मंगलवार, 26 जून 2012

ेसे रहोगे तो दिल रहेगा हमेशा जबां



अगर आप पूरी ंिजदगी अपने दिल को जबां बनाये रखना चाहते है तो आइए हम बताते है आपको कुछ दिल जबां रखने के उपाय, इन्हें अपनाइए और रहिए पूरी जिंदगी मस्त।

1. चुस्त बनें
हृदय की मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम बहुत जरूरी है। इससे हृदय की धड़कन प्रक्रिया बेहतर तरीके से होती है, साथ ही शरीर को रक्त से आसानी से ऑक्सीजन प्राप्त होता है, जिससे आपकी कार्यक्षमता बढ़ती है और ताकत मिलती है। कभी भी अपने शरीर पर अत्यधिक भार मत लें। अगर आपको कुछ समय के लिए थकावट महसूस हो रही है तो कार्य शुरू करने से पहले शरीर को 15 मिनट का आराम दें। जिससे आपकी कार्यशक्ति वापस बढ़ सके।

2. धूम्रपान छोड़ें
वैज्ञानिकों द्वारा यह बात सिद्ध की जा चुकी है कि धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में दिल का दौरा या आकस्मिक हृदय रोग से मृत्यु होने की संभावना आम व्यक्तियों की तुलना में दुगुनी होती है। धूम्रपान छोड़ देने के 10 वर्षो के अंदर इन बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। तो आप अभी से ही धूम्रपान से मुक्त होने के लिए कदम क्यों नहीं उठातें।

3. कम वसा का इस्तेमाल
शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि वसा का कम से कम प्रयोग हृदय को कई रोगों से बचाता है। कोलेस्ट्रोल बढ़ने से हृदय पर दबाव पड़ता है। अगर आप शुरू से ही कम वसा के इस्तेमाल का नियम बना लें तो हृदय संबंधी गंभीर रोगों का सामना भी न करना पड़े।


4. वजन पर करें नियंत्रण

यदि आपका वजन अधिक है तो आपके हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और उसे तेजी से धड़कना पड़ता है। अधिक वजन का कारण असंतुलित भोजन और व्यायाम की कमी है, जिससे कई अन्य रोग भी जन्म लेते हैं। इससे बचाव का सबसे अच्छा तरीका है, ताजे फल, हरी सब्जियां, संतुलित भोजन का सेवन और नियमित व्यायाम।


5. जरूरी है आराम

तनावग्रस्त रहना स्वस्थ जीवन का मार्ग नहीं है। कल्पना कीजिए जैसे कि आप अत्यधिक चीजों को एकसाथ नहीं संभाल पाते हैं वैसी ही स्थिति आपके हृदय के साथ भी हो सकती है। रोज का अत्यधिक तनाव ब्लड प्रेशर को बढ़ाता तो है ही साथ ही यह हृदय की पेशियों को भी प्रभावित करता है। इसलिए तनावमुक्त रहने का प्रयत्‍‌न करें, पर्याप्त नींद लें और साथ ही आराम के लिए भी समय रखें। ध्यान करें, यह आपके लिए लाभदायक होगा।

6. खूब खाएं मछली
डायटीशियन शिखा शर्मा का कहना है कि एक या दो मछली के टुकड़े का सप्ताह में एक बार जरूर सेवन करें। ट्राउट, सालमन या टुना जैसी ऑयली मछली में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 के जरूरी तत्व होते हैं, जो कि कोरोनरी हृदय रोग के लिए दिए जाते हैं और ये रक्त के थक्के बनने से रोकथाम में मदद करता है।

7. फल खाएं
स्वस्थ हृदय के लिए जरूरी है कि रोज आपके भोजन में कम से कम पांच प्रोटीनयुक्त फल और सब्जियां हों। ये विटामिन व प्रोटीनयुक्त होते हैं जो कि एलडीएल को कम करने में सहायक होते हैं तथा कोलेस्ट्रॉल को बढ़ने से रोकते हैं। हृदय को स्वस्थ व स्वच्छ रखने के लिए सभी आवश्यक तत्व फलों में होते हैं। इसलिए फलाहार जरूर करें।


8. कम करें नमक का सेवन

शरीर में सोडियम की मात्रा सही अनुपात में बनाएं रखने के लिए भोजन में नमक की कुछ मात्रा होना जरूरी है, पर ज्यादा तेज नमक हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग का कारण भी बन सकता है। अपने भोजन में ज्यादा नमक न लें और ज्यादा नमकीन नाश्तों का सेवन भी कम करें। पोटेशियम के लिए फल व सब्जियां अच्छे स्त्रोत हैं जो प्राकृतिक रूप से आपके शरीर में सोडियम की मात्रा बनाए रखने में सहायक होते हैं।

9. वसा से बचें
यह हमेशा कहा जाता रहा है कि अपने भोजन में अधिक वसायुक्त पदार्थ न लें। पशुओं से प्राप्त पदार्थो जैसे मांस, मक्खन, चीज में वसा अधिक पाई जाती है, साथ ही पकाए गए बिस्कुट या केक में भी यह अधिक होता है। इनसे शरीर में कोलस्ट्रॉल की मात्रा तो बढ़ती ही है साथ ही हृदय भी होने का खतरा रहता है।

मानसून, पिंम्पल्स को करें बाय-बाय



बरसात का मौसम शुरू हो गया है ऐसे में पिंम्पल्स की भी समस्या होने लगती है। क्योकि इस मौसम में कई तरह के स्किन इंफेक्शन का खतरा रहता है। जिससे ये आसानी से स्किन में पिम्पल्स बना सकते हैं।
फोड़े-फुंसियों या दाद-खाज खुजली जैसी चमड़ी की बीमारियों को पीछे प्रमुख रूप से रक्त का दूषित होना होता है। जब शरीर का खून दूषित यानी गंदा हो जाता है तो कुछ समय के बाद उसका प्रभाव बाहर त्वचा पर भी नजर आने लगता है। प्रदूषण चाहे बाहर का हो या अंदर का वो हर हाल में अपना दुष्प्रभाव दिखाता ही है। बाहरी और भीतरी प्रदूषण ने मिलकर हमारे शरीर की प्राकृतिक खूबसूरती को छीनकर कई सारे त्वचा रोगों को जन्म दिया है फोड़े. फुंसियां भी उन्हीं में से एक हैं।

आज दुनिया का हर दूसरा व्यक्ति चमड़ी से जुड़े किसी न किसी रोग से जूझ रहा है। खुजली, जलन, फुंसियां, घमोरियां, लाल-सफेद चकत्ते जैसी कई समस्याएं हैं जिनसे हर कोई परेशान है या कभी न कभी रह चुका है। कई बार छूत से यानी इनसे संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर खुद को भी संक्रमण लगने से भी फोड़े-फुंसी या खुजली जैसी कोई त्वचा संबंधी समस्या हो सकती है।

यहां हम कुछ ऐसे घरेलू उपाय दे रहे हैं जो बर्सों से आजमा, और परखे हुए हैं। ये नुस्खे कारगर तो हैं ही साथ ही इनकी सबसे बड़ी खाशियत यह है कि इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है ऊपर से ये हैं भी बहुत ही सस्ते हैं।

