शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

टैलेंट नही होता विक्लांगता का मोहताज


कहते हैं ना दोस्तों जब जज्बात हो आगे बढ़ने का तो रास्ता खुद ही बनता चला जाता है। चाहें आप शारीरिक और मानसिक रूप से कितने ही कमजोर हों मगर टैलेंट कभी छुपता नही। हर इंसान में कुछ ना कुछ टैलेंट होता है, चाहें वो नाॅर्मल हो या एब्नाॅर्मल। इस स्टोरी में हम आपके सामने ऐसे ही दो टैलेट की सफलता के बारे में बता रहे हैं। जिन्होंने अपने परिवार वालों का ही नहीं, देश का सीना भी गर्व से उंचा किया है। इन्हांेने कभी भी अपनी विक्लांगता को अपनी कमजोरी नही बनने दिया।

तीन दिसंबर को विश्व विक्लांगता दिवस है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम लेकर आये हैं आपके सामने कि कैसे लोग विक्लांग होने के बावजूद भी अपने सपनों को साकार करते हैं। अगर आप को कोई भी विक्लांगता है तो आप भी हमारे इन हीरो से प्रेरणा लेकर सफलता की वो दास्तां लिख सकते हो जिसके लिए लोग तरसते हैं। जिस सफलता पर अपने ही नही, दुनिया वाले भी आपको सलाम करते हैं।

नानकचंद एग्लो काॅलिज की मानोविज्ञान विषय की प्रोफेसर रीतिका रस्तोगी कहतीं हैं कि कुछ लोगों में ऐसी भावना आ जाती है कि मैं तो विक्लांग हूॅ मैं खेल नहीं सकता, मैं गा नही सकत, मैं लोगों के सामने अपने आप को सही से प्रस्तुत नहीं कर सकता। यहीं हींन भावना विक्लांग लोगों को आगे बढ़ने से रोकती है। अगर इसी हीन भावना को इनके अंदर से निकाल दिया जाये तो ये लोग आसमान की बुलंदियों को छूने को तैयार रहते हैं।

एच. एन. गिरिश, लंदन पैराआॅलंपिक के सिल्वर मेंडलिस्ट। इन्होंने हर भारतीय को उस वक्त गौरवान्वित कर दिया जब दुनियाभर के एथलीटों को पछाड़े हुए पुरूष उंची कूद में दूसरा स्थान हांसिल किया। उस वक्त हर भारतीय खेल प्रेमी का सीना गर्व से चैड़ा हो गया था। क्योंकि पदक जीतकर भारत का तिरंगा फहराने वाले वो भारतीय दल के अकेले युवा थे।

गिरिश के बारे में जानने के लिए हमने बात की उनके पिता श्री नागेराजे गोंडवा से। उनके पिता ने बताया कि गिरिश का जन्म 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस के दिन 1988 को हुआ। वैसे तो देशप्रेम की भावना इसी बहाने गिरिश में बचपन से ही पैदा हो गई थी। उनका एक पैर बचपन से ही बीमारी का शिकार हो गया था, इस वजह से उन्हें युवा जीवन में कई परेशानियां देखनी पड़ी। मगर उनका हौंसला कभी कमजोर नही हुआ।

टैलेंट की पहचान
जब कर्नाटका स्पोर्टस एसोसिएशन फोर फीजिकली हैंडिकेप्ट के सदस्यों ने देखा कि एक हैंडिकेप्ट लड़का नाॅर्मल लड़कों को पीछे छोड़ रहा है तो तुरंत गिरिश के टैलेंट को पहचानकर एसोसिएशन में आने का न्यौता दे दिया। फिर क्या था गिरिश ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और आज वो देश के चोटी के एथलीटों में गिने जाते हैं।

