सोमवार, 30 जनवरी 2012

फिट रहिये कुछ बातों पर ध्यान दें

आहार में छिपा उपचार

गुरुवार, 26 जनवरी 2012


जीवन में सफलता के सात नियम
जीवन मैं सफलता हासिल करने का वैसे तो कोई निश्चित फार्मूला नहीं है लेकिन मनुष्य सात आध्यात्मिक नियमों को अपनाकर कामयाबी के शिखर को छू सकता है।


ला जोला कैलीफोर्निया में “द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग” के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डा.दीपक चोपड़ा ने अपनी पुस्तक “सफलता के सात आध्यात्मिक नियम” में सफलता के लिए जरूरी बातों का उल्लेख करते हुए बताया है कि कामयाबी हासिल करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य, ऊर्जा, मानसिक स्थिरता, अच्छा बनने की समझ और मानसिक शांति आवश्यक है।

“एजलेस बाडी, टाइमलेस माइंड” और “क्वांटम हीलिंग” जैसी 26 लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक डा.चोपड़ा के अनुसार सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति में विशुद्ध सामर्थ्य, दान, कर्म, अल्प प्रयास, उद्देश्य और इच्छा, अनासक्ति और धर्म का होना आवश्यक है।

पहला नियम:

विशुद्ध सामर्थ्य का पहला नियम इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है। इस क्षेत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता है. प्रतिदिन मौन. ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन.बोलने की प्रकिया से दूर. रहना चाहिए और दिन में दो बार आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम अकेले बैठकर ध्यान लगाना चाहिए।

इसी के साथ उसे प्रतिदिन प्रकृति के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और हर जैविक वस्तु की बौद्धिक शक्ति का चुपचाप अवलोकन करना चाहिए। शांत बैठकर सूर्यास्त देखें. समुद्र या लहरों की आवाज सुनें तथा फूलों की सुगंध को महसूस करें ।

विशुद्ध सामर्थ्य को पाने की एक अन्य विधि अनिर्णय का अभ्यास करना है। सही और गलत, अच्छे और बुरे के अनुसार वस्तुओं का निरंतर मूल्यांकन है –“निर्णय’ । व्यक्ति जब लगातार मूल्यांकन, वर्गीकरण और विश्लेषण में लगा रहता है, तो उसके अन्तर्मन में द्वंद्व उत्पन्न होने लगता है जो विशुद्ध सामर्थ्य और व्यक्ति के बीच ऊर्जा के प्रवाह को रोकने का काम करता है। चूंकि अनिर्णय की स्थिति दिमाग को शांति प्रदान करती है. इसलिए व्यक्ति को अनिर्णय का अभ्यास करना चाहिए। अपने दिन की शुरुआत इस वक्तव्य से करनी चाहिए- “आज जो कुछ भी घटेगा, उसके बारे में मैं कोई निर्णय नहीं लूंगा और पूरे दिन निर्णय न लेने का ध्यान रखूंगा।”

दूसरा नियम:


सफलता का दूसरा आध्यात्मिक नियम है.- देने का नियम। इसे लेन- देन का नियम भी कहा जा सकता है। पूरा गतिशील ब्रह्मांड विनियम पर ही आधारित है। लेना और देना- संसार में ऊर्जा प्रवाह के दो भिन्न- भिन्न पहलू हैं । व्यक्ति जो पाना चाहता है, उसे दूसरों को देने की तत्परता से संपूर्ण विश्व में जीवन का संचार करता रहता है।

देने के नियम का अभ्यास बहुत ही आसान है। यदि व्यक्ति खुश रहना चाहता है तो दूसरों को खुश रखे और यदि प्रेम पाना चाहता है तो दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखे।

यदि वह चाहता है कि कोई उसकी देखभाल और सराहना करे तो उसे भी दूसरों की देखभाल और सराहना करना सीखना चाहिए । यदि मनुष्य भौतिक सुख-समृद्धि हासिल करना चाहता है तो उसे दूसरों को भी भौतिक सुख- समृद्धि प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।

तीसरा नियम:

सफलता का तीसरा आध्यात्मिक नियम, कर्म का नियम है। कर्म में क्रिया और उसका परिणाम दोनों शामिल हैं। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है- “कर्म मानव स्वतंत्रता की शाश्वत घोषणा है.. हमारे विचार, शब्द और कर्म. वे धागे हैं, जिनसे हम अपने चारों ओर एक जाल बुन लेते हैं। .. वर्तमान में जो कुछ भी घट रहा है. वह व्यक्ति को पसंद हो या नापसंद, उसी के चयनों का परिणाम है जो उसने कभी पहले किये होते हैं।

