मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

हायपरटेंशन : क्या करें, क्या न करें

हायपरटेंशन, बहुत आम सी बात बन कर रह गयी है। हर तीसरा व्यक्ति इससे ग्रस्त मिलता है। मगर सच तो यह है कि इतनी सामान्य लगने वाली यह स्वास्थ्य समस्या उतनी आम या सामान्य नहीं जितना आप सोच रहें है। मूलचंद हार्ट अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट, कार्डियोलोजिस्ट, डॉ एच के चोपड़ा हमें बता रहें है कि हायपरटेंशन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं?

क्या करें : -
  1. नियमित रूप से हर रोज कम से कम 30 मिनट तक व्यायाम करें।
  2. हर रोज योग और ध्यान की प्रैक्टिस कम से कम 15 मिनट तक करें।
  3. हर रोज छह से आठ घंटे की नींद ले।
  4. खूब सारी हरी सब्जियां, फल और मेवों का सेवन करें।
  5. हर रोज प्रचुर मात्रा में पानी पिएं। एक दिन में कम से कम डेढ़ से दो लीटर तक पानी पिएं।
  6. मछली का सेवन करें क्योंकि उसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जोकि हृदय को स्वस्थ बनाने में मदद करता है।
  7. रिलैक्स करने की तकनीक जैसे म्यूजिक थेरेपी, अरोमा थेरेपी आदि की मदद ले सकते है।
  8. अनाव को मैनेज करने के लिए आप आध्यात्मिक तकनीकों का प्रयोग कर सकते है।
  9. अपने वजन का ध्यान रखें। पुरुषों की कमर का माप 90 सेंटीमीटर से ज्यादा और महिलाओं में 80 टीमीटर सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
  10. अपने अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ने का प्रयास करें। एचडीएल पुरुषों में 40 एमजी प्रतिशत से ज्यादा और महिलाओं में ५० एमजी प्रतिशत होना चाहियें।
  11. अपने ब्लड शुगर को नियंत्रित रखे। ब्लड शुगर फास्टिंग 110 से कम होनी चाहिए।

क्या न करें :-

  1. तम्बाकू का सेवन किसी भी रूप में।
  2. ट्रांसफैट्स का सेवन।
  3. अपनी जीवनशैली को ख़राब।
  4. ज्यादा नमक का सेवन। टमाटर सॉस, आलो के चिप्स, तले खाद्य पदार्थ, अचार, आदि में नमक बहुत ज्यादा होता है इसलिए इनका सेवन करने से बचे।
  5. वजन का बढ़ाना या मोटापे का शिकार होना।
  6. ज्यादा मात्रा में एल्कोहल का सेवन।
  7. बहुत तेज ठन्डे मौसम में घूमना।
  8. फैट से भरपूर डायट जैसे जंक फ़ूड, मिठाई आदि।
  9. रेड मीट और अंडे का पीला भाग का सेवन।
  10. डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी नैजल ड्रॉप यानि नाक में डालने वाले ड्रॉप का सेवन न करें।
  11. वेट लिफ्टिंग या पुश-अप न करें, यह आपके ब्लड प्रेशर को बढ़ा सकते है।

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

अब स्नैकिंग से डर कैसा ?


सुबह का नाश्ता कर लिया था और दिन के खाने में अभी बहुत टाइम है, ऐसे में भूख लग जाये तब क्या करें? अब भूख लगी है तो उसे दूर तो करना ही है। क्यों न चिप्स या बिस्किट खा लिया जाये। इससे भूख कुछ देर के लिए शांत भी होगी और मजेदार स्वाद का आनंद भी मिलेगा।

हालांकि ऐसा करने से पेट को राहत तो मिल जाती है मगर आपके शरीर को बिना बात के बहुत सी कैलरी और फैट्स से दो-दो हाथ करने पड़ जाते है। जबकि हम सभी स्नैकिंग के इन अनहैल्दी विकल्पों की जगह बड़ी ही आसानी से हैल्दी विकल्पों को स्थान दे सकते है।

स्नैक्स न केवल पेट की भूख को दूर करता है बल्कि यह शरीर के गिरे हुए शक्ति के स्तर को भी बढ़ाने में मदद करता है। आइये कुछ हैल्दी स्नैक्स के बारें में जानते है।