जब तक समस्या से पूरी तरह से छुटकारा नहीं मिल जाता मीठा यानी शक्कर से बनी, बासी, तली-गली और अधिक मिर्च-मसालेदार चीजों को पूरी तरह से छोड़ दें।

फोड़े-फुंसी, या खुजली वाले स्थान पर मूली के बीज पानी में पीस कर गरम करके लगाने से तत्काल लाभ होता होगा।

नीम की पत्तियों को पीस कर फोड़े-फुंसीए या खुजली वाले स्थान पर लगाने और पानी के साथ पीने से बहुत सीघ्र लाभ होता है।

पालक, मूली के पत्ते, प्याज, टमाटर, गाजर, अमरुद, पपीता आदि को अपने भोजन में नियमित रूप से शामिल करें।

सुबह खाली पेट चार-पांच तुलसी की पत्तियां चूंसने से भी त्वचा रोगों में स्थाई लाभ होता है।

पानी अधिक से अधिक पीएं।

सुबह उठकर 2 से 3 किलो मीटर घूमने के लिये अवश्य जाएं ताकि आपके शरीर और रक्त को शुद्ध ताजा हवा मिल सके और शरीर का रक्त प्रवाह भी सुधर सके।

ऐसे फूड आइटम को एवोइड करना चाहिए जो पिम्पल्स को बढ़ावा देते हों जैसे चीज, बटर, स्पासी और प्रजरवेटिव फूड तथा इसके साथ ही आपको आम और पाॅल्ट्री प्रोडक्ट को एवाॅइड करना चाहिए।

अगर आप बरासात के मौसम में इन बातों को अपनायेंगे तो जरूर पिंम्पल्स को दूर भगा सकते हैं।

बरसात में करें संक्रमण पर आक्रमण





बरसात के सुहाने मौंसम का सभी को इंतिजार रहता है। कुछ लोग इसे गर्मी से निजात दिलाने के लिए पसंद करते है, तो कुछ रोमेंटिकता के लिए। अब जनाब आप पसंद भी क्यों ना करें, ये मौसम ही कुछ ऐसा है। जनाब यही जो मौसम होता है भीनी-भीनी बारिश में रोमेंश का। आप भी सोच रहे होगे कि इस मौसम का क्यों ना लुत्फ उठाया जाये। तो उठाइए जनाब कौन मना कर रहा है, मगर सावधान क्योंकि इस मौसम में थोड़ी सी असावधानी आपको किसी संक्रामक बीमारी का शिकार बना सकती है। तो आइए हम बताते है आपको, इस मौसम का कैसे लुत्फ उठाया जाये और कैसे इस मौसम की बीमारियों से बचा जाये।

कब उठायें बरसात का मजा
याद रहे बरसात के मौसम में सबसे ज्यादा बीमारियां फैलती हैं। ये बात सही है कि बरसात का पानी शुद्ध होता है, मगर जनाब वो शुद्ध वातावरण में रहे तभी तो शुद्ध रहेगा। मौसम की पहली दूसरी बारिश से तो खास करके बचना चाहिए, क्योकि इसमें सबसे ज्यादा अशुद्ध पानी होता है। जब दो तीन बरसात हो जायें तब आपको संक्रमण का बहुत कम खतरा रहता है।

किसे है इंफेक्शन का खतरा
वैसे तो किसी को भी इंफेक्शन हो सकता है, मगर खास करके उन लोगों को जिनकी इम्यूनिटी यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है जैसे बुजुर्गों और बच्चों या फिर किसी बीमारी से ग्रस्त मनुष्य की ? बरसात के मौसम में सबसे ज्यादा खतरा रहता है सांस यानि रेस्पिरेट्री बीमारी, खाने और पीने से संबंधित बीमारी और लेप्टोस्पाइरोसिस का।

सांसों से संक्रमण
सांस की बीमारियां बड़ी ही आसानी से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फेल जाती हैं। कसी भी संक्रमित मनुष्य के संपर्क में आने से आपको भी संक्रमण का खतरा हो सकता है। किसी संक्रमित मनुष्य द्वारा थूका गया बलगम भी आपको संक्रमित कर सकता है। इस मौंसम में ज्यादातर कोमन कोल्ड, फलू और कई तरह के रेस्पीरेट्री इंफेक्शन होते हैं।

फूड और वाटर-बोर्न इंफेक्शन
ये इंफेक्शन बरसात के दिनों में बहुत ही बडी रेंज में फैलने लगता है। सबसे पहले ये इंफेक्शन गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रेक्ट को संक्रमित करता है। इसके बाद डायरिया और वोमेंटिंग शुरू हो जाती है। डायरिया को फैलाने वाली सेलमोनेला और शिंजेला बैक्टीरिया की कई जातियां होती हैं जो ज्यादातर संक्रमित खाने और पानी से फैलती हैं। सेलमोनेला टाइफी, टाइफाइड फीवर के लिए जिम्मेदार होती हैं जिससे हाई फीवर, सिर दर्द, एब्डोमिनल पेन और डायरिया होता है। टाइफाइड फीवर के होने से कई सारे काॅप्लिीकेशन हो जाते हैं जैसे निमोनिया, मेंनिन्जाइटिस और शारीर के दूसरे भागों के डेमेज होने का खतरा हो जाता है।

खतरा लेप्टोस्पाइरल का
लेप्टोस्पाइरल में मरीज बहुत सीरियस बीमार हो जाता है। ये एक ऐसे बैक्टीरिया से फैलता है जिसे कई घरेलू और जंगली जानवर फैलाने का काम करते हैं। इससे किडनी डेमेज, लिवर और फेफड़ों का फेल हो जाना तथा मेंनिन्जाइटिस होने का खतरा रहता है। जो लोग ऐसी मिटटी और पानी के संपर्क में आते हैं जो संक्रमित जानवर के पेशाब से संक्रमित हो उन्हें इसका खतरा हमेशा बना रहता है।

कैसे बचें इंफेक्शन से
बरसात के मौसम में घर से निकलने से पहले छाता और रेनकोट लेने का खास ख्याल रखें।
ऐसे एरिया में जाने से बचें जो भीड़-भाड़ वाला हो और जहां बहुत ज्यादा गंदगी हो।
पीने के पानी का खास ख्याल रखें। हो सके तो ऐसे मौसम में उबला हुआ पानी ही पीयें।
अगर आप बाहर खाने का मन बना रहे हैं तो सुरक्षित जगह ही चुनें। सडक के किनारे खाने से बचें।
ऐसे मौसम में खुले ड्रम और पुराने टायर में पानी न भरने दें। क्योंकि मच्छर के पनपने का ये सबसे अच्छा जरिया होते हैं।
बाढ़ और बरसात के पानी में नहाने और तैरने से बचें।
खाना खाने से पहले हाथ किसी अच्छे हैंडवाॅश से साफ कर लें।

इंफेक्शन में फूड
शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए मिनरल जैसे आयरन, विटामिन्स की जरूरत होती है। ये पोषक तत्व सामान्तः हरी सब्जियों, मौसमी फलों और दूध में पाये जाते हैं। ध्यान रहे फल व सब्जियों को पूरी तरह साफ करके ही खाना चाहिए।
अगर बताई गई कुछ बातों पर खास ख्याल रखेंगे तो आप बरसात के मौंसम को पूरी तरह से इंजोय कर सकते हैं।

