मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

सेलिब्रेट करें, क्रिसमस केक के साथ 

दिसम्बर का महीना यानी क्रिसमस और नए साल के जश्न का महीना, जो अपने साथ लेकर आएगा खूब सारी पार्टीज और स्वादिष्ट भोजन की बहार। ख़ुशी के इन पलों को बिना मीठे नही मनाया जा सकता है। तो फिर चलिए, मिलकर कुछ स्वादिष्ट केक रेसिपी पर चर्चा करते है।

चॉकलेट चिप एंड नट केक 

सामग्री :  2 ½ कप मैदा, 3 छोटे चम्मच बेकिंग पाउडर, 1 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा, 1/4 छोटा चम्मच नमक, 1 कप मक्खन, 1 कप चीनी, 3 अंडे, 1 कप कटे हुए मेवें (विशेष रूप से अखरोट), 2 छोटे चम्मच सौर क्रीम, 1 कप चॉकलेट चिप्स, 1 कप वैनिला, 1/2 कप ब्राउन शुगर, 2 छोटे चम्मच दालचीनी

कैसे बनाएं : ओवन के तापमान को 350 डिग्री पर सेट कर, उसे गर्म कर ले। पेन पर अच्छे से मक्खन की परत लगा ले। अब बेकिंग सोडा, बेकिंग पाउडर और नमक को मैदे में मिला ले। इसी मिश्रण में मेवों को मिला दें। दूसरे बर्तन में मक्खन, चीनी और अण्डों एक साथ फेंट लें। इसी मिश्रण में सौर क्रीम और वैनिला को भी मिला ले। अब दोनों मिश्रण को एक साथ मिला दे। 1/2 कप चॉकलेट चिप्स, ब्राउन शुगर और दालचीनी को मिक्स कर दे। अब आधे मिश्रण को मक्खन लगे पेन में फैलाएं और उस पर चॉकलेट चिप्स वाले मिश्रण की एक परत फैला दे। अब बाकि बचे मिश्रण को अच्छे से फैला दे। अंत में चॉकलेट चिप्स को ऊपर से डाल दे। गर्म ओवन में इसे 20 मिनट तक बेक करें। समय पूरा होने पर इसे ओवन से बाहर निकाल दे और 5 मिनट के लिए ठंडा होने दे। केक को पेन से निकले और गर्मागर्म सर्व करें।

सेब दालचीनी मफिन्स

सामग्री: 2 सेब, 1 कप मैदा, 1/2 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा, 1 कप मक्खन, 1 कप पीसी हुई चीनी, 1 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच वैनिला एसेंस, 1/2 कप कटे हुए अखरोट, 2 से 3 बड़े चम्मच दूध, मफिन मोल्ड को ग्रीस करने के लिए थोडा सा मक्खन

कैसे बनाएं : ओवन के तापमान को 200 डिग्री पर सेट कर, उसे गर्म कर ले। मफिन मोल्ड्स पर मक्खन लगा ले। सेब को छोटे टुकड़ों में काट कर अलग रख ले। मैदे में बेकिंग सोडा और पाउडर मिला ले। एक बर्तन में मक्खन ले और उसे तब तक फेंटे जब तक मक्खन मुलायम न हो जाये। अब इसमें पीसी हुई चीनी को अच्छे से मिला दे। अब इसी में कटे हुए सेब, दालचीनी और वैनिला एसेंस को भी मिला दे। अब थोडा-थोडा कर इसमें मैदा और अखरोट को भी मिलाये।
अब हर मोल्ड में 2 चम्मच मिश्रण को डालकर इसे ओवन में 20-25 मिनट के लिए रख दे। समय पूरा होने पर मफिन्स को बाहर निकल ले और सर्व करें।

ऐगलेस कंडेंस्ड मिल्क वैनिला केक

सामग्री: 140 ग्राम मैदा, 1½ छोटे चम्मच बेकिंग पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच सोडा, 200 ग्राम  कंडेंस्ड मिल्क,60 ग्राम पिघला मक्खन, 1 छोटा चम्मच वैनिला एसेंस

कैसे बनाएं : मैदा, बेकिंग पाउडर और सोडा को मिला ले। अब एक अलग बर्तन में कंडेंस्ड मिल्क, पिघला मक्खन, वैनिला एसेंस, 75 मिलीलीटर पानी को अच्छे से मिलाएं। अब दोनों  मिश्रणों को एक साथ मिला ले। मिश्रण को मक्खन लगे पेन में डाले और 200 डिग्री पर ओवन में 10 मिनट के लिए बेक करें। 10 मिनट बाद तापमान 150 डिग्री कर दे और 15 मिनट तक बेक करें।
तैयार केक को गर्मागर्म सर्व करें।

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

रहें फिट डांस योग के साथ 

डांस योग के साथ आप स्वस्थ तन और मन की प्राप्ति कर सकते है। या यूँ भी कह सकते है कि डांस योग, नाचने के आनंद और योग के लाभ का एक परफेक्ट मिश्रण है। नाचते समय हम भावनाओं को व्यक्त करते है और योग हमारे तन-मन को स्वस्थ रखने में मदद करता है। इसलिए डांस योग को करते समय आप बोर नहीं होते है बल्कि आपको इसे करते हुए और भी आनंद मिलता है। यह एक तरफ एरोबिक है तो दूसरी तरफ रिलैक्सिंग भी।

योग का बढ़ता प्रचलन :

विश्व भर में योग और उससे मिलने वाले लाभों की चर्चा का बाज़ार गर्म है। सभी जानते है कि यदि आप आसनों को सही तकनीक से करें तो उससे केवल लाभ ही मिलेगा। साथ ही योग में उम्र की कोई सीमा नही है। कोई भी उम्र का व्यक्ति संगीत की धुनों पर इस योग को कर सकता है। डांस योग शक्ति के साथ-साथ शरीर में लचीलापन लाने में भी मदद करता है।

ताल मिलाते आसन :

डांस योग में नृत्य की कुछ मुद्राएं होती है। ये मुद्राएं आपके ऑरा और प्राण शक्ति (जीवन शक्ति ) को मजबूती देते है। इससे आपके भीतर सकारात्मक शक्ति का संचार होता है। इसमें जिन नृत्य मुद्राओं को लिया जाता है उसका सम्बन्ध कत्थक शैली से है। नृत्य की ये मुद्राएँ बहुत ही सरल है और कोई भी उम्र का व्यक्ति इसे आसानी से कर सकता है। डांस योग के लिए विशेष प्रकार के संगीत को तैयार किया गया है। प्राणायाम, संगीत सम्बन्धी आसन, योग निद्रा और मन्त्रों द्वारा किये जाने वाले ध्यान को मिला कर इस प्रोग्राम को बनाया गया है।

डांस योग करने से शरीर की आंतरिक शक्ति का विकास होता है। यदि शरीर की आंतरिक शक्ति मजबूत होगी तो आपका हृदय भी स्वस्थ रहता है। ऐसा माना जाता है कि डांस योग करने से तनाव, अवसाद, अनिद्रा, एलर्जी, मोटापा, हृदय सम्बन्धी समस्याओं से निजात पाने में मदद मिलती है।

आनंदमयी डांस योग का लाभ उठाएं और मनोरंजन के साथ स्वस्थ शरीर भी पाएं. 

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

चुनें सही परफ्यूम 

यदि आपको किसी महिला मित्र को कोई गिफ्ट देना हैं तो आप सबसे पहले किस विकल्प को चुनेंगे? जी हाँ, ज्यादातर लोग परफ्यूम्स को ही प्राथमिकता देंगे। लेकिन अब परफ्यूम्स का सम्बन्ध केवल महिलाओं से नहीं रह गया है बल्कि पुरुषों  ने भी अब इससे महत्त्व देना शुरू कर दिया है। इतना होने के बावजूद भी हम अक्सर परफ्यूम खरीदते समय गलतियाँ कर देते हैं। आइए, जानने का प्रयास करते है कि कैसे आप परफेक्ट परफ्यूम का चुनाव करें। 

परफ्यूम किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उभारने में मदद करते है। सरल भाषा में कहें तो ये आपकी पर्सनालिटी में चार चाँद लगाते है। वैसे तो परफ्यूम्स कई खुशबुओं या प्रकारों में होते हैं। मगर इसके मुख्य प्रकार है : फ्लोरल, वुडी, स्पाइसी, ओरिएंटल, ग्रीन, आदि। 

कैसे करें चुनाव :
  • सबसे पहले प्राथमिकता दे अपनी पसंद को। आपको जिस तरह की खुशबू पसंद है, उसी के अनुसार अपने परफ्यूम का चुनाव करे।
  • ऐसी खुशबू को चुनने जो आपके व्यक्तित्व को दर्शाती हो। जैसे यदि आप दोस्तों के साथ बाहर जा रहे है तो आप इस अवसर के लिए तेज खुशबू वाले परफ्यूम को चुन सकते है। 
  • सबसे जरुरी बात, हमेशा परफ्यूम को खरीदते समय उसे अपनी स्किन पर टेस्ट अवश्य कर ले। याद रहें, हम सभी की स्किन की एक नेचुरल महक होती है। जब प्रयोग किये गए परफ्यूम की खुशबू, आपकी स्किन की नेचुरल खुशबू से मिलती है तब उस परफ्यूम की असल महक थोड़ी सी बदल जाती है। इसलिए ये बिल्कुल भी जरुरी नहीं है कि जो परफ्यूम आपकी दोस्त पर अच्छी लगती है वह आप पर भी अच्छी लगेगी।
  • परफ्यूम हमेशा किसी अच्छी जगह से ही ख़रीदे। साथ ही पसंद आने वाले परफ्यूम के फॅमिली के अन्य परफ्यूम पर भी एक नजर डाल ले। 
  • इन सब बातों के अलावा अपने बजट का भी ध्यान रखें। 
एक ज़माना था जब लोग केवल एक ही खुशबू के परफ्यूम को अपना लेते थे। मगर आज स्थिति कुछ और ही है। आज आप अवसर और जरुरत के अनुसार अपने परफ्यूम में बदलाव ला सकते है। तो अगली बार जब भी परफ्यूम खरीदने के लिए जाएँ तब इन बातों को अवश्य ध्यान में रखे और अपने लिए बेस्ट परफ्यूम का चुनाव करें। 

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

टैलेंट नही होता विक्लांगता का मोहताज


कहते हैं ना दोस्तों जब जज्बात हो आगे बढ़ने का तो रास्ता खुद ही बनता चला जाता है। चाहें आप शारीरिक और मानसिक रूप से कितने ही कमजोर हों मगर टैलेंट कभी छुपता नही। हर इंसान में कुछ ना कुछ टैलेंट होता है, चाहें वो नाॅर्मल हो या एब्नाॅर्मल। इस स्टोरी में हम आपके सामने ऐसे ही दो टैलेट की सफलता के बारे में बता रहे हैं। जिन्होंने अपने परिवार वालों का ही नहीं, देश का सीना भी गर्व से उंचा किया है। इन्हांेने कभी भी अपनी विक्लांगता को अपनी कमजोरी नही बनने दिया।

तीन दिसंबर को विश्व विक्लांगता दिवस है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम लेकर आये हैं आपके सामने कि कैसे लोग विक्लांग होने के बावजूद भी अपने सपनों को साकार करते हैं। अगर आप को कोई भी विक्लांगता है तो आप भी हमारे इन हीरो से प्रेरणा लेकर सफलता की वो दास्तां लिख सकते हो जिसके लिए लोग तरसते हैं। जिस सफलता पर अपने ही नही, दुनिया वाले भी आपको सलाम करते हैं।

नानकचंद एग्लो काॅलिज की मानोविज्ञान विषय की प्रोफेसर रीतिका रस्तोगी कहतीं हैं कि कुछ लोगों में ऐसी भावना आ जाती है कि मैं तो विक्लांग हूॅ मैं खेल नहीं सकता, मैं गा नही सकत, मैं लोगों के सामने अपने आप को सही से प्रस्तुत नहीं कर सकता। यहीं हींन भावना विक्लांग लोगों को आगे बढ़ने से रोकती है। अगर इसी हीन भावना को इनके अंदर से निकाल दिया जाये तो ये लोग आसमान की बुलंदियों को छूने को तैयार रहते हैं।

एच. एन. गिरिश, लंदन पैराआॅलंपिक के सिल्वर मेंडलिस्ट। इन्होंने हर भारतीय को उस वक्त गौरवान्वित कर दिया जब दुनियाभर के एथलीटों को पछाड़े हुए पुरूष उंची कूद में दूसरा स्थान हांसिल किया। उस वक्त हर भारतीय खेल प्रेमी का सीना गर्व से चैड़ा हो गया था। क्योंकि पदक जीतकर भारत का तिरंगा फहराने वाले वो भारतीय दल के अकेले युवा थे।

गिरिश के बारे में जानने के लिए हमने बात की उनके पिता श्री नागेराजे गोंडवा से। उनके पिता ने बताया कि गिरिश का जन्म 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस के दिन 1988 को हुआ। वैसे तो देशप्रेम की भावना इसी बहाने गिरिश में बचपन से ही पैदा हो गई थी। उनका एक पैर बचपन से ही बीमारी का शिकार हो गया था, इस वजह से उन्हें युवा जीवन में कई परेशानियां देखनी पड़ी। मगर उनका हौंसला कभी कमजोर नही हुआ।

टैलेंट की पहचान
जब कर्नाटका स्पोर्टस एसोसिएशन फोर फीजिकली हैंडिकेप्ट के सदस्यों ने देखा कि एक हैंडिकेप्ट लड़का नाॅर्मल लड़कों को पीछे छोड़ रहा है तो तुरंत गिरिश के टैलेंट को पहचानकर एसोसिएशन में आने का न्यौता दे दिया। फिर क्या था गिरिश ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और आज वो देश के चोटी के एथलीटों में गिने जाते हैं।

सफर सफलता का
गिरिश की सफलता की कहानी तो उस वक्त ही लिखी जा चुकी थी, जब उन्हें पहली बार स्टेट लेवल मीट में नाॅर्मल एथलीटों को चुनौती दी। इंटरनेशनल लेवल पर गिरिश ने जूनियर पैरा आॅलंपिक खेलों में आयरलैंड में कांस्य पदक जीतकर पहली बार अपनी प्रतिभा का नमूना पेश किया। इसके बाद गिरिश ने नेशनल हाई जंप चैपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश में अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित किया। गिरिश ने कुवैत और मलेशिया की एथलीट मीट में भी गोल्ड मैण्डल अपने नाम किया। लेकिन हर एथलीट का जो सपना होता है कि वो आॅलंपिक में आपे देश के लिए मेण्डल जीते। गिरिश की ये ख्वाहिश उस वक्त पूरी हो गई जब उन्होंने लंदन पेराआॅलंपिक में सिल्वर मैण्डल जीता। इसके बाद देश का हर खेल प्रेमी गिरिश की सफलता का गुणगान करने लगा।

मलाल गिरिश का
गिरिश के पिताजी कहते हैं कि उसने यहां तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत की। एक बार तो गिरिश थक गया और बोला कि में हैंडीकेम हूं और दूसरे एथलीटों को चुनौनी नही दे सकता। लेकिन इसी वक्त कर्नाटका स्पोर्टस एसोसिशन के कोच ने उसे मनौवैज्ञानिक रूप से इतना मजबूत बना दिया कि कभी उसने अपनी विक्लांगता के बारे में नही सोचा। लेकिन आज हमें इस बात का दुख है कि दूसरे आॅलंपिक मेण्डल धारकों की तरह सरकारों और आयोजकों ने सम्मान नही दिया।

