बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

हाथ और चेहरे की स्किन बर्निंग की घरेलू लर्निंग


कभी लापरवाही तो कभी अनजाने में शरीर का कोई हिस्सा जल जाता है। जलने पर तुरंत अस्पताल नहीं जाया जा सकता। अगर जले हुए हिस्से पर तुरंत उपचार नहीं किया जाए तो वह आगे चलकर काफी नुकसान भी पहुंचा सकता है। इसलिए जले हुए भाग का इलाज तुरंत घरेलू नुस्खे अपनाकर करना चाहिए। वैसे भी दीवाली का मौसम है। ऐसे में खास करके बच्चे पटाखे छोड़ने से बाज नही आते। ऐसे में उनके जलने के भी पूरे चांस होते हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि जलने पर सबसे पहले क्या करें।

जलने पर देखभाल
अगर आपका हाथ या चेहरा जल गया है तो ऐसे में हाथ और त्वचा की स्किन का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है।
जलने पर अगर आपके पास एलोवेरा जेल है तो आप इसको जले हुए भाग पर लगा सकते हैं। क्योंकि एलोवेरा घाव भरने के साथ-साथ स्किन की ग्लो में भी लाभदायक होता है।
जलने पर सबसे पहले उस पर ठंडा पानी डालिए। अच्छा तो यह रहेगा कि जले हुए अंग पर नल को खुला छोड़ दें।
जलने पर जीवाणुरहित पट्टी लगाइए, पट्टी को हल्का-हल्का लगाइए जिसके कारण जली हुई त्वचा पर जलन न हो।
हल्दी का पानी जले हुए हिस्से पर लगाना चाहिए। इससे दर्द कम होता है और आराम मिलता है।
कच्चा आलू बारीक पीसकर लगाने से भी फायदा होता है।
तुलसी के पत्तों का रस जले हुए हिस्से पर लगाएं, इससे जले वाले भाग पर दाग होने की संभावना कम होती है।
शहद में त्रिफला चूर्ण मिलाकर लगाने से चकत्तों को आराम मिलता है।
तिल को पीसकर लगाइए, इससे जलन और दर्द नहीं होगा। तिल लगाने से जलने वाले हिस्से पर पडे दाग-धब्बे भी समाप्त होते हैं।
गाजर को पीसकर जले हुए हिस्से पर लगाने से आराम मिलता है।
जलने पर नारियल का तेल लगाएं। इससे जलन कम होगी और आराम मिलेगा।

जलने पर क्या ना करें
जलने पर जले हुए हिस्से पर बर्फ की सेंकाई मत कीजिए। जले हुए हिस्से पर बर्फ लगाने से फफोले पडने की ज्यादा संभावना होती है।
जले हुए जगह पर रूई मत लगाइए, क्योंकि रूई जले हुए हिस्से पर चिपक सकती है जिसके कारण जलन होती है।
जले हुए मरीज को एक साथ पानी मत दीजिए, बल्कि ओआरएस का घोल पिलाइए। क्योंकि जलने के बाद आदमी की आंत काम करना बंद कर देती है और पानी सांस नली में फंस सकता है जो कि जानलेवा हो सकता है।
जले हुए हिस्से पर मरहम या मलाई बिलकुल ही मत लगाइए। इससे इंफेक्शन हो सकता है।
कोशिश यह कीजिए कि जलने वाले हिस्से पर फफोले न पडें। क्योंकि फफोले पडने से संक्रमण होने का खतरा ज्यादा होता है।

जलने के कारण
जलन केवल आग से नहीं होती है बल्कि, गरम तेल, गरम पानी, किसी रसायन, गरम बरतन पकडने और दीवाली के पटाखे बारूद भी हो सकते हैं।
खाना पकाते वक्त महिलाएं अक्सर जल जाती हैं। कभी गरम दूध या फिर गरम तेल जलने का प्रमुख कारण होता है।
बच्चे अक्सर अपनी शैतानियों के कारण आग या फिर गरम पदार्थों की चपेट में आकर चल जाते हैं।

जलने पर सबसे पहले यह देखना चाहिए कि कितना भाग जला हुआ है। उसी हिसाब से उसका उपचार करना चाहिए। अगर त्वचा कम जली है तो उसका प्राथमिक उपचार करना चाहिए अगर अधिक गहरा या ज्यादा जल गए हों तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

जब त्वचा जल जाये पटाखों से तो क्या करें ?


दीपावली यानी कि रंग-बिरंगी रोशनी व धूमधड़ाके का त्योहार। इसे पूर्ण उल्लास के साथ मनाएं मगर आवश्यक है तो सावधानी की। बच्चों को पटाखे से दूर रखें। बड़ों के सानिध्य में ही बच्चे पटाखे छुड़ाएं। इस दौरान आंखों में काला चश्मा व सूती वस्त्र का उपयोग करना बेहतर होगा। यदि फिर भी पटाखे छुड़ाने के दौरान असावधानी से त्वचा जल जाए या फिर आंखों में चिंगारी व बारुद का असर आ ही जाय तो क्या करें और क्या न करें इस पर हम बता रहे हैं आपकों  विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ।

जिला अस्पताल मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. टीके अग्रवाल कहते हैं कि पटाखे से उत्पन्न आवाज व उससे निकली बारुद शरीर व वातावरण दोनों के लिए घातक है। जहां तक हो सके इससे दूर ही रहे। यदि छुड़ा ही रहे हैं तो सावधान रहें। फिर भी यदि पटाखे छुड़ाने के दौरान त्वचा जल जाए तो त्वरित उपचार का प्रयास करें, जिससे निचली परत पर असर न पड़े। मरीज को आराम पहुंचे इसके लिए पेन किलर व एंटीबायोटिकश् दवाएं दें।
फिजीशियन डॉ. अजय सिंह के मुताबिक जले हुए स्थान को स्वच्छ व शीतल जल से धीरे-धीरे धुलें। संभव हो तो सिल्वरेक्स या बरनाल का लेप लगाएं। सोफरामाइसिन भी कारगर है। इसके उपरांत मरीज को निकटवर्ती चिकित्सक को दिखलाएं और उन्हीं की सलाह पर दवाओं का सेवन करें।

सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. नैय्यर रजा जैदी कहते हैं कि इस पद्धति में इसके कारगर इलाज है। जले हुए स्थान को शीघ्र शीतलता देने के लिए कैंथेरिस दवा का लेप लगाएं। मरीज को शीघ्र लाभ हों, इसके लिए रस्टास या फिर बेलाडेाना की खुराक दें। वैद्य राधेरमण मिश्र के मुताबिक आयुर्वेद पद्धति से जले हुए स्थान का इलाज करने पर शीघ्र लाभ होता है। इसके लिए तमाम दवाइयां उपलब्ध हैं, जो कि पटाखों की दुकान पर भी मिल सकती हैं। पटाखे के साथ दवाइयों की खरीदारी जरूर करें। आंखों में इसका असर आने पर नेत्रबिंद, नयन सुधर रंजन दवाओं का प्रयोग करें। जिला अस्पताल के नेत्र परीक्षण अधिकारी डॉ. जेबी बौद्ध कहते हैं कि यदि आंखों में बारुद या चिंगारी का असर आ जाय तो साधारण एंटीबायोटिक दवा कारगर हैं। शीघ्र ही चिकित्सक से संपर्क करें।

जलने पर ये हैं घरेलू नुस्खे

जले हुए स्थान की स्वच्छ व शीतल जल से धीरे-धीरे धुलाई करें।
जले हुए स्थान पर आलू पीसकर लेप लगाएं, शीतलता महसूस होगी।
कपड़े की थैली में बर्फ रखकर जले हुए स्थान की सेंकाई करें।
गाय के घी का लेपन करें।
पीतल की थाली में सरसों का तेल व पानी को नीम की छाल के मिश्रण का मरहम बनाकर जले हुए स्थान पर लगाएं, शीघ्र लाभ मिलेगा।
काला चश्मा पहन कर पटाखा छुड़ाएं।
बारुद का असर आने पर आंख को कतई न रगड़ें।
केवड़ा जल से धुलाई करें।
मां या गाय के दूध की दो-दो बूंदे आंखों में डालें।
नीम की छाल व गुलाब जल मिलाकर आंजन तैयार कर आंखों में लगाएं।
अगर दीपावली के मौके पर पटाखों की वजह से कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो ऐसे में आपको स्टोरी में बताए गए नुस्खे काफी हद तक आपके काम आ सकते हैं।

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

बदहजमी दूर करने के घरेलू नुस्खे



बदहजमी की तमाम वजहें हो सकती हैं। मसलन भूख से ज्यादा खाना, खाने को सही तरीके से नहीं चबाना, नींद पूरी न होना, खाना सही तरह से पका न होना या फिर एक्सरसाइज न करना। इसके अलावा तेज मसालेदार भोजन और जीवनशैली में बदलाव के कारण भी पाचन की समस्या पैदा हो सकती है। बदहजमी होने पर इन घरेलू नुस्खों को आजमाएं।

एक चम्मच अजवाइन के साथ नमक मिलाकर खाने से बदहजमी से तुरंत छुटकारा मिलता है।

एक गिलास पानी में पुदीने के रस की दो-तीन बूंदें डालकर हर तीन-चार घंटे के अंतराल पर पीएं।

एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच नींबू, अदरक का रस और दो छोटे चम्मच शहद भी मिला लें। इसे पीने से पाचन संबंधी परेशानी दूर होगी।

अगर एसिडिटी से परेशान हैं, तो एक गिलास पानी में नींबू निचोड़ कर पीएं।

अगर चाय पीना नहीं छोड़ सकते, तो हर्बल टी का प्रयोग करना शुरू कर दें।

कॉफी, अल्कोहल और धूम्रपान से बचें। इनसे भी पाचन खराब होने की आशंका होती है।

अधिक टाइट कपड़े और जींस ना पहनें।

डिनर सोने से कम से कम दो-तीन घंटे पहले कर लें।

एक चम्मच धनिए के भुने हुए बीज को एक गिलास छाछ में मिलाकर पीएं।

खाने के बाद एक चम्मच सौंफ अवश्य चबाएं।

अगर आपके मुंह का जायका खराब हो रहा है तो अदरक के टुकड़ों में काला नमक लगाकर खाएं।

अपने भोजन में रेशेदार फल-सब्जियों को शामिल करें। मैदा से बनी चीजों का सेवन न करें।
अगर आप पाचन से संबंधित किसी भी समस्या से परेशान हैं तो स्टोरी में बताई गई बातें आपको काफी फायदा पहुंचा सकती है।

कैसे बचें चक्कर आने से



चक्कर आना या सिर घूमना एक सामान्य समस्या है। यह स्वय में एक बीमारी भी है और अनेक बीमारियों का एक लक्षण भी।

कारण

चक्कर आने के कारणों को प्रमुख रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

कान की बीमारिया

ये चक्कर आने का सबसे प्रमुख कारण होती हैं। वास्तव में कान का सबसे अंदर वाला भाग हमारे शरीर की स्थिति को सामान्य बनाये रखने में सहायक होता है। इस भाग की बीमारियों का प्रमुख लक्षण चक्कर आना होता है। बीपीपीवी बेनाइन पैरॉक्सिसमल पोजीशनल वर्टिगो, लैबिरिन्थाइटिस, वेस्टीबुलर न्यूरोनाइटिस और मेनियर्स डिजीज कान के इसी भाग की होने वाली प्रमुख बीमारिया हैं।

कान की बीमारियों के अतिरिक्त दिमाग की बीमारियों से भी चक्कर आ सकते हैं। सीटी स्कैन और एम.आर.आई. से दिमाग की इन बीमारियों की जाच की जा सकती है।

इसके अलावा रक्तचाप में परिवर्तन, स्पॉन्डिलोसिस, शरीर में खून की कमी, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बहुत बढ़ने या कम होने और अत्यधिक शारीरिक व मानसिक तनाव से भी मरीज को चक्कर जैसी स्थिति का अनुभव हो सकता है।

