





  • त्रिफला का प्रयोग किसी भी उम्र के व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है मगर गर्भवती स्त्री को इसका सेवन करने से बचाना चाहिए। गर्भवती महिला द्वारा इसका सेवन करने पर गर्भपात की आशंकाएं बढ़ सकती है।


  • त्रिफला पूरी तरह से सुरक्षित है फिर भी किसी प्रशिक्षित आयुर्वेद प्रेक्टिशनर से इसका सेवन करने से पहले इसकी डोज़ के बारें में परामर्श अवश्य ले ले।


(डॉ प्रीति छाबरा, कंसल्टेंट, आयुर्वेद फिजिशियन, सर गंगा राम अस्पताल के साक्षात्कार पर आधारित)

गुरुवार, 4 मार्च 2010

जीवन का दूसरा पड़ाव : मीनूपॉज

मीनूपॉज, किसी भी महिला को हर महीने के मासिक धर्म के झंझट से तो मुक्ति दिला देता है, मगर साथ की कुछ अन्य समस्याओं को सामने लाकर खड़ा कर देता है। मीनूपॉज का अर्थ है महिला की प्रजनन शक्ति और मासिक धर्म पर विराम चिन्ह लगना। उम्र के इस पड़ाव में महिला को बहुत से शारीरिक व मानसिक बदलाओं से गुजरना पड़ सकता है। मीनूपॉज सम्बंधित बदलावों की चर्चा इस लेख में कर रहें है।

इंडियन मीनूपॉज सोसायटी ने अपनी वेबसाइट में यह जानकारी दी है कि महिलाओं की मीनूपॉज की आयु ४५से ५१ साल की होती है। जैसे ही महिलाएं उम्र में चालीस का पड़ाव पार करती है वे मानसिक और शारीरिक बदलाओं को महसूस करने लगती है। परेशानी होने पर भी महिलाये बढती उम्र को दोष देकर चुप्पी साधे रहती है। यही चुप्पी कई बार समस्याओं को गंभीर स्थिति में लाकर खड़ा कर देती है।

जैसे-जैसे महिलाओं कि उम्र बढती जाती है उनके शरीर के सेक्स हारमोंस - एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का निर्माण कम होने लगता है। मीनूपॉज केवल एक रात में जन्म लेने वाली समस्या नही है। इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं - हॉट फ्लेशेस, अनियमित मासिक धर्म, बेचेनी, फटीग, जोड़ो, मांस पेशियों में दर्द होना, यादाश्त कमजोर होना और रात में ठीक से नींद न ले पाना।

हॉट फ्लेसिस :

हॉट फ्लेसिस, विदेशी महिलाओ में देखने को मिलती है। भारतीय महिलाओ में मांस पेशियों या पेट में दर्द होना है, साथ ही थकान का अनुभव करना और डिप्रेशन का शिकार जल्दी होती है।

हम सभी हार्मोन्स पर पूरा आरोप लगा देते है की हार्मोन्स की गड़बड़ी ही सभी समस्याओं का कारण है। मगर काफी हद तक हार्मोन्स पर लगाये गये यह आरोप सही भी है। मीनूपॉज की उम्र में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन दो ऐसे हार्मोन्स है जो आपके ह्रदय, हड्डियों और आपके पूरे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। महिलाओ के शरीर से एस्ट्रोजन जैसे रक्षात्मक सतह हटने की वजह से हृदय सम्बन्धी बिमारियों के होने की आशंकाएं पुरुषो की तुलना में बढ़ जाती है।

महिलाओ को मीनूपॉज का हड्डियों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी पता चलता है। डॉ अम्बरीश मिथल के अनुसार, मीनूपॉज आयु वर्ग की महिलाओं को बोन डेंसिटी टेस्ट की सलाह दे जाती है ताकि वे भविष्य में ओस्टोपोरोसिस समस्या का शिकार न बने।

डोक्टोर्स ने इस बात की भी जानकारी दी है की मीनूपॉज के होने के कुछ साल पहले मासिक धर्म के समय रक्त का बहाव कम होना चाहिए न की ज्यादा। अगर रक्त का बहाव जाये हो तो डॉक्टर से परामर्श अवश्य ले।

एच आर टी
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी से कई महिलाओ को आराम तो मिला है मगर इसके बावजूद भी यह थेरपी विवादास्पद है। यदि आप इस की मदद लेना चाहते है तो पहले अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य ले।

ओस्टियोपोरोसिस : साइलेंट किलर

ओस्टियोपोरोसिस के बारें में अपने कई बार सुना होगा। हम सभी जानते है कि बढती उम्र के साथ समस्या में हड्डियाँ कमजोर होती चली जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर आठ पुरुषों में से एक पुरुष को और तीन महिलाओं में से एक महिला को ओस्टियोपोरोसिस की समस्या है। यह आंकड़ा ही इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। आईये डॉ अम्बरीश मिथल, सीनियर कन्सलटेंट एंडोक्रिनोल्जिस्त, इन्द्रप्रस्थ अस्पताल, नई दिल्ली से इस विषय पर चर्चा करते है।