मिक्स नट्स :-

मिक्स नट्स, हैल्दी स्नैक्स के लिए सबसे अच्छे विकल्प है। मिक्स नट्स में आप बादाम, किशमिश, काजू, अखरोट आदि को मिला सकते है। इससे शरीर में शक्ति का भी संचार होगा और इसका सेवन करने के बाद पेट को इसे पचाने में समय लगता है जिस कारण आपको पेट के भरे होने का अहसास भी रहता है।

पॉप कोर्न :-

पॉप कोर्न जैसा कोई स्नैक्स हो ही नहीं sakta है। पॉप कोर्न में फायबर होता है और इसमें कैलरी फैट्स बहुत कम होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण यह डायटिंग करने वालों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। इसका सेवन कर आपको पेट भरे होने का अहसास रहता है और इसे स्नैक्स के तौर पर खाना भी लाभकारी है। मगर पॉप कोर्न की कैलरी इस बात पर निर्भर करती है कि आपे उसमें किन पदार्थों को मिलाया है। यदि आप उसमें बटर मिलाएं है तो इसकी कैलोरी बढ़ना लाजमी है।

सेब :-

सेब एक ऐसा फल है जिसे आप कहीं भी बैठकर खा सकते है। फिर चाहे जगह आपका ऑफिस हो या फॉर बस। इसके अलावा हर रोज एक सेब को खाने से आप आसानी से डॉक्टर को दूर भगा सकते है। स्नैक्स के तौर पर सेब को खाने से न केवल बेसमय लगी भूख को दूर किया जा सकता है बल्कि आप दिनभर पांच बार फलों के खाने के नियम को भी आसानी से पूरा कर सकते है।

केला :-

केले में ९० प्रतिशत से ज्यादा पानी होता है। इसमें पोटेशियम भी होता है जो हाई ब्लड प्रेशर के रोगी के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकता है।

दही :-

गर्मियों के इस मौसम में दही से बेहतर कोई स्नैक्स हो ही नही सकता है। दही से आपको कैल्शियम के अलावा अन्य पौष्टिक तत्वों की भी प्राप्ति होगी। साथ ही इसका रिफ्रेशिंग स्वाद आपके शरीर को तरोताजा करने में मदद करेंगे। आप चाहे तो आप इसमें फलों को काट कर मिलाकर भी चने और मटर सकते है।

अंडे :-

उबले अंडे काले थोड़ी सी चने मिर्च और नमक डालकर खाया जा सकता है। इससे आपको प्रोटीन मिलेगा, जिसकी मदद इंक आपके शरीर में शक्ति का हो होगा।

चने और मटर : -

काले भुने चने और हरे सूखे मटर भी हैल्दी स्नैकिंग में मदद कर सकते है। इनका स्वाद भी अच्छा होता है और यह पौष्टिक भी होते है। इन्हें आप पौष्टिक क्रेकर्स के तौर पर खा सकते है।

उबला आलू : -

कहते है आलू मोटापे को बढ़ता है। मगर उबला आलू आपको मोटापे की समस्या को दूर कर सकता है। बस उबले आलू में थोड़ी सी काली मिर्च का पाउडर डाले और थोडा सा नींबू का रस। नींबू का रस डालने के बाद उबले आलू का पाचन धीमा हो जाता है। जिसके कारण आपको बार-बार लगने वाली भूख से बचा जा सकता है।

खाने के बीच के अंतरालों में भूख लगना सामान्य है इसलिए स्नैकिंग करना भी सामान्य है। मगर स्नैकिंग करने से पहले एक बार इस बात पर भी गौर कर लें कि आपको लगी भूख वाकई में भूख है या फिर केवल आपके मन में स्वादिष्ट भोजन खाने की भूख है।

रविवार, 25 अप्रैल 2010

दोस्त बनकर रहें

उम्र के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर बहुत से बदलाव आते है। यह सभी बदलावों का होना सामान्य है। पर कई बार किशोरावस्था में होने वाले बदलावों को कुछ बच्चे अपनाने के लिए तैयार नही हो पाते है। कई बार तो वे इन बदलावों से इतना परेशान हो जाते है कि धीरे धीरे वे डिप्रैशन का शिकार होने लगते है। आइये जानते है इस लेख में कि कैसे आप अपने बच्चे को उम्र के इस पड़ाव में आ रहें परिवर्तनों के साथ बहना सिखा सकें।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। पर बालमन इस सच्चई को कितनी जल्दी अपनायेही इस विषय में कुछ भी कह पाना आसान काम नहीं है। तेरह साल
की स्तुति उन दिनों न तो किसी से मिलना पसंद करती है और न ही स्कूल जाना। कारण पूछो तो केवल एक ही बात कहती है कि मेरा मन बहुत खराब होता है और नहीं चाहती कि मेरे दोस्तों को पता चलें कि मेरी क्या पेशानी है। हैरानी की बात है मगर स्तुति को लगता है की यह बदलाव केवल उसी के साथ हो रहे है जबकि वास्तविकता यह है कि उसकी उम्र की सभी लड़कियों में यह बदलाव आ रहें है।