क्या करें

चक्कर आने पर ऐसे कार्य न करें जिनमें गिरने या चोट लगने का खतरा हो। जैसे वाहन या गाड़ी न चलाएं सड़क पार करना या सीढ़ी पर चढ़ना।

रोगी की देखभाल के लिये एक व्यक्ति अवश्य होना चाहिए।

चूंकि कान की बीमारियां चक्कर आने की प्रमुख वजह होती हैं। इसलिए नाक, कान, गला विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। ई.एन.टी सर्जन द्वारा सुझाए गये कुछ विशेष तरीकों से चक्कर की बीमारियों में कुछ दिनों में पूरी तरह से आराम मिल जाता है। इसके अतिरिक्त उचित दवाओं व कुछ विशेष व्यायामों से इन रोगों पर पूर्णतया नियत्रण सभव है।

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

बदलता मौसम और चिकनगुनिया ?




मौसम में कई तरह के बदलाव होने लगे हैं। ऐसे में हमारा शरीर भी बदलावों की एक श्रृंखला से गुजरता है। इस बदलते मौसम में जिन लोगों की इम्यूनिटी यानि रोगों से लड़ने की क्षमता मजबूत होती है वो तो अपने आप को बदलते मौसम के अनुसार ढाल लेते हैं। लेकिन कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों कोेेेे बदलते मौसम के साथ कई तरह के वायरल फीबर्स से लड़ना होता है। इन्हीं में से चिकनगुनिया एक प्रमुख वायरल फीवर है, जो कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेता है और सावधानी न दिखाने पर एक पूरी क्षेत्र को अपनी गिरफत में ले लेता है। तो इसी को जानने के लिए कि कैसे चिकनगुनिया अपना प्रभाव बढ़ाता है और कैसे इससे बचा जा सकता है पढि़ए नीचे स्टोरी में।

चिकनगुनिया क्या है ?

चिकनगुनिया बुखार एक वायरस बुखार है। ये एडीज मच्छर एइजिप्टी जो दिन के समय काटते हैं, उनके कारण होता है। इस रोग के लक्षण डेंगू बुखार के समान होते हैं। जोड़ों के दर्द या गठिया के साथ साथ बुखार एवं त्वचा में खुश्की पैदा होती है।
इस बुखार का नाम चिकनगुनिया स्वाहिली भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है जो ऊपर की और झुकता है। ऐसा इसका नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस रोग में जोड़ों के दर्द से रोगी झुकी हुई मुद्रा में ज्यादातर रहता है। इस रोग का संक्रमण अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया, विशेष रूप से फिलीपींस, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, मारीशस और श्रीलंका में पाया जाता है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इबहास अस्पताल नई दिल्ली के मेडिसिन स्पेश्लिस्ट डाॅ अंकुर जैन कहते हैं कि इसके लिए हैल्दी और फिट रहना चाहिए।इसके लिए आपको व्यायाम, एक्सरसाइज योगा आदि करने के साथ ही हेल्दी डाइट लेनी चहिए। लेकिन जब प्रकोप किसी महामारी का हो तो ऐसे मौकों पर अतिरिक्त सतर्क रहने और देखभाल करने की जरूरत होती है।

चिकनगुनिया के लक्षण
चिकनगुनिया बुखार के लक्षण आम तौर पर संक्रमित मच्छर के काटने के 2-4 दिनों के बाद उभरना शुरू करते हैं। चिकनगुनिया बुखार के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं।

जोड़ों में दर्द शरीर में वायरस के पूरी तरह से आक्रमण करने पर शुरू हो जाता है। धब्बेदार या मकुलोपापुलर  दाने आमतौर पर बीमारी के 2 और 5 दिन के बीच देखा जाता है। यह ज्यादातर धड़ और अन्य अंगों पर होते है।  कुछ रोगियों को नेत्रश्लेष्मलाशोथ या आँख का संक्रमण हो सकता है और साथ में आँखों में थोडा बहुत खून का रिसाव भी हो सकता है।

भ्रम चिकनगुनिया का
वैसे क्षेत्रों में जहां दोनों बीमारियाँ एक साथ फैली होती हैं, कई बार चिकनगुनिया बुखार को डेंगू समझ लिया जाता है।
चिकनगुनिया बुखार और कुछ रोग जो लोगों को भ्रमित करते हैं वे विभिन्न रक्तस्रावी वायरल बुखार या मलेरिया जैसे रोग हैं।

क्या है परीक्षण
चिकनगुनिया बुखार का निदान, सीरम वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर किया जाता है। अप्रत्यक्ष ईम्युनोफ्लुरोसेन्स एक नए तरह का परीक्षण है जिसे चिकनगुनिया बुखार का निदान करने में प्रयोग किया जाता है।

क्या है बचाव
चिकनगुनिया वायरल भी महामारी का रूप लेता जा रहा है। डॉक्टर इससे बचने के तरह-तरह के उपाय खोज रहे हैं लेकिन भारतीय चिकित्सा में इसका अभी तक कोई ठोस इलाज उपलब्ध नहीं है। ऐसे में डॉक्टर्स सभी को जागरूक होने और स्वयं सतर्क रहने की लगातार सलाह दे रहे हैं। लेकिन बात हो जब चिकित्सा के सुरक्षित उपायों की, तो डाॅ. जैन बताते हैं कि, सदियों से अपनाये जा रहे घरेलू नुस्खों पर हम आसानी से विश्वास कर सकते हैं। कुछ घरेलू नुस्खे अपनाकर चिकनगुनिया, जैसी महामारी से निजात पाया जा सकता है।