मंगलवार, 19 जून 2012

लगायें मेथी बढ़ायें बाल



आज कल बाल झड़ने की समस्‍या बिल्‍कुल आम हो गई है और देखा गया है कि इसकी ज्‍यादा शिकार महिलाएं हो रही हैं। बाल झड़ने की कोई उम्र नहीं होती, पर अगर आप इस पर अभी से ध्‍यान देना शुरु कर दें तो इससे आपकी बाल झाड़ने की समस्या को दूर किया जा सकता है। मेथी या फिर मेथी की पत्तिया इस समस्‍या का समाधान कर सकती हैं।

मैथी में ऐसे कई गुण होते हैं जो सिर की त्‍वचा में नमी पैदा करते है और रुसी तथा बाल झड़ने की समस्‍या को दूर करने के साथ नये बाल उगने में भी सहायता करते है। तो आइए जाने, कैसे मेथी के प्रयोग से हम बालों की समस्या से निजात पा सकते है।
उपचार और फायदा

इस प्राकृतिक जड़ी बूटी में कुछ औषधीय गुण हैं जो गंजेपन की समस्‍याएं, बाल झड़ने और पतले बालों की समस्‍या को दूर करने में सक्षम हैं। मेथी को उपयोग करने का सबसे बेहतर तरीका है कि इसके दानों को गरम पानी में उबाल लें और फिर इसको पीस कर पेस्‍ट तैयार करें और बालों की जड़ों में लगाएं। इससे देखते ही देखते आपके बाल झड़ने की समस्या खत्म हो जायेगी और साथ ही नये बाल भी उगने लगेंगे।

यह कैसे काम करती है

मेथी में निकोटिनिक एसिड और प्रोटीन पाया जाता है जो बालों की जड़ो को प्रोषण पहुंचाता है और बालों की ग्रोथ को भी बढ़ाता है। इसके प्रयोग से सूखे और डैमेज बाल भी ठीक हो जाते हैं।

कैसे प्रयोग करें

1. मेथी को रात भर गरम नारियल तेल में भिगो कर रख दें। सुबह इसी तेल से अपने सिर पर 5-10 मिनट तक मसाज करें और गरम पानी से सिर धो लें।

2. दूसरा उपाय है कि मेथी को पूरी रात भिगो दें और सुबह उसे गाढ़ी दही में मिला कर अपने बालों और जड़ो में लगाएं। उसके बाद बालों को धो लें इससे रुसी और सिर की त्‍वचा में जो भी समस्‍या होगी वह दूर हो जाएगी।

3. मेथी या फिर इसकी पत्तियों को गुणहल के फूल के साथ मिला कर लगाने से बालों में कंडीश्‍निंग होगी और सिर को ठंडक का एहसास होगा।

4. सबसें अच्छा फंडा है मेथी की पत्तियों को भोजन के रूप में अधिक से अधिक खाया जाये इससे आपको बाल स्वस्थ्य रखने के लिए जरूरी तत्व मिल जायेंगे और ऐसे में आपके बाल ना तो झड़ेंगे और ना ही टूटेंगे।
वैसे भी मेथी सुगमता से मिलने वाली चीज है ऐसे में क्यों ना हम अधिक से अधिक मेथी का प्रयोग करें और खुद को और अपने बालों को सेहतमय बनाये रखें।

मंगलवार, 12 जून 2012

गर्मी में बचें लू से

मंगलवार, 5 जून 2012

महिलाएं, किस उम्र में क्या खाएं










कुछ दिनों पहले अभिनेत्री और राज्य सभा सदस्य हेमामालिनी से हुई, मुलाकात में उनकी फिटनेस का राज पूछा, तो उन्होंने बताया में अपने शरीर की माग के अनुसार भोजन करती हूं। क्योकि इस उम्र में डायजेस्टिव सिस्टम थोड़ा कमजोर हो जाता है।
आपने भी महसूस किया होगा, उम्र बढ़ने के साथ-साथ आपके शरीर की जरूरतें बदलने लगती हैं। मगर आप इस ओर ध्यान नहीं दे पातीं, ऐसे में आपको कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तो आईए जाने कैसे आप अपने आप को हर उम्र और हर समय फिट रख पायेंगी।

20 की उम्र
इस उम्र में कैल्शियम की मात्रा भरपूर लीजिए, ताकि आगे चलकर ऑस्टियोपोरोसिस की शिकायत न आए। इसके लिए नॉन फैट या लो फैट मिल्क या चीज अधिक से अधिक खाएं। गायनेकॉलजिस्ट डॉ. सभ्यता गुप्ता मेदांता दा मेंडिसिटी अस्पताल गुड़गाॅव बताती हैं, 20 की उम्र के आसपास शरीर को मां बनने के लिए तैयार होना पड़ता है। इसलिए इस दौरान तकरीबन 400 माइक्रोग्राम फॉलिक एसिड हर रोज लेना जरूरी है। फॉलिक एसिड एसेंशियल विटामिन डी है, जो भ्रूण को सेफ रखता है। हरी पत्तीदार सब्जियां, फल और फॉलिक एसिड युक्त सीरियल्स खाकर इसकी कमी पूरी की जा सकती है।

30 की उम्र में बदलाव
हर 10 साल में औरतों में मेटाबॉलिज्म रेट 2 से 8 पर्सेंट कम हो जाता है। इसका मतलब है कि 25 की उम्र में आपको जितनी कैलरी चाहिए थी, 35 की उम्र में उससे 100 कैलरी कम चाहिए होगी। फिटनेस ट्रेनर संजय मेहरा कहते हैं, वेट बैलेंस बनाए रखने के लिए आपको ज्यादा एक्सरसाइज करनी होगी। ज्यादा नहीं कर पा रही हैं, तो ब्रिस्क वाकिंग कीजिए। जॉगिंग करना भी फायदेमंद रहेगा। इस दौरान आपको अपनी डाइट में कैलरी कम करनी होगी और न्यूट्रीशियस प्रॉडक्ट्स ज्यादा शामिल करने होंगे। मीठा खाने का मन करे, तो फल खाइए। इस उम्र में चॉकलेट खाना भी अवॉइड कीजिए।

40 का फंडा
इस पड़ाव तक पहुंचने पर मशल्स लॉस होने लगती है और उसकी जगह वेट बढ़ने लगता है। इसके लिए आपको स्विमिंग, वॉकिंग और डांस करने की जरूरत है। हां, अगर आप ज्यादा ओवरेवेट हैं या किसी तरह की मेडिकल प्रॉब्लम है, तो एक्सरसाइज करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह लें। पार्टी और रेस्तरां के खाने से बचना शुरू कीजिए और होममेड फूड से भूख बुझाइए। लंच और डिनर के साथ ताजा सलाद और सूप लेना न भूलिए। इससे आप खाने की मात्रा कम लेंगे। ताजे फलों के साथ स्टीम्ड, ग्रिल्ड या रॉ वेजीटेबल्स को डाइट में शामिल कर लीजिए। प्रोटीन के लिए चिकन लें। वेजीटेरियन हैं, तो सोया या टोफू ले सकती हैं। इसके अलावा, कार्बोहाइड्रेट में होल . व्हीट पास्ता, ब्राउन राइस, मल्टीग्रेन ब्रेड को अपनी डाइट में शामिल कीजिए। योगर्ट को अपने भोजन का हिस्सा जरूर बनाएं। इसमें हेल्दी बैक्टीरिया होते हैं और इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। कैल्शियम की मात्रा कितनी ले रही हैं, इसका ध्यान भी इस उम्र में जरूर रखें।

