बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

कैसे रहें होली के रंगों से सुरक्छित
राजेश राना
रंगों के त्योहार होली पर जमकर धमाल करें, पर कलर में मिले केमिकल से रहें सावधान।क्योकि इन रंगों मै मिले केमिकल आपकी त्वचा को नुकसान पंहुचा सकते हैं | ज्यादातर लोग होली के इस पर्व पर ये भूल जाते हैं की किस रंग का प्रयोग करे कोन से का नहीं | दिल्ली के ज्यादातर बड़े बाजारों में मिलने वाले फेस्टिव कलर्स में गाढ़े केमिकल कलर के ऑप्शन में सिर्फ चाइनीज रंग-गुलाल ही मौजूद हैं, जिनमें टॉक्सिक की मात्रा होती है।

सीनियर डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. अनिल गोयल कहते हैं कि आजकल लोकल दुकानदार केमिकल के साथ-साथ डिटरजंट और रेत मिलाकर भी गुलाल तैयार करने लगे हैं, जो कि न सिर्फ स्किन बल्कि आंखों, सांस की नली और बालों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। श्रेया आई सेंटर के हेड डॉ. राकेश गुप्ता कहते हैं कि होली पर ज्यादातर लोग पक्का रंग लगाने में ही विश्वास रखते हैं, कई बार इसके लिए ऐसे रंग भी इस्तेमाल कर लिए जाते हैं जो आंखों के टेंपररी ब्लाइंडनेस का कारण भी बन सकते हैं। इंडियन हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. आर. एन. कालरा के मुताबिक, होली खेलते समय रंग को मुंह के अंदर न जाने दें, क्योंकि सिंथेटिक रंगों में मिले मेलासाइट और माइका जैसे केमिकल सांस की नली और हार्ट, किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

रंगों के केमिकल का हेल्थ पर इफेक्ट

रंग--- केमिकल--- हेल्थ इफेक्ट

ब्लैक--- लेड ऑक्साइड--- किडनी डैमेज, लनिर्ंग डिसएबिलिटी

ग्रीन--- कॉपर सल्फेट --- आई एलर्जी, टेंपररी ब्लाइंडनेस

पर्पल--- क्रोमियम आयोडाइड--- ब्रोंकियल दमा, एलर्जी

सिल्वर--- एल्युमिनियम ब्रोमाइड--- कैंसर

ब्लू--- प्रशियन ब्लू--- स्किन एलर्जी

रेड--- मर्करी सल्फेट--- स्किन कैंसर, मेंटल रिटार्डेशन

खुद बनाएं रंग

लाल सूखा रंग- लाल चंदन की लकड़ी के पाउडर में सूखे लाल गुड़हल के फूल को पीस कर मिलाए।

गीला लाल रंग- चार चम्मच लाल चंदन पाउडर को पांच लीटर पानी में डालकर उबालें और इसे 20 लीटर पानी में मिलाकर डाइल्यूट करें। अनार के दानों को पानी में उबालने से भी गाढ़ा लाल रंग आता है।

हरा सूखा रंग- हरे रंग के लिए हिना पाउडर इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे चेहरे पर कोई निशान नहीं आएगा। गुलमोहर की पत्तियों को सुखाकर भी चमकदार हरा गुलाल तैयार किया जा सकता है।

गीला हरा रंग- दो चम्मच हिना पाउडर को एक लीटर पानी में घोलकर हरा रंग तैयार कर सकते हैं।

पीला सूखा रंग- दो चम्मच हल्दी पाउडर को पांच चम्मच बेसन में मिलाएं। हल्दी और बेसन उबटन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है, यह स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा गेंदे के फूल को सुखाकर उसके पाउडर से भी पीला रंग तैयार कर सकते हैं।

होली को सुरक्षित बनाने के लिए अपनाएं ये टिप्स
- अपनी स्किन और बालों को रंगों के केमिकल से बचाने के लिए नारियल तेल, ऑलिव ऑयल या बेबी ऑयल अच्छे से लगाएं। सरसों का तेल बिल्कुल न लगाएं।

- केमिकल स्किन के अंदर तक न घुसें इसके लिए मोटे और गाढ़े रंग के पूरे हाथ पैर ढकने वाले कपड़े पहनें। इससे केमिकल का असर स्किन पर कम पड़ता है |

- होली खेलने के बाद रंग उतारने के लिए हार्ड साबुन, डिटरजंट या शैंपू के बजाय बेसन, दही आदि का इस्तेमाल करें। क्योकि ये आपकी स्किन को मुलायम बनाये रखते हैं जिससे स्किन मैं अलर्जी नहीं होती है |

- एक बार में सारा रंग उतारने की कोशिश में बार-बार स्किन को रगड़ें नहीं, रंग को धीरे-धीरे उतरने दें। क्योकि रगड़ने से स्किन लाल पड़ जाती है और वहा चकत्ते पड़ जाते हैं जो बाद मैं बहुत दर्द करते हैं |

- अगर त्वचा में जलन या रैडनेस हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

- अगर आंख में रंग चला जाए तो उसे तुरंत साफ पानी से धोएं। होली खेलते समय या इसके दूसरे दिन बाद तक कॉन्टेक्ट लेंस न लगाएं, क्योंकि रंग लेंस को डैमिज कर सकते हैं।

- होली खेलने से पहले नाखूनों को काट लें। क्योकि नाख़ून होली खेलते वक्त जिसके साथ आप होली खेल रहे हैं उसको लग सकते हैं | अगर आपके नाख़ून बड़े हैं तो ये टूट भी सकते हैं |

- जहां तक हो सके सूखे और हर्बल गुलाल से होली खेलें। क्योकि ये रंग प्राक्रतिक होते हैं और आपको कोई हानि भी नहीं पहुंचाते |
होली आपसी प्रेम और सोहर्दय को त्यौहार है , बिना किसी को नुकसान पहुंचाए आपस मैं खुशिया बाँटने का उत्सव है | ऐसे मैं बाजार मे आये इन केमिकल रंगों से किसी को नुकसान पहुचाये बिना होली का मजा लें|

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

क्या है सर्विक्स कैंसर

राजेश राना

सर्विक्स कैंसरऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं। वैसे तो, कैंसर किसी को भी होसकता है। पर कुछ खास तरह के कैंसर जो, सिर्फ स्ति्रयों को ही होते हैं, उनमें से एक है गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर।गर्भाश्य ग्रीवा के कैंसर को सर्विक्स कैंसर भी कहा जाता है।

यह कैंसर होता कैसे है यह जानने के लिए स्त्री के शरीर की आंतरिक संरचना को समझना बहुत जरूरी है। वैजाइनाके आगे गर्भाशय का मुख स्थित होता है। इसे ही गर्भाशय ग्रीवा अर्थात सर्विक्स कहा जाता है। गर्भाशय ग्रीवा मेंकैंसर कोशिकाओं के बनने से ही सर्विक्स कैंसर होता है। सर्विक्स के क्षेत्र में कोई संक्रमण हो या कैंसर कोशिकाएंबनने लगें तो स्त्री की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। हो सकता है, स्त्री कभी भी गर्भधारण कर पाए। यहीनहीं, सर्विक्स के क्षेत्र में कैंसर कोशिकाओं को नियंत्रित किया जाए तो कैंसर कोशिकाएं धीरे-धीरे गर्भाशय केक्षेत्र में भी बड़ी आसानी से फैल जाती हैं और स्त्री की मौत भी हो सकती है।