    ऐसे में अधिक से अधिक पानी पीएं, हो सके तो गुनगुना पानी भी ले सकते हैं।
    ज्यादा से ज्यादा आराम करें।
    चिकनगुनिया के दौरान जोड़ों में बहुत दर्द होता है जिसके लिए डाॅक्टर की सलाह पर दर्द निवारक, बुखार रोधी दवाएं ली जा सकती हैं।
    शोधों के मुताबिक चॉकलेट चिकनगुनिया को दूर करने में लाभदयक होती है। चिकनगुनिया वायरल के दौरान दिन में 3-4 बार चॉकलेट खानी चाहिए।
    पानी के साथ ही जूस और तरह पदार्थो को खूब लेना चाहिए।
    दूध से बने उत्पाद, दूध-दही या अन्य। चीजों का सेवन भी खूब करना चाहिए।
    नीम के पत्तों को पीस कर उसका रस निकालकर चिकनगुनिया से ग्रसित व्यक्ति को दें।
    संक्रमित व्यक्ति बहुत ज्यादा लोगों से न मिलते हुए अपनी देखभाल और साफ-सफाई पर खास ध्यान रखे।
    करेला, पपीता इत्यातदि के साथ फलों को अधिक से अधिक खाना चाहिए।
अगर आप स्टोरी में बताई गई बातों पर ध्यान देंगे तो चिकनगुनिया  जैसी
बीमारी से आसानी से निपट सकते हैं।

बचायें खुद को और अपने पैट्स को रैबीज़ से


हम लोग सिर्फ इंसानों के बीच नहीं रहते। ऐसे कई जानवर भी हैं, जो हमारे घर के दायरे और उससे बाहर आबाद हैं। बहुत से जानवरों को तो हम बाकायदा पालते हैं। लेकिन बिल्कुल आंखों के सामने रहने वाले ये जानवर हमारे लिए खतरा भी साबित हो सकते हैं। कुत्ता, बिल्ली, बंदर से लेकर दूसरे पशु और जानवरों से हमेशा रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी फैलने का डर रहता है। ऐसे में थोड़ी सी असावधानी आपको और आपके पेट्स के लिए काफी खतरनाक हो सकती है। अगर हम सही वक्त पर सही इलाज न कराएं तो जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। तो जानवरों के काटने पर क्या है इलाज और कैसे हम खुद को और आपने पेट्स को रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी से सुरक्षित रख सकते हैं, बता रहे हैं राजेश राना अपने एक्सपर्ट के साथ।

कॉमन है काटना
डॉग बाइट यानी कुत्ते का काटना सबसे कॉमन है। लगभग हर इलाके में कुत्ते होते हैं, जिनसे आपका सामना घरों, गलियों, पार्कों जैसी जगहों पर होता है। ज्यादातर लोग डॉग बाइट का शिकार इन जगहों पर खुले में घूमते कुत्ते के जरिए ही होते हैं। डॉग बाइट के तीन ग्रेड होते हैं। ये ग्रेड इस बात पर निर्भर करते हैं कि बाइट कितनी गहरी है।

ग्रेड 1
.अगर कुत्ता प्यार से भी चाटता है, तो होशियार हो जाएं।
.अगर कुत्ते में रेबीज का इन्फेक्शन होगा तो आपके शरीर में रेबीज के वायरस जाने की आशंका बनी रहती है, खासकर अगर कुत्ते ने शरीर के उस हिस्से को चाट लिया हो, जहां चोट की वजह से मामूली कट या खरोंच हो।

ग्रेड 2
.अगर किसी कुत्ते के काटने के बाद स्किन पर उसके एक या दो दांतों के निशान दिखाई पड़ते हैं, तो समझिए कि एहतियात बरतने की जरूरत है।
.ऐसे कई लोग हैं, जो यह सोचकर कि कुत्ते को रेबीज न रहा होगा, एक या दो दांतों के निशान को मामूली जख्म की तरह ट्रीट करते हैं।
.ऐसी अनदेखी घातक साबित हो सकती है, क्योंकि रेबीज का वायरस एक बार आपके शरीर में जाकर बरसों-बरस डॉर्मन्ट या सुप्तावस्था में रह सकता है।
.कई बरस बाद जब यह अपना असर दिखाना शुरू करता है तो इलाज के लिए कुछ नहीं बचता।

ग्रैड 3
.कुत्ता आमतौर पर तीन जगहों में किसी एक जगह पर काटता है- हाथ, चेहरा या टांग।
.अगर हाथ या चेहरे पर काटने के बाद एक भी गहरा निशान बनता है या दांतों के तीन-चार निशान दिखाई देते हैं तो समझिए मामला बेहद संजीदा है और इलाज के लिए फौरन जाना चाहिए।

खतरनाक हो सकता है काटना
.किसी जानवर के काटने से जानलेवा वायरस या जहर शरीर में दाखिल हो सकता है।
.इससे रेबीज जैसी बीमारी हो सकती है, जिसका अब तक कोई इलाज मेडिकल साइंस ईजाद नहीं कर पाई है।

क्या है रेबीज
रेबीज एक वायरस होता है। अगर यह किसी जानवर में फैला हो और वह जानवर हमें काट ले खासकर कुत्ता, बिल्ली या बंदर तो हमें रेबीज हो सकता है।

लक्षण
.पानी से डर या हाइड्रोफोबिया, प्यास के बावजूद पानी न पीना
.बात-बात पर भड़क जाना-बर्ताव में हिंसक हो जाना

नतीजा
रेबीज का वायरस सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है, जिससे पी़िडत शख्स सामान्य नहीं रह पाता। बाद में तेज दर्द में चीख-पुकार मचाते हुए मरीज की मौत हो जाती है।

बचाव
इन सभी लक्षणों से बचना है तो कुत्ता, बिल्ली या बंदर के काटने के 24 घंटे के अंदर ऐंटि-रेबीज टीकों के जरिए इलाज शुरू करवा दें।

क्या करें काटने के बाद
कुत्ते के काटने के बाद उस हिस्से को सबसे पहले पानी से खूब अच्छी तरह धोएं। फिर साबुन लगा कर धोएं। वहां पट्टी कतई न बांधें। पहला ऐंटि-रेबीज इंजेक्शन 24 घंटे के भीतर जरूर लगवा लें।