कर्म, कारण और प्रभाव के नियम पर इन बातों पर ध्यान देकर आसानी से अमल किया जा सकता है... आज से मैं हर चुनाव का साक्षी रहूंगा और इन चुनावों के प्रति पूर्णतः साक्षीत्व को अपनी चेतन जागरूकता तक ले जाऊंगा। जब भी मैं चुनाव करूंगा तो स्वयं से दो प्रश्न पूछूंगा.. जो चुनाव मैं करने जा रहा हूं. उसके नतीजे क्या होंगे और क्या यह चुनाव मेरे और इससे प्रभावित होने वाले लोगों के लिए लाभदायक और इच्छा की पूर्ति करने वाला होगा। यदि चुनाव की अनुभूति सुखद है तो मैं यथाशीघ्र वह काम करूंगा लेकिन यदि अनुभूति दुखद होगी तो मैं रुककर अंतर्मन में अपने कर्म के परिणामों पर एक नजर डालूंगा। इस प्रकार मैं अपने तथा मेरे आसपास के जो लोग हैं. उनके लिए सही निर्णय लेने में सक्षम हो सकूंगा।.

चौथा नियम:

सफलता का चौथा नियम “अल्प प्रयास का नियम” है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति प्रयत्न रहित सरलता और अत्यधिक आजादी से काम करती है। यही अल्प प्रयास यानी विरोध रहित प्रयास का नियम है।

प्रकृति के काम पर ध्यान देने पर पता चलता है कि उसमें सब कुछ सहजता से गतिमान है। घास उगने की कोशिश नहीं करती, स्वयं उग आती है। मछलियां तैरने की कोशिश नहीं करतीं, खुद तैरने लगती हैं, फूल खिलने की कोशिश नहीं करते, खुद खिलने लगते हैं और पक्षी उडने की कोशिश किए बिना स्वयं ही उडते हैं। यह उनकी स्वाभाविक प्रकृति है। इसी तरह मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपने सपनों को बिना किसी कठिन प्रयास के भौतिक रूप दे सकता है।

मनुष्य के भीतर कहीं हल्का सा विचार छिपा रहता है जो बिना किसी प्रयास के मूर्त रूप ले लेता है। इसी को सामान्यतः चमत्कार कहते हैं लेकिन वास्तव में यह अल्प प्रयास का नियम है। अल्प प्रयास के नियम का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए इन बातों पर ध्यान देना होगा..- मैं स्वीकृति का अभ्यास करूंगा। आज से मैं घटनाओं, स्थितियों, परिस्थितियों और लोगों को जैसे हैं. वैसे ही स्वीकार करूंगा, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार ढालने की कोशिश नहीं करूंगा। मैं यह जान लूंगा कि यह क्षण जैसा है, वैसा ही होना था क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ऐसा ही है । मैं इस क्षण का विरोध करके पूरे ब्रह्मांड से संघर्ष नहीं करूंगा, मेरी स्वीकृति पूर्ण होगी। मैं उन स्थितियों का, जिन्हें मैं समस्या समझ रहा था, उनका उत्तरदायित्व स्वयं पर लूंगा। किसी दूसरे को अपनी स्थिति के लिए दोषी नहीं ठहराऊंगा। मैं यह समझूंगा कि प्रत्येक समस्या में सुअवसर छिपा है और यही सावधानी मुझे जीवन में स्थितियों का लाभ उठाकर भविष्य संवारने का मौका देगी।.. ..मेरी आज की जागृति आगे चलकर रक्षाहीनता में बदल जाएगी। मुझे अपने विचारों का पक्ष लेने की कोई जरूरत नहीं पडेगी। अपने विचारों को दूसरों पर थोपने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी । मैं सभी विचारों के लिए अपने आपको स्वतंत्र रखूंगा ताकि एक विचार से बंधा नहीं रहूं। ..


पांचवा नियम:

सफलता का पांचवां आध्यात्मिक नियम “उद्देश्य और इच्छा का नियम” बताया गया है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति में ऊर्जा और ज्ञान हर जगह विद्यमान है। सत्य तो यह है कि क्वांटम क्षेत्र में ऊर्जा और ज्ञान के अलावा और कुछ है ही नहीं। यह क्षेत्र विशुद्ध चेतना और सामर्थ्य का ही दूसरा रूप है. जो उद्देश्य और इच्छा से प्रभावित रहता है।