50 उम्र का स्लो मेंटाबोलिज्म
ये उम्र ऐसी होती जिसमें आपको अपने शरीर के अनुसार बहुत अधिक बदलाव करने पड़ते हैं। इस उम्र तक पहुंचते-पहुंचते आपका मेटाबोलिज्म बहुत स्लो हो जाता है। तो ऐसे में आपको अपनी डाईट की ओर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। ऐसे में हैवी डाइट से बचना जरूरी है। लेकिन थोड़े-थोडे़ अंतराल पर खाते रहिए। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के अलावा दो बार स्नैक्स भी ले सकती हैं। हां, इसका भी ध्यान रखें कि स्नैक्स हेल्दी हों। फाइबर आपके आहार में होना बेहद जरूरी है। मैदे से दूरी बनाकर चलें। अगर आपने इस उम्र में योगा करना शुरू कर दिया, तो सोने पे सुहागा ।
अगर आप स्टोरी में बताई गई बातों को अपनायेंगी तो आप आपने आप को हर उम्र में फिट और तरोताजा बनाये रखेंगी।

करें रिलेशनशिप में इन्वेस्ट










अगर आपके रिश्ते भावनात्मक रूप से मजबूत है तो समझ लीजिए कि आपसे अधिक सुखी और कोई नहीं है। यह बात शोधों से भी साबित हो चुकी है। पर आज की व्यस्त जीवनशैली से पति-पत्नी के रिश्तों में रूखापन आता जा रहा है। आइये जानें कैसे करें रिश्तों में इन्वेस्टमेंट।

शोधों से यह बात साबित हो चुकी है कि जिन कपल्स के रिश्ते अच्छे हैं, उनकी जिंदगी खुशनुमा और सफल होती है। यहां तक कि कैरियर में भी वे लगातार सफलता की सीढि़यां चढ़ते जाते हैं। पर मशीनी जिंदगी और लाइफस्टाइल मेंटेन करने की चाह ने पति-पत्नी के रिश्तों में आज रुखापन आता जा रहा है। ऐसे में रिश्ता बिगड़ते देर नहीं लगती और रिलेशनशिप का अकाउंट बैलेंस खत्म होने लगता है। पैसे की छोटी-छोटी बचत की तरह रिलेशनशिप में भी इन्वेस्ट कर आप उसके अकाउंट बैलेंस को मेंटेन रख सकते हैं। आइए आपको बताते हैं रिश्तों में इनवेस्टमेंट के कुछ उपाय।
कम्यूनिकेशन
रिलेशनशिप का पहला इनवेस्टमेंट ऑप्शन है कम्यूनिकेशन। यह इस बात पर आधारित होता है कि आप अपने साथी को कितने बेहतर ते हैं। अपने साथी के साथ बांडिंग सुदृढ़ करने के लिए बातें शेयर करना और उसकी बातें सुनना दोनों ही बहुत अहम होता है। इससे दोनों एक.दूसरे के साथ कम्फर्टेबल और फ्री महसूस करेंगे। शेयरिंग प्यार को बनाए रखती है। अगर कम्यूनिकेट करते समय किसी बात पर बहस हो भी जाए तो कुछ पल चुप रहकर उस पर डिस्कस करें और रिलैक्स रहें।

यौन संबंध
सेक्स को एवायड न करें। अगर आपस में किसी बात को लेकर बहस हो गई है या आप एक.दूसरे से बोलने को भी तैयार नहीं हैं तो भी सेक्स संबंधों के प्रति उदासीनता न बरतें। अक्सर कुछ लोग बात मनवाने के लिए सेक्स को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं, ऐसा करना सबसे बड़ी गलती होता है। सेक्स प्यार जताने का तरीका होने के साथ-साथ एक आवश्यकता भी है, जिसे नजरअंदाज करने का मतलब है संबंधों में दूरियां बढ़ाना। समय≤ पर अपने प्यार को एक्सप्रेस भी करते रहें।

शक न करें
अपने साथी पर विश्वास करना सीखें। बात-बात पर शक करना या एक.दूसरे की मिनट-मिनट की रिपोर्ट लेना रिश्तों में दूरियां बढ़ाता है। आपका साथी किसी और स्त्री या पुरुष से बात कर रहा है तो बेवजह शक न करके मन में उठने वाले संशय के बारे में अप्रत्यक्ष ढत्रष्ष्झ

ईमानदार रहें
यह एक प्रमुख इनवेस्टमेंट ऑप्शन है। पाटर्नर के प्रति हमेशा वफादार रहें। अगर आपसे कोई गलती हो गई हो तो पाटर्नर के साथ अपनी फीलिंग्स अवश्य शेयर करें। ऐसा करने पर हो सकता है आपसी मतभेद हो जाए पर यह इनवेस्टमेंट मतभेदों को जल्दी ही खत्म कर देगा।

सम्मान करें
पाटर्नर और उसकी फीलिंग्स का अगर सम्मान न किया जाए तो रिलेशनशिप में प्यार की गर्माहट को लंबे समय तक बकरार रख पाना संभव नहीं होता। आपस में प्यार होगा तो सम्मान भी होगा। समय बीतने के साथ-साथ टेक इट फॉर ग्रांटेड की स्थिति इतनी व्यापक हो जाती है कि पार्टनर के काम के लिए थैंक्यू या अपनी गलती के लिए सॉरी तक बोलने की भी जरूरत हम महसूस नहीं करते हैं। इस तरह साथी का सम्मान करना छोड़ हम अपने इनवेस्टमेंट को रिक्त करने लगते हैं।

जो कहें वह करें
जो कहते हैं वही हमेशा करें, इससे रिलेशनशिप में विश्वास निर्मित करने में मदद मिलेगी। आपके साथी का आप पर किया जाने वाला विश्वास रिलेशनशिप को मजबूत करेगा और तनाव की स्थिति पैदा नहीं होगी।

एक दूसारे को समय दें
याद कीजिए कि पिछली बार आप कब छुट्टियों पर गए थे। सिर्फ आप दोनों, एक साथ इस साल एडवांस में अपनी छुट्टियां साथ बिताने का प्लान बनाएं। साल में कम से कम एक बार किसी दूर.दराज के इलाके में साथ छुट्टियां बिताने का रिजॉल्यूशन बनाएं। एक साथ समय बिताने का ये सबसे अच्छा तरीका है। इस समय को ऐसे बितायें कि आप दोनो या फिर अपनों के अलावा और कोई घर आॅफिस की बात कम से कम यहां शामिल हो।
किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए दोनों ओर से समर्पण की जरूरत होती है। एक दूसरे का ध्यान रखने की जरूरत होती है। अगर आप स्टोरी में बतायीं गईं कुछ बातों को अपना लेंगे तो वाकई आप अपनी रिलेश्नशिप को उम्रभर के लिए बूस्ट कर पायें

