मंगलवार, 28 अगस्त 2012

जानें हेल्थ मशीनों का सीन




आपमें से कई ऐसे लोग होगे जिन्हें कुछ छोटे-छोटे इंस्ट्रूमेंटों की जरूरत हमेशा रहती है। इसके लिए हम अपने एक्सपर्ट से सलाह करके आपको बता रहे है कि कैसे इनका प्रयोग किया जाये है कितने हैं जरूरी।

नैबुलाइजर
नैबुलाइजर, एक ऐसा डिवाइस है जिसमें रोगी के फेफड़ों तक साँस के माध्यम से दवाई पहुँचाने के लिए इन्हेलर के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है। इसका प्रयोग सामान्य तौर पर अस्थमा और अन्य श्वास सम्बन्धी समस्याओं के रोगियों द्वारा किया जाता है।
कितना है उपयोगी
डॉ सुशीला कटारिया, इंटरनल कंसलटेंट, पारस अस्पताल, गुडगाँव ने इस गैजेट के बारें में जानकारी देते हुए बताया किए नैबुलाइजर अस्थमा में होने वाली खांसी की समस्या में आराम देता है। यह दवाई का असर सीधे प्रभावित हिस्से पर करता है मगर इसका प्रयोग करने की तकनीक पहले अपने डॉक्टर से अवश्य पूछ ले।
नैबुलाइजर का प्रयोग करने के बाद उसे तुरंत साफ करना जरुरी है। अगर आप ऐसा नही करते है तो उसमें बैक्टीरिया का जन्म हो सकता है।
मार्केट में कीमत
नैबुलाइजर की कीमत मार्केट में 2000से 3000 के बीच में है।

हीटिंग पैड्स
आज भी हम सभी के घर में सिकाई के लिए वाटर बैग का ही प्रयोग किया जाता है। मगर समय के साथ बहुत सी चीजे बदलती है। अब धीरे धीरे लोग हीटिंग पैड्स का प्रयोग हॉट वाटर बैग की जगह करने लगे है। अब सिकाई करना एकदम आसान हो गया है। बस आपको इसकी वायर को पॉवर प्लग में लगाकर स्विच ऑन करना है और सिकाई का आनंद उठाना है।
कितना है उपयोगी
वैसे तो यह हीटिंग पैड्स बहुत ही उपयोगी है मगर यदि आप गर्भवती है तो पेट के निचले हिस्से में इसका प्रयोग करने से बचें। गर्भावस्था के शुरुआती 12 सप्ताह से पहले गर्भवती महिला के शारीर का तापमान 39 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा नहीं होना चाहिए इसलिए इनका प्रयोग उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। मगर आप गर्भावस्था के दौरान होने वाले जांघों और पीठ दर्द में इसकी मदद ले सकते है। ऐसा कहना है डॉ कौशिकी द्विवेदी, कंसल्टेंट गायनोकॉलोजिस्ट, मैक्स अस्पताल का।
क्या कहता का मार्केट
हीटिंग पैड्स के लिए आपको अपनी जेब से ज्यादा पैसे खर्च करने की जरुरत नहीं है। आप केवल 350 से 700 रूपये में इसे खरीद सकते है।

ग्लूकोमीटर
खराब जीवन शैली से बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं का जन्म हो रहा है। इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या डायब्टिज है। इसी को देखते हुए बाजार में एडवांस बायोसेंसर टैक्नोलोजी युक्त ग्लूकोमीटर आ गए है जोकि बस चंद सैकंड में ही आपको आपके शुगर का लेवल बता देते है।
फायदे ग्लूकोमीटर
मैक्स हैल्थकेयर के कंसल्टेंट एंडोक्रिनोलोजिस्ट डॉ सुजीत झा ने बताया है कि कोई भी व्यक्ति इस गैजेट का प्रयोग की मदद से घर बैठे बैठे ही अपने ब्लड ग्लूकोज के बारें में पता लगा सकता है। साथ ही यह एक अच्छा गाइड बनकर आपको इस बात की भी जानकारी देता है कि आप अपने डायब्टिज को कंट्रोल करने में कितने सफल रहे है।
कितना है उपयोगी
ग्लूकोमीटर पर निकले नतीजो पर आप यकीन कर सकते है। हाँ, यह सत्य है कि यह नतीजे लैब में कराये जाने वाले ब्लड शुगर टेस्ट की रिपोर्ट की तरह एकदम सटीक नही होते है फिर भी इनके द्वारा निकला गया परिणाम सही ही मना जा सकता है। सामान्यतौर पर लैब और ग्लूकोमीटर के परिणामों में कुछ ज्यादा अंतर नही होता है।
सीनियर कंसल्टेंट एंडोक्रिनोलोजिस्ट डॉ अम्बरीश मित्थल के अनुसारए बाजार में आ रहें नए ग्लूकोमीटर में आपको कोडिंग करने की भी कोई जरुरी नहीं होती है और उससे मिलने वाले परिणाम को समझना भी आसान होता है।
मार्केट में कीमत
बाजार में ग्लूकोमीटर के बहुत के बहुत से ब्रांड मौजूद है। आप अपने डॉक्टर से परामर्श लेकर सही ब्रांड का चुनाव कर सकते है। इस ग्लूकोमीटर को खरीदने में आपको 1000 से 3000 रूपये खर्च करने होंगे।