समाज विक्लांगों के टैलेंट को जाने
गिरिश कहते हैं कि हमारा समाज विक्लांग लोगों के टैलेंट को आज भी उस नजर से नही देखता जिस नजर से नाॅर्मल लोगों को लिया जाता है। आज लोगों को उनकी लाइफ के साथ भावुकता का जुड़ाव दिखाने के साथ ही इस टैलेंट को वास्तविक टैलेंट मानने की जरूरत है।

अब हम बात करते हैं टीवी रीयलटी शो इंडिया गाॅट टैलेंट की, जिसमें कई शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हर उम्र के लोग अपने टैलेंट से लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। इनमें से कमल किशोर शर्मा भी एक हैं। जिनकी उम्र 53 साल है। वो बोल नही सकते, सुन नहीं सकते, लेकिन फिर भी वो हर उस इंसान की तरह जी रहे हैं जैसे नाॅर्मल इंसान अपनी जिंदगी को जीता है। बल्कि उनके पारिवारिक जीवन को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे जिंदगी में कोई कमी है ही नही।

ख्वाहिश दुनिया को अपना टैलेट दिखाने की
वैसे तो एक इंसान जो सुन नही सकता, बोल नही सकता उसकी पारिवारिक और सरकारी नौकरी को देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है। कमल जी का भरा पूरा परिवार हमें दिखाता है कि विक्लांगता को ओढ़ना नही चाहिए। आज कमल जी एक नाॅर्मल इंसान की तरह अपनी सरकारी नौकरी करते हैं। उनके अपने प्यारे बच्चे हैं। मगर उनकी ख्वाहिशें आज भी रूकने का नाम नही ले रहीं। उनकी एक ख्वाहिश थी कि इंडिया गाॅट टैलेंट में जाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना। जिसे पूरा करने के लिए वो पहुंचे अपने परिवार के साथ इंडिया गाॅट टैलेंट में। जहां जज और दर्शक उनके टैलेंट के कायल हो गये।

परिवार ने दिया हर कदम पर साथ
कमल किशोर कहते हैं कि मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा। चाहें मेरा बचपन हो जिसमें मेरे मम्मी-पापा ने मुझे कभी भी अलग नही समझा। मुझे कभी भी मेरी कमजोरी का अहसास नही होने दिया। आज भी मेरी पत्नी और मेरा बेटा हर वक्त मेरे साथ खड़े होते हैं।

कहानी रीयलटी शो की
टीवी पर रीयलटी शो को देखते हुए मेरे मन में आया कि मैं भी यहां अपना टैलेंट दिखा सकता हूं। जब मैने ये बात अपने बेटे और अपनी पत्नी से बताई तो वो एकदम से खुश हो गये। मेरा बेटा गौरव शर्मा मेरे साथ इंडिया गाॅट टैलेंट में मेरे साथ आया। मुझे यहां आकर अपने आप पर अब तो इतना विश्वास हो गया कि मैं वो हर काम कर सकता हूं जो एक आम इंसान कर सकता है।

कमल किशोर कहते हैं कि मैं उन लोगों से एक बात ही कहना चाहता हूं जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं, वो कोई भी कार्य करते वक्त ये ना सोचें कि मैं ये काम नही कर सकता बल्कि ये सोचें कि मैं ये काम कैसे कर सकता हूं।
आपने हमारे साथ हमारे दो हीरो के बारे में जाना कि कैसे उन्होंने अपनी कमजोरी को कभी भी अपने रास्ते में नहीं आने दिया। कैसे वो सफलता सीढि़ चढ़ते चले गये। तो फिर आप क्यों नही कर सकते ऐसा। तो आज से ही रखिए अपने जीवन में एक टार्गेट। क्योंकि इस टार्गेट को प्राप्त करने के लिए आपके साथ होगी हमारे इन हीरोज की प्रेरणा।  
     

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

गाइडिंग फोर डाइटिंग के फंडे


नेहा मल्होत्रा एक पीआर हैं। बहुत सारी चीजों को एक साथ मैनेज करना होता है उन्हें। लेकिन इस मैनेजमेंट में वों कहीं ना कहीं खुद का ध्यान रखना भूल जाती हैं। एक दिन अचानक उनकी एक पुराने मित्र से मुलाकात हुई। तब उस दोस्त ने बताया कि आप थोड़ी हैल्दी लग रही हैं। इसके बाद कैयरिंग नेहा ने तुरंत डाइटिंग करने का मन बना लिया। लेकिन वनज कम करने के चक्र में वो अचानक ही बीमार पड़ गईं। क्योंकि नेहा को डाइटिंग का सही तरीका पता नही था। आपके साथ भी ऐसा हो सकता है। तो इसी को जानने के लिए हम बता रहे हैं अपने एक्सपर्ट के साथ सही डाइटिंग के कुछ फंडे।

मेदान्ता अस्पताल की वरिष्ठ डाबेटीशियन डाॅ. शुभदा भनौत बतातीं है कि वजन कम करने के चक्कर में हम बिना सोचे समझे डाइटिंग करने लगते हैं। इस तरह वजन कम हो न या हो, लेकिन बाद में उसके साइड इफेक्ट्स जरूर भुगतने पड़ते हैं। इसलिए डाइटिंग शुरू करने से पहले इससे जुड़े कुछ मिथ्स जरूर जान लें।

फैट फ्री डाइट अच्छी है 

वजन कम करने के लिए आप फैट इनटेक को कम करना चाहते हैं, तो डाइट में से फैट्स एकदम हटाने की जरूरत नहीं है। डाइटिशंस का कहना है कि खाने में एक पर्याप्त मात्रा में फैट्स होने जरूरी हैं, जो एनर्जी लेवल को बनाए रखने, टिश्यू रिपेयर और विटामिंस को बॉडी के सभी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए जरूरी हैं। इसलिए डाइट में से फैट्स को पूरी तरह हटाने के बजाय आप मक्खन जैसे सैचुरेटेड फैट्स को अवॉइड करें और इसकी जगह ऑलिव ऑयल यूज करें।

रात को देर से खाना वजन बढ़ाता है 

यह बात अक्सर कही जाती है कि रात को 7-8 बजे के बाद कुछ नहीं खाना चाहिए। दरअसल, यह बात इतना मायने नहीं रखती कि आप डिनर कितने बजे ले रहे हैं, बल्कि मुद्दा यह है कि आप खा क्या रहे हैं! यह जरूरी नहीं है कि रात को खाने से बॉडी में फैट जमा होता है। बस, इस बात का ध्यान रखें कि सोने से कुछ घंटे पहले ही खाना खा लें, ताकि सोने से पहले यह अच्छी तरह पच सके।

खास चीजों को अवॉइड करते हैं 

खाने की चीजों को लेकर बहुत सी गलत धारणाएं हैं कि अगर आप वजन कम करना चाहते हैं, तो कुछ खास चीजें आपके लिए अच्छी हैं और कुछ खास खराब। अगर फल, सब्जियां और नट्स हेल्दी ऑप्शंस हैं, तो जरूरी नहीं कि कार्बोहाइड्रेट्स को आप अपने खाने से पूरी तरह हटा दें। ऐसे में ब्रेड, पास्ता और चावल खाने में कोई बुराई नहीं है।

स्लो मेटाबॉलिज्म एक समस्या है 

यह उन लोगों के लिए एक कॉमन मिथ हैं, जिनका वजन कुछ किलो बढ़ गया है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि आप जितने बड़े हैं, उतनी ही एनर्जी आपकी बॉडी को काम करने के लिए चाहिए होती है। लोगों का वजन तभी बढ़ता है, जब वे खाने में मिलने वाली कैलरीज पूरी तरह बर्न नहीं करते। बेशक ऐसा हमारी आरामदायक लाइफस्टाइल की वजह से होता है।

क्रैश डाइटिंग ही उपाय है 

ड्रास्टिक डाइट से वजन भले ही थोड़े से समय में कम हो जाता है, लेकिन बाद में इससे काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। डॉक्टर्स का कहना है कि वजन कम करने का यह एक अनहेल्दी तरीका है। इस तरह न सिर्फ फैट्स कम होते हैं, बल्कि मसल्स व टिश्यूज पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। फिर क्रैश डाइटिंग से कमजोरी भी आती है। इससे बचने के लिए स्लो और सस्टेन वेट लॉस प्लान फॉलो करें। इससे भले ही आपका वजन धीरे धीरे कम होगा, लेकिन आप उसे लंबे समय तक मेनटेन कर पाएंगे।

कुछ जरूरी बातें
ज्यादा देर भूखे रहने की बजाय थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ खाने की आदत डालिए। अधिक भूख आपको एक साथ ज्यादा खाने को भी प्रेरित कर सकती है। थोड़ी थोड़ी देर में कुछ खाने से पेट भरा हुआ लगेगा।

क्या करें
अपनी फूड हैबिट बदलिए। रोस्टेड और उबले खाने को तवज्जो दीजिए। ज्यादा से ज्यादा फल और हरी वेजिटेबल्स को सैलेड के रूप में खाइए।
खाने से पहले सूप लेना अच्छा रहेगा। इसमें मक्खन और मसाले न डालें।
डिनर सोने से तीन घंटे पहले करें। खाना खाने के तुरंत बाद बेड पर न जाएं।
देर तक चबाकर खाने की आदत अच्छी है और डाइटिंग में हैल्प करती है। मसूढ़ों की एक्सरसाइज के साथ कम खाने की आदत डेवलेप होती है।
दिन में पानी खूब पीएं। वाटर इनटेक से आपका पेट भरा भरा लगेगा और आपकी बॉडी को डिहाइड्रेट नहीं होने देगा।
कोल्ड और सॉफ्ट ड्रिंक के साथ चिप्स, क्रैकर, सॉल्टी नमकीन और चॉकलेट को बॉय बॉय कर दें।
अगर आप भी नेहा की तरह डाइटिंग के साइड इफेक्ट से बचना चाहतीं हैं तो स्टोरी में बताई गई बातें आपकों काफी लाभ पहुंचा सकती हैं।

गठिया और जोड़ों के दर्द से कैसे पायें निजात


  जैसे ही हमारे बुजुर्ग पचास साल की उम्र के करीब पहुंचते हैंए उन्हें हडिडयों और जोड़ों का दर्द परेशान करने लगता है। ऐसे में बुजुर्ग ना तो सीढि़यां चढ़ पाते और ना ज्यादा दूर तक बिना सहारे के चल.फिर पाते हैं। इसकी शुरुआत घुटनों में हल्के दर्द के साथ होती है। धीरे.धीरे यह दर्द हाथों की अंगुलियों के जोड़ों में भी आ जाता है। यह दर्द हिलने.डुलने से बढ़ता जाता है। तो आइएए हम बताते हैं आपको अपने एक्सपर्ट के साथ कि कैसे जोड़ों के दर्द से निजात पायी जा सकती है।

एलएलएम अस्पताल के हडडी रोग विशेषज्ञ डाॅण् अनुराग जैन बताते हैं कि हड्डी और जोड़ों का दर्द बहुत तकलीफदेह हो सकता है। इनमें से कुछ समस्याओं के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है। अधिकांश समस्याएं दवाओं से ठीक हो जाती हैं। लेकिन जोड़ों का दर्द ऐसा होता है जो बुढ़ापे में पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन इसके साथ आप कुछ उपाय करके बिना परेशानी के अपना जीवन जी सकते हैं।

हड्डियों के दर्द का कारणः 
हड्डियों का दर्द चोट या इन दूसरी परिस्थितियों के कारण होता हैए जैसे.
   
बोन कैंसर वह कैंसर जो हड्डियों तक फैल चुका हो जिसे मेटास्टेटिक मैलिग्नेंसी कहते हैं।
   
हड्डियों को रक्त की आपूर्ति में अवरोध जैसा कि सिकल सेल एनीमिया में होता है।
   
हड्डियों में संक्रमण जिसे ऑस्टियोमायलिटिस कहा जाता है।
   
ल्यूकेमिया या रक्त कैंसर भीे दर्द का कारण बन सकता है।
   
हड्डियों में खनिज पदार्थों की कमी या ऑस्टियोपोरोसिस।
   
कैपेसिटी से अधिक श्रम करना।
 
जोड़ों के दर्द के कारणः 
ज्वाइंट पेन या जोड़ों का दर्द चोट या इन अन्य कारणों से हो सकता हैए जैसे.

   
अर्थराइटिसए ऑस्टियोअर्थाराइटिसए रयूमेटॉयडअर्थाराइटिस से जोड़ों में परेशानी हो जाती है।
   
ऑस्टियोकोंड्राइटिस की वजह से भी जोड़ों में दर्द होने लगता है।
   
सिकल सेल रोग या सिकल सेल एनीमिया भी जोड़ों में दर्द का कारण बन सकता है।
   
स्टेरॉयड ड्रग भी कुछ लोगों में परेशानी का कारण बन जाती हैं क्योंकि कभी.कभी ये बहुत अधिक मात्रा में ले ली जाती हैं जो नुकसानदायक होती हैं।
   
कार्टिलेज फटने की वजह से जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है क्योंकि घायल कार्टिलेज की वजह से चलने.फिरने पर दर्द महसूस होता है।
   
जोड़ों का संक्रमण भी जोड़ों के दर्द का कारण बन जाता है।
   
ट्यूमरः अगर किसी जोड़ की जगह टयूमर बन गया तो उससे चलने.फिरने में बहुत परेशानी होती है।
   
घिसा हुआ लिगामेंटः उम्र बढ़ने के साथ.साथ जोड़ों का लिगामेंट घिस जाता है। जिससे सही तरीके से जोड़ काम नहीं कर पाते और दर्द महसूस होता है।
   
कार्टिलेज का घिसनाः उम्र के साथ ज्यादातर बुजुर्गों के घुटनों का कार्टिलेज घिस जाता है। इससे घुटने सही तरीके से काम नहीं कर पाते।

हड्डियों और जोड़ों के दर्द के लक्षण हैं

   
चलनेए खड़े होनेए हिलने.डुलने और यहां तक कि आराम करते समय भी दर्द।
सूजन और क्रेपिटस।
चलने पर या गति करते समय जोड़ों का लॉक हो जाना।
जोड़ों का कड़ापनए खासकर सुबह में या यह पूरे दिन भी रह सकता है।
वेस्टिंग और फेसिकुलेशन।
अगर बुखारए थकान और वजन घटने जैसे लक्षण होंए तो कोई गंभीर अंदरूनी या संक्रामक बीमारी हो सकती है। ऐसे में आपको डॉक्टर से तुरंत बात करनी चाहिए।

जांच और रोग की पहचान
डॉण् अनुराग बताते हैं कि रोग की पहचान करने के लिए आपके चिकित्सकीय इतिहास के बारे में पूछा जाता है और शारीरिक जांच की जाती हैं। चिकित्सकीय इतिहास में दर्द की जगहए दर्द के समयए पैटर्न और किसी भी अन्य संबंधित तथ्य से जुड़े सवाल पूछे जा सकते हैं। इनमें से कोई एकए या अधिक जांच किये जा सकते हैंण्

हड्डियों और जोड़ो का एक्स.रेए जिसमें हड्डियों का एक स्कैन शामिल है।
हड्डियों और जोड़ो का सीटी या एमआरआई स्कैन।
होर्मोन के स्तर का अध्ययन।
पिट्यूटरी और एड्रीनल ग्रंथि की कार्यक्षमता का अध्ययन।
यूरीन का अध्ययन