क्या है प्रॉपर वैक्सिनेशन
.कुत्ते, बिल्ली या बंदर के काटने को हल्के में लेना बड़ी भूल है। इससे जानलेवा रेबीज हो सकता है।
.डाॅग एंड कैट क्लीनिक नई दिल्ली के वैटर्नरी स्पेश्लिस्ट डाॅ. आदित्य मेहता बताते हैं कि कुत्ते के काटने के बाद अब भी कई लोगों को यह लगता है कि पेट में 14 इंजेक्शन लगेंगे। यह गलत है। वैक्सिनेशन के तरीके और टाइम पीरियड अब बदल चुके हैं। यह भी जान लेना जरूरी है कि कुत्ते, बिल्ली या बंदर के काटने पर आपके काम का डॉक्टर जनरल फिजिशन या फैमिली डॉक्टर ही है।
.रेबीज को रोकने के लिए प्रॉपर वैक्सिनेशन या ऐंटि-रेबीज वैक्सिनेशन की जाती है।
.ऐंटि-रेबीज वैक्सीन सेंट्रल नर्वस सिस्टम या जहां रेबीज के वायरस अटैक करते हैं पर रक्षात्मक परत बना कर उस वायरस के असर को खत्म कर देती है।
.वैक्सिनेशन दो तरह से की जाती है ऐक्टिव और पैसिव ।
.अगर जख्म गहरा हो तो ऐक्टिव वैक्सिनेशन के तहत दो इंजेक्शन फौरन लगते हैं। इसमें ऐंटि-रेबीज सीरम को पहले मसल्स या बाजू या हिप्स में और फिर ठीक उस जगह पर जहां कुत्ते, बिल्ली या बंदर ने काटा हो, इंजेक्शन के जरिए डाला जाता है।
.इसके बाद बारी आती है पैसिव वैक्सिनेशन की। इसमें पांच इंजेक्शन एक खास टाइम पीरियड में लेने पड़ते हैं।
अगर आप वैक्सिनेशन का सही तरीके से ध्यान रखेंगे तो आप खुद को और अपने पैट्स को काफी हद तक रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी से सुरक्षित रख सकते हैं।

कितना खतरनाक थाइराइड कैंसर



थाइराइड कैंसर 30-40 की उम्र के बाद ज्यादातर दिखाई देता है। इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि तराई क्षेत्र के लोग थाइराइड कैंसर के ज्यादा मरीज बनते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार महिलाएं पुरूषों के मुकाबले थाइराइड कैंसर का ज्यादा शिकार होती हैं। तो ऐसे में आपको भी हो सकते है थाइराइड कैंसर का खतरा। तो इसी को जानने के लिए पढि़ए नीचे स्टोरी में।  

थाईराइड कैंसर क्या है

थाईराइड कैंसर थाईराइड ग्लैंड्स या ग्रंथि में सेल्स का असामान्य विकास है। थाईराइड ग्लैंड्स तितली के आकार की होती हैं और यह गर्दन के सामने होती हैं। थाईराइड कैंसर की अधिकतर स्थितियों में बचाव सम्भव है ।

क्या है थाईराइड ग्लैंड्स का काम
थाईराइड ग्लैंड्स का एक काम थाईराइड हार्मोन बनाना भी है जिसके लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। थाईराइड ग्लैंड्स के कुछ निश्चित कार्य होते हैं जैसे कि आयोडीन को इकट्ठा करने के बाद उसे ग्लैंड्स में एकत्रित कर थाईराइड हार्मोन बनाना। चिकित्सक कभी-कभी थाईराइड कैंसर की चिकित्सा के समय आयोडीन के महत्व पर ध्यान भी नहीं दे पाते ।

थाईराइड ग्लैंड् की रचना
थाईराइड ग्लैंड्स की रचना में दो महत्वपूर्ण विषय भी हैं। पहला यह कि थाईराइड टिश्यू चार छोटी ग्लैंड्स से मिलकर बनी होती है जो कि शरीर में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। अगर थाईराइड ग्लैंड्स की सर्जरी की गयी तो ऐसा जरूरी होता है कि सर्जन सावधानी पूर्वक इन चारों छोटी ग्लैंड्स को किसी प्रकार की हानि से बचाये।
वो नर्व जो कि हमारे आवाज के बाक्स को नियंत्रित करती है वह भी थाईराइड के बहुत ही पास होती है। इसलिए थाईराइड ग्लैंड की सर्जरी के दौरान थाईराइड ग्लैंड का पता होना आवश्यक है क्योंकि अगर आवाज के बाक्स को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचा तो मरीज आजीवन ठीक प्रकार से बोल नहीं पायेगा ।
थाईराइड में दो प्रकार के सेल्स होते हैं जो कि दो हार्मोन बनाते हैं और शरीर के काम को संचालित करते हैं। थाईराइड में फालिकुलर सेल्स थाईराइड हार्मोन बनते हैं जिन्हें कि थायराॅक्सिन कहते हैं या टी-4 कहते हैं और यह शरीर के मेटाबालिज्म को नियंत्रित करता है। थाईराइड ग्लैंड के द्वारा नियंत्रित किया जाने वाला मेटाबाॅलिज्म एक जटिल प्रक्रिया करता है जो कि शरीर के कई अंगों को भी प्रभावित कर सकता है ।
सी सेल्स को पैराफाॅलिकुलर सेल्स भी कहते हैं और यह कैल्सिटोनिन बनाती हैं। यह वो हार्मोन है जो कि रक्त में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है।

थाईराइड कैंसर के चार प्रकार हैं
पैपिलरी कार्सिनोमा
पैपिलरी कार्सिनोमा को पैपिलरी एडेनोकार्सिनोमा भी कहते हैं। यह सबसे आम प्रकार का थाईराइड कैंसर है जो कि सभी कैंसर में से 75 प्रतिशत है । यह फाॅलिकुलर सेल्स से विकसित होता है और धीरे-धीरे बढ़ता है। बहुत सी स्थितियों में यह थाईराइड ग्लैंड के दो भाग में से एक में होता है लेकिन यह 10 से 20 प्रतिशत मरीजों में दोनों भागों को ही प्रभावित करता है। पैपिलरी कार्सिनोमा गर्दन में लिम्फ नोड्स के आसपास भी फैल जाता है लेकिन यह शरीर के दूसरे भागों में भी फैल सकता है ।