डिजिटल बीपी मशीन
वे दिन अब लद गए जब हमारे घरों में केवल थर्मामीटर और वजन मापने की मशीन हुआ करती थी। जैसे जैसे तकनीकी विकास बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे बाजार में उपयोगी हेल्थ गैजेट भी उतारते जा रहे है। आईये एक ऐसे ही हेल्थ गैजेट डिजिटल बीपी मशीन की बात करते है।
डिजिटल बीपी मशीन
आपने डॉक्टर साहब के यहा बीपी मोनिटर करने वाली मशीन तो देखी ही होगी, जिसमे पारे के माध्यम से बीपी मापा जाता है। मगर यह डिजिटल बीपी मशीन मैनुअल बीपी मशीन से अलग होती है। यह पूरी तरह से ऑटोमैटिक होते है और आप इन्हें बड़ी ही आसानी से घर में प्रयोग कर सकते है। आपको इसके अलग अलग प्रकार मिल जाएंगे जैसे बाजू में लगाकर चैक करने वाले या कलाई पर लगाने वाले। इसके प्रयोग भी बहुत आसन है बस इसे कलाई पर बंधे और बटन दबाकर आप निश्चिन्त होकर बैठ जाये। आपका बीपी मशीन एक बीप की आवाज के साथ ही आपको मोनिटर किये गए ब्लड प्रेशर का पूरा परिणाम सरल भाषा में स्क्रीन पर दे देता है।
कितना है उपयोगी
डॉ हंसा गुप्ता, कंसल्टेंट कार्डियोलोजिस्ट के अनुसार, यह गैजेट आपको बाजार में सही कीमत पर मिल जाते है और यह बहुत ही प्रभावी ढंग से बीपी के उतार-चढाव को चैक करने में मदद कर सकते है। इलैक्ट्रोनिक बीपी मशीन का प्रयोग करना भी आसन है और इसमें बीपी के साथ-साथ आपके पल्स रेट का भी रिकार्ड आ जाता है।
इस गैजेट के बारें में और जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यदि आपके पास ऑटोमैटिक बीपी मशीन है, तब भी पारे वाली बीपी मशीन पर अपनी रीडिंग को चैक करते रहे। अगर विश्वसनीयता की बात करें तो पारे वाली मशीन ज्यादा विश्वसनीय होती है। मगर इसमें सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी को कैसे रिकॉर्ड किया जाता है यह आपको अच्छे से आना बहुत जरुरी है।
मार्केट में कीमत
आपको यह ऑटोमैटिक बीपी मशीन बाजार में आसानी से मिल जाएंगी। इस मशीन को खरीदने के लिए आपको 2500 से 4500 तक रूपये खर्च करने पड़ सकते है।
अगर आप स्टोरी में बताई गई कुछ बातों पर ध्यान देकर इन यंत्रों का प्रयोग करते है तो आपको कभी भी परेशानी नही होगी।

बारिश में पेट्स को दें संक्रमण से रेस्ट



बरसात का मौसम चल रहा है, चारों ओर हरियाली अपनी छटा बिखेर रही है। आपके लिए लाॅग ड्राईव का सबसे अच्छा समय है, लेकिन संभल कर ये मौसम आपके पैट्स के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इस मौसम की नमी और हयूमेडिटी आपके प्यारे डाॅगी को बीमार बना सकती है। बरसात के गीले मौसम में फंगल, यीष्ट और कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन आम होते हैं। इस मौसम में सही देखभाल, अच्छी डाईट और लगातार पैट्स स्वभाव में होने वाले बदलाव को पहचानकर, आप अपने पैट्स को खुशहाल और हैल्दी रख सकते हैं।

पशुचिकित्सक डाॅ. संगीता वेंगसरकर शाह बताती है कि बरसात के मौसम में पैट्स में एनीमल फर और स्क्नि संक्रमण आम होता है। अगर आपका पैट्स इस मौसम में थोड़ी सी भी अप्रत्यासित हरकत करे तो तुरंत इस पर ध्यान दें। बारिश में भीगने पर तुरंत साफ कपड़े से पोंछें। बारिश के मौसम में वैक्सिनेशन का खास ख्याल रखें।

क्या करें पैट्स को संक्रमण से बचाने के लिएः
इसके लिए आपको कई बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

पंूछ को रखें क्लीन 
आपके पैट्स के लिए गीली पूंछ बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन के लिए सबसे असान प्लेटफाॅर्म होता है। घूमने के तुरंत बाद उसकी पूंछ को पूरी तरह से साफ कपड़े से सूखा दें। गीला और गंदा कोट न पहनायें।

कानों की सफाईः
नियमित कानों की सफाई इस गीले मौसम में आपके पैट्स को कई तरह के संक्रमण से निजात दिला सकती है। कुछ डाॅग जैसे लैब्रोडर्स और कोकरस्पेनिल्स आदि के कानों में नमी की वजह से मैल जमा हो जाती है जो संक्रमण की वजह बनती है। ऐसे में कानों को साफ करके सुखाना बहुत जरूरी होता है। जैसे ही पैट्स बारिश में भीगकर वापस आये तुरंत उसके कानों को साफ कपड़े से पोंछकर सुखायें।

पंजों की देखभालः
जैसे डाॅगी के कान सेंस्टिव होते हैं वैसे ही पंजों में कई तरह के इंफेक्शन का खतरा होता है। बाहर घूमाने के तुरंत बाद पंजों को सूखे कपड़े से साफ करें, नाखूनों के आस पास की जगह संक्रमण के लिए बहुत उपयुक्त होती है, इसका खास ख्याल रखें। बाहर घूमाते वक्त ध्यान रहे, इस मौसम की गंदगी, कीचड़ और सड़े गले कचरे से दूर रखा जाये जिससे ये गंदगी नाखूनों और पंजों में ना भरे, सक्रमण की बरसात के मौसम में ये सबसे बड़ी वजह होती है। अगर आपका पैट्स लगातार पंजों को चाट रहा है तो ध्यान दें ये इंफेक्शन की शुरूआत हो सकती है। पंजों के पास के बालों को नियमित काटते रहें जिससे पंजों में बालों की वजह से संक्रमण ना हो। 

बदलें दिनचर्याः
बरसात के मौसम में आउटडोर एक्टिीविटीज को, एक दम से कम कर देना चाहिए। बारिश में संक्रमण से बचाने का ये सबसे कारगार उपाय है। ये बात सही है कि घूमना आपके पैट्स की एक्सरसाइज के लिए बहुत जरूरी है लेकिन जब बरसात हो तो इसे कम कर देना चाहिए। साफ और खुले मौसम में आप खुद भी और अपने पैट्स को भी पूरा इंजोय कर सकते हैं। बारिश के मौसम में आप पार्क के चारों ओर दौड़ाने का अभ्यास कर सकते हैं, एलीवेटर पर चढ़ने की पैक्टिस करा सकते हैं। 