उपचार
जोड़ों के दर्द को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अगर आपकी समस्या उग्र या साधारण हैए आप ओटीसी दर्दनिवारकों का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन अगर आपका दर्द लगातार बना हुआ है या किसी चोट या कटने या सर्जरी के बाद शुरू हुआ हैए तो डॉक्टर से मिलें।

पोषक तत्वः
इससे बचने के लिए विशेषज्ञ अपने आहार में ऐसे फलों और सब्जियों को शामिल करने की सलाह देते हैं जिनमें विटामिनए एंटीऑक्सीडेन्ट्स और पौष्टिक तत्व उचित मात्रा में मौजूद हों। कुछ खाद्य.पदार्थो का सेवन और कुछ बातों का ध्यान रखकर इस रोग पर काबू पाया जाया सकता है।

आराम करना और गर्म सेंक देनाः 
साधारण चोट या मोच में आराम और गर्म सेंक के उपयोग से दर्द से राहत पाने में सहायता मिलती है।

व्यायामः 
सामान्य हल्के व्यायाम अर्थाराइटिस या फाइब्रोमाइल्जिया के रोगियों में जोड़ों की गतिशीलता बढानेए दर्द घटाने और दुखती कड़ी मांसपेशियों को आराम पहुंचाने में मदद करते हैं। अगर ये उपाय आपको राहत नहीं दे पाते तो डॉक्टर से मिलें।

इसके अलावा भी कुछ घरेलू उपचार हैं.
अदरक जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने के लिए बहुत कारगर है। रोजाना दो सौ ग्राम अदरक दो बार लेने से दर्द में बहुत राहत मिलती है।
फूलगोभी का रस पीते रहने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
जोड़ों पर नीबू के रस की मालिश करने से और रोजाना सुबह एक गिलास पानी में एक नीबू का रस निचोड़ कर पीते रहने से जोड़ों की सूजन दूर हो जाती है और दर्द नहीं रहता।
जोड़ों में दर्द के समय या बाद में गर्म पानी के टब में कसरत करें या गर्म पानी के शॉवर के नीचे बैठें। आपको निश्चित ही राहत मिलेगी।
दर्द घटाने के बामए क्रीम आदि बार.बार इस्तेमाल न करें। इनके द्वारा पैदा हुई गर्मी से राहत तो मिलती हैए पर धीरे.धीरे ये नुकसान पहुंचाते हैं।
कभी भी दर्द निवारक बाम लगाकर उस पर सेंक न करें। इससे जलन बहुत बढ़ सकती है।
जोड़ों के दर्द के लिए चमत्कारिक दवाएं तेल या मालिश वगैरह के दावे बहुत किए जाते हैं। इनको इस्तेमाल करने से पहले एक बार परख लें।

अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान है तो स्टोरी में बताई गई बातें आपको काफी हद तक लाभ पहुचायेंगी। तो आप इन बातों को अपनाकर काफी हद तक जोड़ों के दर्द से निजात पा सकते हैं।






कहीं आपका पर्स तो नही है बैक पेन की वजह


राहुल मल्होत्रा एक इंटरनेशन काॅल सेंटर में जाॅब करते हैं। आॅफिस में ज्यादातर वक्त उन्हें अपनी चेयर पर बैठकर ही काम करना होता है। वो अपने बैठने के तरीके और आरामदायक चेयर का खास ख्याल रखते हैं। लेकिन फिर भी राहुल को कमर दर्द की शिकायत रहती है। वो परेशान होकर डाॅक्टर के पास गये। डाॅक्टर ने भी उनको आॅफिस में आरामदायक चेयर और सही तरीके से बैठने की सलाह दी। लेकिन एक दिन राहुल को अपनी पिछली जेब में रखे पर्स से, बैठने में परेशानी महसूस हुई। तो उन्होंने सोचा कहीं इसी पर्स की वजह से उनकी रीढ की हडडी में दर्द तो नही होता। जब उन्होंने डाॅक्टर से इसके बारे में बात की तो डाॅक्टर ने बताया कि हां आपका पर्स भी आपके कमर दर्द का कारण हो सकता है।

ये कुछ ऐसा है जिस पर हम रोजमर्रा की, भागती दौड़ती जिंदगी में ज्यादा ध्यान नहीं देते। लेकिन ये वाकई आपकी रीढ़ की हड्डी में दर्द पैदा कर सकता है। इसके अलावा भी कई तरह की परेशानियां खड़ी कर सकता है, खासतौर से उन लोगों के लिए जो राहुल की तरह देर-देर तक कुर्सी पर बैठ कर काम करते हैं। ये तो आप जानते ही होंगे कि कैसे कमर दर्द में चलना-फिरनाए बैठना-झुकना सब मुहाल हो जाता है। ऐसे में इस दर्द से राहत पाने के लिए पहले इसके कारण समझेंगें, फिर निजात पाने के आसान तरीकों को जानेंगे।

कैसे बनता है पर्स, दर्द की वजह

जब आप पर्स को पिछली जेब में रखे हुए, कुर्सी पर बैठते हैं तो ऐसे में वो एक पत्थर की तरह काम करता है। ऐसा लगता है जैसे आप लकड़ी के एक गुटखे पर बैठे हैं। लेकिन आप काम की व्यस्तता की वजह से इस ओर ध्यान नही दे पाते। इससे आपके बैठने का बैलेंस बिगड़ जाता है। जिससे आप अपने शरीर को आरामदायक स्थिति में नही रख पाते। इससे आपको बैक पेन और रीढ की हडडी की समस्या तो होती ही है, पैरों में भी कई तरह की समस्या पैदा हो सकतीं हैं। आप अगर पर्स को पीछली जेब में रखकर गाड़ी भी ड्राइव करते हैं तो भी वो आपके लिए खतरनाक हो सकता है।

क्या होता है पर्स पर बैठने से
इबहास अस्पताल के न्यूरोफिजियोथेरेपिस्ट डाॅक्टर अनिल सारस्वत बताते हैं, जब आप पर्स पर बैठे हैं तो समझों एक लकड़ी के टुकड़े पर बैठे हैं। इससे अपकी सीएटिक नर्व सिकुड़ जाती है। जिसकी वजह से प्रिफोर्मिंग सिड्रोम को सकता है। इससे रीढ की हडडी और कमर में कई तरह की परेशानियां पैदा हो जाती हैं। इसके अलावा आपके पैरों को जाने वाली ब्लड वैसल्स पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे आपके पैरों में कई तरह की परेशानियां हो सकतीं हैं।

क्या करें क्या ना करें
डाॅक्टर अनिल बताते है कि कुछ लोगों में पर्स पिछली जेब में रखना एक पेशन सा बना गया है। इसी वजह से वो भूल जाते हैं कि बैठते वक्त पर्स को जेब से निकालना चाहिए। इसलिए आप जब भी बैठें पर्स को जेब से निकालकर ही बैठें।
ऐसे में हो सके तो पर्स को जेब की वजाय बैग में रखने की आदत डालें क्योंकि इससे आपका पर्स भी सुरक्षित रहेगा और आप भी सेफ रहेंगे।
अगर आप आॅफिस में चेयर पर बैठने जा रहे हैं तो बैठने से पहले पर्स को ड्रायर में रख दें।
कुछ लोग गाड़ी चलाते वक्त भी पर्स को पिछली जेब में ही रखते हैं। इसलिए गाड़ी चलाते वक्त पर्स को निकालकर ही गाड़ी ड्राइव करें।
इसके अलावा भी हमारी छोटी-छोटी आदतें कमर दर्द का सबब बन जाती हैं जैसे क्षमता से अधिक काम, गलत तरीके से उठना-बैठना, अधिक बोझ उठाना, काम करते समय घंटों पानी में भीगना वगैराह। इसलिए इनका भी खास ख्याल रखें।
अगर आप काम के साथ साथ कुछ ऐसी छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें तो वाकई आप अपने आप को काफी हद तक कई तरह की बीमारियों से बचा सकते हैं।




क्या आपको पता है इनसे भी है सीओपीडी का खतरा


सीओपीडी यानि क्रोनिक प्रतिरोधीय फुफूसीय रोग अब ऐसी बीमारी बन गई है जो बुजुर्गों से लेकर युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है। ये बीमारी आज दुनिया में असमय मौत की चैथी वजह बन गई है। जैसे-जैसे शहरों और कस्बों में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है वैसे-वैसे ये बीमारी और अधिक लोगों को अपने चपेट में ले रही है। घरों में खुली हवा का ना पहुंचना और पार्कों का न होना सांस की बीमारियों की बड़ी वजह बन रहा है।

16 नवंबर को सीओपीडी दिवस है। ये एक ऐसी बीमारी है जो हर उम्र के लोगों को किसी भी समय हो सकती है। ऐसे में हमें खुद का और अपनों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है। क्योंकि ये ऐसी बीमारी है जो कई दूसरे कारणों की वजह से भी आपके शरीर को अपना घर बना सकती है। तो आईए इन्हीं कुछ कारणों में से आपको बताते हैं कि क्यों बन जाते हैं ये सीओपीडी की वजह।

निमोनिया 
निमोनिया दोनों फेफड़ों में होने वाला संक्रमण होता है। जो कई तरह के माईक्रोआॅर्गेनिज्म की वजह से होता है जैसे कई बैक्टीरिया, वायरस और फंजाई। निमोनिया में कफ के साथ फीवर और सांस लेने के साथ चेस्ट पेन होता है। निमोनिया में आपके डाॅक्टर आपकी चेस्ट में एबनाॅर्मल साउंड सुनता है। इसके बाद चेस्ट के एक्स-रे से निमोनिया को कन्फर्म किया जाता है। बैक्टीरिया और फंगल से होने वाले इंफेक्शन को तो एंटिबायोटिक से काबू में लाया जा सकता है, मगर वायरल इंफेक्शन के लिए डाॅक्टर दूसरे मेडिसिन का प्रयोग भी करते हैं। क्योंकि निमोनिया से ब्रोंकिट्स पर सीधा सीधा असर पड़ता है। इसकी वजह से सीओपीडी होने का बहुत बड़ा चांस रहता है।

फेफड़े का कैंसर
लंग कैंसर भी दूसरे कैंसर की तरह ही होता है। इसमें फेफड़े की कोशिकाएं अनियमित वृद्धि शुरू कर देतीं हैं। दूसरी कोशिकाओं की तरह कैंसर कोशिकाओं पर शरीर का नियंत्रण नही रहता। इसकी वजह से ये कोशिकाएं मांस यानि बढ़ी हुई कोशिकाओं का एक गुच्छा बना लेती हैं जिसे ट्यूमर कहा जाता है। कैंसर कोशिकाएं दूसरी कोश्किाओं को भी अपनी चपेट में ले लेती हैं। इसके बाद शरीर के उस भाग पर जहां ट्यूमर होता है कैंसर कोशिकाएं उस भाग पर अपना पूरा अधिकार जमा लेती हैं। जिससे वो पार्ट शरीर के अनुसार काम नही कर पाता। फेफड़े का कैंसर फेफड़े की पूरी कार्यविधि को ही डिस्टर्ब कर देता है। क्योंकि फेफड़े का प्राईमरी काम है गैस का एक्सचेंज करना। जिसमें स्वच्छ वायु को हवा से लेकर ब्लड तक पहुंचाना और अस्वच्छ वायु को शरीर से बाहर निकालना। अगर फेफड़े ही अपना काम सही से नही कर पायेंगे तो ऐसे में सांस लेने में कई तरह की परेशानियां पैदा हो सकती हैं। जिसकी वजह से आपको सीओपीडी का खतरा पैदा हो सकता है।

क्रोनिक कफ
वैसे तो डाॅक्टर क्रोनिक कफ को अपने में कोई बीमारी नही मानते। लेकिन कफ लगातार और बार बार आ रहा है तो ऐसे में परेशानी का कारण बन सकता है। क्रोनिक कफ की कई वजह हो सकती हैं जिनमें साइनस समस्या सबसे अहम है। स्टमक कंटेंट का इसोफैगस रिफलैक्स भी क्रोनकि कफ पैदा कर सकता है। इसके अलावा हवा के साथ फेफड़े में किसी बाहरी पदार्थ का पहुंचना भी एक कारण हो सकता है खास करके बच्चों में। सिगरेट का धंुआ क्रोनिक कफ की सबसे बड़ी वजह होती है। अगर क्रोनिक कफ लंबे वक्त तक रहता है तो ऐसे में सीओपीडी का खतरा पैदा हो सकता है।

चेस्ट पैन
चेस्ट पैन की कई वजह हो सकतीं हैं, जिनमें कुछ बहुत ज्यादा सीरियस नहीं होतीं। चेस्ट पैन डाइग्नोस्ट करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दिल में दर्द किस वजह से है। क्या दिल में दर्द दिल के दौरे की वजह से है या फिर पल्मौनरी वैन की कोई वजह है या दूसरा कोई कारण जो जिंदगी और मौत की वजह बन सकता है। अगर चेस्ट पैन लंबे वक्त तक रहता है तो ये जरूरी है कि इसे सही तरह से डाइग्नोंस्ट किया जाये। क्योंकि ये कई दूसरी परेशानियों का कारण भी बन सकता है। जिसमें सीओपीडी भी एक वजह हो सकती है।

अस्थमा
कई लोगों में एक काॅमन बात हो जाती है जिससे अचानक से ही सीनीजिंग और ब्रैथ छोटी होने लगती है। वैसे सांसों का छोटा होना 60 साल की उम्र में दिखाई देता है लेकिन अब ये समस्या बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों सभी में दिखाई दे रही है। जिसकी सबसे बड़ी वजह है, वायुमण्डल में बढ़ता धूंआं और स्मौकिंग की लत के अलावा खुली हवा का ना मिल पाना। जिसकी वजह होती हैं अस्थमा। क्योंकि इसे पूरी तरह से ठीक तो नही किया जा सकता इसलिए इससे कई दूसरी बीमारियां होने का भी खतरा रहता है जिनमें से सीओपीडी भी एक है।
 



बुधवार, 7 नवंबर 2012

क्या आपका पक्षी भी है अवसादग्रस्त है ?