फाॅलिकुलर कार्सिनोमा
फाॅलिकुलर कार्सिनोमा थाईराइड कैंसर का दूसरा सबसे आम प्रकार है जो कि फाॅलिकुलर सेल्स में शुरू होता है। इस प्रकार का कैंसर थाईराइड ग्लैंड्स में होता है लेकिन कभी कभी यह शरीर के दूसरे भागों में भी फैल जाता है मुख्यतः फेफड़ों और हड्डियों में।

हर्थल सेल नियोप्लाज्म या फालिकुलर एडेनोकार्सिनोमा
यह फालिकुलर कैंसर जैसा ही है जिसे कि ठीक प्रकार से समझा नहीं जा सका है ।

एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा या फाॅलिकुलर एडेनोकार्सिनोमा
यह बहुत ही दुर्लभ प्रकार का थाईराइड कैंसर है जिसका पूर्वानुमान लगाना सबसे मुश्किल है। विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि यह कैंसर पहले से रहने वाले पैपिलरी या फाॅलिकुलर कार्सिनोमा से होते हैं। एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा बहुत कम समय में गर्दन से शरीर के दूसरे भागों में भी फैल जाता है । क्योंकि यह थाईराइड और श्वास नली के पास होता है इसलिए वो मरीज जिनमें कि इस प्रकार का कैंसर होता है उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है और कभी कभी तो सांस लेने के लिए ट्यूब भी लगाना पड़ता है ।

थाईराइड कैंसर के लक्षण
सामान्यतः गर्दन में गांठ देखने को मिलती है ।
गर्दन में दर्द जो कि कानों तक महसूस हो।
निगलने में परेशानी होना।
आवाज में भारीपन।
सांस लेने में परेशानी होना।
लगातार रहने वाली खांसी।
ऐसे कुछ लक्षण कैंसर के अलावा दूसरी बीमारियों के भी होते हैं।

थाईराइड कैंसर की संभावित अवधि
सर्वोदय अस्पताल गाजियाबाद के ओंकोरेडियोथेरेपिस्ट डाॅ. अमित कुमार सिंह बताते हैं कि थाईराइड कैंसर कई सालों तक धीरे-धीरे बढ़ता है। दूसरे प्रकार के कैंसर की तरह यह भी तब तक बढ़ता है जब तक कि इसकी चिकित्सा ना की जाये।

थाईराइड कैंसर की चिकित्सा
डाॅ. अमित बताते हैं कि सर्जरी ही थाईराइड कैंसर से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। सर्जन आपके थाईराइड और लिम्फ नोड्स के प्रभावित क्षेत्र को सर्जरी के द्वारा निकालते हैं।

थाईराइड हार्मोन थेरेपी
अगर सर्जरी के द्वारा पूरी थाईराइड हार्मोन को निकाल दिया गया तो थाईराइड हार्मोन की दवाएं सामान्य प्रक्रिया करेंगी और पिट्युटरी ग्लैंड के हार्मोन पर दबाव डालेंगी जिससे बचे हुए थाईराइड कैंसर सेल्स का विकास होगा। ऐसे में मरीज को ओरल थाईराइड हार्माेन की दवांए लेनी चाहिए।

रेडियोएक्टिव आयोडीन चिकित्सा
रेडियोएक्टिव आयोडीन का प्रयोग दो कारणों से किया जाता है। यह किसी सामान्य थाईराइड टिश्यू को भी प्रभावित कर सकता है या कैंसर के सेल्स को खत्म कर सकता है। जब इसका प्रयोग सामान्य टिश्यू को खत्म करने के लिए किया जाता है तो रेडियेशन की कम मात्रा का प्रयोग किया जाता है और कैंसर की चिकित्सा के लिए अधिक मात्रा में रेडियेशन का प्रयोग किया जाता है।

कीमोथेरेपी
इस चिकित्सा में एण्टी कैंसर ड्रग्स को मुंह के रास्ते। इन्जेक्शन के द्वारा नली या वेन्स में लगाया जाता है। इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं बालों का गिरना, थकान, उल्टियां आना।

एक्सटर्नल बीम रेडियेशन थैरेपी
इस चिकित्सा में अधिक ऊर्जा वाली किरणों को कैंसर प्रभावित क्षेत्र पर छोड़ा जाता है जिससे कि कैंसर के सेल्स को खत्म किया जा सके। ऐसी चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है कि कैंसर कितने क्षेत्र में फैला हुआ है। थाईराइड कैंसर की चिकित्सा के एक प्रकार के अतिरिक्त प्रभाव लगभग कई महीनों तक रहते हैं। ऐसे में इलाज के 20 से 30 साल तक स्वयं की निगरानी करना जरूरी है। सर्जरी के बाद सेरम थायरोग्लोंबुलिन नामक रक्त जांच की जाती है जिससे कि इलाज के बाद भी अगर कैंसर के सेल्स रह जाते हैं तो उनका पता चल जाता

थायराॅइड कैंसर से बचाव के टिप्स
थाइराॅइड कैंसर, कैंसर का ही एक प्रकार है जो कि थाइराॅइड ग्रंथियों की कोशिकाओं में होता है। यह कैंसर बहुत सामान्य नही हैं, लेकिन इस कैंसर का इलाज संभव है। हम सब में इस कैंसर के बढ़ने की संभावना है, लेकिन इस स्थिति को बढ़ाने वाली कुछ वजह ये हैं।

उम्र का फंडा
थाइराइड कैंसर किशोरों और बच्चों की तुलना में 30 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में होता है।

लिंग
पुरूषों की तुलना में महिलाओं में थाइराइड कैंसर के बढने का खतरा ज्यादा होता है जो सामान्यतः दो से तीन गुना ज्यादा।

रेडिएशन का संपर्क
रेडिएशन के संपर्क में आना या किसी दुर्घटना की वजह से जैसे न्यूक्लीयर विस्फोट या गर्दन की रेडिएशन थेरेपी, थाइराइड कैंसर के खतरे को बढाती हैं।