ऋग्वेद में उल्लेख है.. प्रारंभ में सिर्फ इच्छा ही थी जो मस्तिष्क का प्रथम बीज थी। मुनियों ने अपने मन पर ध्यान केन्द्रित किया और उन्हें अर्न्तज्ञान प्राप्त हुआ कि प्रकट और अप्रकट एक ही है। उद्देश्य और इच्छा के नियम का पालन करने के लिए व्यक्ति को इन बातों पर ध्यान देना होगा.. उसे अपनी सभी इच्छाओं को त्यागकर उन्हें रचना के गर्त के हवाले करना होगा और विश्वास कायम रखना होगा कि यदि इच्छा पूरी नहीं होती है तो उसके पीछे भी कोई उचित कारण होगा । हो सकता है कि प्रकृति ने उसके लिए इससे भी अधिक कुछ सोच रखा हो। व्यक्ति को अपने प्रत्येक कर्म में वर्तमान के प्रति सतर्कता का अभ्यास करना होगा और उसे ज्यों का त्यों स्वीकार करना होगा लेकिन उसे साथ ही अपने भविष्य को उपयुक्त इच्छाओं ओर दृढ उद्देश्यों से संवारना होगा।

छठवां नियम:

सफलता का छठा आध्यात्मिक नियम अनासक्ति का नियम है। इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड दे । उसे केवल परिणाम के प्रति मोह को त्यागना है। व्यक्ति जैसे ही परिणाम के प्रति मोह छोड देता है. उसी वह अपने एकमात्र उद्देश्य को अनासक्ति से जोड लेता है। तब वह जो कुछ भी चाहता है. उसे स्वयमेव मिल जाता है।

अनासक्ति के नियम का पालन करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा.. आज मैं अनासक्त रहने का वायदा करता हूं। मैं स्वयं को तथा आसपास के लोगों को पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहने की आजादी दूंगा। चीजों को कैसा होना चाहिए. इस विषय पर भी अपनी राय किसी पर थोपूंगा नहीं। मैं जबरदस्ती समस्याओं के समाधान खोजकर नयी समस्याओं को जन्म नहीं दूंगा। मैं चीजों को अनासक्त भाव से लूंगा। सब कुछ जितना अनिश्चित होगा. मैं उतना ही अधिक सुरक्षित महसूस करूंगा क्योंकि अनिश्चितता ही मेरे लिए स्वतंत्रता का मार्ग सिद्ध होगी। अनिश्चितता को समझते हुए मैं अपनी सुरक्षा की खोज करूंगा।..


सातवां नियम:


सफलता का सातवां आध्यात्मिक नियम. धर्म का नियम. है। संस्कृत में धर्म का शाब्दिक अर्थ..जीवन का उद्देश्य बताया गया है। धर्म या जीवन के उद्देश्य का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए व्यक्ति को इन विचारों पर ध्यान देना होगा.. ..मैं अपनी असाधारण योग्यताओं की सूची तैयार करूंगा और फिर इस असाधारण योग्यता को व्यक्त करने के लिए किए जाने वाले उपायों की भी सूची बनाऊंगा। अपनी योग्यता को पहचानकर उसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करूंगा और समय की सीमा से परे होकर अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी सुख.समृद्धि से भर दूंगा। हर दिन खुद से पूछूंगा..मैं दूसरों का सहायक कैसे बनूं और किस प्रकार मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं। इन प्रश्नों के उत्तरों की सहायता से मैं मानव मात्र की प्रेमपूर्वक सेवा करूंगा।..

बुधवार, 25 जनवरी 2012

ये नौ, करें टेंशन दूर

राजेश राना


कुछ बातें मॉडर्न लाइफस्टाइल के साथ करीब से जुड़ी हैं। टेक्नॉलजी, स्पीड जैसी कई चीजों के साथ इनमें से टेंशन भी एक है। कभी-कभी की बात तो समझ में आती है, लेकिन हमेशा मुंह लटकाकर जीना भी भला कोई जीना है। जाहिर है, इसके लिए आपके पास ऐसे कुछ पॉइंट्स होने चाहिए, जिन्हें आजमाकर आप हमेशा खुश, फ्रेश और मुस्कराते नजर आएं। आपकी मुस्कान की कीमत जानते हुए हमने आपके लिए सहेजी हैं ये नौ खास बातें, जो आपके तनाव को छूमंतर कर देंगी।

स्पा: थकान दूर करने रिलैक्स होने के लिए स्पा एक पुराना नैचरल, लेकिन बेहतरीन तरीका है। तमाम तरह के नैचरल प्रॉडक्ट्स और मन को ठहरा देने वाले शांत माहौल में स्पा का एक सेशन आपको ऐसा महसूस करवाएगा, मानो आप सालों की थकान से बाहर निकले हैं। जाहिर है, जब आप अंदर से शांत होंगे, तो यह बात आपके चेहरे मूड में नजर आएगी।