हड्डियों और जोड़ों का दर्द










जैसे ही हमारे बुजुर्ग पचास साल की उम्र के करीब पहुंचते हैं, उन्हें हडिडयों और जोड़ों का दर्द परेशान करने लगता है। ऐसे में बुजुर्ग ना तो सीढि़यां चढ़ पाते और ना ज्यादा दूर तक बिना सहारे के चल-फिर पाते हैं। इसकी शुरुआत घुटनों में हल्के दर्द के साथ होती है। धीरे-धीरे यह दर्द हाथों की अंगुलियों के जोड़ों में भी आ जाता है। यह दर्द हिलने-डुलने से बढ़ता जाता है। तो आइए, हम बताते हैं आपको अपने एक्सपर्ट के साथ कि कैसे जोड़ों के दर्द से निजात पायी जा सकती है।

एलएलएम अस्पताल के हडडी रोग विशेषज्ञ डाॅ. अनुराग जैन बताते हैं कि हड्डी और जोड़ों का दर्द बहुत तकलीफदेह हो सकता है। इनमें से कुछ समस्याओं के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है। अधिकांश समस्याएं दवाओं से ठीक हो जाती हैं। लेकिन जोड़ों का दर्द ऐसा होता है जो बुढ़ापे में पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन इसके साथ आप कुछ उपाय करके बिना परेशानी के अपना जीवन जी सकते हैं।

हड्डियों के दर्द का कारणः
हड्डियों का दर्द चोट या इन दूसरी परिस्थितियों के कारण होता है, जैसे-
बोन कैंसर वह कैंसर जो हड्डियों तक फैल चुका हो जिसे मेटास्टेटिक मैलिग्नेंसी कहते हैं।
हड्डियों को रक्त की आपूर्ति में अवरोध जैसा कि सिकल सेल एनीमिया में होता है।
हड्डियों में संक्रमण जिसे ऑस्टियोमायलिटिस कहा जाता है।
ल्यूकेमिया या रक्त कैंसर भीे दर्द का कारण बन सकता है।
हड्डियों में खनिज पदार्थों की कमी या ऑस्टियोपोरोसिस।
कैपेसिटी से अधिक श्रम करना।
जोड़ों के दर्द के कारणः
ज्वाइंट पेन या जोड़ों का दर्द चोट या इन अन्य कारणों से हो सकता है, जैसे-

अर्थराइटिस, ऑस्टियोअर्थाराइटिस, रयूमेटॉयडअर्थाराइटिस से जोड़ों में परेशानी हो जाती है।
ऑस्टियोकोंड्राइटिस की वजह से भी जोड़ों में दर्द होने लगता है।
सिकल सेल रोग या सिकल सेल एनीमिया भी जोड़ों में दर्द का कारण बन सकता है।
स्टेरॉयड ड्रग भी कुछ लोगों में परेशानी का कारण बन जाती हैं क्योंकि कभी-कभी ये बहुत अधिक मात्रा में ले ली जाती हैं जो नुकसानदायक होती हैं।
कार्टिलेज फटने की वजह से जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है क्योंकि घायल कार्टिलेज की वजह से चलने-फिरने पर दर्द महसूस होता है।
जोड़ों का संक्रमण भी जोड़ों के दर्द का कारण बन जाता है।
ट्यूमरः अगर किसी जोड़ की जगह टयूमर बन गया तो उससे चलने-फिरने में बहुत परेशानी होती है।
घिसा हुआ लिगामेंटः उम्र बढ़ने के साथ-साथ जोड़ों का लिगामेंट घिस जाता है। जिससे सही तरीके से जोड़ काम नहीं कर पाते और दर्द महसूस होता है।
कार्टिलेज का घिसनाः उम्र के साथ ज्यादातर बुजुर्गों के घुटनों का कार्टिलेज घिस जाता है। इससे घुटने सही तरीके से काम नहीं कर पाते।

हड्डियों और जोड़ों के दर्द के लक्षण हैं.

चलने, खड़े होने, हिलने-डुलने और यहां तक कि आराम करते समय भी दर्द।
सूजन और क्रेपिटस।
चलने पर या गति करते समय जोड़ों का लॉक हो जाना।
जोड़ों का कड़ापन, खासकर सुबह में या यह पूरे दिन भी रह सकता है।
वेस्टिंग और फेसिकुलेशन।
अगर बुखार, थकान और वजन घटने जैसे लक्षण हों, तो कोई गंभीर अंदरूनी या संक्रामक बीमारी हो सकती है। ऐसे में आपको डॉक्टर से तुरंत बात करनी चाहिए।

जांच और रोग की पहचान
डॉ. अनुराग बताते हैं कि रोग की पहचान करने के लिए आपके चिकित्सकीय इतिहास के बारे में पूछा जाता है और शारीरिक जांच की जाती हैं। चिकित्सकीय इतिहास में दर्द की जगह, दर्द के समय, पैटर्न और किसी भी अन्य संबंधित तथ्य से जुड़े सवाल पूछे जा सकते हैं। इनमें से कोई एक, या अधिक जांच किये जा सकते हैं.

हड्डियों और जोड़ो का एक्स-रे, जिसमें हड्डियों का एक स्कैन शामिल है।
हड्डियों और जोड़ो का सीटी या एमआरआई स्कैन।
होर्मोन के स्तर का अध्ययन।
पिट्यूटरी और एड्रीनल ग्रंथि की कार्यक्षमता का अध्ययन।
यूरीन का अध्ययन

उपचार
जोड़ों के दर्द को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अगर आपकी समस्या उग्र या साधारण है, आप ओटीसी दर्दनिवारकों का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन अगर आपका दर्द लगातार बना हुआ है या किसी चोट या कटने या सर्जरी के बाद शुरू हुआ है, तो डॉक्टर से मिलें।

पोषक तत्वः
इससे बचने के लिए विशेषज्ञ अपने आहार में ऐसे फलों और सब्जियों को शामिल करने की सलाह देते हैं जिनमें विटामिन, एंटीऑक्सीडेन्ट्स और पौष्टिक तत्व उचित मात्रा में मौजूद हों। कुछ खाद्य-पदार्थो का सेवन और कुछ बातों का ध्यान रखकर इस रोग पर काबू पाया जाया सकता है।

आराम करना और गर्म सेंक देनाः
साधारण चोट या मोच में आराम और गर्म सेंक के उपयोग से दर्द से राहत पाने में सहायता मिलती है।