अनीता सहगल मीडिया कर्मचारी हैं। जिनका ज्यादातर वक्त बाहर बीतता है, ऐसे में वो दिमागी रूप से भी काफी थक जाती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अनीता ने एक प्यारा सा तोता अपने घर अपना दोस्त बना रखा है। जिसे बड़ा ही प्यारा नाम दे रखा है पिंटू। उन्हें घर पर तोते से बातें करना काफी पसंद है। लेकिन अचानक से उनका पिंटू सुस्त और उबासी करने लगा। बातें करतें वक्त भी वो एनर्जेटिक दिखाई नही देता। क्योंकि पिंटू नियमित तरीके से खाना खा रहा था। ऐसे में अनीता जी को कुछ भी समझ में नही आ रहा था। जब वो उसे डाॅक्टर के पास ले गईं तो डाॅक्टर ने बताया आपका पक्षी अवसादग्रस्त है। अनीता जी सोचने लगीं क्या पक्षी भी अवसादग्रस्त होते हैं। जी हां ये आपके पक्षी के साथ भी हो सकता है। इसी को जानने के लिए कि क्यों हो जाते हैं पक्षी अवसादग्रस्त हम बता रहे हैं आपको आपने एक्सपर्ट के साथ।
ये काफी हद तक संभव है कि आपका पालतू पक्षी अवसादग्रस्त हो गया है। ये पक्षियों में काॅमन बात है जिसकी काफी वजह हो सकती हैं जैसे-

भूख की कमी-
आगर आपका पक्षी सही तरह से खाना नही खा रहा है तो ऐसे मेे उसे पूरी एनर्जी नही मिल पाती जिससे शरीर में कई सारे पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे भी आपका पक्षी सुस्त रह सकता है।
बीट में बदलाव- अगर आपके पक्षी की बीट में बदलाव दिखाई दे रहा है तो समझ लो उसे कोई ना कोई परेशानी है। ऐसे में तुरंत डाॅक्टर के पास ले जान चाहिए।

चिड़चिड़ापन- 
अगर आपको लग रहा है कि आपका पक्षी सही तरीके से व्यवहार नही कर रहा है तो ऐसे में उसे कोई परेशानी जरूर है। इसलिए तुरंत उसकी जांच कराने की जरूरत होती है।

पंखों का टूटना- 
अक्सर आपने देखा होगा पालतू पक्षियों के पंख अचानक से टूटने लगते है। पंखों का टूटना पक्षी के शरीर में कई रसायनिक तत्वों की तरफ इशारा करता है। इसलिए जरूरी है कि आपको तुरंत अपने डाॅक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इससे आपका प्यारा पक्षी कही ना कही अवसादग्रस्त हो सकता है।

क्या करें
इनमें से कोई भी लक्षण के दिखाई देने पर आप तुरंत अपने एवियन वैट चिकित्सक से फुल चैकअप का एपोंईटमेंट लें। अगर आपका डाॅक्टर पक्षी के अवसादग्रस्त होने का कोई भी चिकित्सकीय कारण बताता है तो तुरंत डाॅक्टर के बताये अनुसार अपने पक्षी का ध्यान रखें।
सबसे पहले ये देखें कि आपके पक्षी के रहने की जगह स्वच्छ और आरामदायक है। अधिकतर ऐसा होता है कि पक्षी अपने रहने की जगह के साफ ना होने की वजह से भी अवसादग्रस्त हो जाता है। ऐसे में ध्यान रहे कि नियमित तौर पर पिंजरे की सफाई की जाये। आप पिंजरे को एक ही जहग ना रहने दें। आपने अनुसार पिेंजरे की जगह को बदलते रहें।
आपको पता है अगर आपके पक्षी को खेलने कूदने के साथ पर्याप्त उत्तेजना ना मिले तो वो अवसादग्रस्त हो सकता है। इसलिए सुनिश्चित करें कि वो पूरे मजे में रहे और खेलने कूदने के उसे पर्याप्त खिलौने मिलें जिससे वो हर पल का पूरा आनंद ले सके। उसे पर्याप्त समय के लिए पिंजरे से बाहर निकाले जिससे वो हमेशा एनर्जेटिक बना रहेगा।
सुनिश्चित करें कि आपका पक्षी परिवार के साथ खेले। परिवार के सदस्य बारी बारी से उसके साथ पर्याप्त समय बितायें। इससे उसे पिंजरे से बाहर निकलने का भी पूरा वक्त मिल जायेगा और उसके व्यायाम भी हो जायेंगे।
अगर आप स्टोरी में बताई गई बातों पर ध्यान देंगे तो आप आपने पक्षी को अवसादग्रस्त होने से बचा सकते हैं।

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

हाथ और चेहरे की स्किन बर्निंग की घरेलू लर्निंग


कभी लापरवाही तो कभी अनजाने में शरीर का कोई हिस्सा जल जाता है। जलने पर तुरंत अस्पताल नहीं जाया जा सकता। अगर जले हुए हिस्से पर तुरंत उपचार नहीं किया जाए तो वह आगे चलकर काफी नुकसान भी पहुंचा सकता है। इसलिए जले हुए भाग का इलाज तुरंत घरेलू नुस्खे अपनाकर करना चाहिए। वैसे भी दीवाली का मौसम है। ऐसे में खास करके बच्चे पटाखे छोड़ने से बाज नही आते। ऐसे में उनके जलने के भी पूरे चांस होते हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि जलने पर सबसे पहले क्या करें।

जलने पर देखभाल
अगर आपका हाथ या चेहरा जल गया है तो ऐसे में हाथ और त्वचा की स्किन का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है।
जलने पर अगर आपके पास एलोवेरा जेल है तो आप इसको जले हुए भाग पर लगा सकते हैं। क्योंकि एलोवेरा घाव भरने के साथ-साथ स्किन की ग्लो में भी लाभदायक होता है।
जलने पर सबसे पहले उस पर ठंडा पानी डालिए। अच्छा तो यह रहेगा कि जले हुए अंग पर नल को खुला छोड़ दें।
जलने पर जीवाणुरहित पट्टी लगाइए, पट्टी को हल्का-हल्का लगाइए जिसके कारण जली हुई त्वचा पर जलन न हो।
हल्दी का पानी जले हुए हिस्से पर लगाना चाहिए। इससे दर्द कम होता है और आराम मिलता है।
कच्चा आलू बारीक पीसकर लगाने से भी फायदा होता है।
तुलसी के पत्तों का रस जले हुए हिस्से पर लगाएं, इससे जले वाले भाग पर दाग होने की संभावना कम होती है।
शहद में त्रिफला चूर्ण मिलाकर लगाने से चकत्तों को आराम मिलता है।
तिल को पीसकर लगाइए, इससे जलन और दर्द नहीं होगा। तिल लगाने से जलने वाले हिस्से पर पडे दाग-धब्बे भी समाप्त होते हैं।
गाजर को पीसकर जले हुए हिस्से पर लगाने से आराम मिलता है।
जलने पर नारियल का तेल लगाएं। इससे जलन कम होगी और आराम मिलेगा।

जलने पर क्या ना करें
जलने पर जले हुए हिस्से पर बर्फ की सेंकाई मत कीजिए। जले हुए हिस्से पर बर्फ लगाने से फफोले पडने की ज्यादा संभावना होती है।
जले हुए जगह पर रूई मत लगाइए, क्योंकि रूई जले हुए हिस्से पर चिपक सकती है जिसके कारण जलन होती है।
जले हुए मरीज को एक साथ पानी मत दीजिए, बल्कि ओआरएस का घोल पिलाइए। क्योंकि जलने के बाद आदमी की आंत काम करना बंद कर देती है और पानी सांस नली में फंस सकता है जो कि जानलेवा हो सकता है।
जले हुए हिस्से पर मरहम या मलाई बिलकुल ही मत लगाइए। इससे इंफेक्शन हो सकता है।
कोशिश यह कीजिए कि जलने वाले हिस्से पर फफोले न पडें। क्योंकि फफोले पडने से संक्रमण होने का खतरा ज्यादा होता है।

जलने के कारण
जलन केवल आग से नहीं होती है बल्कि, गरम तेल, गरम पानी, किसी रसायन, गरम बरतन पकडने और दीवाली के पटाखे बारूद भी हो सकते हैं।
खाना पकाते वक्त महिलाएं अक्सर जल जाती हैं। कभी गरम दूध या फिर गरम तेल जलने का प्रमुख कारण होता है।
बच्चे अक्सर अपनी शैतानियों के कारण आग या फिर गरम पदार्थों की चपेट में आकर चल जाते हैं।

जलने पर सबसे पहले यह देखना चाहिए कि कितना भाग जला हुआ है। उसी हिसाब से उसका उपचार करना चाहिए। अगर त्वचा कम जली है तो उसका प्राथमिक उपचार करना चाहिए अगर अधिक गहरा या ज्यादा जल गए हों तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

जब त्वचा जल जाये पटाखों से तो क्या करें ?


दीपावली यानी कि रंग-बिरंगी रोशनी व धूमधड़ाके का त्योहार। इसे पूर्ण उल्लास के साथ मनाएं मगर आवश्यक है तो सावधानी की। बच्चों को पटाखे से दूर रखें। बड़ों के सानिध्य में ही बच्चे पटाखे छुड़ाएं। इस दौरान आंखों में काला चश्मा व सूती वस्त्र का उपयोग करना बेहतर होगा। यदि फिर भी पटाखे छुड़ाने के दौरान असावधानी से त्वचा जल जाए या फिर आंखों में चिंगारी व बारुद का असर आ ही जाय तो क्या करें और क्या न करें इस पर हम बता रहे हैं आपकों  विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ।

जिला अस्पताल मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. टीके अग्रवाल कहते हैं कि पटाखे से उत्पन्न आवाज व उससे निकली बारुद शरीर व वातावरण दोनों के लिए घातक है। जहां तक हो सके इससे दूर ही रहे। यदि छुड़ा ही रहे हैं तो सावधान रहें। फिर भी यदि पटाखे छुड़ाने के दौरान त्वचा जल जाए तो त्वरित उपचार का प्रयास करें, जिससे निचली परत पर असर न पड़े। मरीज को आराम पहुंचे इसके लिए पेन किलर व एंटीबायोटिकश् दवाएं दें।
फिजीशियन डॉ. अजय सिंह के मुताबिक जले हुए स्थान को स्वच्छ व शीतल जल से धीरे-धीरे धुलें। संभव हो तो सिल्वरेक्स या बरनाल का लेप लगाएं। सोफरामाइसिन भी कारगर है। इसके उपरांत मरीज को निकटवर्ती चिकित्सक को दिखलाएं और उन्हीं की सलाह पर दवाओं का सेवन करें।

सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. नैय्यर रजा जैदी कहते हैं कि इस पद्धति में इसके कारगर इलाज है। जले हुए स्थान को शीघ्र शीतलता देने के लिए कैंथेरिस दवा का लेप लगाएं। मरीज को शीघ्र लाभ हों, इसके लिए रस्टास या फिर बेलाडेाना की खुराक दें। वैद्य राधेरमण मिश्र के मुताबिक आयुर्वेद पद्धति से जले हुए स्थान का इलाज करने पर शीघ्र लाभ होता है। इसके लिए तमाम दवाइयां उपलब्ध हैं, जो कि पटाखों की दुकान पर भी मिल सकती हैं। पटाखे के साथ दवाइयों की खरीदारी जरूर करें। आंखों में इसका असर आने पर नेत्रबिंद, नयन सुधर रंजन दवाओं का प्रयोग करें। जिला अस्पताल के नेत्र परीक्षण अधिकारी डॉ. जेबी बौद्ध कहते हैं कि यदि आंखों में बारुद या चिंगारी का असर आ जाय तो साधारण एंटीबायोटिक दवा कारगर हैं। शीघ्र ही चिकित्सक से संपर्क करें।

जलने पर ये हैं घरेलू नुस्खे

जले हुए स्थान की स्वच्छ व शीतल जल से धीरे-धीरे धुलाई करें।
जले हुए स्थान पर आलू पीसकर लेप लगाएं, शीतलता महसूस होगी।
कपड़े की थैली में बर्फ रखकर जले हुए स्थान की सेंकाई करें।
गाय के घी का लेपन करें।
पीतल की थाली में सरसों का तेल व पानी को नीम की छाल के मिश्रण का मरहम बनाकर जले हुए स्थान पर लगाएं, शीघ्र लाभ मिलेगा।
काला चश्मा पहन कर पटाखा छुड़ाएं।
बारुद का असर आने पर आंख को कतई न रगड़ें।
केवड़ा जल से धुलाई करें।
मां या गाय के दूध की दो-दो बूंदे आंखों में डालें।
नीम की छाल व गुलाब जल मिलाकर आंजन तैयार कर आंखों में लगाएं।
अगर दीपावली के मौके पर पटाखों की वजह से कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो ऐसे में आपको स्टोरी में बताए गए नुस्खे काफी हद तक आपके काम आ सकते हैं।

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

बदहजमी दूर करने के घरेलू नुस्खे



बदहजमी की तमाम वजहें हो सकती हैं। मसलन भूख से ज्यादा खाना, खाने को सही तरीके से नहीं चबाना, नींद पूरी न होना, खाना सही तरह से पका न होना या फिर एक्सरसाइज न करना। इसके अलावा तेज मसालेदार भोजन और जीवनशैली में बदलाव के कारण भी पाचन की समस्या पैदा हो सकती है। बदहजमी होने पर इन घरेलू नुस्खों को आजमाएं।

एक चम्मच अजवाइन के साथ नमक मिलाकर खाने से बदहजमी से तुरंत छुटकारा मिलता है।

एक गिलास पानी में पुदीने के रस की दो-तीन बूंदें डालकर हर तीन-चार घंटे के अंतराल पर पीएं।

एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच नींबू, अदरक का रस और दो छोटे चम्मच शहद भी मिला लें। इसे पीने से पाचन संबंधी परेशानी दूर होगी।

अगर एसिडिटी से परेशान हैं, तो एक गिलास पानी में नींबू निचोड़ कर पीएं।

अगर चाय पीना नहीं छोड़ सकते, तो हर्बल टी का प्रयोग करना शुरू कर दें।

कॉफी, अल्कोहल और धूम्रपान से बचें। इनसे भी पाचन खराब होने की आशंका होती है।

अधिक टाइट कपड़े और जींस ना पहनें।

डिनर सोने से कम से कम दो-तीन घंटे पहले कर लें।

एक चम्मच धनिए के भुने हुए बीज को एक गिलास छाछ में मिलाकर पीएं।

खाने के बाद एक चम्मच सौंफ अवश्य चबाएं।

अगर आपके मुंह का जायका खराब हो रहा है तो अदरक के टुकड़ों में काला नमक लगाकर खाएं।

अपने भोजन में रेशेदार फल-सब्जियों को शामिल करें। मैदा से बनी चीजों का सेवन न करें।
अगर आप पाचन से संबंधित किसी भी समस्या से परेशान हैं तो स्टोरी में बताई गई बातें आपको काफी फायदा पहुंचा सकती है।

कैसे बचें चक्कर आने से



चक्कर आना या सिर घूमना एक सामान्य समस्या है। यह स्वय में एक बीमारी भी है और अनेक बीमारियों का एक लक्षण भी।

कारण

चक्कर आने के कारणों को प्रमुख रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

कान की बीमारिया

ये चक्कर आने का सबसे प्रमुख कारण होती हैं। वास्तव में कान का सबसे अंदर वाला भाग हमारे शरीर की स्थिति को सामान्य बनाये रखने में सहायक होता है। इस भाग की बीमारियों का प्रमुख लक्षण चक्कर आना होता है। बीपीपीवी बेनाइन पैरॉक्सिसमल पोजीशनल वर्टिगो, लैबिरिन्थाइटिस, वेस्टीबुलर न्यूरोनाइटिस और मेनियर्स डिजीज कान के इसी भाग की होने वाली प्रमुख बीमारिया हैं।

कान की बीमारियों के अतिरिक्त दिमाग की बीमारियों से भी चक्कर आ सकते हैं। सीटी स्कैन और एम.आर.आई. से दिमाग की इन बीमारियों की जाच की जा सकती है।

इसके अलावा रक्तचाप में परिवर्तन, स्पॉन्डिलोसिस, शरीर में खून की कमी, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बहुत बढ़ने या कम होने और अत्यधिक शारीरिक व मानसिक तनाव से भी मरीज को चक्कर जैसी स्थिति का अनुभव हो सकता है।

क्या करें

चक्कर आने पर ऐसे कार्य न करें जिनमें गिरने या चोट लगने का खतरा हो। जैसे वाहन या गाड़ी न चलाएं सड़क पार करना या सीढ़ी पर चढ़ना।

रोगी की देखभाल के लिये एक व्यक्ति अवश्य होना चाहिए।

चूंकि कान की बीमारियां चक्कर आने की प्रमुख वजह होती हैं। इसलिए नाक, कान, गला विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। ई.एन.टी सर्जन द्वारा सुझाए गये कुछ विशेष तरीकों से चक्कर की बीमारियों में कुछ दिनों में पूरी तरह से आराम मिल जाता है। इसके अतिरिक्त उचित दवाओं व कुछ विशेष व्यायामों से इन रोगों पर पूर्णतया नियत्रण सभव है।

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

बदलता मौसम और चिकनगुनिया ?