बारह साल का
यासिर भी कुछ ऐसे ही बदलावों से परेशान है। उसे लगता है कि अचानक से उसकी मूंछे आने लगी है जबकि उसकी उम्र से बाकी लड़कों में ऐसा बदलाव उसने नहीं देखा है। सभी उसे अंकल कहकर चिढ़ाते है जिसके कारण उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुचती है। उसे लगता है कि शायद वह अपनी उम्र के लड़कों से जल्दी बढ़ा हो रहा है।

उम्र के बढ़ने के साथ इन बदलावों का आना सामान्य है। लड़कियों में शरीर में आकार में
बदलाव, मासिक धर्म से परिचय, मानसिकता में बदलाव आदि कुछ सामान्य बदलाव है। वहीं दूसरी ओर लड़कों के शरीर में बालों का बढना, आवाज में भारीपन आना, मूंछों का आना, विपरीत लिंग में रूचि पैदा होना आदि कुछ बदलाव है। पर इन परिवर्तनों को अपनाना हर बच्चे के लिए आसान नहीं होता है। कई बार कुछ बच्चे इन् बदलावों के कारण तनाव डिप्रैशन तक का शिकार हो जाते है। अभिभावक होने के नाते आपको अपने बच्चे को इस समस्या से बाहर निकालने का काम करना है। आईये जानते है कि कैसे आप अपने बाचे को इन मुश्किल की घड़ी में साथ दें।

चर्चा करें : -
सबसे पहले जब बच्चे बड़े होने लगते है तो उनके माता-पिता बन्ने से बेहतर है
कि आप उनके दोस्त बनें। सर गंगाराम अस्पताल की कंसलटेंट साइकोलोजिस्ट डॉ आरती आनंद के अनुसार, उम्र के इस दौर में अपने बच्चे से उसका दोस्त बनकर बात करें। उससे चर्चा करें कि आपका बच्चा कौन सी समस्या से गुजर रहा है। जब तक आप दोस्त बनकर अपने बच्चे से उसकी समस्याओं पर चर्चा नहीं करेंगे तब तक आपका बच्चा परेशान ही रहेगा।


सभी एक से नही होते : -
कई बार बच्चो को लगता है
की उसके साथ हो रहें शारीरिक व मानसिक बदलाव केवल उन्हीं के साथ हो रहें है क्योंकि उनके बेस्ट फ्रेंड तो पहले की ही तरह है। वे यह बात नही समझ पाते है की जब हमारी शक्ले, खानपान सब कुछ दूसरे से अलग है तो फिर उम्र के साथ होने वाले बदलाव क्यों नहीं। डॉ आनंद के अनुसार, अपने बच्चे को समझाए कि हमारे सभी के शरीर के हार्मोन्स दूसरे से अलग होते है इसलिए बदलाव किसी बच्चे में जल्दी तो किसी में देर से देखने को मिलते है।


समझाएं : -
कई बार बच्चे बदलाव क्यों हो रहे है यह तो समझ लेते है मगर इन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं होते है। ऐसा विशेष रूप से किशोरियों के साथ मासिक धर्म के शुरुआत के दौरान होता है। ऐसी परिस्थिति में अपने बच्चे को समझाएं कि बदलाव हर व्यक्ति के भीतर हर उम्र में होते है। उसे किसी शिशु, बुजुर्ग या अपना उदाहरण दें। उसे इन बदलावों
की महत्ता के बारें में भी बताएं। उसे समझाएं कि यदि यह शारीरिक बदलाव उम्र के इस पड़ाव पर न हो तब आपको परेशान होने कि जरुरत है। ऐसा कहना है डॉ आनंद का।