पेट्स लव: कहते हैं, घर के पालतू जानवरों से किसी करीबी रिश्तेदार जितना ही लगाव हो जाता है। ऐसे में इनके साथ वक्त गुजारना, इनकी केयर करना और इनके साथ खेलना आपको एक अलग ही सुकून देगा। फिर बदले में ये आपको पूरा प्यार देंगे और नाराज नहीं होंगे। अगर मन चाहे, तो आप इनके साथ वे बातें भी कर सकते हैं, जिन्हें आप किसी और से कह नहीं पाते और मन की भड़ास निकलने के बाद आपका मूड काफी हद तक ठीक हो जाएगा।

बेबी प्ले: अपने बचपन की कई बातें आपको याद होंगी और अपनी भोली हरकतों पर आप मुस्करा उठते होंगे। अगर आपकी यादें कुछ फीकी हो गई हैं, तो किसी छोटे बच्चे के साथ खेल कर देखें। हो सकता है कि शुरुआत में आपको कुछ उकताहट हो, लेकिन बाद में उसकी मासूम हंसी और बातों में खोकर आप दुनिया भर का तनाव भूल जाएंगे। उसे कभी गोद में उठाएं, तो कभी उसी ही की मजीर् से चलने दें। अगर इसके बाद कभी तनाव पास में फटके, तो उसके साथ बिताए पलों को याद करके टेंशन फ्री हो जाएं।

फिल्म देखें: याद है, स्कूल-कॉलिज के दिनों में आप फिल्मों के कितने शौकीन होते थे और अब आपको अपनी पसंद की फिल्म देखे कितना वक्त हो चुका है। तनाव को आप एक अच्छी मूवी देखकर बाय-बाय कह दें। अगर घर पर आप आराम से मूवी देखने की पॉजिशन में हैं, तो ठीक है। वरना थिएटर में जाना बेस्ट ऑप्शन है। टिकट लेने के बाद अपना मोबाइल ऑफ करें, अपनी पसंद की स्नैक्स लें और कूल होकर फिल्म देखें। अगर मन करे, तो कॉमेंट्स भी करें!

वॉक करें: शांत मूड से वॉक करने से बेहतर कोई स्ट्रेसबस्टर नहीं है। कभी भी टेंशन में हों और किसी से बात करने का मन हो, तो स्पोर्ट्स शूज पहनकर पार्क में वॉक करने निकल जाएं। एक तो नेचर का साथ आपको वैसे ही रिलैक्स कर देगा और दूसरा फिजिकल ऐक्टिविटी में यूज हुई एनर्जी से आपका सारा गुस्सा काफूर हो जाएगा। फिर सेहत बनेगी, वो अलग।

शॉपिंग: इसमें कोई दोराय नहीं है कि शॉपिंग करना सभी को पसंद होता है और फिर तमाम लोग इस बात से सहमत हैं कि इससे उनका तनाव दूर होता है। तो टेंशन दूर करने के लिए यह तरीका भी आजमाया जा सकता है। इस दौरान खुद को खास दायरे में बांधें कि यह लेना है और वह नहीं। हालांकि बजट का ध्यान जरूर रखकर चलें। कहीं ऐसा हो कि कल को यही आपको टेंशन दे दे।

सेक्स: तमाम एक्सर्पट्स मानते हैं कि रेग्युलर सेक्स करने से तनाव आपसे दूरी बनाकर चलता है। तो अपने पार्टनर को भी यह बात समझाएं और एक-दूसरे के करीब रहकर वक्त बिताएं। इससे जहां आपका मूड अच्छा रहेगा, वहीं आपका रिश्ता भी प्यार के अहसास से मुस्कराता रहेगा।

म्यूजिक: संगीत तनाव दूर करने की बेस्ट मेडिसिन है। नॉर्मल हालात में अपनी पसंद का म्यूजिक पांच मिनट के लिए भी सुनने से आपका तनाव कहां जाएगा, यह आपको पता भी नहीं चलेगा और आप खुश मूड में घूमेंगे। ऑफिस से थककर निकले हैं, तो अपना फेवरिट गाना कानों पर लगा लें। फिर पूछें कि कहां है टेंशन! अगर आप बहुत ज्यादा स्ट्रेस फील कर रहे हैं, तो कुछ समय के लिए सूदिंग म्यूजिक सुनें।

मेडिटेशन: अगर रुटीन लाइफ में भाग-दौड़ करते-करते स्ट्रेस महसूस करने लगे हैं और छोटी-छोटी बातों पर भी आपका टेंपर कंट्रोल में नहीं रहता है, तो ध्यान लगाएं। यकीन मानिए, मेडिटेशन से आपको अपने अंदर एक अलग ही पावर का अहसास होगा, जो तनाव लाइफ के दूसरे प्रेशर झेलने की आपको शक्ति देगा। इसके लिए आप क्लासेज ले सकते हैं और धीरे-धीरे प्रैक्टिस के बाद इसे अपने रुटीन का हिस्सा बना लें।