पारिवारिक इतिहास
डाॅ. अमित बताते हैं, यदि आपके परिवार में किसी को थाइराइड कैंसर है तो कुछ दुर्लभ सिंड्रोम कई ग्रंथियों में ट्यूमर के कारण होते हैं, ऐसे में आपको थाइराइड कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

थाइराइड कैंसर से बचने के लिए कोई निश्चित तरीका नही है, लेकिन कुछ कारक ऐसे हैं जिनसे थाइराइड कैंसर बढने के खतरे को कम किया जा सकता है। कुछ तरीके जो थाइराइड कैंसर के जोखिम को कम करते हैं।

यदि आपकी गर्दन के आसपास या विशेष रूप से बचपन में रेडिएशन थेरेपी से इलाज हुआ हो। तब डॉक्टर के निर्देंशों का पालन करते हुए नियमित रूप से थाइराइड कैंसर की जांच करानी चाहिए।

ऐसे लोग, जिनके परिवार में किसी को थाइराइड कैंसर हुआ हो या कुछ ऐसे सिंड्रोम जो कई ग्रंथियों में ट्यूमर का कारण बनते हैं, उनको भी नियमित रूप से निर्देशों का पालन करना चाहिए।

आपके डॉक्टर आपको नियमित रूप से जांच कराने की सलाह दे सकते है जिसकी आपको जरूरत है।

विकिरण से सुरक्षित रहेंगी नन्हीं आंखें


आज हर आॅफिस और घर इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से भरे पड़े हैं। जिंदगी ऐसी हो गई है कि 24 में से 18 घण्टे कंपयूटर और दूसरी स्क्रीन के सामने गुजारने पड़ते हैं। मगर हम ये भूल जाते हैं कि इन स्क्रीन से निकलने वाला विकिरण हमारी आॅखों और सेहत के लिए कितना खतरनाक होता है। इसी वजह से लोगों में आज आॅखों की बीमारियां हर उम्र में दिखाई दे रही हैं। इसी को जानने के लिए कि कैसे बढ़ रही है इलेक्ट्रॉनिक सामान से आॅखों में तकलीफ, पढि़ए नीचे स्टोरी में।

जन्म लेते ही बच्चे की कोमल आंखें अपने आसपास की चीजों को घूरने लगती हैं। इन अनमोल आंखों का शुरू से ही खयाल न रखा जाए तो बाद में बड़ी तकलीफें भुगतनी पड़ सकती हैं। आज की गैजेट्स की दीवानी पीढ़ी को सबसे ज्यादा परेशानियां आंखों की वजह से ही झेलनी पड़ रही हैं। खासकर बच्चे बहुत तेजी से इसके शिकार हो रहे हैं।

आंखों के दुश्मन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स
गाजियाबाद के कोलंबिया अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय शर्मा के अनुसार, आजकल बच्चे लंबे समय तक कंप्यूटर और टेलीविजन के सामने बैठे रहते हैं और उचित डाइट भी नहीं लेते। बच्चे की आईसाइट कमजोर होने का यह सबसे बड़ा कारण है। फिर भी अभिभावक इस ओर ध्यान नहीं देते। दिल्ली में 5 से 13 वर्ष के बच्चों में आंखों में खराबी या कमजोरी आने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं।

टीवी देखें 6 फुट की दूरी सें
आॅफिस में कंपयूटर, घर आये तो फिर टीवी या कंपयूटर सामने। घरेलू महिलाएं कामकाज के बाद ज्यदातर समय टीवी के सामने बीताती हैं। बच्चे भी टीवी के बाद वीडियो गेम्स में व्यस्त रहने की कोशिश करते हैं। ऐसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की हानिकारक रेडिएशन के संपर्क में आने से धीरे-धीरे  आंखें कमजोर होने लगती हैं। कई बार आंखों की रोशनी जाने की भी नौबत आ जाती है। टीवी कम से कम छह फुट की दूरी से देखना चाहिए और पर्याप्त रोशनी में ही टीवी देखना चाहिए।

ऑनलाइन चैटिंग से जा सकती हैं आंखें
मेडफोर्ट अस्पताल दिल्ली, के क्लीनिकल डायरेक्टर डॉ. त्यागमूर्ति शर्मा कहते हैं, बहुत ज्यादा कंप्यूटर के प्रयोग से मायोपिया या पास का न दिखने की समस्या हो जाता है। लगातार कंप्यूटर टीवी के सामने बैठे रहने से आंख की रक्त कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं। सुरक्षित तरीके से कंप्यूटर इस्तेमाल करने के लिए करेक्टिव आईवेयर की आवश्यकता है।

ठीक रोशनी में पढ़ें, चश्मा नहीं लगेगा
पढ़ाई के समय उचित रोशनी और किताब से आंखों की दूरी का खयाल न रखने, बहुत नजदीक से टीवी देखने और घंटों कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठने से आंखों पर काफी बुरा असर पड़ता है। समय रहते इन बातों पर ध्यान दिया जाए तो आंखें सुरक्षित रहती हैं और लापरवाही बरती जाए तो अंधेपन का शिकार होना पड़ सकता है।

फास्ट फूड कल्चर
डॉ. संजय शर्मा कहते है की कमजोर आईसाइट की सबसे बड़ी वजह पोषक तत्वों की कमी है। इसके लिए फाइबर, हरी पत्तेदार सब्जियां व मौसमी फल का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

एलर्जी
आज आंखों की एलर्जी होना आम बात है। यह एलर्जी किसी बाहरी रसायन की वजह से हो जाती है। इसमें आंखें लाल हो जाती हैं और उससे पानी बहने लगता है। कई बार खुजली भी होती है। बुखार भी आ सकता है और सांस लेने में भी तकलीफ हो सकती है। आंखें सूज भी सकती हैं। इसे कंजंक्टीवाइटिस भी कहते हैं।