उसे बताएं कि जब आप किशोरावस्था में थी तब आपने कैसे इस बदलाव को अपनाया था।
और अगर समस्या बेटे की है तो पिता को उसे समझाने की जिम्मेदारी को उठाना चाहिए। इससे आपका बच्चा अपने समस्या को ज्यादा अच्छे ढंग से बता सकता है। समझाते हुए एक बात का ध्यान रखे कि आप अपना अनुभव बताते हुए झूठ न बोले या यह जताने का प्रयास न करें कि आप कितने महान थे और आपने बिना डरे या घबराएं ही इस परेशानी से तारतम्य बिठा लिया था।

रुढ़िवादी विचारधारा को त्यागे : -

अक्सर हम मॉर्डन विचारधारा के होने के बाद भी कुछ रुढ़िवादी विचारों को लादे नहीं। अभिभावकों को पुरानी या घटिया रुढ़िवादी विचारधारा को त्यागना बहुत जरुरी है। आज जिस तरह खुली विचारधारा में बच्चे जी रहे है यदि आप उन पर होने वाले बदलावों पर बार बार टोकते है तो आप उन्हें परेशान कर रहें है। आपको खुली विचारधारा को अपनाना होगा।

इस उम्र में सेक्स के प्रति बढती रूचि और मन में उठती जिज्ञासाओं को भी समझने का प्रयास करें। अक्सर इस उम्र के लड़कों का रुझान इस ओर कुछ ज्यादा बढ़ जाता है। यदि आपका बच्चा किसी विषय पर कुछ जानना चाहता है तो उसे बेशर्म कहकर उसकी बात को काटकर उसे चुप न कराएँ बल्कि उसके सवालों का उत्तर देने का प्रयास करें।

डॉ आनंद ने अभिभावकों को यह सुझाव दिया है कि इस विषय पर बहार या अपने दोस्तों से गलत सूचनाएं प्राप्त करने से बेहतर है कि आप उन्हें सही जानकारी दें। यदि आप चाहते है कि किसी गलत स्रोत से गलत जानकारी पाकर आपका बच्चा गुमराह न हो तो आप उसे सही जानकारी दें।

अपने शरीर की देखभाल अच्छे से करें :-

यदि आप अपने शरीर की देखभाल अच्छे से करते है तो आप शायद इन परिवर्तनों को अपनाने में ज्यादा बच सकते है। इस बात को अपने बच्चे को समझने का प्रयास करें। पौष्टिक भोजन और व्यायाम आपके बच्चे को स्वस्थ रखने में मदद करेगी और उसके तनाव से लड़ने में भी मदद करेगा।

परेशान न हो : -

अभिभावक को यह समझना जरुरी है कि आपका बच्चा उम्र के ऐसे पड़ाव के साथ गुजर रहा है जहाँ बहुत कुछ हो रहा है। इस उम्र में अपना बच्चा से शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजर रहा है जिस कारण आपके बच्चे के व्यवहार में बदलाव आ रहा है। हो सकता है कि आपके समझाने पर भी आपका बच्चा पूरी तरह से आपकी बातों को न समझे या थोडा सा परेशान रहें। ऐसी स्थिति हो तो आप अपना आप न खोये बल्कि शांत रहने का प्रयास करें। याद रहें इस समय आपके बच्चे को सबसे ज्यादा दोस्त की जरूरत है। उसका दोस्त बने और उसकी परेशानी को समझकर उससे उबरने में उसकी मदद करें।

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

धुंधलाती नजर - कैटरैक्ट



बढती उम्र के साथ आप बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होते चले जाते है। कैटरैक्ट बुजुर्गों की आम स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। आइये इसके बारें में चर्चा करते है, इस लेख में :-
हम सभी की आँखों में एक प्राकृतिक लेंस होता है। जब यह लेंस धुंधला पड़ने लगता है तब दिखाई देना कम हो जाता है। इसी लेंस के धुंधले पड़ने को ही कैटरैक्ट या आम बोलचाल की भाषा में मोतियाबिंद कहते है।
डॉ कीर्ति कुमार अयाचित, सीनियर कन्सलटेंट, सेंटर फॉर साईट, गुडगाँव के अनुसार, सामान्यतौर पर यह समस्या उम्र के बढ़ने पर होती है। मगर कई बार इस समस्या का कारण उम्र के बढ़ने के साथ किसी प्रकार का ट्रोमा या फिर मैटाबोलिक डिसआर्डर जैसे डायबटीज, हायपोथायरोइड या आँखों में सूजन का आना भी हो सकता है।