व्यायामः
सामान्य हल्के व्यायाम अर्थाराइटिस या फाइब्रोमाइल्जिया के रोगियों में जोड़ों की गतिशीलता बढत्रष्ष् घआनेत्रष्ष् करतेत्रष्ष् कोत्रष्ष् कउ़ीत्रष्ष् मांसपेशियोंत्रष्ष् मददत्रष्ष् मेंत्रष्ष् मिलेंत्रष्ष् विदजत्रष्ष् हेंत्रष्ष् पहुंचानेत्रष्ष् पातेत्रष्ष् राहतत्रष्ष् सेत्रष्ष् उपायत्रष्ष् उॉकअरत्रष्ष् दद्रत्रष्ष् दुखतीत्रष्ष् देत्रष्ष् तोत्रष्ष् नहींत्रष्ष् आपकोत्रष्ष् आरामत्रष्ष् ओरत्रष्ष् अगरत्रष्ष्झ
इसके अलावा भी कुछ घरेलू उपचार हैं-
अदरक जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने के लिए बहुत कारगर है। रोजाना दो सौ ग्राम अदरक दो बार लेने से दर्द में बहुत राहत मिलती है।
फूलगोभी का रस पीते रहने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
जोड़ों पर नीबू के रस की मालिश करने से और रोजाना सुबह एक गिलास पानी में एक नीबू का रस निचोड़ कर पीते रहने से जोड़ों की सूजन दूर हो जाती है और दर्द नहीं रहता।
जोड़ों में दर्द के समय या बाद में गर्म पानी के टब में कसरत करें या गर्म पानी के शॉवर के नीचे बैठें। आपको निश्चित ही राहत मिलेगी।
दर्द घटाने के बाम, क्रीम आदि बार-बार इस्तेमाल न करें। इनके द्वारा पैदा हुई गर्मी से राहत तो मिलती है, पर धीरे-धीरे ये नुकसान पहुंचाते हैं।
कभी भी दर्द निवारक बाम लगाकर उस पर सेंक न करें। इससे जलन बहुत बढ़ सकती है।
जोड़ों के दर्द के लिए चमत्कारिक दवाएं तेल या मालिश वगैरह के दावे बहुत किए जाते हैं। इनको इस्तेमाल करने से पहले एक बार परख लें।

अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान है तो स्टोरी में बताई गई बातें आपको काफी हद तक लाभ पहुचायेंगी। तो आप इन बातों को अपनाकर काफी हद तक जोड़ों के दर्द से निजात पा सकते हैं।

जिन्दादिली और सही खान-पान से दें कैंसर को मात













आज क्रिकेटर युवराज सिंह का उदाहरण हम सबके सामने है। कैसे इस इंटरटेनिंग क्रिकेटर ने जांबाजी के साथ कैंसर से छूटकारा पाया। युवराज सिंह बताते हैं कि कैंसर से निपटने के लिये जागरूकता जरूरी है जिसका भारत में अभाव है। युवराज ने कहा कि मैने अमेरिका में 60-ंउचय65 साल के लोगों को आराम से कीमोथेरेपी कराते देखा। मैं उनसे प्रेरणा लेता था। लेकिन भारत में कैंसर को लेकर काफी डरा दिया जाता है जबकि ऐसा है नहीं। उन्होंने कहा कि मैने खुद को एक मिसाल के तौर पर सामने रखने की कोशिश की कि कैंसर से डरने की जरूरत नहीं है। यदि मैं इससे निपट सकता हूं तो कोई भी निपट सकता है।

कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका मरीज के सामान्य स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पडता है। इतना ही नहीं, कैंसर के इलाज के चलते मरीज के आहार पर भी बुरा असर पडता है। इलाज पूरी तरह असरदार हो, इसके लिए जरूरी है कि आहार में कुछ सावधानियां बरती जाएं। कैंसर के रोगियों की डाइट उनके स्वास्थ्य के हिसाब से कैसी होनी चाहिए आइए जानें।

पोषण की कमी

कैंसर की बीमारी कई तरह से मरीज के आहार पर बुरा प्रभाव डालती है। आम तौर पर कैंसर के मरीजों की भूख मिट जाती है, यह सबसे सामान्य समस्या है। इसके परिणामस्वरूप आहार की मात्रा और आवश्यक पोषक पदार्थो जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और खनिज लवण की कमी शरीर में आ जाती है।

कैंसर के बहुत से मरीजों का आहार इसलिए भी कम हो जाता है, क्योंकि बीमारी उनके पाचन तंत्र के विभिन्न अंगों जैसे इसोफैगस, पेट, छोटी या बडी आंत, लीवर, गाल ब्लैडर और पैंक्रियाज को प्रभावित कर देती है।

कई मरीजों की आंत के अंदर रुकावट उत्पन्न होने से खाने के दौरान दर्द, मरोड़ और कभी-ंउचयकभी उल्टी की समस्या हो जाती है। मरीज का वजन घट जाता है। मांसपेशियों की मात्रा भी घट जाती है। इससे कमजोरी आ जाती है और मरीज बहुत जल्द थक जाता है। शारीरिक काम करने की क्षमता घट जाती है। घाव या जख्म भरने में अधिक समय लगता है और बीमारी से लडने की क्षमता या इम्युनिटी भी घट जाती है। ऐसे में कैंसर के मरीजों को संक्रमण का डर बना रहता है।

क्या खाएं

ऐसे मरीजों को पोषक आहार लेना चाहिए ताकि पोषण संबंधी जरूरतें पूरी हों। कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आहार एक अच्छा उपाय है। हालांकि मधुमेह के रोगियों को इस मामले में सतर्क रहना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार लेने के बाद तुरंत ऊर्जा मिलती है और पाचन सही होता है। कम मात्रा में अधिक बार आहार शरीर को लगातार ऊर्जा देने का अच्छा तरीका है।

प्रोटीन

मांसपेशियों के विकास और काम के लिए ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी है। इसके अलावा घाव भरने, बीमारी से लड़ने और खून का थक्का जमने जैसी विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए भी प्रोटीन अनिवार्य है। अंडा, मीट, मसूर की दाल, मटर, बींस, सोया और नट्स आदि प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं।

विटमिंस व मिनरल्स

ऐसे मरीजों में विटमिंस और मिनरल्स की कमी आम समस्या है, क्योंकि इन दोनों तत्वों की मांग अधिक और आपूर्ति कम होती है। इसलिए उचित आहार के साथ बेहतर पोषण के लिए विटमिन और मिनरल की अतिरिक्त खुराक जरूरी है। जो चिकित्सक के परामर्श से ली जा सकती है।

तरल पदार्थ

कैंसर के मरीजों को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करना जरूरी है। इससे डीहाइड्रेशन का डर नहीं रहता है और उनके संपूर्ण स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर होती है। अधिक तरल पदार्थ लेने से उचित मात्रा में यूरिन निकलता है और शरीर से विषैले पदार्थ भी निकल जाते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि आसानी से पचने वाले आहार लें। तला-ंउचयभुना, बहुत मसालेदार या फिर अधिक ठोस आहार न लें। कम मात्रा में अधिक बार खाने से पाचन आसान हो जाता है और पेट भी भारी नहीं लगता। इससे मितली या उल्टी का डर भी कम हो जाता है।

कीमोथेरेपी के मरीज

कैंसर के मरीजों के लिए कीमोथेरेपी एक आम उपचार है, जो चार से छह महीने तक चलता है। इस दौरान आहार संबंधी कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना जरूरी है। सबसे पहले तो यह कि कीमोथेरेपी के पहले दिन और उससे एक.दो दिन बाद तक भूख कम लगती है। मितली और कई बार उल्टी भी आती है। उल्टी से बचने की दवाइयां दी जाती हैं। इस अवधि में आहार में अधिक मात्रा में ऐसे तरल और नर्म खाद्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए जिनसे एनर्जी तुरंत मिल जाए और इसके बाद मरीज को सामान्य ठोस आहार या आधा ठोस आहार लेना चाहिए।

कीमोथेरेपी वाले रोगियों को दैनिक आहार लेने का मन नहीं करता या उन्हें खाना बेस्वाद लगता है। खाने की सुगंध बदलकर या वैकल्पिक आहार देकर इस समस्या का समाधान संभव है।