कैसा हो खानाः
बरसात के मौसम में एक और जरूरी बात है डाॅग फूड। कुछ पैट्स में बरसात के मौसम में किसी फूड से एलर्जी हो सकती है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि आप अपने पैट्स का खाने के साथ-साथ पाचन का भी खास ख्याल रखें। कुछ पैट्स इस मौसम में घास की पत्तियां खाते हैं। ये पत्तियां मानसून के मौसम में पैट्स के शरीर में फाइबर की कमी को पूरा करती हैं। अगर आप चाहते है कि आपका पैट्स इस ग्रास को ना खाये जो कि संक्रमित हो सकती है, तो आप उसके भोजन में फाइबरयुक्त तत्वों को शामिल करें जैसे केला। केला फाइबर जरूरत को तो पूरा करता ही है साथ ही पाचन को भी अच्छा रखता है। इस मौसम में कुछ पैट्स को दूध से भी एलर्जी हो जाती है तो इसका भी खास ख्याल रखें क्योंकि दूध भी बेलेंस्ड डाईट के लिए बहुत जरूरी है। इसलिए मिल्क का दूसरा तत्व भी फूड में शामिल करें। अगर आपका डाॅग लाॅग एक्सरसाइज जैसे स्विमिंग, हिल वाॅकिंग करता है तो ऐसे में अधिक फेट बर्न होती है इसलिए प्रोपर फेट का ध्यान रखना चाहिए। डाईट के साथ सबसे जरूरी है फूड को रखने की जगह। डाॅग फूड को बरसात के मौसम में हमेशा नमी और फंगल इंफेक्शन से बचाके रखना चाहिए।

बिस्तर का रखें खास ख्यालः
बरसात के मौसम में आप अपने पैट्स को गर्म, साफ और शुष्क बिस्तर दें। ध्यान रहे अगर आपका पैट्स अधिक समय आउटडोर जैसे बालकाॅनी और टेरस पर बिताता है तो वो जगह पूरी तरह से ढकी हो जिससे किसी भी साइड से बारिश अंदर न आ सके। नियमित समय पर आप बिस्तर को बदलते रहें जिससे बिस्तर में बैक्टीरियल संक्रमण पैदा ना हो।

किस तरह के इंफेक्शन का है खतराः
खुजली का मतलब एलर्जी से ही नही है ये बैक्टीरियल इंफेक्शन भी हो सकता है। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि उसकी स्किन में किस तरह का संक्रमण है क्योंकि बरसात में खुजली की वजह बैक्टीरियल, फंगल, इंसेक्ट बिटस और पिस्सू आदि भी हो सकते हैं।
संक्रमण के लिए प्राथमिक चिकित्साः
अगर आपका पैट्स किसी भी तरह के संक्रमण से ग्रसित है तो आप अपने पैट्स को स्वस्थ रखने के लिए ये पांच स्टैप्स अपनायें। इसके लिए आपको अपने नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करना होगा।
1. सबसे पहले आप अपने इस दोस्त के लिए एंटीफंगल डाॅग शैम्पू जोकि पैट्स स्टोर या अपके पास के सुपर मार्केट में मिलेगा। इसके अलावा आप अपने पशुचिकित्सक की सलाह पर स्ट्राॅग डाॅग शॅम्पू भी ले सकते हैं।
2. अपने पैट्स के पंजों को गर्मपानी में एटी फंगल शैम्पू डालकर अच्छी तरह से साफ करें। इसमें आप थोड़ी सी आयोडीन डाल सकते हैं जो शरीर पर आक्रमण करने वाले फंगस को मार देती हैं। पंजों और कान को पूरी तरह से सुखाकर एंटी फंगल मरहम लगायें।
3. लोकल फंगल इंफेक्शन को ठीक करने के लिए आप रिंग वाॅर्म, एंटीफंगल क्रीम और मरहम लगाकर खत्म कर सकते हैं। रिंग वाॅर्म संक्रामक हो सकते हैं इसलिए ट्रीटमेंट के बाद इन्हें पूरी तरह से साफ कर देना चाहिए।
4. बाहर घुमाते वक्त पैट्स के संक्रमित पंजों को बैंडेज और डाॅग बुटीज से कवर कर देना चाहिए।
5. बरसात के इस मौसम में हमेशा पैट्स की देखभाल के बारे में अपने पशुचिकित्सक से बात करते रहना चाहिए। 
अगर आप बताई हुई कुछ बातों पर ध्यान देंगे, तो आपका डाॅगी बरसात के इस मौसम में खेलता कूदता और मस्त रहेगा।



सोमवार, 27 अगस्त 2012

धुल, धुंआ में कैसे करें सांस की आस



षहरों और कस्बों का बढ़ता प्रदूशण सांस से संबंधित कई तरह की खतरनाक बीमारियों को न्यौता दे रहा है। इनमें प्रमुख है क्रोनिक ओब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानि क्रोनिक प्रतिरोधीय फुफूसीय रोग। ये आपकी सांस नली से लेकर फेफड़ों तक को डेमेज कर सकती है। अगर आपकी सांसे बिना किसी वजह के छोटी हो रही हैं तो समझ जाइए, आप सीओपीडी का षिकार हो गये हैं। अगर आप भी इस बीमारी की चपेट में है या फिर इससे बचना चाहते है तो पढि़ए नीचे स्टोरी में, क्या है सीओपीडी और कैसे इससे बचा जा सकता है।
सीओपीडी अब ऐसी बीमारी बन गई है जो बुजुर्गों से लेकर युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है। आज दुनिया में असमय मौत की चैथी वजह बन गई है ये बीमारी। जैसे-जैसे षहरों और कस्बों में वायु प्रदूशण बढ रहा है वैसे-वैसे ये बीमारी और अधिक लोगों को अपने चपेट में ले रही है। घरों में खुली हवा का ना पहुंचना और पार्कों का न होना सांस की बीमारियों की बड़ी वजह बन रहा है।