क्या करे दूसरे उपाय

सबसे पहले आप अपने पुराने पीसी को हटा दें, खास कर यदि वे सीआरटी मॉनिटर वाले हैं तो उसे तो सबसे पहले। अध्ययन से पता चलता है कि पुराने बक्से के आकार के कैथोड-रे-ट्यूब बड़ी मात्रा में विकिरण उत्पन्न करता है। वहीं एलसीडी मॉनिटर अपेक्षाकृत कम मात्रा में विकिरण मुक्त करता है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि पुराने कम्प्यूटर नए मॉडलों की तुलना में लगभग दुगना विकरण मुक्त करते हैं, क्योंकि नए मॉडलों में अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
कम्यूटर के स्क्रीन पर रेडिएशन फिल्टर चढ़ाने से कम्प्यूटर से निकलने वाला रेडिएशन का प्रभाव कम होता है।

अपने कम्यूटर स्क्रीन की ब्राइटनेस को सिर्फ उतना ही रखें, जिससे आपको देखने में सुविधा हो। क्योंकि स्क्रीन जितना चमकीला होता है, रेडिएशन उतना ही तेज होता है। साथ ही यह भी ध्यान में रखें कि स्क्रीन की ब्राइटनेस इतनी कम भी न हो कि इससे आपकी आंखों कि नुकसान पहुंच जाए। स्क्रीन के सामने देखने के लिए आदर्श दूरी 50 से 75 सेंमी है।

पीसी की हानिकारक रेडिएशन के प्रभाव से बचने के लिए आपको अपने कम्यूटर को रखने की जगह को तय करना होगा। आपका कम्यूटर का पिछली भाग इस प्रकार रखा हो कि यह किसी बैठे हुए व्यक्ति की तरफ न हो। अध्ययन के मुताबिक इसका पिछला हिस्सा अधिक तेज रेडिएशन छोड़ता है, जबकि अगला हिस्सा कम तेज रेडिएशन मुक्त करता है।

सुनने में यह अजीब सा लगे, पर यह कारगर होता है। अध्ययन के मुताबिक, कैक्टस के पौधों मे रेडिएशन को सोखने की क्षमता होती है। इसलिए अपने वर्क-स्टेशन पर आप कैक्टस के पौधे लगाएं, ताकि आप तक कम से कम विकिरण पहुंचे।

अगर आप को भी अपनी आॅखों में कंपयूटर और टीवी के सामने रहने में समस्या महसूस हो रही है तो स्टोरी में बताये उपाय काफी हद तक लाभदायक हो सकते हैं।









स्किन को दें बदलते मौसम का साथ




मौसम के साथ साथ त्वचा में बदलाव आता है। इसलिए गर्मी, बरसात और ठंड के मौसम के अनुरूप अलग अलग ढंग से त्वचा की देखभाल की आवश्यकता होती है।

गर्मी का मौसम

गर्मी के दिनों में तेज धूप और गर्म हवाएँ त्वचा को काफी नुकसान पहुँचाती हैं। इस मौसम में पसीने की चिपचिपाहट का भी सामना करना पड़ता है।

गर्मी के मौसम में पसीना अधिक निकलने की वजह से घमौरी, खाजए खुजली आदि की शिकायत भी उत्पन्न हो जाती है।

तेज धूप में निकलने पर त्वचा पर सनबर्न, पिगमेंटेशन आदि की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।

अधिक गर्मी और पसीने की वजह से बगलों व जाँघों में संक्रमण हो जाता है।

बचाव के उपाय

दिन में कम से कम दो बार ठंडे पानी से रगड़ रगड़ कर स्नान करें।

साफ, धुले, सूती कपड़े पहनें। अंतर्वस्त्र दो बार बदलें।

दिनभर में 3-4 बार चेहरे को फेसवॉश से साफ करें।

ककड़ी, खीरा, संतरा या मौसम्बी का रस निकाल लें। इसे ट्रे में डालकर फ्रिज में जमने के लिए रख दें। इसके क्यूब को चेहरे पर मलें। चेहरा चमक उठेगा। रोमकूपों और मुँहासों के लिए भी लाभदायक होता है।

पानी में थोड़ी सी फिटकरी मिलाकर इसे आइस क्यूब में रखकर फ्रिज में जमा लें। यह क्यूब चेहरे पर रगड़ने से ताजगी मिलती है।

गर्मी के दिनों में ब्लीचिंग न करवाएँ। इससे त्वचा काली हो जाने का डर रहता है।

धूप में निकलने पर सनस्क्रीन या सन ब्लॉक क्रीम, लोशन का इस्तेमाल करें।

ठंड का मौसम

ठंड के मौसम में वातावरण की नमी और सर्द हवाएँ त्वचा को हानि पहुँचाती हैं। मौसम के प्रभाव से त्वचा शुष्क हो जाती है और फटने लगती है।

चेहरा बुझा-’बुझा और बेजान लगता है। बालों में रूसी की समस्या पैदा हो जाती है।

त्वचा पर खुजली, स्क्रेच, दाने आदि की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

बचाव के उपाय

इस मौसम में साबुन कम इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि साबुन त्वचा की शुष्कता को और बढ़ा देता है।

त्वचा पर कोक बटर, मिल्क क्रीम, मक्खन, कोल्ड क्रीम, मॉइश्चराइजर आदि की मालिश करें।

अधिक गर्म पानी से स्नान न करें। स्नान करते समय पानी में कुछ बूँदें बेबी ऑयल, ऑलिव ऑइल या बॉडी ऑइल भी डालें। इससे त्वचा मुलायम बनी रहेगी।

इस मौसम में स्टीम बाथ लेना त्वचा के लिए काफी लाभदायक होता है। इससे त्वचा की शुष्कता दूर होती है।

शरीर पर जैतून, नारियल, सरसों आदि तेलों की मालिश करने से त्वचा मुलायम बनी रहती है।

बाहर से आने के बाद हाथ- पैर, चेहरा धोने के बाद हैंड एंड बॉडी लोशन लगाएँ। इससे हाथ-पैर व चेहरे की त्वचा मुलायम बनी रहेगी।