सफर सफलता का
गिरिश की सफलता की कहानी तो उस वक्त ही लिखी जा चुकी थी, जब उन्हें पहली बार स्टेट लेवल मीट में नाॅर्मल एथलीटों को चुनौती दी। इंटरनेशनल लेवल पर गिरिश ने जूनियर पैरा आॅलंपिक खेलों में आयरलैंड में कांस्य पदक जीतकर पहली बार अपनी प्रतिभा का नमूना पेश किया। इसके बाद गिरिश ने नेशनल हाई जंप चैपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश में अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित किया। गिरिश ने कुवैत और मलेशिया की एथलीट मीट में भी गोल्ड मैण्डल अपने नाम किया। लेकिन हर एथलीट का जो सपना होता है कि वो आॅलंपिक में आपे देश के लिए मेण्डल जीते। गिरिश की ये ख्वाहिश उस वक्त पूरी हो गई जब उन्होंने लंदन पेराआॅलंपिक में सिल्वर मैण्डल जीता। इसके बाद देश का हर खेल प्रेमी गिरिश की सफलता का गुणगान करने लगा।

मलाल गिरिश का
गिरिश के पिताजी कहते हैं कि उसने यहां तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत की। एक बार तो गिरिश थक गया और बोला कि में हैंडीकेम हूं और दूसरे एथलीटों को चुनौनी नही दे सकता। लेकिन इसी वक्त कर्नाटका स्पोर्टस एसोसिशन के कोच ने उसे मनौवैज्ञानिक रूप से इतना मजबूत बना दिया कि कभी उसने अपनी विक्लांगता के बारे में नही सोचा। लेकिन आज हमें इस बात का दुख है कि दूसरे आॅलंपिक मेण्डल धारकों की तरह सरकारों और आयोजकों ने सम्मान नही दिया।

समाज विक्लांगों के टैलेंट को जाने
गिरिश कहते हैं कि हमारा समाज विक्लांग लोगों के टैलेंट को आज भी उस नजर से नही देखता जिस नजर से नाॅर्मल लोगों को लिया जाता है। आज लोगों को उनकी लाइफ के साथ भावुकता का जुड़ाव दिखाने के साथ ही इस टैलेंट को वास्तविक टैलेंट मानने की जरूरत है।

अब हम बात करते हैं टीवी रीयलटी शो इंडिया गाॅट टैलेंट की, जिसमें कई शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हर उम्र के लोग अपने टैलेंट से लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। इनमें से कमल किशोर शर्मा भी एक हैं। जिनकी उम्र 53 साल है। वो बोल नही सकते, सुन नहीं सकते, लेकिन फिर भी वो हर उस इंसान की तरह जी रहे हैं जैसे नाॅर्मल इंसान अपनी जिंदगी को जीता है। बल्कि उनके पारिवारिक जीवन को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे जिंदगी में कोई कमी है ही नही।

ख्वाहिश दुनिया को अपना टैलेट दिखाने की
वैसे तो एक इंसान जो सुन नही सकता, बोल नही सकता उसकी पारिवारिक और सरकारी नौकरी को देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है। कमल जी का भरा पूरा परिवार हमें दिखाता है कि विक्लांगता को ओढ़ना नही चाहिए। आज कमल जी एक नाॅर्मल इंसान की तरह अपनी सरकारी नौकरी करते हैं। उनके अपने प्यारे बच्चे हैं। मगर उनकी ख्वाहिशें आज भी रूकने का नाम नही ले रहीं। उनकी एक ख्वाहिश थी कि इंडिया गाॅट टैलेंट में जाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना। जिसे पूरा करने के लिए वो पहुंचे अपने परिवार के साथ इंडिया गाॅट टैलेंट में। जहां जज और दर्शक उनके टैलेंट के कायल हो गये।

परिवार ने दिया हर कदम पर साथ
कमल किशोर कहते हैं कि मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा। चाहें मेरा बचपन हो जिसमें मेरे मम्मी-पापा ने मुझे कभी भी अलग नही समझा। मुझे कभी भी मेरी कमजोरी का अहसास नही होने दिया। आज भी मेरी पत्नी और मेरा बेटा हर वक्त मेरे साथ खड़े होते हैं।

कहानी रीयलटी शो की
टीवी पर रीयलटी शो को देखते हुए मेरे मन में आया कि मैं भी यहां अपना टैलेंट दिखा सकता हूं। जब मैने ये बात अपने बेटे और अपनी पत्नी से बताई तो वो एकदम से खुश हो गये। मेरा बेटा गौरव शर्मा मेरे साथ इंडिया गाॅट टैलेंट में मेरे साथ आया। मुझे यहां आकर अपने आप पर अब तो इतना विश्वास हो गया कि मैं वो हर काम कर सकता हूं जो एक आम इंसान कर सकता है।