बीमारी के प्रारंभिक लक्षणों और उपयुक्त चिकित्सा के बारे में समुचित ज्ञान हो तो स्त्री को मातृत्व सुख से वंचितहोना पड़ सकता है। स्ति्रयों में स्तन और गर्भाशय कैंसर के बाद सर्विक्स कैंसर के मामले सबसे ज्यादा सामनेआते हैं। सर्विक्स कैंसर की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि औरतों को होने वाले कैंसरमें करीब 40 प्रतिशत सर्विक्स कैंसर के मामले होते हैं।
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि कैंसर क्या है? हमारे शरीर में पुरानी कोशिकाओं के टूटने और नई कोशिकाओंके बनने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। स्वास्थ्य सामान्य हो तो पुरानी कोशिकाओं के टूटने और नयीकोशिकाओं के निर्माण में संतुलन बना रहता है। लेकिन यहीं किसी कारणवश यदि नई कोशिकाओं के बनने कीतुलना में पुरानी कोशिकाओं के नष्ट होने की दर कम हो या फिर कोशिकाओं के विभाजन का दर अनियंत्रित हो तोये कोशिकाएं आगे चलकर कैंसरकारी बन सकती हैं।

पुरानी कोशिकाओं के नष्ट होने की तुलना में अधिक ऊतकों के निर्माण और उनके एक जगह इकट्ठे होने से गांठबन जाती है। यदि इलाज नहीं किया जाए तो आगे चलकर यही गांठ टयूमर का रूप ले लेती है।

कोशिकाओं के अनियंत्रित विभाजन के परिणामस्वरूप दो प्रकार की गांठें बनती हैं- बिनाइन जो कैंसरकारी नहींहोतीं और मैलिगनेंट जो आगे चलकर कैंसर का रूप ले लेती हैं। यदि मैलिगनेंट गांठें सर्विक्स के क्षेत्र में हों तो स्त्रीको सर्विक्स कैंसर हो जाता है।

प्रमुख लक्षण

दिल्ली स्थित धर्मशिला कैंसर अस्पताल में स्त्री रोग कैंसर विशेषज्ञा डॉ. कणिका गुप्ता सर्विक्स कैंसर की शुरुआत में प्रकट होने वाले लक्षणों के बारे में कहती हैं, 'दो मासिक चक्रों के बीच में रक्तस्त्राव होना, वैजाइना से सफेद स्त्रावहोना, वैजाइना की सफाई के समय खून आना, पेट के निचले हिस्से में दर्द होना आमतौर पर सर्विक्स कैंसर केलक्षण होते हैं।यदि किसी स्त्री को ऐसा हो तो तत्काल किसी अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाना चाहिए। इतनाही नहीं, यदि स्त्री को सहवास के दौरान खून आए तो यह भी सर्विक्स कैंसर का संकेत हो सकता है।'


क्या है सर्विक्स कैंसर की वजह

सर्विक्स कैंसर के कारणों को समझना बेहद जरूरी है।

  • आवश्यक साफ-सफाई नहीं बरतने से इस कैंसर का खतरा सबसे अधिक होता है।
  • चूंकि स्त्री के प्रजनन तंत्र की संरचना बहुत जटिल और सूक्ष्म होती है। अत: यदि स्ति्रयां अपनी व्यक्तिगतस्वच्छता में जरा भी लापरवाही करें तो पुरुषों की अपेक्षा उनमें संक्रमण जल्दी हो जाता है।
  • डॉक्टरों का कहना है कि उनके पास सर्विक्स कैंसर के सभी मामलों में ज्यादातर स्ति्रयां निर्धन औरअशिक्षित वर्ग से ही होती हैं।
  • सर्विक्स कैंसर के साथ सबसे खतरनाक बात तो यह है कि इसके अधिकांश मामलों में कैंसर अंतिम अवस्थामें पहुंच चुका होता है। जहां स्त्री का इलाज और उसकी जान बचा पाना चिकित्सक के लिए बहुत मुश्किल होजाता है।

अध्ययन में पाया गया है कि कुछ स्त्रियों में जल्दी ही कैंसरकारी कोशिकाएं पनपने लगती हैं और ऐसी औरतों कोकैंसर होने का खतरा दूसरी औरतों की अपेक्षा कई गुणा बढ़ जाता है। 18 वर्ष से कम उम्र में विवाह, अधिक बच्चेहोना, धूम्रपान करना और बिना डॉक्टर की सलाह के गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन भी सर्विक्स कैंसर का कारणबन सकता है। यही नहीं, यौन संक्रामक रोग और खास तरह का एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) भी मूलत: सर्विक्स के आसपास के क्षेत्र की कोशिकाओं के अनियंत्रित गुणात्मक विखंडन की प्रक्रिया को उकसाता है। यहवायरस जांघों में मस्से बनाने में भी सक्रियभूमिका निभाता है। यह वायरस बहुत खतरनाक प्रवृत्ति वाला होता है।ह्यूमन पैपिलोमा वायरस किसी पुरुष के शरीर में तो सुप्तावस्था में पड़ा रहता है लेकिन ऐसे पुरुष से संबंध बनानेवाली स्त्री के शरीर में यह वायरस सर्विक्स कैंसर का कारण बनता है।

भारत में अपने शरीर-रचना के प्रति अज्ञानता के कारण ही कई स्त्रियां अनजाने में ही ऐसे रोगों की गिरफ्त में जाती हैं। सर्विक्स कैंसर को शुरुआती अवस्था में ही रोका जा सकता है। ऊपर बताए गए लक्षणों में से कोई एक भीआपको नजर आए तो शीघ्र ही स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। कैसे की जाती है जांच

इस बीमारी का पता लगाने के लिए स्त्री को पेट का अल्ट्रासाउंड, एमआरआई, छाती का एक्सरे, ब्लड प्रोफाइल कीजांच कराने की आवश्यकता होती है। इस जांच से हीमोग्लोबिन से लेकर रक्त में श्वेत और लाल रक्त कणों कीमौजूदगी आदि बातों का पता लगाया जाता है। लेकिन सर्विक्स कैंसर का पता लगाने वाली सबसे महत्वपूर्ण औरनिर्णायक जांच है- पेप्सस्मीयर टेस्ट।

पेप्सस्मीयर टेस्ट

पेप्सस्मीयर टेस्ट के तहत महिला के योनि से निकलने वाले द्रव को चम्मचनुमा किसी चीज की सहायता से खुरचकर निकाल लिया जाता है। इस द्रव को कांच की परखनली में इकट्ठा करके सूक्ष्मदर्शी से इसकी जांच की जाती है।इस जांच से यह जानकारी मिल जाती है कि योनि से निकाले गए द्रव की कोशिकाएं खतरनाक प्रकृति की हैं यानहीं। पेप्सस्मीयर के परिणामों को तीन भागों में बांटा जाता है-