कीमोथेरेपी से शरीर के भीतर श्वेत रक्त कोशिकाओं या डब्ल्यूबीसी की संख्या घट सकती है। इससे संक्रमण का खतरा ब-सजय जाता है। इसलिए कैंसर के मरीज को स्वस्थ आहार लेना चाहिए। इन्हें घर से बाहर नहीं खाना चाहिए।

घर पर भी ताजा पका खाना बेहतर होता है। कच्चा, बासी और स्टोर्ड फूड से बचना चाहिए, क्योंकि इनसे संक्रमण का अधिक खतरा रहता है। उपचार के इस चरण में ताजा फलों के जूस से भी परहेज करना चाहिए। फल-ंउचयसब्जियों को अच्छी तरह धोकर खाना चाहिए। दूध हमेशा उबाल कर पीना चाहिए।

रेडियोथेरेपी के मरीज

चेहरे और गर्दन की रेडियोथेरपी कराने वालों में सेंसिटिविटी और अल्सरेशन या फोडे का खतरा रहता है। जिसके कारण निगलने में दिक्कत होती है। इसलिए ऐसे लोगों को लिक्विड और लाइट डाइट लेने की सलाह दी जाती है। इन्हें तले-ंउचयभुने, मसालेदार और गर्म खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए। यदि बहुत दर्द हो तो नियमित रूप से दर्द दूर करने की दवा ली जा सकती है। इससे दर्द बेकाबू नहीं होता।

ऐसे मरीज के मुंह का स्वाद खराब होने और मुंह के अंदर सूखेपन की शिकायत भी कर सकते हैं। रेडियोथेरेपी के दौरान और उसके बाद भी उनके लिए सादा, नर्म आहार और पूरक के तौर पर पर्याप्त तरल पदार्थ लेना अच्छा रहता है।

धूम्रपान और मद्यपान से मुंह-ंउचयगले के अंदर म्यूकोसाइटिस की समस्या ब-सजय जाती है। इसलिए रेडिएशन के दौरान ये बिलकुल वर्जित हैं। पेट के निचले भाग की रेडियोथेरेपी कराने वाले मरीजों में पेट खराब होने की शिकायत हो सकती है। उन्हें दही, चावल, कम फाइबर वाले आहार और साथ ही प्रो बायोटिक सप्लीमेंट लेने से लाभ मिल सकता है।

सर्जरी के मरीज

सर्जरी के बाद मरीज को अधिक कैलरी, प्रोटीन, विटमिंस और मिनरल्स चाहिए ताकि जख्म जल्दी भर सकें। सर्जरी के बाद जितनी जल्दी संभव हो मुंह से आहार देना शुरू कर दिया जाता है। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन से भरपूर आहार और साथ ही मिनरल्स एवं विटमिन ऐसे मरीजों के लिए वरदान होता है।

फीडिंग ट्यूब से आहार

कैंसर के बहुत से मरीजों को फीडिंग ट्यूब से आहार दिया जाता है, क्योंकि वे सामान्य रूप से आहार नहीं ले सकते हैं। यह ट्यूब नाक के जरिये या फिर सीधे पेट में डाला जाता है। ट्यूब से केवल तरल आहार दिया जाता है। ट्यूब के आकार के अनुसार भी आहार तय किए जाते हैं। ट्यूब छोटा हो तो बहुत पतला तरल आहार दिया जाता है, लंबा और उसकी सूराख मोटी हो तो कुछ मोटा तरल आहार भी दे सकते हैं।

ऐसे मरीजों के लिए एक अच्छा रास्ता यह है कि घर पर तैयार खाने को मिक्सर ग्राइंडर में पीस कर और छान कर दिया जाए, ताकि उसमें ठोस भाग न रह जाए। पूरक आहार के पाउडर भी ट्यूब के जरिये दिए जा सकते हैं।

चूंकि बहुत से मरीज आम तौर पर पर्याप्त आहार लेने में असमर्थ होते हैं, इसलिए पूरक आहार की अहमियत ब-सजय जाती है। इस तरह उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता है। ऐसे बहुत से पूरक आहार हैं जिनसे कैलरी, प्रोटीन, विटमिन और मिनरल्स मिलते हैं। कुछ सप्लीमेंट तो खास तौर पर प्रोटीन से भरपूर होते हैं।

पाउडर सप्लीमेंट को दूध में मिलाकर या फिर पानी के साथ ट्यूब के जरिये दिया जा सकता है। तरह-ंउचयतरह के स्वाद में उपलब्ध ये सप्लीमेंट मरीजों को मनपसंद चुनने का विकल्प देते हैं।

जैसा कि युवराज सिंह बताते है कि सभी दवाईयों और डाॅक्टरों के साथ खुद का पाॅजीटिव नजरिया बहुत मायने रखता है। अगर आप ये मानकर चलते है कि में इस बीमारी से लड़ सकता हूं तो वाकई आप इस पाॅजीटिव माइंड के साथ स्टोरी में बताई गई बातों को अपनाकर कैंसर को हंसते हुए मात दे सकते हैं।

कूल डाईट इन गर्मी












चुभती गर्मी से राहत पाने के लिए बाहरी चीजों को तो हम सभी तवज्जो देते हैं लेकिन खाने को भूल जाते हैं, जबकि मौसम के मुफीद खाना हमारी सेहत के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। एक्सपर्ट्स से बात करके गर्मियों में क्या खाना चाहिए, क्या नहीं, इस बारे में जानकारी दे रहे है राजेश राना।

क्या खायें
ध्यान रखें, खाना हल्का हो। उसमें फैट कम हो। गर्मियों में भारी फूड आइटम आसानी से नहीं पचते। मौसमी सब्जियां जैसे घिया, पत्ता गोभी, तोरी, टिंडा, सीताफल आदि खूब खाएं। लंच और डिनर में हल्का और जल्दी पचनेवाला कुछ भी खा सकते हैं।

ब्रेकफस्ट या स्नैक्स में भेलपुरी, ढत्रष्ष् ीाापत्रष्ष् पकीत्रष्ष् पोहात्रष्ष् राइसत्रष्ष् चीजेंत्रष्ष् जेसेत्रष्ष् ओरत्रष्ष् अेसअीत्रष्ष् लाइअत्रष्ष्झ

अंडा और नॉनवेज गर्मियों में हफ्ते में दो बार से ज्यादा न खाएं। इन्हें भी उबालकर या भाप में पकाकर खाएं। नॉनवेज में मछली या चिकन ले सकते हैं। मटन काफी हेवी होता है। उससे बचें। नॉनवेज को देसी घी में बनाने की बजाय दही में मेरिनेट कर बनाएं।

गर्मियों में घी और तेल का इस्तेमाल कम करें। देसी घी, वनस्पति घी के अलावा सरसों का तेल और ऑलिव ऑयल भी कम खाएं। ये गर्म होते हैं। राइस ब्रैन, नारियल, सोयाबिन, कनोला आदि का तेल खा सकते हैं।