क्या हैं वजह
स्मौकिंग सीओपीडी की मुख्य वजह है। सीओपीडी के ज्यादातर मरीज स्मौकिंग करने वाले ही होते हैं और ऐसे लोगों में इस बीमारी के पनपने का सबसे अधिक खतरा होता है।
कुछ केस में नाॅनस्मौकर भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। इन मरीजों में देखने को मिला कि इनमें एक तरह की प्रोटीन की कमी जिसे एल्फा-1 एंटीट्रिप्सिन कहते हैं भी वजह मानी गयी।
काम करने के स्थान पर किसी गैस या धुंआ का लगातार निकलते रहना भी सीओपीडी की वजह हो सकता है।
स्मौकर द्वारा छोड़ा गया धुंआॅ भी एक हैल्दी परसन के लिए बीमारी की वजह हो सकता है।
गाडि़यों से छोड़ा गया धुंआॅ और फैक्ट्रियों से निकलता जहरीला धंुआॅ आपको सीओपीडी का मरीज बना देगा।
अगर आप बिना वेंटिलेषन वाली रसोई में खाना बनाते है तो आप इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

क्या हैं लक्षण
अगर आपको लगातार म्यूकस या बिना म्यूकस के साथ कफ आ रहा है तो आपको चैकअप कराने की जरूरत है।
अगर आपके षरीर में किसी भी तरह की थकान महसूस हो सही है तो आप सांस से संबंधित किसी बीमारी का षिकार हो सकते हैं।
कई तरह के रेस्पीरेट्री इंफेक्षन भी सीओपीडी की षुरूआत हो सकती है। ऐसे में आपको खुद का ध्यान रखने की जरूरत होती है।
अगर आपकी ब्रेथ कम हो रही है यानि आप बिना किसी वजह के जल्दी-जल्दी सांस ले रहे हैं तो आप फेफड़े की इस बीमारी का षिकार हो सकते हैं।
अगर आपको सांस में ब्रेथ करते वक्त झटका लगता है या कफ आ रहा है तो इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
सीओपीडी के लक्षण धीरे-धीरे बिकसित होते हैं। ऐसे में मरीज को पता नही होता की वो इस बीमारी की चपेट में आ गया। इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि आप इस बीमारी के छाटे से छाटे लक्षण को पहचानें और अच्छी तरह से चैकअप करायें।

क्या है जरूरी टेस्ट
सीओपीडी के लिए सबसे अच्छा फेफड़े की कार्यविधि का टेस्ट होता है जिसे स्पाइरोमेंट्री टेस्ट कहते हैं। एक छोटी सी मषीन इस टेस्ट में फेफड़ों की क्रियाविधि का चैकअप करती है। इसका रिजल्ट तुरंत मिल जाता है। इसमें किसी तरह की एक्सरसाइज, खून का बहना और रेडियेषन को षरीर से गुजारना नही होता, इसलिए ये सबसे अरामदायक और सही प्रमाण देने वाला होता है।
स्टेथोस्कोप से भी फेफड़े की आवाज सुनकर पता लगाया जा सकता है। लेकिन कभी-कभी सीओपीडी होने पर भी लंग साउंड नाॅर्मल रहती है।
ब्लड में आॅक्सीजन की मात्रा का चैकअप करके भी इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

क्या हो ट्रीटमेंट
सीओपीडी एक ऐसी बीमारी है जिसका ईलाज पूरी तरह से संभव नही है। लेकिन आप षुरूआती लक्षणों पर ध्यान देकर इसके साथ लंबा जीवन जी सकते हैं।
सबसे पहला और जरूरी उपाय है सीओपीडी मरीज तुरंत स्मौकिंग से तौबा करें। फेफड़ों के डेमेज को कम करने का ये सबसे महत्वपूर्ण उपाय है।
एयरवेज को ओपन करने के लिए इन्हेलर्स का प्रयोग किया जाता है। आइप्रेट्रोपियम, टायोट्रोपियम, सेलमेटेरोल और फोरमेटेरोल आदि प्रमुख इन्हेलर्स हैं।
स्टेराॅइडस को इनहेल करके भी लंग इंफलेमेषन को कम किया जाता है।
अगर मरीज की हालत ज्यादा खराब है तो ऐसे में उसे आॅक्सीजन थेरेपी की जरूरत होती है।

कैसे करें खुद को मजबूत
डाॅक्टर की सलाह पर आप कुछ एक्सरसाइज कर सकते है। इससे आप थकान पर काबू पा सकते है।
अपने थैरेपिस्ट की सलाह पर आप धीरे-धीरे वाॅकिंग का समय बढ़ाकर मसल्स स्ट्रेंथ बढ़ा सकते हैं।
अगर आप वाॅकिंग कर रहे हैं और छोटी-छोटी ब्रैथ हो रही है तो ऐसे में बात करने से बचना चाहिए।
बहुत ठंडी हवा में एकदम जाने से बचें।
ये खास ध्यान रखें कि आपके घर में कोई भी किसी भी तरह की स्मौकिंग ना करे।

कैसी हो डाईट
ऐसे में आपको हेल्दी डाईट की जरूरत होती है। इसके लिए आप डाईट में फिष या फिर लीन मीट प्रेफर कर सकते हैं।
भोजन में हरी सब्जियों का खास ख्याल रखना चाहिए। क्योंकि इससे आपको हैल्दी डाईट तो मिलेगी ही एंटीआॅक्सीडेंट भी प्राप्त होंगे जो कई तरह के रोगों से लड़ने में भी आपकी सहायता करते हैं।
अगर हैवी डाईट से आपको मोटापा होने लगा है तो ऐसे में आप आपने डाइटीषियन की सहायता से डाईट बदल सकते हैं।
जैसा कि आप जानते हैं, इस बीमारी को पूरी तरह से खत्म नही किया जा सकता है इसलिए इसके लक्षणों को पहचानना जरूरी है। इनके लिए आपको स्टोरी में बताई गई बातें काफी लाभदायक होंगी।

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

बरसात में पेट को दें बीमारियों से रेस्ट

बरसात की बूंदें तपती गर्मी से ठंडक तो दिलाती हैं, लेकिन अपने साथ कई तरह के रोग और समस्याएं भी लेकर आती हैं। इस मौसम में पेट की समस्याओं का होना आम बात है। क्योंकि बारिश में पानी से लेकर हर तरह के फूड में संक्रमण का खतरा बना रहता है। लेकिन थोड़ी सी सावधानी बरतकर आप पेट की इन समस्याओं से आसानी से बचा जा सकते है। फिर भी अगर दिक्कत हो जाती है तो क्या करें एक्सपर्ट्स से बात करके इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं राजेश राना।