  • निगेटिव: इसके अंतर्गत माना जाता है कि पेप्सस्मीयर टेस्ट में कैंसरकारी कोशिकाएं नहीं पाई गई हैं।फिर भी हर विवाहित स्त्री को प्रत्येक तीन साल के अंतराल में पेप्सस्मीयर टेस्ट करवाना चाहिए। जिनऔरतों की उम्र 65 वर्ष के आसपास हो और पेप्सस्मीयर की रिपोर्ट लगातार निगेटिव आती रही हो तो उन्हेंआगे यह जांच कराने की कोई जरूरत नहीं होती।
  • अनिश्चय: इसके अंतर्गत पेप्सस्मीयर टेस्ट में इस बात के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिससे पता चले कियोनि से निकलने वाले द्रव में कैंसरकारी कोशिकाएं हैं ही। इसलिए अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले फिरसे यही जांच किए जाने की आवश्यकता है। संभव है, कि स्लाइड से प्राप्त कोशिकाओं में अत्यंत कम मात्रा मेंकोई दोष पाया गया हो, जो योनि में किन्हीं अन्य कारणों से हुई सूजन और संक्रमण आदि कारणों से भी होसकता है। परंतु, इस स्थिति में इलाज और हर तीसरे और छठे महीने पेप्सस्मीयर टेस्ट कराते रहना जरूरीहै ताकि पेप्सस्मीयर टेस्ट में थोड़ा भी पॉजिटिव संकेत मिलते ही उचित इलाज आरंभ किया जा सके।पेप्सस्मीयर टेस्ट रिपोर्ट में अनिश्चय की स्थिति में यदि डॉक्टर को जरा भी संदेह होता है तो वैजाइना से प्राप्तद्रव की बायोप्सी करना जरूरी होता है। यहां यदि डिस्प्लेजिया या पहले चरण का कैंसर पाया गया तोमाइक्रोस्कोप से जांच की जाती है।
  • पॉजिटिव: इसका अर्थ है कि पेप्सस्मीयर जांच में गंभीर कोशिका दोष है और सर्विक्स कैंसर के संकेतमिले हैं। इसलिए ऐसी स्थिति में बायोप्सी अति आवश्यक है।

बीमारी के प्रमुख चरण

सर्विक्स कैंसर की स्थिति में इलाज को भी कैंसरकारी कोशिकाओं की उग्रता को देखते हुए चार चरणों में बांटा जाताहै-

  • स्टेज वन:इसका अर्थ है कि कैंसर सिर्फ श्रोणि प्रदेश तक ही सीमित है और सर्जरी द्वारा गर्भाश्य को निकालदेने से भविष्य में कैंसर होने की संभावना को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है। लेकिन इसके बाद स्त्रीगर्भधारण नहीं कर पाती। यदि डॉक्टर को स्थिति थोड़ी भी गंभीर नजर आती है तो सर्जरी द्वारा गर्भाशयनिकाल दिए जाने के बाद भी रेडियोथेरेपी द्वारा कैंसर कोशिकाओं को जला दिया जाता है।
  • स्टेज टू ए और स्टेज टू बी:इस स्थिति में पहुंचने का अर्थ है कि कैंसर कोशिकाएं वैजाइना के आसपास केहिस्सों में भी फैल गई हैं। कैंसर कोशिकाओं ने आसपास के अंगों को कितना अधिक जकड़ लिया है, इसीआधार पर सर्विक्स कैंसर के लक्षणों को स्टेज टू और टू बी दो भागों में बांटा जाता है। साथ ही यह भी तयकिया जाता है कि मरीज को सिर्फ कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी या दोनों की जरूरत है।
  • स्टेज थ्री:इस अवस्था में कैंसर कोशिकाएं पेल्विक वाल तक पहुंच जाती हैं।
  • स्टेज फोर:इस अवस्था में कैंसर कोशिकाएं ब्लैडर और रेक्टम को भी अपने चंगुल में ले लेती हैं। यहगंभीरतम स्थिति होती है। स्टेज थ्री और स्टेज फोर में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी साथ-साथ दी जाती है।इन दोनों ही अवस्थाओं में सर्जरी नहीं की जा सकती। इन दोनों ही अवस्थाओं में कैंसर कोशिकाएंअंदर-अंदर इतनी दूर तक फैल चुकी होती हैं कि ऑपरेशन की कोई अहमियत नहीं रह जाती। सर्विक्सकैंसर स्त्री के शरीर को पूरी तरह भीतर-भीतर खोखला बना देता है। यदि सही समय पर सही इलाज शुरू होगया और अगले पांच वर्षो में उस स्त्री में दोबारा कैंसर के लक्षण प्रकट नहीं हुए तो स्टेज वन कैंसर के 80-90 प्रतिशत मामलों में माना जाता है कि स्त्री पूरी तरह ठीक हो गई है। लेकिन एक बार सर्विक्स कैंसर काइलाज पूरा होने के बाद भी प्रत्येक तीन माह पर आवश्यकतानुसार स्त्री को एक-दो वर्षो तक फॉलोअप केलिए बुलाया जाता है और इस दौरान पेप्सस्मीयर जांच में यह देखा जाता है कि कोशिकाएं सामान्य हैं यानहीं।

स्टेज टू सर्विक्स कैंसर का सफल इलाज करा चुकी करीब 65-75 प्रतिशत स्ति्रयों में यदि पांच वर्षो तक कैंसर केलक्षण नहीं मिले तो वह हमेशा के लिए सर्विक्स कैंसर से मुक्त मानी जाती हैं। लेकिन स्टेज थ्री और स्टेज फोर कीअवस्था गंभीर मानी जाती है। स्टेज थ्री कैंसर सर्विक्स वाली 50 प्रतिशत और स्टेज फोर में पहुंचने वाली सिर्फप्रतिशत स्ति्रयों में ही अगले पांच वर्षो में कैंसर दोबारा प्रकट नहीं होने पर ये स्ति्रयां कैंसरमुक्त मानी जासकती हैं। 20-25

यदि स्टेज वन कैंसर है और स्त्री लगभग पूरे समय की गर्भवती है तो चिकित्सक बच्चे के जन्म की अनुमति दे देतेहैं लेकिन प्रसव के तुरंत बाद आवश्यक चिकित्सा अनिवार्य हो जाती है।

कुछ खास बातें

  • जननांगों की आवश्यक स्वच्छता का ध्यान रखकर इस प्रकार के कैंसर से बचा जा सकता है। खास तौर सेपीरियड के दौरान अंत:वस्त्रों की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए और जरूरत पड़ने पर उसे बदलतेरहना चाहिए।
  • हमेशा अच्छी क्वालिटी के सैनिटरी नैपकिन का ही इस्तेमाल करना चाहिए। सर्विक्स कैंसर से बचने केलिए यह जरूरी है कि आपके साथ आपके पति भी अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें।
  • कुछेक शोधों में यह भी बात सामने आई है कि विटामिन की कमी से भी सर्विक्स कैंसरं हो सकता है। इनशोधों में यह उल्लेख है कि विटामिन की कमी से कैंसर कोशिकाओं के गुणात्मक विखंडन की दर काफीबढ़ सकती है। इसलिए आप अपने रोजाना के भोजन में विटामिन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे, गाजर, पालक, चुकंदर आदि को शामिल करें।
  • विकसित देशों में तो स्ति्रयों में पर्याप्त जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण यह कैंसर स्ति्रयों कोहोने वाले कैंसरों की सूची में छठे-सातवें स्थान पर चला गया है जबकि भारत की स्ति्रयां अब भी सर्विक्सकैंसर से बदहाल हैं क्योंकि भारतीय स्ति्रयों में अपने स्वास्थ्य के प्रति अपेक्षित जागरूकता का अभाव है।अत: इस गंभीर बीमारी से बचने का सबसे बेहतर तरीका है कि आप स्त्री रोग विशेषज्ञ से अपनी नियमितजांच करती रहें।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