गर्मियों की कल्पना भी आइसक्रीम के बिना अधूरी है। आइसक्रीम को पूरी तरह जंक फूड की कैटिगरी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि इसमें दूध ड्राइफ्रूड्स आदि होते हैं लेकिन हाई कैलरी, हाई शुगर और प्रिजर्वेटिव होने की वजह से कम मात्रा में खाएं। हफ्ते में दो बार से ज्यादा बिल्कुल न खाएं। थोड़ी आइसक्रीम लेकर उसके साथ फ्रूट डालकर भी खा सकते हैं। इससे आइसक्रीम की क्वांटिटी कम हो जाती है।

लिक्विड हैं खास फायदेमंद
गर्मियों में पसीने से सबसे ज्यादा नुकसान शरीर को पानी और नमक का होता है। ऐसे में डी-हाइड्रेशन से बचने के लिए रोजाना 10-15 गिलास पानी पीना चाहिए। कम पानी पीने से यूटीआई या यूरीन ट्रैक इन्फेक्शन भी हो सकता है। गुनगुना, नॉर्मल या हल्का ठंडा पानी पिएं। मटके का पानी पीना बेहतर है। चिल्ड या बहुत ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए। बहुत ठंडे पानी से पाचन खराब होता है।

ध्यान दें जिन्हें किडनी प्रॉब्लम है, उन्हें पानी कम पीना चाहिए। वे डॉक्टर से पूछकर पानी पिएं। उन्हें सोडियम और पोटैशियम भी ज्यादा नहीं लेना चाहिए।

गर्मियों में जितना मुमकिन हो, नींबू पानी पीना चाहिए। नीबू पानी में थोड़ा नमक या थोड़ी चीनी मिलाना बेहतर है। इससे शरीर से निकले सॉल्ट्स की भरपाई होती हैं। वजन कम करना चाहते हैं तो चीनी न मिलाएं। नमक भी कम डालें।

नारियल पानी को मां के दूध के बाद सबसे बेहतर और साफ पेय माना जाता है। नारियल पानी प्रोटीन और पोटैशियम का अच्छा सोर्स है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा है, इसलिए एसिडिटी और अल्सर में भी कारगर है। शुगर के मरीज भी नारियल पानी पी सकते हैं।

छाछ में प्रोटीन खूब होते हें। ये शरीर के टिश्यूज को हुए नुकसान की भरपाई करते हैं। मीठी लस्सी कम पिएं। छाछ जितनी चाहें, पी सकते हैं। छाछ को आयुर्वेद में अच्छा अनुपान माना जाता है।

ठंडाई में बादाम, सौंफ, गुलाब की पत्तियां, मगज और खस के बीज आदि होते हैं। इसे दूध में मिलाकर लिया जाता है। अगर शुगर लेवल ठीक है तो यह एक अच्छा पेय है।

वेजिटेबल जूस पीने से बेहतर है सब्जियां खाना। फिर भी जो लोग सब्जियों का जूस पीना चाहते हैं, वे घिया, खीरा, आंवला, टमाटर आदि का जूस मिलाकर पी सकते हैं।

फ्रूट जूस में सिर्फ फ्रैकटोज होते हैं, जबकि साबुत फल में फाइबर होता है, इसलिए जूस के मुकाबले साबुत फल खाना हमेशा बेहतर है। गर्मियों में मौसमी या माल्टा का जूस काफी फायदेमंद है। इसी तरह, तरबूज का जूस गर्मियों का बेहतरीन पेय है लेकिन जितना मुमकिन हो, तरबूज जूस घर का ही पिएं।

जब तक जरूरी न हो, पैक्ड जूस न पिएं। इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है और प्रिजर्वेटिव भी खूब होते हैं। पैक्ड जूस पीना ही चाहते हैं तो अच्छी कंपनी का खरीदें।

मिल्क शेक डबल टोंड दूध का बनाएं। शेक में फल और चीनी कम डालें, ताकि कैलरी कंट्रोल में रहें। केला और सेब का शेक बनाकर रखने से ऑक्सिडाइज्ड हो जाता है।

आम पना गर्मियों का खास ड्रिंक है। कच्चे आम की तासीर ठंडी होती है। टेस्ट से भरपूर आम पना विटामिन-सी का अच्छा सोर्स है।

बेल का शरबत एसिडिटी और कब्ज, दोनों में असरदार है। कच्चे बेल का शरबत लूज मोशंस को रोकता है तो पके बेल का शरबत कब्ज को ठीक करता है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा होता है। यह अल्सर को भी ठीक करता है।

फ्रूट चाट जितनी स्वाद के लिहाज से अच्छी है, उतना सेहत के लिहाज से नहीं। वजह यह है कि सारे फलों का डायजेशन अलग-अलग वक्त पर होता है। इनका मिजाज भी अलग-अलग होता है। मसलन, केला अल्कलाइन है तो संतरा एसिडिक। अगर फ्रूट सलाद खाना ही चाहते हैं तो इसमें ऐसे फल रखें, जिनमें कार्ब और फैट ज्यादा न हों। मसलन केला, आम या चीकू कम रखें।

इन पर रखें कंट्रोल
गर्मियों में तला-भुना नहीं खाना चाहिए। तली-भुनी चीजें शरीर में आलस पैदा करती हैं। इसकी बजाय उबला, भुना या भाप में पका खाना खाएं। गर्म मसाले कम कर दें। लाल मिर्च की बजाय काली मिर्च का इस्तेमाल करें।

चाय-कॉफी कम पिएं। इनसे बॉडी डी-हाइड्रेटेड होती है। ग्रीन-टी पीना बेहतर है।

स्मोकिंग कम करें। अल्कोहल बिल्कुल न लें या फिर कम लें। लोग मानते हैं कि बियर ठंडी होती है, जोकि गलत है। ज्यादातर बियर में ग्लिसरीन होती है, जिससे शरीर डी-हाइड्रेटेड होता है।

ड्राइफ्रूट्सः गर्मियों में 5-10 बादाम रोजाना खा सकते हैं। इन्हें रात भर भिगोकर खाना चाहिए। बाकी ड्राइ-फ्रूट्स को गर्मियों में खाने की सलाह नहीं दी जाती। खाना ही चाहते हैं तो बिल्कुल लिमिट में खाएं।

शहद की तासीर काफी गरम है। इसे सोच समझकर कम मात्रा में लें।

फ्रोजन फूड इमरजेंसी में ही खाना चाहिए। फ्रोजन फूड हाइजीन और टेंपरेचर के हिसाब से सही नहीं होता।

बासी खाना रू बासी खाने से बचें। इसमें बैक्टीरिया पनपने की आशंका काफी ज्यादा होती है। एक रात से ज्यादा पुराना खाना न खाएं। कोई भी खाना 7.8 घंटे तक ही ठीक रहता है।

बासी खाने से बचें। इसमें बैक्टीरिया पनपने की आशंका काफी ज्यादा होती है। एक रात से ज्यादा पुराना खाना न खाएं। कोई भी खाना 7-8 घंटे तक ही ठीक रहता है।

इस मौसम में उड़द या राजमा ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि ये शरीर में पित्त यानी गर्मी बढ़ाते हैं। लेकिन स्प्राउट्स यानि अंकुरित दालें में सभी दालें मिलाकर खा सकते हैं क्योंकि स्प्राउट्स की तासीर ठंडी हो जाती है।
अगर आप बताई गई कुछ बातों को अपना लेंगे तो वाकई चिलचिलाती इस गर्मी में अपने आप को काफी हद तक सुकून दिला सकते है।