डायरिया
डायरिया को आम बोलचाल की भाषा में लूज मोशन या दस्त भी कहा जाता है। डायरिया अपने आप में कोई रोग नहीं है, लेकिन यह कई रोगों की वजह बन सकता है। लोगों में गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। यह खतरनाक है। मरीज को सिर्फ तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। बाकी ताजा चीजों का इस्तेमाल बंद नहीं करना चाहिए।

कारण
दूषित खाना और पानी लेने से तमाम तरह के बैक्टीरिया हमारे शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं, जिनकी वजह से डायरिया हो जाता है।
पानी में अमीबा व वॉर्म्स जैसे वायरस व बैक्टीरिया बढ़ने से शरीर फ्ल्युइड को अब्जॉर्व नहीं कर पाता। इस स्थिति को वॉटरी डायरिया कहते हैं।
कई बार प्रदूषण की वजह से खाने की चीजों में जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे डायरिया होता है। ये आमतौर पर मिल्क प्रॉडक्ट व नॉनवेज में पाए जाते हैं। ये तत्व उबालने से भी नष्ट नहीं होते। ऐसे में बचाव के लिए ताजे दूध व मक्खन का ही इस्तेमाल करें और नॉनवेज खाने से बचें।
कई बार कुछ दवाओं के रिएक्शन से भी डायरिया हो सकता है।
जरूरत से ज्यादा स्विमिंग भी डायरिया की एक वजह है।

लक्षण
बार-बार उल्टी-दस्त, पूरे शरीर में दर्द, कमजोरी व आलस्य, बुखार व सिर में दर्द होना।

सावधानियां व बचाव
सफाई का पूरा ध्यान रखें। खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोएं।
हैंडपंप का पानी न पिएं। पानी उबालकर पिएं या फिल्टर करके ही पिएं।

खाने की चीजों को अच्छी तरह से पकाएं।
बाहर बिकने वाले कटे फल, दही भल्ले, गोल गप्पे व चटनी, सलाद आदि के इस्तेमाल से बचें। फ्रूट जूस भी बाहर का तभी पिएं, जब सफाई की गारंटी हो।
गर्मी के दिनों में काफी मात्रा में पानी पिएं।

क्या है इलाज

आयुर्वेद दवाएं

कुटजघनवटी एक-एक सुबह-शाम लें। इसके साथ आमपाचक वटी एक-एक सुबह-शाम तीन दिन तक ले सकते हैं।
डायरेक्स हिमालय कंपनी की एक गोली दिन में दो बार लें।
एंटस्टॉल की एक गोली दिन में दो बार लें। तुरंत आराम मिलता है।
दाडि़माष्टक चूर्ण चैथाई से आधा चम्मच दिन में दो बार पानी से लें। बच्चों को आधी डोज देनी है।
अमृतधारा पंसारी से खुद भी बनवा सकते हैं। की दो बूंद पानी बताशे या चीनी से लें। दिन में दो-तीन बार ले सकते हैं।
डायसिन की दो-दो गोली सुबह, दोपहर व शाम को लें।

घरेलू नुस्खे
एक से दो ग्राम हींग को भूनकर उसमें तीन-चार दाने काली मिर्च पीसकर मिला लें। इसमें थोड़ा काला नमक मिला लें और फिर पानी के साथ लें। दिन में दो बार ले सकते हैं। बच्चों को आधी डोज देनी है।
दो कप पानी में दस-पंद्रह ग्राम अदरक की गांठ पका लें। आधा पानी रहने पर उतारकर पी लें। इससे भी मोशन बंद हो जाते है। अगले दिन रिपीट कर सकते हैं।
खाली दस्त लगे हों तो दही के साथ ईसबगोल की भूसी मिलाकर लें।
एक गिलास पानी में चैथाई चम्मच नमक और एक चम्मच चीनी डालकर दिन में कई बार लें। ओआरएस या इलेक्ट्रॉल भी ले सकते हैं। ग्लुकोज न लें।
बच्चों को जायफल घिसकर दे सकते हैं। इसकी दाल के दाने के बराबर मात्रा दिन में एक से दो बार लेनी है।
आधी चम्मच सूखी चाय पत्ती पानी से फांकने से भी लूज मोशन रुक जाते हैं।
बेल का शर्बत अच्छा है। बेल का गूदा निकालकर भी खा सकते हैं। बेल का दानेदार चूर्ण दो छोटे चम्मच पानी से सुबह-शाम लें। बच्चों को आधी मात्रा दें। बीपी, शुगर और हार्ट पेशंट भी ले सकते हैं।

बिना दूध-चीनी की आधा कप चाय बनाकर उसमें जरा सा नमक मिला लें। इसे पीने से लूज मोशन रुक जाएंगे। दिन में दो बार तक ले सकते हैं।
दही में केला फेंटकर लें।
दूध न लें, छाछ और दही ले सकते हैं।
सेव और अनार ले सकते हैं, पपीता नहीं लेना है।
पिंडलियों को दबाने से भी लूज मोशन रुकते हैं।

पेट दर्द
शूलवज्रिनी वटी एक-एक गोली दो बार लें।
लशुनादि वटी दो-दो गोली दिन में तीन बार लें।
हिंग्वाष्टक चूर्ण ले सकते हैं।
पुदीन हरा, प्राणधारा या अमृतधारा की पांच बूंदें पानी में डालकर लें।
गैस की वजह से दर्द हो तो शंखवटी या हिंग्वाष्टक वटी पानी से लें।
मेथी के दानों को भूनकर पाउडर बना लें। पानी से आधा चम्मच दिन में एक या दो बार लें।
भुनी हींग व थोड़ा सेंधा नमक छाछ में डालकर पी लें। खट्टा छाछ न हो। यह प्रयोग रात को न करें।
चने के दाने के बराबर हींग को पानी में घोलकर नाभि के आसपास लगा लें। दर्द खींच लेगा।
अजवायन के दस-पंदह दाने नमक में मिला लें। पानी से लें।
बरसात के मौसम में पुदीना किसी भी रूप में लेने से डायरिया व पेट के रोगों से बचा जा सकता है।
छोटी हरड़ का आधा छोटा चम्मच चूर्ण लें। छोटे बच्चों को चीनी मिलाकर दे सकते हैं।
नीबू का पुराना अचार खायें।
पिंडलियों को दबाने से भी पेट दर्द कम होता है।
कंधे और गर्दन के बीच का ऊपरी मांसल हिस्सा दबाने से पेट दर्द ठीक होता है।