कमल किशोर कहते हैं कि मैं उन लोगों से एक बात ही कहना चाहता हूं जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं, वो कोई भी कार्य करते वक्त ये ना सोचें कि मैं ये काम नही कर सकता बल्कि ये सोचें कि मैं ये काम कैसे कर सकता हूं।
आपने हमारे साथ हमारे दो हीरो के बारे में जाना कि कैसे उन्होंने अपनी कमजोरी को कभी भी अपने रास्ते में नहीं आने दिया। कैसे वो सफलता सीढि़ चढ़ते चले गये। तो फिर आप क्यों नही कर सकते ऐसा। तो आज से ही रखिए अपने जीवन में एक टार्गेट। क्योंकि इस टार्गेट को प्राप्त करने के लिए आपके साथ होगी हमारे इन हीरोज की प्रेरणा।  
     

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

गाइडिंग फोर डाइटिंग के फंडे


नेहा मल्होत्रा एक पीआर हैं। बहुत सारी चीजों को एक साथ मैनेज करना होता है उन्हें। लेकिन इस मैनेजमेंट में वों कहीं ना कहीं खुद का ध्यान रखना भूल जाती हैं। एक दिन अचानक उनकी एक पुराने मित्र से मुलाकात हुई। तब उस दोस्त ने बताया कि आप थोड़ी हैल्दी लग रही हैं। इसके बाद कैयरिंग नेहा ने तुरंत डाइटिंग करने का मन बना लिया। लेकिन वनज कम करने के चक्र में वो अचानक ही बीमार पड़ गईं। क्योंकि नेहा को डाइटिंग का सही तरीका पता नही था। आपके साथ भी ऐसा हो सकता है। तो इसी को जानने के लिए हम बता रहे हैं अपने एक्सपर्ट के साथ सही डाइटिंग के कुछ फंडे।

मेदान्ता अस्पताल की वरिष्ठ डाबेटीशियन डाॅ. शुभदा भनौत बतातीं है कि वजन कम करने के चक्कर में हम बिना सोचे समझे डाइटिंग करने लगते हैं। इस तरह वजन कम हो न या हो, लेकिन बाद में उसके साइड इफेक्ट्स जरूर भुगतने पड़ते हैं। इसलिए डाइटिंग शुरू करने से पहले इससे जुड़े कुछ मिथ्स जरूर जान लें।

फैट फ्री डाइट अच्छी है 

वजन कम करने के लिए आप फैट इनटेक को कम करना चाहते हैं, तो डाइट में से फैट्स एकदम हटाने की जरूरत नहीं है। डाइटिशंस का कहना है कि खाने में एक पर्याप्त मात्रा में फैट्स होने जरूरी हैं, जो एनर्जी लेवल को बनाए रखने, टिश्यू रिपेयर और विटामिंस को बॉडी के सभी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए जरूरी हैं। इसलिए डाइट में से फैट्स को पूरी तरह हटाने के बजाय आप मक्खन जैसे सैचुरेटेड फैट्स को अवॉइड करें और इसकी जगह ऑलिव ऑयल यूज करें।

रात को देर से खाना वजन बढ़ाता है 

यह बात अक्सर कही जाती है कि रात को 7-8 बजे के बाद कुछ नहीं खाना चाहिए। दरअसल, यह बात इतना मायने नहीं रखती कि आप डिनर कितने बजे ले रहे हैं, बल्कि मुद्दा यह है कि आप खा क्या रहे हैं! यह जरूरी नहीं है कि रात को खाने से बॉडी में फैट जमा होता है। बस, इस बात का ध्यान रखें कि सोने से कुछ घंटे पहले ही खाना खा लें, ताकि सोने से पहले यह अच्छी तरह पच सके।

खास चीजों को अवॉइड करते हैं 

खाने की चीजों को लेकर बहुत सी गलत धारणाएं हैं कि अगर आप वजन कम करना चाहते हैं, तो कुछ खास चीजें आपके लिए अच्छी हैं और कुछ खास खराब। अगर फल, सब्जियां और नट्स हेल्दी ऑप्शंस हैं, तो जरूरी नहीं कि कार्बोहाइड्रेट्स को आप अपने खाने से पूरी तरह हटा दें। ऐसे में ब्रेड, पास्ता और चावल खाने में कोई बुराई नहीं है।