सिरदर्द समस्या नहीं, समस्या की खबर:
एक सर्वेक्षण के अनुसार, सिरदर्द की समस्या हर जगह देखने को मिल जाती है, लेकिन न तो इसे तवज्जो दी जाती है और न ही इसका सही इलाज करवाया जाता है। सर्वेक्षण कहते हैं कि सिरदर्द किसी गंभीर बीमारी का कारण कम ही बनता है, इसलिए आमतौर पर इसे हल्के में लिया जाता है। अपने यहां इसकी वजह दुख, काम का बोझ, नींद में गड़बड़ी और तनाव माना जाता है। सिरदर्द की शिकायत आमतौर पर किशोरावस्था से लेकर 60 साल की उम्र तक होती है। सिरदर्द की वजह से लोगों को काफी असुविधा होती है। लेकिन अधिकांश लोगों में यह अस्थायी होता है। लेकिन अगर ये सिरदर्द असहनीय हो, तो अपने चिकित्सक से संपर्क करने में न हिचकें। अगर सिरदर्द तेज, रुक-रुक कर आने वाला, बुखार के साथ आने वाला हो, तो इसकी चिकित्सा जांच करवाना बेहद जरूरी है, नहीं तो ये परेशानी का सबब भी बन सकता है।
कई तरह के सिरदर्द:

तनाव व माइग्रेन सिरदर्द के ही प्रकार हैं। माइग्रेन और समग्र सिरदर्द शारीरिक थकान पैदा करता है और नाड़ियों के दर्द को बढ़ा देता है। इसमें सिर के चारों तरफ की रक्त नलिकाएं और टिशू मुलायम हो जाते हैं या उनमें सूजन आ जाती है, जिस कारण सिरदर्द होता है। क्लस्टर सिरदर्द माइग्रेन से कम सामान्य है। क्लस्टर सिरदर्द कम अंतराल पर कई बार पैदा होता है। कभी-कभी ये कई सप्ताह या महीनों तक रहता है और काफी तकलीफदेह होता है।
कब गंभीर हो जाता है सिरदर्द?
आमतौर पर सिरदर्द गंभीर स्थिति कम ही पैदा करते हैं। अधिकांश सिरदर्द मांसपेशियों के तनाव से पैदा होते हैं और घर में ही उनका इलाज आसानी से किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य किसी कारण से होने वाला सिरदर्द किसी गंभीर रोग का संकेत भी हो सकता है। सिरदर्द के इन लक्षणों के होने पर चिकित्सकीय परामर्श लेना बहुत आवश्यक है। तेज और अचानक शुरू हुआ सिरदर्द, जो बिना किसी कारण के हुआ हो।
सिरदर्द के साथ बेहोशी, देखने में समस्या आना व अन्य कोई शारीरिक कमजोरी।
सिरदर्द के साथ गर्दन में अकड़न और बुखार लगना।
यदि आप अपने सिरदर्द के बारे में निश्चित नहीं हैं, तो आपको चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, ताकि आप जान सकें कि कहीं आपका सिरदर्द किसी गंभीर बीमारी का इशारा तो नहीं है।
सिरदर्द के कारण:
महानगरों की दौड़ती-भागती तेज रफ्तार जिंदगी में किसी भी इंसान को थकान, सिरदर्द, बुखार, ब्लडप्रेशर की समस्या होना एक आम बात बनकर रह गई है। इनमें से सिरदर्द सबसे सामान्य समस्या है। लेकिन कई बार ये जटिल रूप धारण कर सकता है। आमतौर पर सिरदर्द नींद पूरी न होने पर, दांतों में दर्द होने पर, थकान होने पर, गलत दवाई लेने पर, चश्मे का नंबर बढ़ने पर, मौसम बदलने पर हो सकता है। लेकिन इनमें मुख्य तीन कारण हैं- तनाव से उत्पन्न सिरदर्द, जुकाम या नजले से उत्पन्न सिरदर्द और माइग्रेन से उत्पन्न सिरदर्द।
तनाव से उपजा सिरदर्द:
तनाव के कारण होने वाला सिरदर्द सामान्य प्रकार का होता है। ये मांसपेशियों में सिकुड़न के कारण होता है। ये सिरदर्द लंबे समय तक तनाव के बने रहने के कारण उत्पन्न होता है। तनाव के कारण पैदा हुआ सिरदर्द अक्सर धीमा और स्थिर होता है। 90 प्रतिशत सिरदर्द इसी कारण होते हैं और आमतौर पर खुद ही ठीक हो जाते हैं। जुकाम या नजले से सिरदर्द:
कई बार नजले या साइनस के संक्रमण के कारण भी सिरदर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है। सर्दी या फ्लू के कारण साइनस के रास्ते या आपकी नाक के ऊपर स्थित हवा के स्थान में सूजन के कारण साइनस सिरदर्द पैदा होता है। जुकाम या नजले के जम जाने या संक्रमित होने पर दबाव बढ़ता है, जिससे सिरदर्द तेज होता है और कई बार लगातार होता रहता है। यह अधिकतर सुबह शुरू होता है। इसमें नीचे झुकने पर दर्द असहनीय हो जाता है। साइनस के कारण हुए सिदर्द में आंखों में, गाल में और सिर के अगले हिस्से में दबाव और दर्द होता है। इसमें ऊपरी दांत में दर्द, बुखार, ठंड लगना, चेहरे पर सूजन आदि की समस्या आ जाती है।
माइग्रेन का सिरदर्द:
माइग्रेन का सिरदर्द हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है। माइग्रेन वाला सिरदर्द आमतौर पर सिर के एक हिस्से या दोनों हिस्सों में होता है। ये बहुत तेज होने वाला सिरदर्द है। माइग्रेन से उत्पन्न सिरदर्द में कई बार जी मिचलाना, उल्टी होना, रोशनी के प्रति संवेदनशीलता और दृष्टि-दोष, सुस्ती, बुखार और ठंड भी लगती है। माइग्रेन से होने वाला सिरदर्द कई बार धीरे-धीरे और कई बार तेज होने लगता है। इसमें आपको दृष्टि-दोष भी हो सकता है। अध्ययन कहते हैं कि 50 प्रतिशत लोग डॉक्टर के पास जाने की बजाय खुद अपने सिरदर्द का इलाज करते हैं। लेकिन सिरदर्द के उचित इलाज की जरूरत बहुत ज्यादा है।
सावधानियां:

इस दर्द से निजात के लिए घरेलू उपचार से काम चलाने का प्रयास न करें। अव्वल तो तनाव को कम करें, नींद पूरी लेने का प्रयास करें और सिरदर्द की समस्या कुछ समय तक लगातार बनी रहे तो डॉक्टर के पास जाने से बिल्कुल भी न हिचकें क्योंकि थोड़ी-सी लापरवाही बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

बदलते मौसम में बाल संवारें सेहत:
राजेश राना:

अपने लुक और पर्सनैलिटी में चार चांद लगाने के लिए हम आजकल बालों के साथ तरह-तरह के प्रयोग करते रहते हैं। इससे कई समस्याएं भी सामने आती हैं, जिसमें बालों के झड़ने से लेकर सफेद होने तक की समस्याएं शामिल हैं। अब तो दिल्ली का मौसम भी रोज-रोज रंग बदलने लगा है। ऐसे में बालों का कैसे खयाल रखें | दिल्ली का युवा वर्ग लेटेस्ट फैशन, नए-नए ट्रेंड और स्टाइल को अपनाने के लिए जाना जाता है। मेट्रो सिटीज खासकर देश की राजधानी दिल्ली के युवा नई चीजों को ट्राई करने, मेकओवर करने, नया लुक अपनाने और नए-नए हेयर स्टाइल अपनाने में भी पीछे नहीं हैं। यही कारण है कि दिल्ली और मेट्रो सिटीज का युवा वर्ग एक ओर जहां अपनी इस जीवनशैली के लिए मशहूर है, वहीं वे नई-नई समस्याओं और गंभीर बीमारियों से पीड़ित होने के लिए भी जाने जाते हैं। दिल्ली के 80 फीसदी युवा बालों से संबंधित समस्याओं से जूझ रहे हैं, क्योंकि वे बदलाव को सबसे अधिक पसंद करते हैं।
बालों की समस्या और कारण:
दिल्ली में खासकर लड़कियों में बालों से जुड़ी समस्याओं के चार मुख्य कारण हैं।

बालों की उचित साफ-सफाई न रखना या फिर लापरवाही बरतना।
किन्हीं कारणों से ट्रॉमा या तनाव में रहना।
बालों में किसी तरह का इंफेक्शन होना।
दवाओं के साइड इफेक्ट। इन कारणों से बालों में डेंड्रफ, खुजली, बालों के झड़ने, गंजेपन और बालों में रूखापन या स्कॉल्प के शुष्क होने की समस्या होती है। राजधानी के अधिकांश युवा और खासकर लड़कियां इन समस्याओं से गुजर रही हैं।
अन्य कारण:

खासतौर पर दिल्ली में इन बीमारियों के कुछ अन्य ठोस कारण भी हैं। प्रदूषण, व्यस्त जीवनशैली, काम के बोझ के कारण तनाव, बालों की देखभाल के लिए समय की कमी, मौसम का उतार-चढ़ाव, नए-नए हेयर प्रोडक्ट्स अपनाना और उनमें बार-बार बदलाव करना, बार-बार बालों को रंगना, नए-नए हेयर स्टाइल अपनाना, पौष्टिक खाने की कमी, जंकफूड से दोस्ती और कुछ गंभीर बीमारियां या हार्मोंस का संतुलन बिगड़ना भी बालों की समस्या के कारण हो सकते हैं। आप चाहते हैं कि आपके स्कॉल्प (सिर की त्वचा) और बालों को नुकसान ना पहुंचे, तो आपको समय रहते बालों की समस्याओं को पहचानना होगा और इनका समय पर उपचार करवाना चाहिए। बालों को लगातार पोषक तत्व दें और बालों पर इस्तेमाल किए जाने वाले हेयर प्रोडक्ट्स के प्रति सावधान रहें।
संतुलित आहार और स्कॉल्प की देखभाल कर इन समस्याओं से बच सकते हैं।
कुछ सामान्य समस्याएं:

बालों का टूटना या बाल के कई टुकड़े होना।
दोमुंहे बाल होना
उनका समय से पहले सफेद होना
चिपचिपापन- ऑयली होना
रूसी या डेंड्रफ होना
फंगस, दाने, एलर्जी या संक्रमण होना।
बालों का सीधा ना होना या घुंघराले होना।
ऐसे बचें:
बालों को पोषक तत्व देने के लिए बाल धोने से पहले तेल से मालिश करनी चाहिए। सप्ताह में एक बार बालों की अच्छी तरह मसाज या चंपी करवानी होगी।
दिनभर में कम से कम 3 लीटर पानी पीएं। साथ ही कम से कम आठ घंटे की नींद पूरी करें।
चाहें तो महीने में एक बार बालों में दही, अंडा या फिर दही, नींबू, मेहंदी आदि का इस्तेमाल करें।
बालों में बार-बार कंघी करने के बजाय दो-तीन बार कंघी करें।
दूसरों की कंघी, तौलिया, हेयर प्रोड्क्ट्स का इस्तेमाल न करें।
लोकल हेयर प्रोडक्ट्स इस्तेमाल न करें और हर्बल हेयर प्रोडक्ट्स को महत्व दें।
बालों को स्वस्थ और हेल्दी बनाने के लिए व्यायाम, योग और मेडीटेशन भी जरूरी है।
महीने में एक बार हेयर स्पा भी ले सकते हैं। नियमित व्यायाम भी आपके लिए बहुत जरूरी है।
बालों को गर्म पानी से न धोएं और बालों में हेयर ड्रायर इस्तेमाल न करें।
बालों की समय-समय पर कंडीशनिंग करते रहें।
सप्ताह में दो-तीन बार बालों को जरूर धोएं।
ताजे फल, हरी सब्जियां आदि लें। विटामिन ई युक्त खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें।
दोमुंहे बालों को कभी-कभी कटवाते रहें।
बार-बार हेयर स्टाइल में बदलाव न लाएं, इससे बालों पर लगने वाले केमिकल बालों को नुकसान पहुंचाते हैं।
धूल-मिट्टी, प्रदूषण और तेज धूप से बचाने के लिए बालों को कवर करके घर से निकलें।
घरेलू नुस्खें:
आंवला और अंगूर के रस का सेवन।
दूध, बादाम, मछली का सेवन।
बालों पर कसूरी मेथी का पेस्ट लगाएं।
बालों पर आंवला, रीठा और शिकाकाई का पेस्ट लगाएं।
पपीते के जूस को बालों पर लगाएं।
बालों को रंगने से पहले सावधानियां:
एलर्जी होने पर बाल कलर ना करें।
अमोनियायुक्त डाई का इस्तेमाल करने के बजाय प्रोटीनयुक्त डाई का इस्तेमाल करें।
बालों को धोने के बाद सुखाकर कलर करें।
पहली बार बाल कलर करने से पहले हेयर एक्सपर्ट की सलाह लें।
बालों को रंगने वाला कलर अच्छी क्वालिटी का ही इस्तेमाल करें।
बालों को रंगने से पहले या बाद में 15-20 दिन तक बालों पर कोई प्रयोग ना करें।
क्या आप जानते हैं:

सिर के एक बाल की उम्र 1 से 6 साल तक के बीच होती है।
बाल टूटने के बाद उसी जगह दोबारा बाल उग आता है।
एक स्वस्थ बाल आधे इंच से तीन चौथाई इंज प्रतिमाह बढ़ता है।
जैसे- जैसे खोपड़ी की त्वचा कमजोर और ढीली पड़ने लगती है, वैसे-वैसे बालों के टूटने और गिरने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है।
बालों के लुक के साथ छेड़छाड़ न करें:
बालों की प्राकृतिक चमक बनाए रखने के लिए बालों को हर दूसरे दिन धोएं।
बालों पर कभी भी हेयर ड्रायर, प्रेसिंग या फिर किसी गर्म चीज का प्रयोग न करें, क्योंकि इससे बाल खराब होते हैं।
आप चाहें तो अपने शैंपू को सूट ना करने पर बदल सकते हैं, लेकिन बालों की चमक बरकरार रखने के लिए आपको अच्छी क्वालिटी के कंडीशनर का इस्तेमाल करना चाहिए।
बालों का लुक जैसा है वैसा ही रहने दें। उन पर बहुत अधिक एक्सपेरिमेंट ना करें। यदि बाल स्ट्रेट हैं तो उन्हें स्ट्रेट ही रहने दें ना कि घुंघराले करवाएं। इसी तरह घुंघराले बालों को स्ट्रेट ना करवाएं, इससे आपके बालों को नुकसान पहुंच सकता है।
नियमित साफ सफाई है जरूरी:

बालों की नियमित देखभाल करें। आप समय-समय पर बाल कटवाते रहें, ताकि दोमुंहे बालों की समस्या से बच सकें।
नियमित रूप से बालों की साफ-सफाई करनी चाहिए। जब भी बाल धोएं, बालों की कंडीशनिंग भी करें, जिससे आपके बाल सिल्की और चमकदार बन सकें।
स्टाइलिश दिखने के लिए बालों पर नए-नए एक्सपेरिमेंट के बदले खुद से ही हेयर स्टाइल्स में बदलाव लाएं।
सेहत बनानी है तो प्यार बढायें
राजेश राना
प्यार के मोसम यानि बसंत स्पेशल पर स्टोरी

फरवरी यानी प्यार का महीना। फिजाओं में प्यार, खुशी और खूबसूरती के रंग। प्यार की अवस्था में डोपामिन, नॉर-एपिनेफ्रिन तथा फिनाइल इथाइल एमिन हारमोंस आपके मन को उल्लास से भर देते हैं। किस तरह इन हार्मोन का लोचा आपको खुशियों से भर देता हैं, बता रही हैं रॉकलैंड अस्पताल की सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. प्रेमलता तिवारी प्यार की तासीर ऐसी ही होती है। जब आप प्यार में होते हैं तो आपके शरीर में कई तरह के हार्मोस बनते हैं जिसका जादुई प्राकृतिक नशा आपकी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जब आप भावुक होते हैं तो शरीर में कैमिकल्स का उतार-चढ़ाव भी बढ़ जाता है और हार्मोस का सीक्रेशन होता है। इससे शारीरिक क्रियाएं प्रभावित होती हैं। सांसें और हृदयगति तेज हो जाती है। प्यार की अवस्था में डोपामिन, नॉर-एपिनेफ्रिन तथा फिनाइल इथाइल एमिन नामक हारमोंस रक्त में शामिल होते हैं। डोपामिन को आनंद का रसायन भी कहा जाता है, क्योंकि ये परम सुख की भावना उत्पन्न करता है। डोपामिन और नॉर-एपिनेफ्रिन आपके मन को उल्लास से भर देते हैं। इन्हीं हारमोंस से इंसान को प्यार में ऊर्जा मिलती है। इसके अतिरिक्त डोपामिन एक अन्य महत्वपूर्ण हार्मोन ऑक्सीटोसीन के स्नव को भी उत्तेजित करता है जो इंसान में आत्मविश्वास बढ़ाता है। इसे लाड़ का रसायन भी कहा जाता है। प्यार में फायदे
विशेषज्ञों की मानें, तो अगर आप किसी के प्यार में होते हैं तो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी बनी रहती है, क्योंकि जब आप किसी के साथ रिलेशनशिप में होते हैं तो आपका शरीर फील गुड हार्मोस रिलीज करता है। इसके कारण आपका मूड अच्छा रहता है और आप बीमारियों से दूर रहते हैं। तनाव कम होता है
इस स्थिति में आप ज्यादा कूल और पॉजिटिव होते हैं। इससे आपको तनाव कम होता है और आप डिप्रेशन से दूर रहते हैं। प्यार का सही डोज महिलाओं को सुरक्षित बनाता है। दर्द बेअसर
जब आप किसी के सच्चे प्यार या अच्छी रिलेशनशिप में होते हैं तो आपके अंदर विश्वास की भावना तेजी से बढ़ती है। फीलिंग्स को शेयर करने की भावना आती है। इसलिए बेहतर रिलेशनशिप आपको दर्द से लड़ने की हिम्मत देती है। बढ़ती है रचनात्मकता
रिलेशनशिप से खुश होते हैं तो आपकी परफॉर्मेस भी अच्छी होती है और आप क्रिएटिविटी भी दिखा पाते हैं। तनाव रहेगा दूर
मजबूत संबंध में लड़ाई नहीं होती, क्योंकि आप समस्याओं का हल लड़कर नहीं, बल्कि बातचीत करके निकालते हैं। किसी का सपोर्ट मुश्किलों से लड़ने की ताकत देता है। आप रक्तचाप, माइग्रेन आदि से दूर रहते हैं। क्या कहते हैं कार्डियोलॉजिस्ट
आप अच्छी तरह जानते हैं कि रिलेशनशिप के दौरान आप का एटीट्यूड कितना पॉजिटिव होता है। आप खुद में एक सहजता पाते हैं। इससे आपके शरीर में रक्त का संचार भी ठीक रहता है। खुशी की वजह से तनाव जैसी समस्या भी नहीं होती। जब आपका रक्त संचार ठीक होता है तो आपको ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम भी नहीं होती। सेहत के लिए भी नगीना, फरवरी का महीना
डॉ़ अरूणा ब्रूटा, मनोचिकित्सक
कड़क की सर्दी के बाद जब वसंत ऋतु का आगमन होता है तो मौसम खुलने लगता है। इस फरवरी के महीने में ही सबसे ज्यादा फूलों की उपज होती है। जहां देखो चारों ओर, बागों में, फिजाओं में, सब जगह रंग ही रंग होते हैं। वातावरण सुरीला, संगीतमय और खुशनुमा है। ऐसे में वेलेंटाइन डे आपके व्यवहार में चार चांद लगा देता है। आप खुद को बेहतर ढंग से अभिव्यक्त कर पाते हैं। आपका दिल खुद-ब-खुद बाहर निकलने को मचलने लगता है। आप सैर करना, व्यायाम करना शुरू कर देते हैं जो स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा होता है। फरवरी का ये महीना सिर्फ रोमांस और प्यार के लिए ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहतरीन माना जाता है, क्योंकि इस महीने में फलों की भरमार देखने को मिलेगी। कीनू, संतरा, अंगूर, सेब, अनार, केले, पपीता सब आपको इस महीने में आराम से उपलब्ध हो जाते हैं। जब हम अच्छा खाते हैं तो हमारे विचार भी अच्छे हो जाते हैं। शोध कहता है कि इस महीने में ईर्ष्या, जलन, तेरा-मेरा और चुगली जैसी भावनाएं खुद-ब-खुद कम हो जाती हैं। जब आप प्यार में होते हैं तो सेहत, नियमितता और अनुशासन की भावना आपमें खुद ही आ जाती है।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