क्या है इसके लक्षण : -
  • धुंधला दिखाई देना
  • रंग का फीका, हल्का या साफ़ दिखाई न देना
  • तेज रोशनी या सूरज की रोशनी के प्रति सैंसटिविटी
  • रात में कम दिखाई देना
  • रात के समय देखने में कठिनाई होना, आदि।
चंद सवाल कैटरैक्ट के : -
कैटरैक्ट यानि मोतियाबिंद को लेकर मन में बहुत से सवाल उठते है। आइये उन सवालों का हल डॉ कीर्ति से जानते है :-

इसका निर्माण कैसे होता है ?
कैटरैक्ट की समस्या बुजुर्गों में या बढती उम्र में देखने को मिलती है। जैसे जैसे उम्र बढती चली जाती है प्रोटीन जोकि मानव क्रिस्टल लाइन में होता है, उसमें कई प्रकार के कैमिकल बदलाव आने लगते है। इन्हीं बदलावों के कारण यह लेंस अपारदर्शी होता चला जाता है जोकि कैटरैक्ट का निर्माण करता है।

क्या चश्मे का नम्बर बदलकर कैटरैक्ट से निपटा जा सकता है?
सबसे आम सवाल जो ज्यादातर इस समस्या से ग्रस्त रोगी के मन में आता है। कैटरैक्ट की समस्या में धुंधला इसलिए दिखाई देता है क्योंकि कैटरैक्ट में रोशनी आँखों के भीतर नहीं जा पाती है। यहीं कारण है कि रोशनी रैटिना तक नहीं पहुँच पाती है जिस कर्ण व्यक्ति को धुंधला दिखाई देता है। इसलिए यदि आप सोच रहे है कि आप केवल चश्मे का नम्बर बदलकर ही कैटरैक्ट के धुंधलेपन से निपट सकते है तो आप गलत सोच रहें है। कैटरैक्ट से निपटने के लिए ऑपरेशन करना जरुरी है।
क्या कैटरैक्ट और ब्लड प्रैशर के बीच कोई सम्बन्ध
है? जी हाँ कैटरैक्ट और ब्लड प्रैशर के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। यदि ऑपरेशन के पहले या दौरान रोगी का ब्लड प्रैशर अधिक हो तो ऑपरेशन कर पाना संभव नहीं होता है। इसलिए ब्लड प्रैशर का नियंत्रित रहना कैटरैक्ट की समस्या में बहुत जरुरी है।

क्या सर्जरी के बाद किसी प्रकार की सावधानी बरतनी जरुरी है?
जी हाँ, ऑपरेशन के बाद रोगी को सावधानी बरतनी चाहिए। कुछ महत्वपूर्ण बातें जिन्हें रोगी को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, वह है : -
  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयों का प्रयोग चार से छह सप्ताह तक करें।
  • अपने शुगर और ब्लड प्रैशर को भी नियंत्रित रखने का प्रयास करें।
  • सिर धोते समय विशेष सावधानी बरतें
  • अगर आप घर से बाहर जा रहे है तो गहरे रंग के सन ग्लासिस पहनकर ही जाएँ।
  • पौष्टिक भोजन का सेवन करें।
उपचार :-
कैटरैक्ट के उपचार की कई नयी तकनीकें अब उपलब्ध है। अगर आप फैकोमुलसुफिकेशन को मल्टीफ़ोकल आईओएल के साथ किया जाता है तब कैटरैक्ट सर्जरी के बाद चश्मा पहनने की कोई जरुरत नहीं होती है। मगर यदि आप इसे मोनोफोकल आईओएल के साथ करते है तब पढने के लिए चश्में का प्रयोग करना जरुरी होता है।

एक अन्य नई तकनीक है जिसमें फैकोमुलसुफिकेशन को फोल्डेबल आईओएल के साथ किया जाता है। इस तकनीक का प्रयोग कई आई सेंटर में अब किया जाने लगा है।

इन सब नई तकनीकों के अलावा कुछ पुरानी तकनीकें जैसे एसआईसीएस, इसीसीइ का प्रयोग आज भी कई जगहों पर किया जाता है।

कैटरैक्ट यानी मोतियाबिंद से मुक्ति पाने के लिए कई सरकारी, एनजीओ और प्राइवेट सेंटर है। अलग अलग जगहों पर इसकी कीमत भी अलग अलग है। इसकी कीमत नि:शुल्क से होकर साठ हजार तक हो सकती है।