स्लो मेटाबॉलिज्म एक समस्या है 

यह उन लोगों के लिए एक कॉमन मिथ हैं, जिनका वजन कुछ किलो बढ़ गया है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि आप जितने बड़े हैं, उतनी ही एनर्जी आपकी बॉडी को काम करने के लिए चाहिए होती है। लोगों का वजन तभी बढ़ता है, जब वे खाने में मिलने वाली कैलरीज पूरी तरह बर्न नहीं करते। बेशक ऐसा हमारी आरामदायक लाइफस्टाइल की वजह से होता है।

क्रैश डाइटिंग ही उपाय है 

ड्रास्टिक डाइट से वजन भले ही थोड़े से समय में कम हो जाता है, लेकिन बाद में इससे काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। डॉक्टर्स का कहना है कि वजन कम करने का यह एक अनहेल्दी तरीका है। इस तरह न सिर्फ फैट्स कम होते हैं, बल्कि मसल्स व टिश्यूज पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। फिर क्रैश डाइटिंग से कमजोरी भी आती है। इससे बचने के लिए स्लो और सस्टेन वेट लॉस प्लान फॉलो करें। इससे भले ही आपका वजन धीरे धीरे कम होगा, लेकिन आप उसे लंबे समय तक मेनटेन कर पाएंगे।

कुछ जरूरी बातें
ज्यादा देर भूखे रहने की बजाय थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ खाने की आदत डालिए। अधिक भूख आपको एक साथ ज्यादा खाने को भी प्रेरित कर सकती है। थोड़ी थोड़ी देर में कुछ खाने से पेट भरा हुआ लगेगा।

क्या करें
अपनी फूड हैबिट बदलिए। रोस्टेड और उबले खाने को तवज्जो दीजिए। ज्यादा से ज्यादा फल और हरी वेजिटेबल्स को सैलेड के रूप में खाइए।
खाने से पहले सूप लेना अच्छा रहेगा। इसमें मक्खन और मसाले न डालें।
डिनर सोने से तीन घंटे पहले करें। खाना खाने के तुरंत बाद बेड पर न जाएं।
देर तक चबाकर खाने की आदत अच्छी है और डाइटिंग में हैल्प करती है। मसूढ़ों की एक्सरसाइज के साथ कम खाने की आदत डेवलेप होती है।
दिन में पानी खूब पीएं। वाटर इनटेक से आपका पेट भरा भरा लगेगा और आपकी बॉडी को डिहाइड्रेट नहीं होने देगा।
कोल्ड और सॉफ्ट ड्रिंक के साथ चिप्स, क्रैकर, सॉल्टी नमकीन और चॉकलेट को बॉय बॉय कर दें।
अगर आप भी नेहा की तरह डाइटिंग के साइड इफेक्ट से बचना चाहतीं हैं तो स्टोरी में बताई गई बातें आपकों काफी लाभ पहुंचा सकती हैं।

गठिया और जोड़ों के दर्द से कैसे पायें निजात


  जैसे ही हमारे बुजुर्ग पचास साल की उम्र के करीब पहुंचते हैंए उन्हें हडिडयों और जोड़ों का दर्द परेशान करने लगता है। ऐसे में बुजुर्ग ना तो सीढि़यां चढ़ पाते और ना ज्यादा दूर तक बिना सहारे के चल.फिर पाते हैं। इसकी शुरुआत घुटनों में हल्के दर्द के साथ होती है। धीरे.धीरे यह दर्द हाथों की अंगुलियों के जोड़ों में भी आ जाता है। यह दर्द हिलने.डुलने से बढ़ता जाता है। तो आइएए हम बताते हैं आपको अपने एक्सपर्ट के साथ कि कैसे जोड़ों के दर्द से निजात पायी जा सकती है।

एलएलएम अस्पताल के हडडी रोग विशेषज्ञ डाॅण् अनुराग जैन बताते हैं कि हड्डी और जोड़ों का दर्द बहुत तकलीफदेह हो सकता है। इनमें से कुछ समस्याओं के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है। अधिकांश समस्याएं दवाओं से ठीक हो जाती हैं। लेकिन जोड़ों का दर्द ऐसा होता है जो बुढ़ापे में पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन इसके साथ आप कुछ उपाय करके बिना परेशानी के अपना जीवन जी सकते हैं।

हड्डियों के दर्द का कारणः 
हड्डियों का दर्द चोट या इन दूसरी परिस्थितियों के कारण होता हैए जैसे.
   