उल्टी
उल्टी अगर फूड पॉइजनिंग या अपच की वजह से हो तो वोमिटैब या छरदीरिपु की एक गोली दिन में एक से दो बार ले लें।
सूक्तिम की एक गोली दो से तीन बार पानी से लें। वोमिटैब और सूक्तिम गर्भवती भी ले सकती हैं।
मोरपंख की भस्म की एक चुटकी शहद में मिलाकर दिन में एक से दो बार लें।
केले के गूदे में चीनी मिलाकर थोड़ा सा खा लें।
चावल की फीकी खील 20-25 ग्राम, दो-तीन ग्लास पानी में पांच-दस मिनट उबालें। ठंडा होने पर थोड़ा-थोड़ा कर पी लें।
दूध को फाड़कर छान लें। इसके पानी में थोड़ी मिश्री डालकर थोड़ा-थोड़ा पिलायें। जी मिचलाना बंद हो जाएगा।
नींबू को बीच से काटकर सेंधा नमक व काली मिर्च का पाउडर उसके अंदर भरें। इसे सेंक लें और फिर चूसें।
सफर के दौरान उल्टी होने पर लौंग व मिश्री चूसने से आराम आता है।
सफर में उल्टी हो तो नीबू पर नमक व चीनी डालकर चूस लें।
एक तौला हरी गिलोय की डंडी आधा किलो पानी में पकायें। आधा रह जाए, तो थोड़ा शहद मिलाकर पी लें।
सूखी उबकाई आ रही हो या जी मिचला रहा हो तो बर्फ का टुकड़ा चूस लें। इससे उबकाई खत्म हो जाती है।

हैजा
इसमें उल्टी और दस्त दोनों हो सकते हैं।
ज्यादा मोशन हों, तो एक गोली कुटज पर्पटी या एक गोली कुटज घनवटी का पाउडर दाढि़माष्टक चूर्ण के साथ मिलाकर पानी से लें।
आमपाचक वटी ले सकते हैं।
दस्त रोकने के लिए दाडि़माष्टक चूर्ण आधा चम्मच दिन में दो बार पानी से लें।
सौंठ का पाउडर या त्रिकटु पाउडर काली मिर्च, पीपली व सौंठ की छोटी चम्मच थोड़े से गुनगुने पानी से लें।
उबला हुआ सेब या सेब का जूस लें।
दूध बिल्कुल न लें।
ताजा दही में डालकर इसबगोल की भूसी लें।
सूजी को भूनकर पानी में उबाल लें। इसे दही में डालकर लें।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

आहार जो बढ़ाए सौंदर्य



सुंदर दिखना सभी महिलाओं की चाहत होती है। सभी महिलाएं चाहती हैं कि वे हमेशा जवान और खूबसूरत बनी रहे। इसीलिए सौन्दर्य बढ़ाने के लिए तरह-तरह के प्रोडक्ट्स प्रयोग करती हैं, लेकिन इससे आपको स्थाई सुंदरता नहीं मिलती है । सुंदर दिखने के लिए जरूरी है कि आप अंदर से स्वस्थ रहें और ऐसा आहार ले जो आपको सुंदरता के साथ पोषण भी दें। आईए जानें ऐसे आहार के बारें.

प्रोटीन
हमारे शरीर के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी है। आपके शरीर का निर्माण, मरम्मत और उसे बनाये रखने के लिए भी प्रोटीन की जरुरत पड़ती रहती है। इसकी थोड़ी सी भी कमी आपकी सुंदरता को कम कर देगी। प्रोटीन का स्रोत हैं चना, मटर, मूंग, मसूर, उड़द, सोयाबीन, राजमा, लोबिया, गेहूँ, मक्का प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं। मांस, मछली, अंडा, दूध एवं यकृत प्रोटीन के अच्छे मांसाहारी स्रोत हैं। आप सब्जियों या मिल्क पाउडर में पाये जाने वाले प्रोटीन फूड का भी सेवन कर सकते हैं।

कार्बोहाइड्रेट
हमारी भागदौड़ वाली जिंदगी में हमें ऊर्जा की काफी जरूरत होती है और वह हमें कार्बोहाइड्रेट से मिलती है। लोगों का मानना है कि कार्बोहाइड्रेट मोटापा बढाता है लेकिन उस स्थिति में होता है जब हम ऐसे चीज खाते हैं जिसे हमारा शरीर उपयोग करने में असमर्थ रहता है, और अंततः यह वसा के रूप में जमा हो जाता है कार्बोहाइड्रेट का स्रोत हैं आलू, कॉर्न, मटर, मशरुम, प्याज, मूली, गाजर, चावल, ब्रेड, ब्लूबेरी, स्ट्राबेरी, अखरोट आदि।

वसा
माना जाता है कि वसा या फैट आपके शरीर के लिए सही नहीं है, लेकिन वसा की सही मात्रा आपके शरीर के लिए बहुत जरूरी है।  इससे आपकी सुंदरता में चार चांद लगा सकता है। आपकी त्वचा व बालों के लिए वसा या फैट बहुत जरुरी है, इससे आपकी त्वचा और बालों में चमक आती है।  आहार में मक्खन को शामिल करना आवश्यक है क्योंकि इसमें विटामिन की अत्यधिक मात्रा होती है। इससे त्वचा चिकनी, नम और असमय झुर्रियों से रहित होती है।  इसके साथ ही खूबसूरती बढ़ाने के लिए गोल्डन वेजीटेबल आयल और मक्खन आधा-आधा मिला लें। इससे हमें द्रव तेल के वसा अम्ल और ताजे मक्खन के विटामिन दोनों का फायदा मिलता है।