निजी बनते प्रोफेशनल रिश्ते


निजी बनते प्रोफेशनल रिश्ते आपको क्या पसंद है और क्या नापसंद, आपकी आदतें, आपकी कमजोरियां और आपके गहरे राजों को बखूबी समझने वाला अगर कोई व्यक्ति आपके साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारे तो नजदीकियां आना स्वाभाविक है। कुछ ऐसे ही होते हैं ऑफिस स्पाउस। ऑफिस के ड्यूटी ऑवर्स के दौरान किसी खास से कुछ ऐसी केमिस्ट्री बन जाती है कि काम करने में और भी ज्यादा मन लगता है।

लांग वर्किग ऑवर्स आजकल लगभग हर प्रोफेशन का हिस्सा बनते जा रहे हैं और साथ ही बढते जा रहे हैं प्रोफेशनल रिश्तों के दायरे। ऑफिस की चहारदीवारी में पनपते हैं निजी रिश्ते। एक सर्वे के अनुसार एक ही ऑफिस में काम करने वाले स्त्री-पुरुष कई बार इतने करीब हो जाते हैं कि उनमें पति-पत्नी जैसा संबंध विकसित होने लगता है। ऐसे रिश्तों में पार्टनर्स को ऑफिस स्पाउस कहते हैं। हिंदी फिल्मों में इस कॉन्सेप्ट को बखूबी प्रयोग किया गया है। अब्बास-मस्तान की फिल्म रेस में कट्रीना कैफ और सैफ अली खान व अनिल कपूर और समीरा रेड्डी के बीच भी ऐसा ही रिश्ता दिखाया गया है।


क्या होते हैं ऑफिस स्पाउस?


अगर आप भी अपने ऑफिस में विपरीत सेक्स के किसी व्यक्ति पर बेहद भरोसा करते हों, उनसे अपने सबसे खास राज शेयर करते हों, उनके साथ हंसी-मजाक करते हों या उनके बिना आपका ऑफिस का जीवन ठहर सा जाए तो समझिए कि आपके पास भी एक ऑफिस स्पाउस है। ऑफिस के 12-14 घंटों के वर्क प्रेशर के बीच अगर कोई आपके लिए एक शॉक-एब्जॉर्बर का काम करता है। भावनात्मक सहयोग देने के साथ वह आपकी केयर करता है और विपरीत सेक्स का है तो उसके प्रति आकर्षण पनपना स्वाभाविक है। सर्वे की मानें तो ऑफिस स्पाउसेज की संख्या दिनोदिन बढती जा रही है। आंकडों के मुताबिक तो लगभग 32 प्रतिशत कामकाजी लोग ऑफिस स्पाउस की बात मानते हैं। वे मानते हैं कि ऑफिस में उनका अपोजिट सेक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण है। वे मानते हैं कि ऑफिस में उनका एक खास रिश्ता है जो उनके निजी जीवन के इतर उनके जीवन में बेहद अहम जगह रखता है। ऐसे रिश्तों में डेटिंग, हल्का-फुल्का फ्लर्ट और कुछ हद तक सेक्स भी जगह बना लेता है। लेकिन मनोवैज्ञानिक इस कॉन्सेप्ट से उतना इत्तेफाक नहीं रखते जितनी तेजी से ऑफिस स्पाउस टर्म का प्रयोग प्रचलन में आ रहा है।

मनोवैज्ञानिक समीर पारेख कहते हैं, ऑफिस स्पाउस शब्द का प्रयोग अपने आपमें गलत है। स्पाउस शब्द का संबंध कमिटमेंट से होता है। गौरतलब है कि यहां हम वर्कप्लेस अफेयर की बात नहीं कर रहे। वर्कप्लेस अफेयर और ऑफिस स्पाउस में बेसिक फर्क होता है कि वर्कप्लेस अफेयर आकर्षण के आधार पर होते हैं, जबकि ऑफिस स्पाउस रिलेशंस दो लोगों के बीच की केमिस्ट्री से बनते हैं।


ऑफिस स्पाउस का निजी जीवन पर असर


हिंदी फिल्मों के वे सीन बेहद आम हुआ करते थे जब बॉस की अपनी सेक्रेटरी के साथ नजदीकियां इतनी बढ़ जाती थीं कि ऑफिस का रिश्ता बेडरूम तक चला आता था। जाहिर है, ऐसे रिश्तों से पारिवारिक माहौल पर बुरा असर भी पड़ता था। करियर बिल्डर डॉट कॉम द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार 20 प्रतिशत गृहस्थियों में ऑफिस स्पाउस के होने से उलझनें पैदा हो जाती हैं। ऑफिस स्पाउस के साथ नजदीकियां कई बार इतनी बढ़ जाती हैं कि आपके रियल लाइफ पार्टनर के साथ आपकी ट्यूनिंग फीकी पड़ सकती है। ऐसी स्थितियों का घर तोड़ने में बडा़ हाथ होता है।

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो रिश्तों में दायरे बनाने की जरूरत यहीं पडती है। समीर कहते हैं, साथ में ज्यादा समय बिताने से दो लोगों में नजदीकियां आना स्वाभाविक है, लेकिन उन करीबियों को ऑफिस के चहारदीवारी तक सीमित रखना व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है। अपने रिश्ते को काम तक सीमित रखना बेहद जरूरी है। यानी संतुलित जीवन के लिए दायरे बनाना बेहद जरूरी है।


करियर के लिए भी खतरनाक


ऑफिस स्पाउस होने से आपको मानसिक सुकून और क्रिएटिव स्पेस तो मिलती है लेकिन इससे आपके करियर पर बुरा असर भी पड सकता है।
1. संभव है कि आपके दूसरे कलीग्स आपके और आपके ऑफिस स्पाउस के रिश्ते के मामले में उतने सहज न हों और आपके काम में नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें।
2. रिश्ते की निजता काम पर अकसर दिख ही जाती है जिसका आपके परफॉर्मेस पर बुरा असर भी पड सकता है।
3. अगर आप अपने स्पाउस को काम के मामले में वरीयता देंगे तो आपके कलीग्स इस बात का विरोध कर सकते हैं और आपके खिलाफ हो सकते हैं।
4. अगर आपके और आपके स्पाउस के बीच जूनियर-सीनियर की हायरार्की है तो आपकी छवि पर इसका दुष्प्रभाव पड सकता है। ऐसे मामलों में अकसर लोग कहते हैं कि बॉस के साथ निजी संबंध बनाकर तरक्की के रास्ते ढूंढे जा रहे हैं।
5. देखा गया है कि इन रिश्तों का खमियाजा पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों को ज्यादा उठाना पडता है। कई बार डिपार्टमेंट से ट्रांसफर कर दिया जाता है और ज्यादा बुरी स्थितियों में कंपनी से बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है।
6. आप और आपके ऑफिस स्पाउस कलीग्स के गॉसिप का केंद्र बन सकते हैं, जिससे आपके लिए काम करने का माहौल खराब हो सकता है।
7. ऐसे रिश्तों की गॉसिप अकसर परफॉर्मेस पर हावी हो जाती है और लोग आपके काम को कम आंकने लगते हैं।
8। वर्कप्लेस अफेयर और ऑफिस स्पाउस में फर्क होता है लेकिन लोग ऐसे रिश्तों को एक ही निगाह से देखते हैं।