बोन कैंसर वह कैंसर जो हड्डियों तक फैल चुका हो जिसे मेटास्टेटिक मैलिग्नेंसी कहते हैं।
   
हड्डियों को रक्त की आपूर्ति में अवरोध जैसा कि सिकल सेल एनीमिया में होता है।
   
हड्डियों में संक्रमण जिसे ऑस्टियोमायलिटिस कहा जाता है।
   
ल्यूकेमिया या रक्त कैंसर भीे दर्द का कारण बन सकता है।
   
हड्डियों में खनिज पदार्थों की कमी या ऑस्टियोपोरोसिस।
   
कैपेसिटी से अधिक श्रम करना।
 
जोड़ों के दर्द के कारणः 
ज्वाइंट पेन या जोड़ों का दर्द चोट या इन अन्य कारणों से हो सकता हैए जैसे.

   
अर्थराइटिसए ऑस्टियोअर्थाराइटिसए रयूमेटॉयडअर्थाराइटिस से जोड़ों में परेशानी हो जाती है।
   
ऑस्टियोकोंड्राइटिस की वजह से भी जोड़ों में दर्द होने लगता है।
   
सिकल सेल रोग या सिकल सेल एनीमिया भी जोड़ों में दर्द का कारण बन सकता है।
   
स्टेरॉयड ड्रग भी कुछ लोगों में परेशानी का कारण बन जाती हैं क्योंकि कभी.कभी ये बहुत अधिक मात्रा में ले ली जाती हैं जो नुकसानदायक होती हैं।
   
कार्टिलेज फटने की वजह से जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है क्योंकि घायल कार्टिलेज की वजह से चलने.फिरने पर दर्द महसूस होता है।
   
जोड़ों का संक्रमण भी जोड़ों के दर्द का कारण बन जाता है।
   
ट्यूमरः अगर किसी जोड़ की जगह टयूमर बन गया तो उससे चलने.फिरने में बहुत परेशानी होती है।
   
घिसा हुआ लिगामेंटः उम्र बढ़ने के साथ.साथ जोड़ों का लिगामेंट घिस जाता है। जिससे सही तरीके से जोड़ काम नहीं कर पाते और दर्द महसूस होता है।
   
कार्टिलेज का घिसनाः उम्र के साथ ज्यादातर बुजुर्गों के घुटनों का कार्टिलेज घिस जाता है। इससे घुटने सही तरीके से काम नहीं कर पाते।

हड्डियों और जोड़ों के दर्द के लक्षण हैं

   
चलनेए खड़े होनेए हिलने.डुलने और यहां तक कि आराम करते समय भी दर्द।
सूजन और क्रेपिटस।
चलने पर या गति करते समय जोड़ों का लॉक हो जाना।
जोड़ों का कड़ापनए खासकर सुबह में या यह पूरे दिन भी रह सकता है।
वेस्टिंग और फेसिकुलेशन।
अगर बुखारए थकान और वजन घटने जैसे लक्षण होंए तो कोई गंभीर अंदरूनी या संक्रामक बीमारी हो सकती है। ऐसे में आपको डॉक्टर से तुरंत बात करनी चाहिए।

जांच और रोग की पहचान
डॉण् अनुराग बताते हैं कि रोग की पहचान करने के लिए आपके चिकित्सकीय इतिहास के बारे में पूछा जाता है और शारीरिक जांच की जाती हैं। चिकित्सकीय इतिहास में दर्द की जगहए दर्द के समयए पैटर्न और किसी भी अन्य संबंधित तथ्य से जुड़े सवाल पूछे जा सकते हैं। इनमें से कोई एकए या अधिक जांच किये जा सकते हैंण्

हड्डियों और जोड़ो का एक्स.रेए जिसमें हड्डियों का एक स्कैन शामिल है।
हड्डियों और जोड़ो का सीटी या एमआरआई स्कैन।
होर्मोन के स्तर का अध्ययन।
पिट्यूटरी और एड्रीनल ग्रंथि की कार्यक्षमता का अध्ययन।
यूरीन का अध्ययन