मौसम में कई तरह के बदलाव होने लगे हैं। ऐसे में हमारा शरीर भी बदलावों की एक श्रृंखला से गुजरता है। इस बदलते मौसम में जिन लोगों की इम्यूनिटी यानि रोगों से लड़ने की क्षमता मजबूत होती है वो तो अपने आप को बदलते मौसम के अनुसार ढाल लेते हैं। लेकिन कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों कोेेेे बदलते मौसम के साथ कई तरह के वायरल फीबर्स से लड़ना होता है। इन्हीं में से चिकनगुनिया एक प्रमुख वायरल फीवर है, जो कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेता है और सावधानी न दिखाने पर एक पूरी क्षेत्र को अपनी गिरफत में ले लेता है। तो इसी को जानने के लिए कि कैसे चिकनगुनिया अपना प्रभाव बढ़ाता है और कैसे इससे बचा जा सकता है पढि़ए नीचे स्टोरी में।

चिकनगुनिया क्या है ?

चिकनगुनिया बुखार एक वायरस बुखार है। ये एडीज मच्छर एइजिप्टी जो दिन के समय काटते हैं, उनके कारण होता है। इस रोग के लक्षण डेंगू बुखार के समान होते हैं। जोड़ों के दर्द या गठिया के साथ साथ बुखार एवं त्वचा में खुश्की पैदा होती है।
इस बुखार का नाम चिकनगुनिया स्वाहिली भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है जो ऊपर की और झुकता है। ऐसा इसका नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस रोग में जोड़ों के दर्द से रोगी झुकी हुई मुद्रा में ज्यादातर रहता है। इस रोग का संक्रमण अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया, विशेष रूप से फिलीपींस, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, मारीशस और श्रीलंका में पाया जाता है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इबहास अस्पताल नई दिल्ली के मेडिसिन स्पेश्लिस्ट डाॅ अंकुर जैन कहते हैं कि इसके लिए हैल्दी और फिट रहना चाहिए।इसके लिए आपको व्यायाम, एक्सरसाइज योगा आदि करने के साथ ही हेल्दी डाइट लेनी चहिए। लेकिन जब प्रकोप किसी महामारी का हो तो ऐसे मौकों पर अतिरिक्त सतर्क रहने और देखभाल करने की जरूरत होती है।

चिकनगुनिया के लक्षण
चिकनगुनिया बुखार के लक्षण आम तौर पर संक्रमित मच्छर के काटने के 2-4 दिनों के बाद उभरना शुरू करते हैं। चिकनगुनिया बुखार के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं।

जोड़ों में दर्द शरीर में वायरस के पूरी तरह से आक्रमण करने पर शुरू हो जाता है। धब्बेदार या मकुलोपापुलर  दाने आमतौर पर बीमारी के 2 और 5 दिन के बीच देखा जाता है। यह ज्यादातर धड़ और अन्य अंगों पर होते है।  कुछ रोगियों को नेत्रश्लेष्मलाशोथ या आँख का संक्रमण हो सकता है और साथ में आँखों में थोडा बहुत खून का रिसाव भी हो सकता है।

भ्रम चिकनगुनिया का
वैसे क्षेत्रों में जहां दोनों बीमारियाँ एक साथ फैली होती हैं, कई बार चिकनगुनिया बुखार को डेंगू समझ लिया जाता है।
चिकनगुनिया बुखार और कुछ रोग जो लोगों को भ्रमित करते हैं वे विभिन्न रक्तस्रावी वायरल बुखार या मलेरिया जैसे रोग हैं।

क्या है परीक्षण
चिकनगुनिया बुखार का निदान, सीरम वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर किया जाता है। अप्रत्यक्ष ईम्युनोफ्लुरोसेन्स एक नए तरह का परीक्षण है जिसे चिकनगुनिया बुखार का निदान करने में प्रयोग किया जाता है।

क्या है बचाव
चिकनगुनिया वायरल भी महामारी का रूप लेता जा रहा है। डॉक्टर इससे बचने के तरह-तरह के उपाय खोज रहे हैं लेकिन भारतीय चिकित्सा में इसका अभी तक कोई ठोस इलाज उपलब्ध नहीं है। ऐसे में डॉक्टर्स सभी को जागरूक होने और स्वयं सतर्क रहने की लगातार सलाह दे रहे हैं। लेकिन बात हो जब चिकित्सा के सुरक्षित उपायों की, तो डाॅ. जैन बताते हैं कि, सदियों से अपनाये जा रहे घरेलू नुस्खों पर हम आसानी से विश्वास कर सकते हैं। कुछ घरेलू नुस्खे अपनाकर चिकनगुनिया, जैसी महामारी से निजात पाया जा सकता है।

    ऐसे में अधिक से अधिक पानी पीएं, हो सके तो गुनगुना पानी भी ले सकते हैं।
    ज्यादा से ज्यादा आराम करें।
    चिकनगुनिया के दौरान जोड़ों में बहुत दर्द होता है जिसके लिए डाॅक्टर की सलाह पर दर्द निवारक, बुखार रोधी दवाएं ली जा सकती हैं।
    शोधों के मुताबिक चॉकलेट चिकनगुनिया को दूर करने में लाभदयक होती है। चिकनगुनिया वायरल के दौरान दिन में 3-4 बार चॉकलेट खानी चाहिए।
    पानी के साथ ही जूस और तरह पदार्थो को खूब लेना चाहिए।
    दूध से बने उत्पाद, दूध-दही या अन्य। चीजों का सेवन भी खूब करना चाहिए।
    नीम के पत्तों को पीस कर उसका रस निकालकर चिकनगुनिया से ग्रसित व्यक्ति को दें।
    संक्रमित व्यक्ति बहुत ज्यादा लोगों से न मिलते हुए अपनी देखभाल और साफ-सफाई पर खास ध्यान रखे।
    करेला, पपीता इत्यातदि के साथ फलों को अधिक से अधिक खाना चाहिए।
अगर आप स्टोरी में बताई गई बातों पर ध्यान देंगे तो चिकनगुनिया  जैसी
बीमारी से आसानी से निपट सकते हैं।

बचायें खुद को और अपने पैट्स को रैबीज़ से


हम लोग सिर्फ इंसानों के बीच नहीं रहते। ऐसे कई जानवर भी हैं, जो हमारे घर के दायरे और उससे बाहर आबाद हैं। बहुत से जानवरों को तो हम बाकायदा पालते हैं। लेकिन बिल्कुल आंखों के सामने रहने वाले ये जानवर हमारे लिए खतरा भी साबित हो सकते हैं। कुत्ता, बिल्ली, बंदर से लेकर दूसरे पशु और जानवरों से हमेशा रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी फैलने का डर रहता है। ऐसे में थोड़ी सी असावधानी आपको और आपके पेट्स के लिए काफी खतरनाक हो सकती है। अगर हम सही वक्त पर सही इलाज न कराएं तो जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। तो जानवरों के काटने पर क्या है इलाज और कैसे हम खुद को और आपने पेट्स को रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी से सुरक्षित रख सकते हैं, बता रहे हैं राजेश राना अपने एक्सपर्ट के साथ।

कॉमन है काटना
डॉग बाइट यानी कुत्ते का काटना सबसे कॉमन है। लगभग हर इलाके में कुत्ते होते हैं, जिनसे आपका सामना घरों, गलियों, पार्कों जैसी जगहों पर होता है। ज्यादातर लोग डॉग बाइट का शिकार इन जगहों पर खुले में घूमते कुत्ते के जरिए ही होते हैं। डॉग बाइट के तीन ग्रेड होते हैं। ये ग्रेड इस बात पर निर्भर करते हैं कि बाइट कितनी गहरी है।

ग्रेड 1
.अगर कुत्ता प्यार से भी चाटता है, तो होशियार हो जाएं।
.अगर कुत्ते में रेबीज का इन्फेक्शन होगा तो आपके शरीर में रेबीज के वायरस जाने की आशंका बनी रहती है, खासकर अगर कुत्ते ने शरीर के उस हिस्से को चाट लिया हो, जहां चोट की वजह से मामूली कट या खरोंच हो।

ग्रेड 2
.अगर किसी कुत्ते के काटने के बाद स्किन पर उसके एक या दो दांतों के निशान दिखाई पड़ते हैं, तो समझिए कि एहतियात बरतने की जरूरत है।
.ऐसे कई लोग हैं, जो यह सोचकर कि कुत्ते को रेबीज न रहा होगा, एक या दो दांतों के निशान को मामूली जख्म की तरह ट्रीट करते हैं।
.ऐसी अनदेखी घातक साबित हो सकती है, क्योंकि रेबीज का वायरस एक बार आपके शरीर में जाकर बरसों-बरस डॉर्मन्ट या सुप्तावस्था में रह सकता है।
.कई बरस बाद जब यह अपना असर दिखाना शुरू करता है तो इलाज के लिए कुछ नहीं बचता।

ग्रैड 3
.कुत्ता आमतौर पर तीन जगहों में किसी एक जगह पर काटता है- हाथ, चेहरा या टांग।
.अगर हाथ या चेहरे पर काटने के बाद एक भी गहरा निशान बनता है या दांतों के तीन-चार निशान दिखाई देते हैं तो समझिए मामला बेहद संजीदा है और इलाज के लिए फौरन जाना चाहिए।

खतरनाक हो सकता है काटना
.किसी जानवर के काटने से जानलेवा वायरस या जहर शरीर में दाखिल हो सकता है।
.इससे रेबीज जैसी बीमारी हो सकती है, जिसका अब तक कोई इलाज मेडिकल साइंस ईजाद नहीं कर पाई है।

क्या है रेबीज
रेबीज एक वायरस होता है। अगर यह किसी जानवर में फैला हो और वह जानवर हमें काट ले खासकर कुत्ता, बिल्ली या बंदर तो हमें रेबीज हो सकता है।

लक्षण
.पानी से डर या हाइड्रोफोबिया, प्यास के बावजूद पानी न पीना
.बात-बात पर भड़क जाना-बर्ताव में हिंसक हो जाना

नतीजा
रेबीज का वायरस सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है, जिससे पी़िडत शख्स सामान्य नहीं रह पाता। बाद में तेज दर्द में चीख-पुकार मचाते हुए मरीज की मौत हो जाती है।

बचाव
इन सभी लक्षणों से बचना है तो कुत्ता, बिल्ली या बंदर के काटने के 24 घंटे के अंदर ऐंटि-रेबीज टीकों के जरिए इलाज शुरू करवा दें।

क्या करें काटने के बाद
कुत्ते के काटने के बाद उस हिस्से को सबसे पहले पानी से खूब अच्छी तरह धोएं। फिर साबुन लगा कर धोएं। वहां पट्टी कतई न बांधें। पहला ऐंटि-रेबीज इंजेक्शन 24 घंटे के भीतर जरूर लगवा लें।

क्या है प्रॉपर वैक्सिनेशन
.कुत्ते, बिल्ली या बंदर के काटने को हल्के में लेना बड़ी भूल है। इससे जानलेवा रेबीज हो सकता है।
.डाॅग एंड कैट क्लीनिक नई दिल्ली के वैटर्नरी स्पेश्लिस्ट डाॅ. आदित्य मेहता बताते हैं कि कुत्ते के काटने के बाद अब भी कई लोगों को यह लगता है कि पेट में 14 इंजेक्शन लगेंगे। यह गलत है। वैक्सिनेशन के तरीके और टाइम पीरियड अब बदल चुके हैं। यह भी जान लेना जरूरी है कि कुत्ते, बिल्ली या बंदर के काटने पर आपके काम का डॉक्टर जनरल फिजिशन या फैमिली डॉक्टर ही है।
.रेबीज को रोकने के लिए प्रॉपर वैक्सिनेशन या ऐंटि-रेबीज वैक्सिनेशन की जाती है।
.ऐंटि-रेबीज वैक्सीन सेंट्रल नर्वस सिस्टम या जहां रेबीज के वायरस अटैक करते हैं पर रक्षात्मक परत बना कर उस वायरस के असर को खत्म कर देती है।
.वैक्सिनेशन दो तरह से की जाती है ऐक्टिव और पैसिव ।
.अगर जख्म गहरा हो तो ऐक्टिव वैक्सिनेशन के तहत दो इंजेक्शन फौरन लगते हैं। इसमें ऐंटि-रेबीज सीरम को पहले मसल्स या बाजू या हिप्स में और फिर ठीक उस जगह पर जहां कुत्ते, बिल्ली या बंदर ने काटा हो, इंजेक्शन के जरिए डाला जाता है।
.इसके बाद बारी आती है पैसिव वैक्सिनेशन की। इसमें पांच इंजेक्शन एक खास टाइम पीरियड में लेने पड़ते हैं।
अगर आप वैक्सिनेशन का सही तरीके से ध्यान रखेंगे तो आप खुद को और अपने पैट्स को काफी हद तक रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी से सुरक्षित रख सकते हैं।

कितना खतरनाक थाइराइड कैंसर



थाइराइड कैंसर 30-40 की उम्र के बाद ज्यादातर दिखाई देता है। इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि तराई क्षेत्र के लोग थाइराइड कैंसर के ज्यादा मरीज बनते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार महिलाएं पुरूषों के मुकाबले थाइराइड कैंसर का ज्यादा शिकार होती हैं। तो ऐसे में आपको भी हो सकते है थाइराइड कैंसर का खतरा। तो इसी को जानने के लिए पढि़ए नीचे स्टोरी में।  

थाईराइड कैंसर क्या है

थाईराइड कैंसर थाईराइड ग्लैंड्स या ग्रंथि में सेल्स का असामान्य विकास है। थाईराइड ग्लैंड्स तितली के आकार की होती हैं और यह गर्दन के सामने होती हैं। थाईराइड कैंसर की अधिकतर स्थितियों में बचाव सम्भव है ।

क्या है थाईराइड ग्लैंड्स का काम
थाईराइड ग्लैंड्स का एक काम थाईराइड हार्मोन बनाना भी है जिसके लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। थाईराइड ग्लैंड्स के कुछ निश्चित कार्य होते हैं जैसे कि आयोडीन को इकट्ठा करने के बाद उसे ग्लैंड्स में एकत्रित कर थाईराइड हार्मोन बनाना। चिकित्सक कभी-कभी थाईराइड कैंसर की चिकित्सा के समय आयोडीन के महत्व पर ध्यान भी नहीं दे पाते ।