गार्डियन हेल्थ क्रोनिकल (जीएचसी) - ओस्टियोपोरोसिस क्या है ?
डॉ मिथल - शरीर में विटामिन डी के स्तर के कम होने पर और सही मात्रामें विटामिन सी का सेवन न करने के कारण बोने डेंसिटी कम होने लगती है जिसका परिणाम हड्डियों के कमजोर होने के रूप में दिखाई देता है। भारतियों में बोन डेंसिटी कम होने के कारण यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।

जीएचसी - ओस्टियोपोरोसिस को साइलेंट किलर क्यूँ कहा जाता है?
डॉ मिथल - अक्सर हमें इस समस्या के होने का प्या शुरुआत में नहीं चल पता है। जब आपकी हड्डियों में फ्रेक्चर देखने को मिलता है तभी जाकर इस बात का पता चल पता है कि व्यक्ति ओस्टियोपोरोसिस कि समस्या का शिकार हो रहा है। यहीं कारण है कि ओस्टियोपोरोसिस को साइलेंट किलर कहा जाता है।

जीएचसी - क्या ओस्टियोपोरोसिस गंभीर समस्या है?

डॉ मिथल - हाँ, ओस्टियोपोरोसिस को गंभीरता से लेना बहुत जरुरी है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हर साल मरने वाले लोगों में से २०% तक लोगों के मरने का कारण ओस्टियोपोरोसिस होता है।

जीएचसी - क्या मीनूपॉज के बाद महिलाओं के शरीर में हड्डियाँ कमजोर होती चली जाती है?
डॉ मिथल - हाँ, यह बिलकुल सही है। मीनूपॉज के बाद महिलाओं के बोन मास इंडेक्स तेजी से कम होने लगता है। मीनूपॉज की आयु में महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर कम होता चला जाता है, जिस कारण महिलाओं के इस उम्र के बाद इस समस्या से ग्रस्त होने की आशंकाएं बढ़ जाती है।

जीएचसी - हड्डियों को मजबूत बनाये रखने के लिए कों से चीजे जरुरी होती है?
डॉ मिथल - हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए तीन चीजे बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं - केल्शियम, विटामिन डी और व्यायाम। विटामिन डी की प्राप्ति आप सूरज की रोशनी से प्राप्त कर सकते है। मगर शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों में ८०प्रतिशत तक लोगों में विटामिन डी की कमी देखने को मिलती है। विटामिन सी के लिए आप खट्टे फलों को खाएं, साथ ही दही का सेवन करें। दही में दूध की तुलना में अधिक केल्शियम होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। व्यायाम में आप वेट बियरिंग व्यायाम करें, जैसे - रस्सी कूदना, वाक पर जाना।

जीएचसी - ओस्टियोपोरोसिस का पता करने के लिए किन टेस्ट की मदद लेनी चाहिए?
डॉ मिथल - बोन डेंसिटी टेस्ट के माध्यम से ओस्टियोपोरोसिस की समस्या के होने का पता लगाया जा सकता है और बचाव के कदम उठायें जा सकते है। महिलाओं को मीनूपॉज की आयु में बोन डेंसिटी का टेस्ट करना जरूरी होता है।

थायरॉयड : गंभीरता को समझे


आपका वजन कम होने का नाम नही ले रहा है? क्या आपको भूलने की आदत हो गयी है? क्या आपके हाथ-पैर कांपते है? क्या आपको बहुत थकान लगती है? क्या आपका मासिक धर्म अनियमित है? अगर हाँ तो हो सकता है ? अगर हाँ तो हो सकता है की आप हार्मोनल समस्या थायरॉयड का शिकार है। थायरॉयड एक ऐसी समस्या है जिसके बारें में पता होने पर भी अक्सर इसकी गंभीरता को अनदेखा कर देते है। थायरॉयड से जन्म लेने वाली समस्याओं पर एक नजर डालते है।




अक्सर माना जाता है कि थायरॉयड महिलाओं की एक समस्या है। परन्तु सत्य यह है कि थायरॉयड पुरुषों और महिलाओं दोनों को ही होता है। यह अलग बात है कि थायरॉयड महिलाओं को पुरुषों कि तुलना में ज्यादा परेशान करता है। डॉ सुजीत झा, कंसल्टेंट एंडोक्रिनोलोजिस्ट, डिपार्टमेंट ऑफ़ ओबेसिटी एंड मेटाबोलिज्म, मेक्स अस्पताल के हेड के अनुसार, हायपोथायरॉयड पुरुषों कि तुलना में महिलाओं को ज्यादा होता है। जन्म के समय या बचपन में जिन महिलाओं का बॉडी साइज़ छोटा होता है उनमें यह समस्या सामान्य होती है। साथ ही वंशानुगत कारण से भी यह समस्या हो सकती है।