शरीर की अंदर से सफाई के लिए 

आप सुबह की चाय के स्थान पर हल्का गर्म पानी में नींबू और शहद मिलाकर पीएं। पानी शरीर की सफाई करता है, शहद ऊर्जा प्रदान करता है और नींबू अपने अम्लीय गुणों के कारण आपके शरीर को अंदर से साफ करता है।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

आहार में छिपा उपचार



अकसर हम लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि मेरे पिता को डायबिटीज थी, इसलिए मुझे भी यह समस्या है। ऐसी स्थिति में हमारे मन में स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि क्या ऐसा उपाय नहीं हो सकता जिससे हम और हमारी आने वाली पीढि़यां ऐसी आनुवंशिक समस्याओं से बची रहें। इस समस्या का समाधान वैज्ञानिकों ने हमारे भोजन में मौजूद तत्वों में ही ढूंढा है।
शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिकाएं होती हैं और इन्हीं कोशिकाओं में मौजूद जींस पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी आनुवंशिक खूबियों-खामियों के संवाहक होते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि अर्थराइटिस, कैंसर, डायबिटीज और पाचन तंत्र से संबंधित जिन गंभीर बीमारियों के लिए हमारी कोशिकाओं में मौजूद जींस को जिम्मेदार माना जाता है, वास्तव में जींस उसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं होते।

दरअसल आनुवंशिक बीमारियों से संबंधित ये जींस हमारे शरीर में सुप्त अवस्था में रहते हैं लेकिन खानपान की गलत आदतों, वातावरण और जीवनशैली की वजह से सक्रिय हो उठते हैं, जिससे व्यक्ति कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होता है। कई अनुसंधानों के परिणाम से यह निष्कर्ष सामने आया है कि स्वस्थ खानपान अपना कर हम कई तरह की आनुवंशिक बीमारियों से काफी हद तक बचे रह सकते हैं। सेहत के प्रति जागरूकता रखने वाले लोगों के लिए यह अच्छी खबर है।


फाइटोन्यूट्रीएंट एक अचूक अस्त्र

आनुवंशिक विज्ञान पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने वनस्पतियों में मौजूद फाइटोन्यूट्रीएंट नामक एक ऐसे तत्व को ढूंढ निकाला है, जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने, मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया को तेज करने, शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने और टूटी कोशिकाओं की मरम्मत का काम करता है। यह स्वास्थ्य संरक्षक तत्व प्रायः उन सभी अनाजों, सब्जियों और फलों में पाया जाता है, जो कि पौधों में उगते हैं। गहरे हरे और पीले रंग के फलों और सब्जियों जैसे पालक, मेथी, भिंडी, पपीता और आम आदि में इसकी मात्रा अधिक होती है। अपने भोजन में इन सभी चीजों को जरूर शामिल करें क्योंकि इनमें मौजूद फाइटोन्यूट्रीएंट्स शरीर को कई तरह की गंभीर बीमारियों से बचाते हैं।

लाभदायक हैं ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थ

फाइटोन्यूट्रीएंट तत्व किसी भी पौधे के तने, पत्ते, फूल, फल या साबुत अनाज के ऊपरी हिस्से में पाए जाते हैं। लेकिन कुछ परिस्थितियों में अधिक तापमान, सूर्य की तेज रोशनी या हवा के संपर्क में आने के बाद वनस्पतियों में मौजूद इन तत्वों का वाष्पीकरण हो जाता है और ये हवा में उड़ जाते हैं। फसलों की कटाई के समय भी ये नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद जब इन्हें प्रोसेस्ड करके पैकेट या डिब्बे में बंद किया जाता है तो इस प्रक्रिया में उनके पोषक तत्वों की बची-कुची मात्रा भी नष्ट हो जाती है। अत- फाइटोन्यूट्रीएंट्स का ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने के लिए प्रोसेस्ड सब्जियों, फलों और पॉलिश वाले अनाजों का इस्तेमाल न करें। ताजी सब्जियां, फल और बिना पॉलिश वाले अनाजों का सेवन फायदेमंद साबित होता है। ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थ भी शरीर को आनुवंशिक बीमारियों से बचाने में सहायक सिद्ध होते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान
गंभीर आनुवंशिक बीमारियों से बचाने वाले तत्व फाइटोन्यूट्रीएंट्स का अधिकतम उपयोग करने के लिए आपको इन बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह प्रमाणित हो चुका है कि वैसे पौधे, जिन्हें उगाने में किसी तरह के खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जाता, उनकी अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। इसलिए ऐसे अनाजों, फलों और सब्जियों का सेवन हमारी कोशिकाओं को मजबूत बनाता है। शरीर में मौजूद विषैले पदार्थो को भी बाहर निकालने में भी मदद  करता है।
संतरा, नीबू, चकोतरा, मौसमी जैसे विटमिन सी युक्त फलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा होती है। ऐसे फल हमारे शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकाल कर उसे स्वस्थ बनाए रखने में हमारी मदद करते हैं। इसलिए ऐसे फलों का जूस अपने भोजन में जरूर शामिल करें। आम तौर पर हम फलों और सब्जियों के छिलके को बेकार समझकर फेंक देते हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा फाइबर पाया जाता है। यह हमारे शरीर के लिए बेहतर एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है। इसलिए जहां तक संभव हो छिलके सहित फलों और हरी सब्जियों का सेवन करें।आनुवंशिक बीमारियों पर नियंत्रण रखने के लिए डाइटीशियन खानपान की मेडिटरेनियन शैली अपनाने की सलाह देते हैं। दरअसल मेडिटरेनियन समुद्र के आसपास 16 देश स्थित हैं, जिनकी अलग-अलग विविधतापूर्ण संस्कृति और खानपान की शैली है। यहां के लोग अपने खानपान में हरी सब्जियां, फल और सैलेड का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करते हैं। आप भी इस शैली को अपना कर अपने भोजन में विविधता लाएं। हर तरह के फलोंए सब्जियों, अनाजों और मेवों को अपने प्रतिदिन के खाने में जरूर शामिल करें। कई तरह की सब्जियों और फलों से बने सैलेड का सेवन अधिक मात्रा में। विभिन्न खाद्य पदार्थो में अलग-अलग तरह के पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो शरीर को कई तरह की गंभीर बीमारियों से बचाते हैं। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का बढ़ता स्तर हृदय रोग के लिए जिम्मेदार माना जाता है। अतः आप अपने खानपान में ऑलिव ऑयल, मछली और फ्लैक्स सीड को जरूर शामिल करें। इन चीजों में मौजूद ऑमेगा-3 और ऑमेगा-6 फैटी एसिड शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है।
अंत में, सबसे जरूरी बात यह है कि अगर आपके परिवार में किसी भी बीमारी की फेमिली हिस्ट्री रही है तो भले ही आपमें उस बीमारी के लक्षण मौजूद न हो फिर भी आप संबंधित बीमारी जैसे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, कैंसर आदि से संबंधित नियमित जांच जरूर करवाएं और पहले से ही सावधानी बरतते हुए अपने खानपान और जीवनशैली में स्वस्थ आदतें विकासित करें। जिस किसी भी स्वास्थ्य समस्या से संबंधित आपकी फेमिली हिस्ट्री रही हो, खास तौर से उस बीमारी को बढ़ावा देने वाली चीजों का सेवन न करें और अपने बच्चों के  खानपान को भी नियंत्रित रखें। इस तरह संतुलित-पौष्टिक आहार और स्वस्थ जीवनशैली अपना कर आप आनुवंशिक बीमारियों से काफी हद तक बचे रह सकते हैं।