थाईराइड ग्लैंड् की रचना
थाईराइड ग्लैंड्स की रचना में दो महत्वपूर्ण विषय भी हैं। पहला यह कि थाईराइड टिश्यू चार छोटी ग्लैंड्स से मिलकर बनी होती है जो कि शरीर में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। अगर थाईराइड ग्लैंड्स की सर्जरी की गयी तो ऐसा जरूरी होता है कि सर्जन सावधानी पूर्वक इन चारों छोटी ग्लैंड्स को किसी प्रकार की हानि से बचाये।
वो नर्व जो कि हमारे आवाज के बाक्स को नियंत्रित करती है वह भी थाईराइड के बहुत ही पास होती है। इसलिए थाईराइड ग्लैंड की सर्जरी के दौरान थाईराइड ग्लैंड का पता होना आवश्यक है क्योंकि अगर आवाज के बाक्स को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचा तो मरीज आजीवन ठीक प्रकार से बोल नहीं पायेगा ।
थाईराइड में दो प्रकार के सेल्स होते हैं जो कि दो हार्मोन बनाते हैं और शरीर के काम को संचालित करते हैं। थाईराइड में फालिकुलर सेल्स थाईराइड हार्मोन बनते हैं जिन्हें कि थायराॅक्सिन कहते हैं या टी-4 कहते हैं और यह शरीर के मेटाबालिज्म को नियंत्रित करता है। थाईराइड ग्लैंड के द्वारा नियंत्रित किया जाने वाला मेटाबाॅलिज्म एक जटिल प्रक्रिया करता है जो कि शरीर के कई अंगों को भी प्रभावित कर सकता है ।
सी सेल्स को पैराफाॅलिकुलर सेल्स भी कहते हैं और यह कैल्सिटोनिन बनाती हैं। यह वो हार्मोन है जो कि रक्त में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है।

थाईराइड कैंसर के चार प्रकार हैं
पैपिलरी कार्सिनोमा
पैपिलरी कार्सिनोमा को पैपिलरी एडेनोकार्सिनोमा भी कहते हैं। यह सबसे आम प्रकार का थाईराइड कैंसर है जो कि सभी कैंसर में से 75 प्रतिशत है । यह फाॅलिकुलर सेल्स से विकसित होता है और धीरे-धीरे बढ़ता है। बहुत सी स्थितियों में यह थाईराइड ग्लैंड के दो भाग में से एक में होता है लेकिन यह 10 से 20 प्रतिशत मरीजों में दोनों भागों को ही प्रभावित करता है। पैपिलरी कार्सिनोमा गर्दन में लिम्फ नोड्स के आसपास भी फैल जाता है लेकिन यह शरीर के दूसरे भागों में भी फैल सकता है ।

फाॅलिकुलर कार्सिनोमा
फाॅलिकुलर कार्सिनोमा थाईराइड कैंसर का दूसरा सबसे आम प्रकार है जो कि फाॅलिकुलर सेल्स में शुरू होता है। इस प्रकार का कैंसर थाईराइड ग्लैंड्स में होता है लेकिन कभी कभी यह शरीर के दूसरे भागों में भी फैल जाता है मुख्यतः फेफड़ों और हड्डियों में।

हर्थल सेल नियोप्लाज्म या फालिकुलर एडेनोकार्सिनोमा
यह फालिकुलर कैंसर जैसा ही है जिसे कि ठीक प्रकार से समझा नहीं जा सका है ।

एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा या फाॅलिकुलर एडेनोकार्सिनोमा
यह बहुत ही दुर्लभ प्रकार का थाईराइड कैंसर है जिसका पूर्वानुमान लगाना सबसे मुश्किल है। विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि यह कैंसर पहले से रहने वाले पैपिलरी या फाॅलिकुलर कार्सिनोमा से होते हैं। एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा बहुत कम समय में गर्दन से शरीर के दूसरे भागों में भी फैल जाता है । क्योंकि यह थाईराइड और श्वास नली के पास होता है इसलिए वो मरीज जिनमें कि इस प्रकार का कैंसर होता है उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है और कभी कभी तो सांस लेने के लिए ट्यूब भी लगाना पड़ता है ।

थाईराइड कैंसर के लक्षण
सामान्यतः गर्दन में गांठ देखने को मिलती है ।
गर्दन में दर्द जो कि कानों तक महसूस हो।
निगलने में परेशानी होना।
आवाज में भारीपन।
सांस लेने में परेशानी होना।
लगातार रहने वाली खांसी।
ऐसे कुछ लक्षण कैंसर के अलावा दूसरी बीमारियों के भी होते हैं।

थाईराइड कैंसर की संभावित अवधि
सर्वोदय अस्पताल गाजियाबाद के ओंकोरेडियोथेरेपिस्ट डाॅ. अमित कुमार सिंह बताते हैं कि थाईराइड कैंसर कई सालों तक धीरे-धीरे बढ़ता है। दूसरे प्रकार के कैंसर की तरह यह भी तब तक बढ़ता है जब तक कि इसकी चिकित्सा ना की जाये।

थाईराइड कैंसर की चिकित्सा
डाॅ. अमित बताते हैं कि सर्जरी ही थाईराइड कैंसर से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। सर्जन आपके थाईराइड और लिम्फ नोड्स के प्रभावित क्षेत्र को सर्जरी के द्वारा निकालते हैं।

थाईराइड हार्मोन थेरेपी
अगर सर्जरी के द्वारा पूरी थाईराइड हार्मोन को निकाल दिया गया तो थाईराइड हार्मोन की दवाएं सामान्य प्रक्रिया करेंगी और पिट्युटरी ग्लैंड के हार्मोन पर दबाव डालेंगी जिससे बचे हुए थाईराइड कैंसर सेल्स का विकास होगा। ऐसे में मरीज को ओरल थाईराइड हार्माेन की दवांए लेनी चाहिए।

रेडियोएक्टिव आयोडीन चिकित्सा
रेडियोएक्टिव आयोडीन का प्रयोग दो कारणों से किया जाता है। यह किसी सामान्य थाईराइड टिश्यू को भी प्रभावित कर सकता है या कैंसर के सेल्स को खत्म कर सकता है। जब इसका प्रयोग सामान्य टिश्यू को खत्म करने के लिए किया जाता है तो रेडियेशन की कम मात्रा का प्रयोग किया जाता है और कैंसर की चिकित्सा के लिए अधिक मात्रा में रेडियेशन का प्रयोग किया जाता है।

कीमोथेरेपी
इस चिकित्सा में एण्टी कैंसर ड्रग्स को मुंह के रास्ते। इन्जेक्शन के द्वारा नली या वेन्स में लगाया जाता है। इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं बालों का गिरना, थकान, उल्टियां आना।

एक्सटर्नल बीम रेडियेशन थैरेपी
इस चिकित्सा में अधिक ऊर्जा वाली किरणों को कैंसर प्रभावित क्षेत्र पर छोड़ा जाता है जिससे कि कैंसर के सेल्स को खत्म किया जा सके। ऐसी चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है कि कैंसर कितने क्षेत्र में फैला हुआ है। थाईराइड कैंसर की चिकित्सा के एक प्रकार के अतिरिक्त प्रभाव लगभग कई महीनों तक रहते हैं। ऐसे में इलाज के 20 से 30 साल तक स्वयं की निगरानी करना जरूरी है। सर्जरी के बाद सेरम थायरोग्लोंबुलिन नामक रक्त जांच की जाती है जिससे कि इलाज के बाद भी अगर कैंसर के सेल्स रह जाते हैं तो उनका पता चल जाता

थायराॅइड कैंसर से बचाव के टिप्स
थाइराॅइड कैंसर, कैंसर का ही एक प्रकार है जो कि थाइराॅइड ग्रंथियों की कोशिकाओं में होता है। यह कैंसर बहुत सामान्य नही हैं, लेकिन इस कैंसर का इलाज संभव है। हम सब में इस कैंसर के बढ़ने की संभावना है, लेकिन इस स्थिति को बढ़ाने वाली कुछ वजह ये हैं।

उम्र का फंडा
थाइराइड कैंसर किशोरों और बच्चों की तुलना में 30 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में होता है।

लिंग
पुरूषों की तुलना में महिलाओं में थाइराइड कैंसर के बढने का खतरा ज्यादा होता है जो सामान्यतः दो से तीन गुना ज्यादा।

रेडिएशन का संपर्क
रेडिएशन के संपर्क में आना या किसी दुर्घटना की वजह से जैसे न्यूक्लीयर विस्फोट या गर्दन की रेडिएशन थेरेपी, थाइराइड कैंसर के खतरे को बढाती हैं।

पारिवारिक इतिहास
डाॅ. अमित बताते हैं, यदि आपके परिवार में किसी को थाइराइड कैंसर है तो कुछ दुर्लभ सिंड्रोम कई ग्रंथियों में ट्यूमर के कारण होते हैं, ऐसे में आपको थाइराइड कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

थाइराइड कैंसर से बचने के लिए कोई निश्चित तरीका नही है, लेकिन कुछ कारक ऐसे हैं जिनसे थाइराइड कैंसर बढने के खतरे को कम किया जा सकता है। कुछ तरीके जो थाइराइड कैंसर के जोखिम को कम करते हैं।

यदि आपकी गर्दन के आसपास या विशेष रूप से बचपन में रेडिएशन थेरेपी से इलाज हुआ हो। तब डॉक्टर के निर्देंशों का पालन करते हुए नियमित रूप से थाइराइड कैंसर की जांच करानी चाहिए।

ऐसे लोग, जिनके परिवार में किसी को थाइराइड कैंसर हुआ हो या कुछ ऐसे सिंड्रोम जो कई ग्रंथियों में ट्यूमर का कारण बनते हैं, उनको भी नियमित रूप से निर्देशों का पालन करना चाहिए।

आपके डॉक्टर आपको नियमित रूप से जांच कराने की सलाह दे सकते है जिसकी आपको जरूरत है।

विकिरण से सुरक्षित रहेंगी नन्हीं आंखें


आज हर आॅफिस और घर इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से भरे पड़े हैं। जिंदगी ऐसी हो गई है कि 24 में से 18 घण्टे कंपयूटर और दूसरी स्क्रीन के सामने गुजारने पड़ते हैं। मगर हम ये भूल जाते हैं कि इन स्क्रीन से निकलने वाला विकिरण हमारी आॅखों और सेहत के लिए कितना खतरनाक होता है। इसी वजह से लोगों में आज आॅखों की बीमारियां हर उम्र में दिखाई दे रही हैं। इसी को जानने के लिए कि कैसे बढ़ रही है इलेक्ट्रॉनिक सामान से आॅखों में तकलीफ, पढि़ए नीचे स्टोरी में।

जन्म लेते ही बच्चे की कोमल आंखें अपने आसपास की चीजों को घूरने लगती हैं। इन अनमोल आंखों का शुरू से ही खयाल न रखा जाए तो बाद में बड़ी तकलीफें भुगतनी पड़ सकती हैं। आज की गैजेट्स की दीवानी पीढ़ी को सबसे ज्यादा परेशानियां आंखों की वजह से ही झेलनी पड़ रही हैं। खासकर बच्चे बहुत तेजी से इसके शिकार हो रहे हैं।

आंखों के दुश्मन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स
गाजियाबाद के कोलंबिया अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय शर्मा के अनुसार, आजकल बच्चे लंबे समय तक कंप्यूटर और टेलीविजन के सामने बैठे रहते हैं और उचित डाइट भी नहीं लेते। बच्चे की आईसाइट कमजोर होने का यह सबसे बड़ा कारण है। फिर भी अभिभावक इस ओर ध्यान नहीं देते। दिल्ली में 5 से 13 वर्ष के बच्चों में आंखों में खराबी या कमजोरी आने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं।

टीवी देखें 6 फुट की दूरी सें
आॅफिस में कंपयूटर, घर आये तो फिर टीवी या कंपयूटर सामने। घरेलू महिलाएं कामकाज के बाद ज्यदातर समय टीवी के सामने बीताती हैं। बच्चे भी टीवी के बाद वीडियो गेम्स में व्यस्त रहने की कोशिश करते हैं। ऐसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की हानिकारक रेडिएशन के संपर्क में आने से धीरे-धीरे  आंखें कमजोर होने लगती हैं। कई बार आंखों की रोशनी जाने की भी नौबत आ जाती है। टीवी कम से कम छह फुट की दूरी से देखना चाहिए और पर्याप्त रोशनी में ही टीवी देखना चाहिए।

ऑनलाइन चैटिंग से जा सकती हैं आंखें
मेडफोर्ट अस्पताल दिल्ली, के क्लीनिकल डायरेक्टर डॉ. त्यागमूर्ति शर्मा कहते हैं, बहुत ज्यादा कंप्यूटर के प्रयोग से मायोपिया या पास का न दिखने की समस्या हो जाता है। लगातार कंप्यूटर टीवी के सामने बैठे रहने से आंख की रक्त कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं। सुरक्षित तरीके से कंप्यूटर इस्तेमाल करने के लिए करेक्टिव आईवेयर की आवश्यकता है।

ठीक रोशनी में पढ़ें, चश्मा नहीं लगेगा
पढ़ाई के समय उचित रोशनी और किताब से आंखों की दूरी का खयाल न रखने, बहुत नजदीक से टीवी देखने और घंटों कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठने से आंखों पर काफी बुरा असर पड़ता है। समय रहते इन बातों पर ध्यान दिया जाए तो आंखें सुरक्षित रहती हैं और लापरवाही बरती जाए तो अंधेपन का शिकार होना पड़ सकता है।

फास्ट फूड कल्चर
डॉ. संजय शर्मा कहते है की कमजोर आईसाइट की सबसे बड़ी वजह पोषक तत्वों की कमी है। इसके लिए फाइबर, हरी पत्तेदार सब्जियां व मौसमी फल का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

एलर्जी
आज आंखों की एलर्जी होना आम बात है। यह एलर्जी किसी बाहरी रसायन की वजह से हो जाती है। इसमें आंखें लाल हो जाती हैं और उससे पानी बहने लगता है। कई बार खुजली भी होती है। बुखार भी आ सकता है और सांस लेने में भी तकलीफ हो सकती है। आंखें सूज भी सकती हैं। इसे कंजंक्टीवाइटिस भी कहते हैं।

क्या करे दूसरे उपाय

सबसे पहले आप अपने पुराने पीसी को हटा दें, खास कर यदि वे सीआरटी मॉनिटर वाले हैं तो उसे तो सबसे पहले। अध्ययन से पता चलता है कि पुराने बक्से के आकार के कैथोड-रे-ट्यूब बड़ी मात्रा में विकिरण उत्पन्न करता है। वहीं एलसीडी मॉनिटर अपेक्षाकृत कम मात्रा में विकिरण मुक्त करता है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि पुराने कम्प्यूटर नए मॉडलों की तुलना में लगभग दुगना विकरण मुक्त करते हैं, क्योंकि नए मॉडलों में अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
कम्यूटर के स्क्रीन पर रेडिएशन फिल्टर चढ़ाने से कम्प्यूटर से निकलने वाला रेडिएशन का प्रभाव कम होता है।

अपने कम्यूटर स्क्रीन की ब्राइटनेस को सिर्फ उतना ही रखें, जिससे आपको देखने में सुविधा हो। क्योंकि स्क्रीन जितना चमकीला होता है, रेडिएशन उतना ही तेज होता है। साथ ही यह भी ध्यान में रखें कि स्क्रीन की ब्राइटनेस इतनी कम भी न हो कि इससे आपकी आंखों कि नुकसान पहुंच जाए। स्क्रीन के सामने देखने के लिए आदर्श दूरी 50 से 75 सेंमी है।

पीसी की हानिकारक रेडिएशन के प्रभाव से बचने के लिए आपको अपने कम्यूटर को रखने की जगह को तय करना होगा। आपका कम्यूटर का पिछली भाग इस प्रकार रखा हो कि यह किसी बैठे हुए व्यक्ति की तरफ न हो। अध्ययन के मुताबिक इसका पिछला हिस्सा अधिक तेज रेडिएशन छोड़ता है, जबकि अगला हिस्सा कम तेज रेडिएशन मुक्त करता है।

सुनने में यह अजीब सा लगे, पर यह कारगर होता है। अध्ययन के मुताबिक, कैक्टस के पौधों मे रेडिएशन को सोखने की क्षमता होती है। इसलिए अपने वर्क-स्टेशन पर आप कैक्टस के पौधे लगाएं, ताकि आप तक कम से कम विकिरण पहुंचे।