जाने थायरॉयड को -




थायरॉयड हमारे शरीर में सबसे बड़ा ग्लेंड है जोकि गर्दन पर होता है। इसका आकर तितली के पंखों की तरह होता है। हमारा शरीर कितनी जल्दी एनर्जी को बर्न करता है जिससे प्रोटीन का निर्माण हो इसका नियंत्रण थायरॉयड ही करता है। साथ ही हमारा शरीर अन्य हार्मोन्स के प्रति कितना संवेदनशील है, इस बात का भी निर्धारण भी थायरॉयड द्वारा ही किया जाता है।




थायरॉयड ग्लेंड थायरॉयड हार्मोन का निर्माण करता है विशेष रूप से थायरोक्सिन और टीडोथीरोनिन हार्मोन का। यह हार्मोन शरीर के मेटाबोलिज्म के रेट को बढाता है और शरीर के सिस्टम में अन्य प्रकार के विकास और गतिविधियों के रेट को प्रभावित करता है।




डॉ झा ने इस समस्या के बारें में बताया है कि हायपर थायरॉयड यानि ओवर एक्टिव थायरॉयड और हायपो थायरॉयड यानि अंडर एक्टिव थायरॉयड, थायरॉयड ग्लेंड की दो सबसे सामान्य परेशानियाँ है।




लक्षणों को अनदेखा न करें :-




हमारे देश में हायपोथायरॉयड की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। जेसा की हमने पहले चर्चा की थी कि थायरॉयड हार्मोन मेटाबोलिज्म को बढाता है। मगर ज्यादातर हायपोथायरॉयड के लक्षणों के कारण मेटाबोलिज्म की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। डॉ झा के अनुसार, हायपो थायरॉयड के लक्षण अलग-अलग हो सकते है। कुछ लोगों को इस समस्या के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते है तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के भीतर इसके लक्षण कुछ ज्यादा ही गंभीर भी ही सकते है। थायरॉयड की प्रकृति बार बार बदलती रहती है।




इसके कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं - फटीग, थकान होना, वजन का बढ़ना और ठण्ड बर्दाश्त न कर पाना। स्किन का शुष्क या मोटा होना, बालों का पतला या कमजोर होना, आईब्रो का हल्का होना, नाख़ून का कमजोर होना।




इसके अन्य लक्षण हैं:-




  • आँखों के आसपास हलकी सुजन होना,


  • पसीना आना,


  • हार्ट रेट धीमा पड़ना,


  • ब्लड प्रेशर का ज्यादा होना,


  • ब्लड में कोलेस्ट्रोल के स्टार का बढना


  • थोड़ी भी थकान में सांस का फूलना,


  • व्यायाम करने की क्षमता कम होना,


  • जुबान पर हलकी सुजन आना,


  • आवाज में परिवर्तन आना,


  • नींद में खर्राटे लेना,


  • मासिक धर्म का अनियमित होना,


  • गर्भ धारण करने में कठिनाई होना,


  • गर्भवती महिलाएं जिन्हें हायपो थायरॉयड होता है उनके गर्भावस्था के शुरूआती समय में मिस्केरेज होने की आशंकाएं बढ़ जाती है।


गर्भावस्था और थायरॉयड का सम्बन्ध :-



ऐसा अक्सर माना जाता कि थायरॉयड कि समस्या के कारण महिलाओं को गर्भ धारण करने में कठिनाई होती है। इस विषय पर प्रकाश डालते हुए डॉ झा ने बताया है कि जो महिलाएं हायपो थायरॉयड ग्रस्त होती है और वे गर्भवती हो तो उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड सकता है। इसमें गर्भावस्था के शुरुआती समय में ही गर्भपात का डर बना रहता है। साथ हे मैं इस बात का भी सुझाव देना चाहता हू की जो महिलाएं गर्भवती है या गर्भ धारण करने वाली है वे अपने थायरॉयड की स्क्रीनिंग अवश्य कराएँ।



डॉ झा ने कहा है की इस बात के आंकड़े साफ़ नहीं है कि थायरॉयड ग्रस्त गर्भवती स्त्री से उसके गर्भस्त शिशु को भी थायरॉयड हो सकता है।



उपचार :-



हायपो थायरॉयड के लिए सबसे सामान्य ब्लड टेस्ट थायरॉयड स्तिमुलेटिंग हार्मोन यानि टीएसएच होता है। टीएसएच टेस्ट के माध्यम से थायरॉयड फंक्शन के थोड़े से भी कम होने का भी पता चल जाता है। इस टेस्ट में थाय्रोक्सिन टी४ और टी३ को मापा जाता है। एंटी बोडिज जेसे टी जी और टी पी ओ का भी टेस्ट कराया जा सकता है।



थायरॉयड हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी कि मदद से आप हायपो थायरॉयड का इलाज क्र सकते है। इसमें रोगी को थाय्रोक्सिन दी जाती है। यह एक ओरल टेबलेट है जिसका सेवन हर रोज खाली पेट यानि सुबह नाश्ते से एक घंटा पहले या फिर नाश्ते के दो घंटे के बाद करें।