यदि आपके घर में कोई बुजुर्ग है और जिन्हें दिखने में कठिनाई हो रही हो तो तुरंत जाकर उनकी आँखों की जाँच अवश्य कराएँ।

रविवार, 4 अप्रैल 2010

अपना ख्याल रखना


कहते है न अगर शरीर स्वस्थ हो तो जीवन में खुशियाँ भी आती है और सम्पन्नता भी। पर इतनी बिजी जीवनशैली में किसी के पास टाइम कहाँ है की वह आराम से बैठ कर इस बात पर विचार करें कि वह अपने शरीर को स्वस्थ रखने की कसौटी पर कितना खरा उतर रहा है? पर सच्चाई यह है कि आपका स्वास्थ्य आपके हाथ में, अब आप चाहे तो आप अपने शरीर को स्वस्थ रखे या फिर अनजान बनकर अपने शरीर को बीमार करते रहें।

आईये कैसे आप अपनी केयर करें इस बात पर चर्चा करते हैं : -


आई केयर :-

आँखों से हम बहुत प्यार करते है। फिर भी उनका ध्यान रखना हम जरुरी नहीं समझते है। युवाओं में यह बहुत प्रचलित रिवाज है जिसमें सुंदर दिखने के चक्कर में वे चश्मा पहनने से बचते फिरते है। कई बार तो यह पता होने पर भी की आँखे कमजोर है हम अपनी आँखों की जाँच इस डर से नहीं करते है कि कहीं डॉक्टर चश्मा पहनने की सलाह दें। जबकि वास्तविकता यह है कि चश्मा पहनना बहुत जरुरी है।


यह तो रहीं आँखों के प्रति लापरवाही की सामान्य बात, गम्भीर बात यह है कि डायब्टीज या हायपरटेंशन का शिकार रोगी भी अपनी आँखों के प्रति लापरवाही का रवैया अपनाते है। डायब्टिक और हाई ब्लड प्रेशर के रोगी को आँखों के प्रति सामान्य व्यक्ति की तुलना में ज्यादा सतर्क रहना चाहिए। इस समस्या से ग्रस्त रोगी का आँखें कमजोर होना या मोतिया बिन्द की समस्या बहुत ही सामान्य होती है। अगर आप या आपके अभिभावक में से किसी को डायब्टीज या हायपरटेंशन है तो मोतियाबिंद की जांच कराएँ


क्या करें :-

डॉ मनोज राय मेहता, सीनियर कसलटेंट, औपथमोलोजी, मूलचंद आई क्लिनिक, मूलचंद मेडसिटी के अनुसार,


  • यदि आपकी आँखें कमजोर हो तो चश्मा अवश्य पहने।

  • साल में एक बार आँखों का टेस्ट अवश्य कराएँ। आँखों के कमजोर होने तक का इन्तजार बिलकुल न करें। बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी आई ड्रॉप का प्रयोग न करें। यदि आप ऐसा करते है तो आपको परिणाम के रूप में एलर्जी का सामना करना सकता है।

  • डायब्टिक रोगी को अपनी आँखों का टेस्ट नियमित रूप कराते रहें। अपने ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर के स्तर को नियंत्रित रखे और लेजर फोटोकोगुलशन को डॉक्टर के निर्देशानुसार करें।

  • कंप्यूटर पर काम करने वाले थोड़े थोड़े समय में ब्रेक लेते रहें। इससे आँखों को आराम मिलता है।

हार्ट केयर -
ह्रदय यानि शरीर का पावर हाउस कि महत्ता हमें इसके बीमार होने पर ही पता चलती है। कई बार तो लोगों को यह पता नहीं चल पता है कि उन्हें हृदय सम्बन्धी कोई परेशानी भी है। हाई ब्लड प्रैशर की समस्या अब कम उम्र में भी होने लगी है। कम उम्र से ही धूम्रपान, एल्कोहल का सेवन, वजन ज्यादा होना और वंशानुगत रूप में यह समस्या जन्म ले रही है। कई बार पता चलने पर भी हम सभी डॉक्टर द्वारा दी गयी दवाइयों और बताये गये परहेज का पालन नहीं करना चाहते है क्यूंकि हमें लगता है कि हम एक दम फिट है। जोकि हृदय सम्बन्धी समस्या के परिणाम के रूप में हमारे सामने जल्द ही आ जाता है।