अगर आप को भी अपनी आॅखों में कंपयूटर और टीवी के सामने रहने में समस्या महसूस हो रही है तो स्टोरी में बताये उपाय काफी हद तक लाभदायक हो सकते हैं।









स्किन को दें बदलते मौसम का साथ




मौसम के साथ साथ त्वचा में बदलाव आता है। इसलिए गर्मी, बरसात और ठंड के मौसम के अनुरूप अलग अलग ढंग से त्वचा की देखभाल की आवश्यकता होती है।

गर्मी का मौसम

गर्मी के दिनों में तेज धूप और गर्म हवाएँ त्वचा को काफी नुकसान पहुँचाती हैं। इस मौसम में पसीने की चिपचिपाहट का भी सामना करना पड़ता है।

गर्मी के मौसम में पसीना अधिक निकलने की वजह से घमौरी, खाजए खुजली आदि की शिकायत भी उत्पन्न हो जाती है।

तेज धूप में निकलने पर त्वचा पर सनबर्न, पिगमेंटेशन आदि की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।

अधिक गर्मी और पसीने की वजह से बगलों व जाँघों में संक्रमण हो जाता है।

बचाव के उपाय

दिन में कम से कम दो बार ठंडे पानी से रगड़ रगड़ कर स्नान करें।

साफ, धुले, सूती कपड़े पहनें। अंतर्वस्त्र दो बार बदलें।

दिनभर में 3-4 बार चेहरे को फेसवॉश से साफ करें।

ककड़ी, खीरा, संतरा या मौसम्बी का रस निकाल लें। इसे ट्रे में डालकर फ्रिज में जमने के लिए रख दें। इसके क्यूब को चेहरे पर मलें। चेहरा चमक उठेगा। रोमकूपों और मुँहासों के लिए भी लाभदायक होता है।

पानी में थोड़ी सी फिटकरी मिलाकर इसे आइस क्यूब में रखकर फ्रिज में जमा लें। यह क्यूब चेहरे पर रगड़ने से ताजगी मिलती है।

गर्मी के दिनों में ब्लीचिंग न करवाएँ। इससे त्वचा काली हो जाने का डर रहता है।

धूप में निकलने पर सनस्क्रीन या सन ब्लॉक क्रीम, लोशन का इस्तेमाल करें।

ठंड का मौसम

ठंड के मौसम में वातावरण की नमी और सर्द हवाएँ त्वचा को हानि पहुँचाती हैं। मौसम के प्रभाव से त्वचा शुष्क हो जाती है और फटने लगती है।

चेहरा बुझा-’बुझा और बेजान लगता है। बालों में रूसी की समस्या पैदा हो जाती है।

त्वचा पर खुजली, स्क्रेच, दाने आदि की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

बचाव के उपाय

इस मौसम में साबुन कम इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि साबुन त्वचा की शुष्कता को और बढ़ा देता है।

त्वचा पर कोक बटर, मिल्क क्रीम, मक्खन, कोल्ड क्रीम, मॉइश्चराइजर आदि की मालिश करें।

अधिक गर्म पानी से स्नान न करें। स्नान करते समय पानी में कुछ बूँदें बेबी ऑयल, ऑलिव ऑइल या बॉडी ऑइल भी डालें। इससे त्वचा मुलायम बनी रहेगी।

इस मौसम में स्टीम बाथ लेना त्वचा के लिए काफी लाभदायक होता है। इससे त्वचा की शुष्कता दूर होती है।

शरीर पर जैतून, नारियल, सरसों आदि तेलों की मालिश करने से त्वचा मुलायम बनी रहती है।

बाहर से आने के बाद हाथ- पैर, चेहरा धोने के बाद हैंड एंड बॉडी लोशन लगाएँ। इससे हाथ-पैर व चेहरे की त्वचा मुलायम बनी रहेगी।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

इतना लाभकारी है रेशेदार भोजन




 
पेट भरने के लिए खाना तो सब खाते हैं। लेकिन हम अक्सर ये भूल जाते हैं कि हमारे स्वास्थ्य के लिए क्या फायदेमंद है और क्या नुकसानदायक। इसलिए प्रोटीन, वसा, विटामिन युक्त खाद्य पदार्थों के बीच रेशेदार भोजन की अपनी अलग महत्ता है। स्पंज की तरह काम करते हुए फाइबर प्राकृतिक तरीके से शरीर की सफाई करने में मदद करता है। फाइबर के लाभ और उनसे जुड़े दावों के बारे में बता रहे हैं राजेश राना अपने विशेषज्ञों से बात करके।

अपोलो अस्पताल नई दिल्ली की सीनियर डायटीशियन डाॅ. दीपिका अग्रवाल के अनुसार रेशा पौधों से मिलने वाला वह भाग है, जिसे मानव शरीर में मौजूद एंजाइम पचा नहीं पाते। शरीर में पहुंच कर यह रेशा नमी को ग्रहण कर अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकलने में मदद करता है। दिनभर में 30 ग्राम फाइबर का सेवन उपयुक्त होता है।

क्या हैं फाइबर
फाइबर को सॉल्युबल और इन्सॉल्युबल दो भागों में बांटा जाता है।
इनसॉल्युबल फाइबर साबुत अनाज व उससे बने पदार्थों बीज, ताजे फल व सब्जियों में इसकी अधिकता होती है। इससे खाद्य पदार्थ पचाने में आसानी होती है, जिससे आंतों पर कम दबाव पड़ता है और कब्ज नहीं होता।

सॉल्युबल फाइबर पानी में घुलनशील ये फाइबर कोलेस्ट्रॉल को कम रखने में विशेष उपयोगी होते हैं। जई की भूसी और सूखे बींस में इसकी अधिकता होती है। इससे पेट से भोजन धीरे-धीरे आगे मूव करता है और ब्लड शुगर का स्तर स्थिर रखने में मदद मिलती है।

फाइबर के लाभ

फाइबर के नियमित भोजन में प्रयोग करने से पाचन क्रिया मजबूत बनी रहती है। अपशिष्ट पदार्थ देर तक आंतों में जमा रहकर टॉक्सिन नहीं फैलाते। जिससे संक्रमण का खतरा कम होता है। कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होता है व हृदय रोगों में लाभ मिलता है। मलाशय के कैंसर का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। अगर आपका वजन ज्यादा है तो फाइबर युक्त भोजन वजन कम करने में मदद करता है।

यूं बढ़ाएं फाइबर की मात्रा
ब्रेकफास्ट में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं। होलग्रेन ब्रेड टोस्ट, ताजे फल व फाइबरयुक्त पदार्थ जैसे दलिया व भूसी मिलाएं। फलों के ऊपरी हिस्से, बीज और गूदे में फाइबर सबसे अधिक होता है। चोकर सहित रोटी बनाएं। सलाद, कॉर्नफ्लेक्स, पोहा, चपाती, उपमा, ज्वार और जौ का सेवन करें। खाने में बादाम और अंकुरित भोजन की मात्रा बढ़ाएं। डाइट में फाइबर के साथ पानी की मात्रा भी बढ़ाएं।

कुछ सब्जियों और फलों के छिलके में अधिक फाइबर होता है। जरूरी है कि आप छिलके सहित फल खाएं और फलों को अच्छी तरह धो लें। बीजों में भी फाइबर होता है, उदाहरण के तौर पर टमाटर से बीज निकाल देने से उनमें फाइबर की मात्र कम हो जाती है।

इनसे पाएं नेचुरल फाइबर
बींस में सबसे अधिक फाइबर पाया जाता है। एक कप राजमा व लोबिया में 15 ग्राम से अधिक फाइबर मिलता है। इसी तरह दाल विशेषकर मसूर की दाल में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है। सब्जियों में मटर में सबसे अधिक फाइबर होता है।

हरी पत्तेदार सब्जियां व फल
हरी पत्तेदार सब्जियों में लोह तत्व, बेटा केरोटीन और फाइबर अच्छी मात्रा में  पाए जाते हैं। एक कप उबली हुई हरी सब्जियां जैसे पालक, पत्तेदार शलजम और चुकंदर में 4 से 5 ग्राम फाइबर मिलता है। इसी तरह नाशपाती और सेब से भी फाइबर मिलता है। एक बड़े सेब से जहां 3.3 ग्राम फाइबर मिलता है, वहीं मध्यम आकार की नाशपाति से 5.1 ग्राम फाइबर मिल जाता है।

मेवा
बादाम, पिस्ता और अखरोट में केवल प्रोटीन ही नहीं होता, उसमें फाइबर भी प्रचुर पाया जाता है। किशमिश में सॉल्यूबल और नॉन सॉल्यूबल दोनों तरह के फाइबर होते हैं। किशमिश से शरीर को तुरंत ऊर्जा मिलती है।

रागी
रागी में सेल्युलॉस होता है, जो कि एक तरह का फाइबर है। रागी का नियमित सेवन कब्ज को दूर रखता है। इसके अलावा रागी में कैल्शियम, लोहा और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। रागी का सेवन मधुमेह और मोटापे के शिकार लोगों के लिए भी फायदेमंद रहता है, क्योंकि इसका पाचन धीरे-धीरे होता है, जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्राव धीमा हो जाता है।

जई
ओट्स में आहारक फाइबर पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें आयरन, प्रोटीन और विटामिन बी 1 भी होता है। जई में वसा कम होती है, इससे शरीर में अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल को घटाने में मदद मिलती है। इससे कार्डियोवस्कुलर रोगों को कम करने में मदद मिलती है।
अगर आप भी रेशेदार भोजन को अपनी डाइट में शामिल करते हैं तो आप कई तरह की बीमारियों से बच सकते हैं।

बुधवार, 19 सितंबर 2012

व्यायाम, दिल को दें आराम



व्यायाम हमें शारीरिक रूप से तो फिट रखते ही हैं, मानसिक तौर पर भी रिलैक्स रहने में सहयोग करते हैं। इतना ही नहीं, व्यायाम दिल की सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद साबित होते हैं। आइए जानें कुछ ऐसे व्यायाम के बारे में।
आप कौन सा व्यायाम कब करें, इसका भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
सामान्य रूप से 20 से 30 मिनट तक हाथ पांव फेंकने, मोड़ने, कूदने के व्यायाम सप्ताह में चार पांच दिन करने चाहिए। यह व्यायाम कितनी देर तथा कितनी तेजी से करें, यह आप अपनी अवस्था के अनुसार तय करे। इससे हृदय की हालत ठीक रहती है। हर व्यक्ति को अपनी उम्र, अपने स्वास्थ्य की हालत तथा पहले हुई बीमारियों को ध्यान में रखकर व्यायाम का निर्णय करना चाहिए।
सुबह शाम टहलना, तेजी से चलना, साइकिल चलाना और तैरना अपने आप में संपूर्ण व्यायाम हैं और ये सभी के लिए अच्छे रहते हैं।
दौड़ना और टेनिस खेलना युवकों के लिए तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ उम्रदराज लोगों के लिए ठीक है।
तेज चलने की अपेक्षा मंद दौड़ने का कोई विशेष लाभ नहीं है। इससे घुटनों में जकड़न और महिला के मासिक धर्म की व्यवस्था में गड़बड़ी होने की आशंका होती है।
रस्सी कूदना अच्छा व्यायाम है लेकिन इसको पुट्ठों, घुटनों तथा पैरों पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है।
हृदय और फेफड़ों को ठीक रखने के लिए तैराकी बहुत बढिया व्यायाम है। 100 गज तैरना, 400 गज की जॉगिंग से अधिक लाभप्रद है। तैरने से पेशियां भी ठीक रहती हैं और गहरी श्वास लेने से शक्ति बढ़ती है।
वीडियो टेप चलाकर नृत्य करना भी अच्छा व्यायाम है। बीस मिनट में शरीर की फालतू कैलोरी जलने के साथ ही रक्त संचार भी सुधरता है।
योगासन भी उत्तम व्यायाम है जिससे मांसपेशियों को बल मिलता है। इसमें झुकने तथा मुड़ने से आंतरिक मालिश होती है जिससे शरीर के प्रमुख अंगों का सुधार होता है। इनसे मन को भी शांति प्राप्त होती है।
फुरसत के समय में बागवानी, पदयात्रा, काम के समय चलना, जीने पर चढ़ना.उतरना सहायक व्यायाम हैं, लेकिन ये नियमित व्यायाम का स्थान नहीं लेते।
यदि आप नियमित व्यायाम नहीं करते तो अपने डॉक्टर से कहिए कि वह अपने लिए व्यायाम का कार्यक्रम बना दें।
ध्यान रहे दिल की बीमारी में बिना डाॅक्टर की सलाह के व्यायाम ना करें ।

शनिवार, 8 सितंबर 2012

एक्ने का आयुर्वेदिक उपचार


युवावस्था में टीनेजर्स खासकर लड़कियां सौंदर्य समस्याओं के चलते अपना आत्मविश्वास खोने लगती हैं। दरअसल टीनेज में हार्मोंस में लगातार बदलाव आते रहते हैं, नतीजन चेहरे पर दाग, धब्बे, मुंहासे और एक्ने की समस्या होने लगती हैं। एक्ने ऐसी समस्या है जो आमतौर पर टीनेज और युवावस्था में अधिक होती है। एक्ने की समस्या से बचने के लिए कुछ आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनाया जा सकता है। आयुर्वेद में कुछ ऐसे एंटीऑक्सीडेंट् हैं जिनके उपयोग से एक्ने की समस्या से आसानी से निजात पाई जा सकती हैं। आइए जानें एक्ने के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में।

मसूर की दाल को पीस कर इसमें घी और दूध मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को मुहांसे और पिंपल्स की जगह पर लगाएं। बहुत आराम मिलेगा।

ताजे दूध में चिरौंजी पीसकर इसका लेप बनाकर चेहरे पर लगाएं और सूखने पर धो लें, इससे एक्ने की समस्या से निजात मिलेगी।
   
जायफल को धिसकर उसका लेप बनाकर कील-मुंहासों और जलन की जगह पर लगाने से आराम मिलता हैं।

एक्ने आमतौर पर बॉडी के उन हिस्सों में ज्यादा होते हैं, जहां ऑयल ग्लैंड्स ऐक्टिव होते हैं। यही वजह है कि चेहरे, पीठ, छाती, गर्दन और बाहों के ऊपरी हिस्से में ये बहुत ज्यादा होते हैं। लेकिन समय पर इलाज न होने से ये दाग भी छोड़ सकते हैं।

चमेली के तेल को सोहागा में मिलाकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाकर मसलें। सुबह बेसन को पानी से गीला कर चेहरे पर लगाकर मसलें और पानी से चेहरा धो डालें। इससे चेहरे पर होने वाली जलन पर बहुत आराम मिलेगा।

टंकण और शक्ति पिष्टी के पाउडर में शहद मिलाकर कील-मुँहासों पर लगाएं।

लोध्र, वचा और धनिया, तीनों को पीसकर थोडे़ से दूध में मिलाकर लेप बना लें और कील-मुंहासों इत्यादि पर लगाएं, इसे कम से कम आधा घंटा लगाकर धो लें।

सफेद सरसों, लोध्र, वचा और सेन्धा नमक के चूर्ण को पानी में मिलाकर लेप बनाकर एक्ने की जगह पर लगाएं।

मसूर, वट वृक्ष की कोंपलें, लोध्र, लाल चन्दन को पानी के साथ मिलाकर कील-मुंहासों पर लगाएं। इससे बहुत आराम मिलेगा।