बुधवार, 1 अगस्त 2012

गर्भावस्था में करें ब्लड प्रैशर को मैनेज


गर्भावस्था के दौरान रक्तचाप की बीमारी महिलाओं के लिए कई बार खतरनाक साबित हो सकती है। महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान अवसाद के कारण भी रक्तचाप की शिकायत हो सकती है, जो भविष्य में दिल की बीमारी का खतरा उत्पन्न कर सकता है। आम तौर पर माना जाता है कि गर्भावस्था में महिलाओं में उच्च रक्तचाप अगर मां बनने के बाद ठीक हो जाए तो इसका कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं होता है। गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप से पीडि़त महिलाओं में इस अवधि में सामान्य रक्तचाप वाली महिलाओं की तुलना में भविष्य में हृदयरोग से संबंधित बीमारी का खतरा 57 प्रतिशत ज्यादा होता है। गर्भावस्था की जटिलताओं में उच्च रक्तचाप एक सबसे बड़ा कारक है जो गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और महिला एवं गर्भस्थ शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है। 
यदि उच्च रक्तचाप की समस्या लंबे समय से हो तो यह दीर्घकालिक उच्च रक्तचाप या क्रॉनिक हाइपरटेंशन कहलाता है। यदि उच्च रक्तचाप गर्भधारण करने के 20 सप्ताह बाद, प्रसव में या प्रसव के 48 घंटे के भीतर होता है तो यह प्रेग्नेंसी इंड्यूस्ड हाईपरटेंशन कहलाता है। अगर रक्तचाप 140/90 या इससे अधिक है तो स्थिति गंभीर हो सकती है। मरीज एक्लेम्पशिया यानी गर्भावस्था की एक किस्म की जटिलता में पहुँच जाता है जिससे उसे झटके आने शुरू हो जाते हैं।
महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप की समस्या बहुत देखी जाती है। गर्भ के विकास के साथ उच्च रक्तचाप की स्थिति अधिक बढ़ती है। गर्भावस्था के भोजन में पौष्टिक खाद्य पदार्थों के अभाव में महिलाएं रक्ताल्पता की शिकार होती हैं। रक्ताल्पता से गर्भस्थ शिशु का विकास रुक जाता है। गर्भवती महिला को बहुत हानि पहुंचती है। गर्भस्राव की आशंका बनी रहती है।
गर्भावस्था के दौरान कई कारणों से ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है, जो मां और गर्भस्थ शिशु के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यदि ब्लडप्रेशर 130/90 की सीमा से ऊपर है तो यह उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर कहलाता है।
कारण
1  गर्भवती महिला में उच्च रक्तचाप की शिकायत गर्भावस्था के चलते उत्पन्न होती है।
2  कुछ महिलाओं में हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत गर्भावस्था के पहले से ही होती है।
3  कई बार गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप की शिकायत किडनी से संबंधित बीमारी, मोटापा, चिंता और मधुमेह आदि के कारण होती है।
थोड़ा बहुत हाई ब्लडप्रेशर कुछ देर आराम करने से और बायीं करवट लेटने से कम हो जाता है, किंतु यदि ब्लडप्रेशर के साथ सिरदर्द, मतली, उल्टी, आंख से धुंधला दिखना, पैरों में सूजन और सांस फूलना आदि में से कोई समस्या हो तो बात गंभीर हो जाती है।
सतर्कता एवं उपचार .
1  यदि कोई महिला गर्भावस्था से पूर्व ही हाई रक्तचाप से ग्रस्त है, तो उसे हृदय रोग विशेषज्ञ और स्त्री रोग विशेषज्ञ दोनों की से सलाह लेनी चाहिए। प्रसव भी इन दोनों की देखरेख में हो तो खतरे कम रहेगे।
2  भोजन में नमक कम लें। लो सोडियम साल्ट जैसे सेंधा नमक का उपयोग कर सकती है।
3  मलाईदार दूध, मक्खन, घी, तेल, मांसाहार से परहेज करना चहिए।
4  गर्भवती महिलाओं को पॉली अनसैचुरेटेड तेल जैसे सूरजमुखी के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
5  लहसुन और ताजे अदरक के सेवन से रक्त के थक्के नहीं जमते है और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित होता है।
6  गर्भावस्था के दौरान यदि उच्च रक्तचाप निम्न रक्तचाप की समस्या हो जाए तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें और उनके कहे अनुसार मेडिसन लें।