क्या करें -


पारस अस्पताल की कन्सल्टेंट कार्डियोलोजिस्ट डॉ हंसा गुप्ता के अनुसार -



  • अपनी दवाइयों का नियमित रूप से सेवन करें।

  • अपने ब्लड प्रैशर व कोलेस्ट्रोल पर नजर रखें।

  • वजन कम करें। शारीरिक रूप से एक्टिव रहें।

  • पौष्टिक भोजन का सेवन करें।

  • नियमित चैकअप कराएँ जिसमें टीएमटी, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रोल आदि शामिल है।

  • धूम्रपान और एल्कोहल का सेवन करने से बचें।

  • तनाव से बचने का प्रयास करें।

बोन केयर -
हमारे देश में कितनी ही महिलाओं को इस बात का पता ही नहीं चलता है कि वे ओस्टियोपोरोसिस की समस्या का शिकार है। विटामिन डी की कमी और प्रचुर मात्रा में कैल्शियम का सेवन न करने कारण अक्सर भारतीय महिलाओं की हड्डियाँ मजबूती खोने लगती है। मीनोपोज के बाद हो रहे शारीरिक बदलाव भी स्थिति को गंभीर बना देते है।


क्या करें -
अपोलो अस्पताल के कन्सल्टेंट एंडोक्रिनोलोजिस्ट डॉ अम्बरीश मिथल के अनुसार,



  • अपने भोजन में कैल्शियम व प्रोटीन की मात्रा को बढाये।

  • मीनोपोज के बाद सभी महिलाओ को अपना बोन डेंसिटी टेस्ट अवश्य कराना चाहिए। यह टेस्ट आपकी हड्डियों को स्थिति का सही चित्र पेश करती है।

  • व्यायाम करें ताकि आपकी हड्डियाँ मजबूत बने।

सेक्सचुअल हैल्थ केयर -
इतना ज्यादा ज्ञान और जागरूकता के बाद भी हम अक्सर अपने गुप्त अंगों के स्वास्थ्य समस्याओं पर चर्चा करते हुए घबराते है। कई बार अज्ञानता तो कभी समस्या का दूसरों के सामने खुलने के दर से हम अपनी समस्याओं को दबा जाते है, जिसके परिणामस्वरुप हमें बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
अक्सर महिलाओं सेक्सचुअल ट्रांसमिटिड डिजीज, सर्विक्स कैंसर, यूटीआई आदि कुछ ऐसी समस्याएँ है जिनके बारें में वे चर्चा करते हुए घबराती है। पुरुषों के साथ भी ऐसा ही होता है।


क्या करें -
डॉ गीता चड्ढा, सीनियर कन्सल्टेंट गायनोकोलोजिस्ट, इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के अनुसार -



  • नियमित जाँच कराएँ।

  • महिलाओं की सवास्थ्य जाँच में सबसे पहले पेल्विक जाँच को स्थान दिया जाता है। यह प्रौढावस्था की महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी पूर्व सूचना देने में सहायक होता है। आंकड़े यह साफ़ बताते है कि हमारे यहाँ ज्यादातर महिलाये सेक्सचुअल ट्रांसमिटिड डिजीज की गंभीरता को नहीं जानती है। लेकिन पेल्विक जांच की मदद से कुछ कैंसर की जानकारी शुरुआत अवस्था में, प्रजनन अंगो की समस्याए या मासिक धर्म के दौरान होने वाली असहनीय दर्द की समस्या के कारणों का पता लगाया जा सकता है।

  • महिलाएं तो फिर भी अपनी समस्याओं पर खुलकर चर्चा कर पाती है मगर कई बार पुरुष अपनी समस्याओं पर सीधे बताने की बजाय घुमा फिरा कर ही चर्चा करते है। यदि आपको भी कोई समस्या परेशान कर रही है तो ओन्कोलोजिस्ट के पास अवश्य जाएँ।

मूलभूत बातें :-



  • साल में जिस तरह आप साल में एक निर्धारित तारीख को अपना जन्मदिन मनाते है, ठीक उसी तरह साल का कोई भी दिन या महीने का निर्धारण कर ले जिस दिन आप अपना पूरा मेडिकल चैकअप करायेंगे।

  • धूम्रपान और एल्कोहल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है। इस सच को अपनाएं और इन्हें अपने जीवन से बाहर करें।

  • तनाव से बचने का प्रयास करें।

अपने शरीर की सुने। यदि आपका शरीर आपको लक्षणों के माध्यम से यह बता रहा है कि वह बीमार ही तो अपने शरीर की सुने।