राजेश राना

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

खूब पानी पियो और स्वास्थ्य रहो


वैसे तो हम पानी तभी पीते हैं जब हमें जोर कि प्‍यास लगी हो, पर क्‍या आप जानते हैं कि पानी हमारे शरीर और त्‍वचा के लिए कितना फायदेमंद है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दमकती त्वचा पानी हो या मोटापे पर काबू पाना हो तो, सबसे जरूरी है कि आप भरपूर मात्रा में पानी पिएं। एक व्यक्ति को दिन भर में 8-10 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए।

पानी पीने के फायदे –

पाचन और कब्ज- सोकर उठने के बाद एक-दो गिलास पानी पीना पेट साफ करने के लिहाज से फायदेमंद होता है। ऐसा करने से आपको कब्जियत की परेशानी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा। तांबे के लोटे में पानी पीना भी पेट के लिए काफी फायदेमंद है।

मोटापे से मुक्‍ती- पानी में कैलोरी की मात्रा शून्य होती है। पानी भूंख को कम करता है जिससे आपको ज्‍यादा भोजन करने की जरुरत नहीं पडती। ठंडा पानी पीना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि यह जल्दी अवशोषित होता है।

त्‍वचा होगी खूबसूरत- आप अपने आप ही जवां दिखेगें अगर आप की त्‍वचा पूरी तरह से हाइड्रेटेड होगी तो। यह त्‍वचा की टिशू की भरपाई कर के उसमें लचीलापन लाता है और त्‍वाचा को नम रखने में मदद करता है, जिससे त्‍वचा में चमक आती है।

काम में ज्‍यादा मन लगना- अक्‍सर जो लोग ऑफिस में काम करते हैं वह अपने काम के चक्‍कर में पानी पीना भूल जाते हैं। पर आपको बता दें कि हमारे दिमाग को लगभग 90 % पानी की आवश्‍क्‍ता होती है। पानी पीने से आप अधिक सतर्क और अधिक केंद्रित हो कर काम कर सकेगें।

मोंच और ऐठन से राहत- यह शरीर की मासपेशियों में लचीलापन लाता है जिससे दौडते-भागते वक्‍त शरीर में मोंच नहीं आती।

दिल और गुर्दे के लिए फायदेमंद- पानी शरीर में फ्लू और अन्‍य बीमारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने में मदद करता है। यह गुर्दे की पथरी और दिल का दौरा पड़ने से भी रोकता है। नींबू को पानी में मिला कर पीने से सांस संबधी, पेट की समस्‍या और गठिया रोगों से निजात मिलती है। कुल मिला कर यह हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को ठीक करता है।

थाकान से राहत- यह हमारे शरीर से खराब तत्‍व और विष रहित पदार्थो को पसीने के दा्रा निकालता है। अगर आपके शरीर में पानी की कमी है तो जाहिर सी बात है कि आपके दिल को शरीर की हर कोशिका में साफ खून पहुचाने में ज्‍यादा काम करना पडेगा। इसलिए हो सके तो अपने शरीर में पानी की अच्‍छे से पूर्ती करें वरना शरीर की हर कोशिकाओं में पानी की कमी हो जाएगी।

खाना खाने के दौरान पानी न पिएं- आयुर्वेद के मुताबिक शरीर से स्रावित होने वाले पाचक रस ही भोजन पचाने में सहायक होते हैं। भोजन के दौरान पिया गया पानी इन पाचक रसों को पतला बना देता है जिससे पाचन ठीक से नहीं हो पाता। बेहतर होगा कि भोजन के आधे घंटे पहले व बाद में पानी पिएं।

राजेश राना

पिटारी में से कुछ काम की बात..........


चलिए.....आज आपको दादी माँ / नानी माँ के नुक्से की पिटारी में से कुछ काम की बात बताते है.




आर्थराइटिस का दर्द हो या बालों के टूटने, झड़ने की समस्या। भारत में सदियों से दालचीनी और शहद के मिश्रण का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। हकीम और वैद्य तो इसे लाख दवाओं की एक दवा बताते हैं। खास बात यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। यानी आप ऐलोपैथिक दवाओं के साथ भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। और क्या हैं इस जादुई मिश्रण के फायदे और कब कर सकते हैं, डालते हैं एक नजर..

1- दूर करे आर्थराइटिस का दर्द

आर्थराइटिस का दर्द दूर भगाने में शहद और दालचीनी का मिश्रण बड़ा कारगर है। एक चम्मच दालचीनी पाउडर लें। इसे दो तिहाई पानी और एक तिहाई शहद में मिला लें। इस लेप को दर्द वाली जगह परर लगाएं। 15 मिनट में आपका दर्द फुर्र हो जाएगा।

2- रोके बालों का झड़ना

गंजेपन या बालों के गिरने की समस्या बेहद आम है। इससे छुटकारा पाने के लिए गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद बाल गरम पानी से धुल लें।

3- दांत दर्द में पहुंचाए राहत

एक चम्मच दालचीनी पाउडर और पांच चम्मच शहद मिलाकर बनाए गए पेस्ट को दांत के दर्द वाली जगह पर लगाने से फौरन राहत मिलती है।

4- घटाता है कोलेस्ट्राल

करीब आधा लीटर चाय में तीन चम्मच शहद और तीन चम्मच दालचीनी मिलाकर पीएं। दो घंटे के भीतर रक्त में कोलेस्ट्राल का स्तर 10 फीसदी तक घट जाता है।

5- सर्दी जुकाम की करे छुट्टी

सर्दी जुकाम हो तो एक चम्मच शहद में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर दिन में तीन बार खाएं। पुराने कफ और सर्दी में भी राहत मिलेगी।

6- बढ़ाए वीर्य की गुणवत्ता

सदियों से यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में वीर्य की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शहद का इस्तेमाल होता रहा है। वैद्य पुरुषों को सोने से पहले दो चम्मच शहद खाने की सलाह देते हैं। ऐसी महिलाएं जो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं उन्हें एक चम्मच शहद में चुटकी भर दालचीनी पाउडर मिलाकर मसूढ़ों पर लगाने के लिए कहा जाता है।

7- भगाए पेट का दर्द

शहद के साथ दालचीनी पाउडर लेने पर पेट के दर्द से राहत मिलती है। ऐसे लोग जिन्हें गैस की समस्या है उन्हें शहद और दालचीनी पाउडर बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करना चाहिए।

8-मजबूत करे प्रतिरक्षा तंत्र

रोजाना शहद और दालचीनी पाउडर का सेवन करने से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और आप वाइरस या बैक्टीरिया के संक्रमण से भी बचे रहते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि शहद में कई तरह के विटामिंस और प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है, जो आपकी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं।

9-बढ़ाए आयु

पुराने समय में लोग लंबी आयु के लिए चाय में शहद और चालचीनी पाउडर मिलाकर पीते थे। इस तरह की चाय बनाने के लिए तीन कप पानी में चार चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाया जाता था। इसे रोजाना तीन बार आधा कप पीने की सलाह दी जाती थी। इस तरह से बनी चाय त्वचा को साफ्ट और फ्रेश रखने में मदद करती है।

10- घटाए वजन

चलिए ....अब बात करे मोटापे की .......

खाली पेट रोजाना सुबह एक कप गरम पानी में शहद और दालचीनी पाउडर मिलाकर पीने से फैट कम होता है। यदि इसका सेवन रोजाना किया जाए तो मोटे से मोटे व्यक्ति का वजन भी घटना शुरू हो जाता है।

राजेश राना