आयुर्वेद उपचार के साथ ही एक्नें की समस्या से बचने के लिए चेहरे की साफ-सफाई रखना जरूरी हैं, ऐसे में चेहरे को बार-बार पानी से धोएं।

एक्ने की समस्या से बचने के लिए मेकअप कम से कम करें और गर्मियों में वॉटरप्रूफ मेकअप का ही इस्तेमाल करें।

रविवार, 2 सितंबर 2012

फूड जो रखे दिल की सेहत का ख्याल



आजकल लोगों में दिल की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। अक्सर इसे पहचानने में देरी हो जाती है। ऐसे में आपको गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। जरा सी भी मेहनत करने पर साँस फूलने लगे, पसीना आ जाए, सीढि़याँ चढ़ते समय दम भर जाए तो समझो दिल कमजोर है। जिसकी सीधी वजह होती है सही खान-पान और अच्छी जीवन शैली का ना होना। बाद में डाक्टर के चक्कर लगाने से तो बेहतर है थोड़ी सी सावधानी बर्ती जाये। तो आइए जाने दिल को तंदरूस्त रखनें और दिल की कमजोरी दूर करने हेतु कुछ हेल्दी फूड।

बादाम खाइए, हृदय रोग का खतरा घटायें
हृदय रोग का मुख्य कारण मोटापा, उच्च रक्तचाप और उच्च रक्त शर्करा है। जो लोग हफ्ते में पांच बार बादाम खाते हैं, उनमें हार्ट अटैक की संभावना 50 फीसदी तक कम हो सकती है। बादाम में मौजूद विटामिन ई की प्रचुर मात्रा एंटीऑक्सीडेंट का काम करती है और ह्दय रोग का खतरा कम करती है। हृदय रोग की सबसे बड़ी वजह है कोलेस्ट्रोल। बादाम में विटमिन ई व कैल्शियम काफी मात्रा में पाया जाता है जिससे कोलेस्ट्रोल कम होता है। बादाम में अत्यधिक फाइबर, प्रोटीन और अच्छा फैट होता है, जो भूख मिटा देता है। जिससे मोटापे का खतरा कम हो जाता है। बादाम में पोटैशियम ज्यादा मात्रा में पाया जाता है और सोडियम कम मात्रा में होता है, जिससे आपका रक्तचाप नियंत्रित रहता है।

दिल को दुरुस्त रखने में मददगार है अलसी
अलसी में पाया जाने वाला ओमेगा-3 फैटी एसिड रक्त नलिकाओं में वसा के जमाव को रोकता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड हमारे शरीर में नहीं बनता है इसे भोजन के ही द्वारा ग्रहण करना होता है। शाकाहारियों के लिए अलसी ओमेगा-3 एसिड का सबसे अच्छा स्रोत है। अलसी के बीज रक्त में अच्छे कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाते है और खराब कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करते है। अलसी के बीज के लगातार सेवन से दिल की धमनियों में ब्लड क्लॉट की समस्या नहीं होती है। जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम रहता है ।

जई का आटा
जई के आटे में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है। ये फाइबरयुक्त सुपर फूड है जो एलडीएल कोलेस्ट्रोल के लेवल को कम करता है जोकि दिल के दौरे के अवसर को बढ़ाता है। जई के आटे में आट्र्री को साफ करने का भी गुण होता है जिससे ब्लड सर्कुलेशन सही बना रहता है।

सेलमोन फिश दिल की दवा
हर्ट रोग विशेषज्ञ और लोअर फाॅर ब्लडप्रैशर इन ऐट वीक बुक के लेखक डाॅ. स्टीफेंन टी. सिंतारा बताते है कि सेलमोन में कार्टिनाॅइड एस्टाजेंथिन होता है जो पाॅवरफुल एंटी आॅक्सीडेंट हैं। इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है। ये बीपी को कम करने के साथ दिल के दौरे के रिस्क को वनथर्ड तक कम करता है। डाॅ. सिंतारा बताते है कि ये जरूरी नही कि सेलेमोन में ही ये गुण हांे इसके अलावा भी दूसरी फिश जैसे मेंकरल, टयूना और हिपरिंग में भी ये तत्व पाये जाते हैं। इसके अलावा आप डाॅक्टर की सलाह पर फिश आॅयल के कैप्श्यूल का भी प्रयोग कर सकते हैं।

एवोकेडो
डाॅ. सिंतारा बताते है कि एवोकेडो में मोनोसेचुरेटिड फैट होता जो खराब एलडीएल कोलेस्ट्रोल के लेवल को कम करता है और सही एचडीएल कोलेस्ट्रोल के लेवल को बढ़ाता है जिससे दिल के दौरे का खतरा कम होता है।

बेरी
ब्लूबेरी, स्ट्राॅबेरी जो भी आप पसंद करते हो, ये सब आपके दिल के लिए काफी फायदेमंद हैं। बेरी एक अच्छी इंफलेमेंट्री होती हैं जो दिल की बीमारी और कैंसर के रिस्क को कम करती हैं।

फलियां
बीन या दूसरी सभी हरी फलियां दिल के साथ सेहत के लिए बहुत जरूरी होती हैं। इनमें ओमेगा-3 फैटी एसिड, कैल्सियम और खूब फाइबर होते हैं जो दिल की सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं।

पालक
पालक में ल्यूटिन, फोलेट, पोटेशियम और फाइबर होते हैं। पंद्रह हजार लोगों पर की गई स्टडी में सामने आया कि जो लोग दिन में एक से दो बार हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करते हैं उनमें दिल की बीमारी का रिस्क 25 प्रतिशत तक कम हो जाता है। क्योंकि इनमें वो सभी एंटीआॅक्सीडेंट होते है जो आपको दिल की बीमारी के साथ षरीर के दूसरे रोगों से लड़ने में भी सहायक है।

सोय
सोय में कोलेस्ट्रोल कम करने का गुण होता है। ये हैल्दी हर्ट डाईट के लिए लीन प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत होता है। दिल के लिए सोय के प्राकृतिक सोर्स का प्रयोग करना ज्यादा लाभकारी होता है।
 
ये भी अपनायें
लौकी उबालकर उसमें धनिया, जीरा व हल्दी का चूर्ण तथा हरा धनिया डालकर कुछ देर और पकाएँ। युवावस्था में कमजोर दिल के रोगी को इसका नियमित सेवन करने से लाभ होता है और दिल को शक्ति मिलती है।
अगर आपको उच्च रक्तचाप की समस्या है, तो मौसमी फल व सब्जियों का सेवन करें।
अनार से नये सेल्स का निर्माण होता है और हृदय की बीमारियों से बचने के लिए भी यह अच्छा  है।
प्याज के सेवन से रक्त में कोलेस्ट्राल का स्तर ठीक रहता है और आॅक्सिडेशन की प्रक्रिया ठीक से होती है।
उच्च रक्तरचाप नियंत्रित रखने के लिए संतरे के जूस को नारियल के पानी में मिला कर दिन में दो से तीन बार लें।
रक्तचाप बढ़ रहा है, तो नीबू पानी पीयें। एक गिलास पानी में आधे नीबू को निचोड़ कर इसे हर दो घंटे पर पीयें।
एक बड़े चम्मच से ताजा आंवले के रस और शहद का मिश्रण बनाकर इनका सेवन करें।
अब अपनी समस्याओं का ईलाज आप अपने घर पर ही कर सकते हैं, लेकिन अपनी स्थितियों की गंभीरता को समझते हुए चिकित्सक के पास जाना ना भूलें।


मंगलवार, 28 अगस्त 2012

जानें हेल्थ मशीनों का सीन




आपमें से कई ऐसे लोग होगे जिन्हें कुछ छोटे-छोटे इंस्ट्रूमेंटों की जरूरत हमेशा रहती है। इसके लिए हम अपने एक्सपर्ट से सलाह करके आपको बता रहे है कि कैसे इनका प्रयोग किया जाये है कितने हैं जरूरी।

नैबुलाइजर
नैबुलाइजर, एक ऐसा डिवाइस है जिसमें रोगी के फेफड़ों तक साँस के माध्यम से दवाई पहुँचाने के लिए इन्हेलर के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है। इसका प्रयोग सामान्य तौर पर अस्थमा और अन्य श्वास सम्बन्धी समस्याओं के रोगियों द्वारा किया जाता है।
कितना है उपयोगी
डॉ सुशीला कटारिया, इंटरनल कंसलटेंट, पारस अस्पताल, गुडगाँव ने इस गैजेट के बारें में जानकारी देते हुए बताया किए नैबुलाइजर अस्थमा में होने वाली खांसी की समस्या में आराम देता है। यह दवाई का असर सीधे प्रभावित हिस्से पर करता है मगर इसका प्रयोग करने की तकनीक पहले अपने डॉक्टर से अवश्य पूछ ले।
नैबुलाइजर का प्रयोग करने के बाद उसे तुरंत साफ करना जरुरी है। अगर आप ऐसा नही करते है तो उसमें बैक्टीरिया का जन्म हो सकता है।
मार्केट में कीमत
नैबुलाइजर की कीमत मार्केट में 2000से 3000 के बीच में है।

हीटिंग पैड्स
आज भी हम सभी के घर में सिकाई के लिए वाटर बैग का ही प्रयोग किया जाता है। मगर समय के साथ बहुत सी चीजे बदलती है। अब धीरे धीरे लोग हीटिंग पैड्स का प्रयोग हॉट वाटर बैग की जगह करने लगे है। अब सिकाई करना एकदम आसान हो गया है। बस आपको इसकी वायर को पॉवर प्लग में लगाकर स्विच ऑन करना है और सिकाई का आनंद उठाना है।
कितना है उपयोगी
वैसे तो यह हीटिंग पैड्स बहुत ही उपयोगी है मगर यदि आप गर्भवती है तो पेट के निचले हिस्से में इसका प्रयोग करने से बचें। गर्भावस्था के शुरुआती 12 सप्ताह से पहले गर्भवती महिला के शारीर का तापमान 39 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा नहीं होना चाहिए इसलिए इनका प्रयोग उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। मगर आप गर्भावस्था के दौरान होने वाले जांघों और पीठ दर्द में इसकी मदद ले सकते है। ऐसा कहना है डॉ कौशिकी द्विवेदी, कंसल्टेंट गायनोकॉलोजिस्ट, मैक्स अस्पताल का।
क्या कहता का मार्केट
हीटिंग पैड्स के लिए आपको अपनी जेब से ज्यादा पैसे खर्च करने की जरुरत नहीं है। आप केवल 350 से 700 रूपये में इसे खरीद सकते है।

ग्लूकोमीटर
खराब जीवन शैली से बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं का जन्म हो रहा है। इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या डायब्टिज है। इसी को देखते हुए बाजार में एडवांस बायोसेंसर टैक्नोलोजी युक्त ग्लूकोमीटर आ गए है जोकि बस चंद सैकंड में ही आपको आपके शुगर का लेवल बता देते है।
फायदे ग्लूकोमीटर
मैक्स हैल्थकेयर के कंसल्टेंट एंडोक्रिनोलोजिस्ट डॉ सुजीत झा ने बताया है कि कोई भी व्यक्ति इस गैजेट का प्रयोग की मदद से घर बैठे बैठे ही अपने ब्लड ग्लूकोज के बारें में पता लगा सकता है। साथ ही यह एक अच्छा गाइड बनकर आपको इस बात की भी जानकारी देता है कि आप अपने डायब्टिज को कंट्रोल करने में कितने सफल रहे है।
कितना है उपयोगी
ग्लूकोमीटर पर निकले नतीजो पर आप यकीन कर सकते है। हाँ, यह सत्य है कि यह नतीजे लैब में कराये जाने वाले ब्लड शुगर टेस्ट की रिपोर्ट की तरह एकदम सटीक नही होते है फिर भी इनके द्वारा निकला गया परिणाम सही ही मना जा सकता है। सामान्यतौर पर लैब और ग्लूकोमीटर के परिणामों में कुछ ज्यादा अंतर नही होता है।
सीनियर कंसल्टेंट एंडोक्रिनोलोजिस्ट डॉ अम्बरीश मित्थल के अनुसारए बाजार में आ रहें नए ग्लूकोमीटर में आपको कोडिंग करने की भी कोई जरुरी नहीं होती है और उससे मिलने वाले परिणाम को समझना भी आसान होता है।
मार्केट में कीमत
बाजार में ग्लूकोमीटर के बहुत के बहुत से ब्रांड मौजूद है। आप अपने डॉक्टर से परामर्श लेकर सही ब्रांड का चुनाव कर सकते है। इस ग्लूकोमीटर को खरीदने में आपको 1000 से 3000 रूपये खर्च करने होंगे।

डिजिटल बीपी मशीन
वे दिन अब लद गए जब हमारे घरों में केवल थर्मामीटर और वजन मापने की मशीन हुआ करती थी। जैसे जैसे तकनीकी विकास बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे बाजार में उपयोगी हेल्थ गैजेट भी उतारते जा रहे है। आईये एक ऐसे ही हेल्थ गैजेट डिजिटल बीपी मशीन की बात करते है।
डिजिटल बीपी मशीन
आपने डॉक्टर साहब के यहा बीपी मोनिटर करने वाली मशीन तो देखी ही होगी, जिसमे पारे के माध्यम से बीपी मापा जाता है। मगर यह डिजिटल बीपी मशीन मैनुअल बीपी मशीन से अलग होती है। यह पूरी तरह से ऑटोमैटिक होते है और आप इन्हें बड़ी ही आसानी से घर में प्रयोग कर सकते है। आपको इसके अलग अलग प्रकार मिल जाएंगे जैसे बाजू में लगाकर चैक करने वाले या कलाई पर लगाने वाले। इसके प्रयोग भी बहुत आसन है बस इसे कलाई पर बंधे और बटन दबाकर आप निश्चिन्त होकर बैठ जाये। आपका बीपी मशीन एक बीप की आवाज के साथ ही आपको मोनिटर किये गए ब्लड प्रेशर का पूरा परिणाम सरल भाषा में स्क्रीन पर दे देता है।
कितना है उपयोगी
डॉ हंसा गुप्ता, कंसल्टेंट कार्डियोलोजिस्ट के अनुसार, यह गैजेट आपको बाजार में सही कीमत पर मिल जाते है और यह बहुत ही प्रभावी ढंग से बीपी के उतार-चढाव को चैक करने में मदद कर सकते है। इलैक्ट्रोनिक बीपी मशीन का प्रयोग करना भी आसन है और इसमें बीपी के साथ-साथ आपके पल्स रेट का भी रिकार्ड आ जाता है।
इस गैजेट के बारें में और जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यदि आपके पास ऑटोमैटिक बीपी मशीन है, तब भी पारे वाली बीपी मशीन पर अपनी रीडिंग को चैक करते रहे। अगर विश्वसनीयता की बात करें तो पारे वाली मशीन ज्यादा विश्वसनीय होती है। मगर इसमें सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी को कैसे रिकॉर्ड किया जाता है यह आपको अच्छे से आना बहुत जरुरी है।
मार्केट में कीमत
आपको यह ऑटोमैटिक बीपी मशीन बाजार में आसानी से मिल जाएंगी। इस मशीन को खरीदने के लिए आपको 2500 से 4500 तक रूपये खर्च करने पड़ सकते है।
अगर आप स्टोरी में बताई गई कुछ बातों पर ध्यान देकर इन यंत्रों का प्रयोग करते है तो आपको कभी भी परेशानी नही होगी।