उपचार
जोड़ों के दर्द को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अगर आपकी समस्या उग्र या साधारण हैए आप ओटीसी दर्दनिवारकों का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन अगर आपका दर्द लगातार बना हुआ है या किसी चोट या कटने या सर्जरी के बाद शुरू हुआ हैए तो डॉक्टर से मिलें।

पोषक तत्वः
इससे बचने के लिए विशेषज्ञ अपने आहार में ऐसे फलों और सब्जियों को शामिल करने की सलाह देते हैं जिनमें विटामिनए एंटीऑक्सीडेन्ट्स और पौष्टिक तत्व उचित मात्रा में मौजूद हों। कुछ खाद्य.पदार्थो का सेवन और कुछ बातों का ध्यान रखकर इस रोग पर काबू पाया जाया सकता है।

आराम करना और गर्म सेंक देनाः 
साधारण चोट या मोच में आराम और गर्म सेंक के उपयोग से दर्द से राहत पाने में सहायता मिलती है।

व्यायामः 
सामान्य हल्के व्यायाम अर्थाराइटिस या फाइब्रोमाइल्जिया के रोगियों में जोड़ों की गतिशीलता बढानेए दर्द घटाने और दुखती कड़ी मांसपेशियों को आराम पहुंचाने में मदद करते हैं। अगर ये उपाय आपको राहत नहीं दे पाते तो डॉक्टर से मिलें।

इसके अलावा भी कुछ घरेलू उपचार हैं.
अदरक जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने के लिए बहुत कारगर है। रोजाना दो सौ ग्राम अदरक दो बार लेने से दर्द में बहुत राहत मिलती है।
फूलगोभी का रस पीते रहने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
जोड़ों पर नीबू के रस की मालिश करने से और रोजाना सुबह एक गिलास पानी में एक नीबू का रस निचोड़ कर पीते रहने से जोड़ों की सूजन दूर हो जाती है और दर्द नहीं रहता।
जोड़ों में दर्द के समय या बाद में गर्म पानी के टब में कसरत करें या गर्म पानी के शॉवर के नीचे बैठें। आपको निश्चित ही राहत मिलेगी।
दर्द घटाने के बामए क्रीम आदि बार.बार इस्तेमाल न करें। इनके द्वारा पैदा हुई गर्मी से राहत तो मिलती हैए पर धीरे.धीरे ये नुकसान पहुंचाते हैं।
कभी भी दर्द निवारक बाम लगाकर उस पर सेंक न करें। इससे जलन बहुत बढ़ सकती है।
जोड़ों के दर्द के लिए चमत्कारिक दवाएं तेल या मालिश वगैरह के दावे बहुत किए जाते हैं। इनको इस्तेमाल करने से पहले एक बार परख लें।

अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान है तो स्टोरी में बताई गई बातें आपको काफी हद तक लाभ पहुचायेंगी। तो आप इन बातों को अपनाकर काफी हद तक जोड़ों के दर्द से निजात पा सकते हैं।






कहीं आपका पर्स तो नही है बैक पेन की वजह


राहुल मल्होत्रा एक इंटरनेशन काॅल सेंटर में जाॅब करते हैं। आॅफिस में ज्यादातर वक्त उन्हें अपनी चेयर पर बैठकर ही काम करना होता है। वो अपने बैठने के तरीके और आरामदायक चेयर का खास ख्याल रखते हैं। लेकिन फिर भी राहुल को कमर दर्द की शिकायत रहती है। वो परेशान होकर डाॅक्टर के पास गये। डाॅक्टर ने भी उनको आॅफिस में आरामदायक चेयर और सही तरीके से बैठने की सलाह दी। लेकिन एक दिन राहुल को अपनी पिछली जेब में रखे पर्स से, बैठने में परेशानी महसूस हुई। तो उन्होंने सोचा कहीं इसी पर्स की वजह से उनकी रीढ की हडडी में दर्द तो नही होता। जब उन्होंने डाॅक्टर से इसके बारे में बात की तो डाॅक्टर ने बताया कि हां आपका पर्स भी आपके कमर दर्द का कारण हो सकता है।

ये कुछ ऐसा है जिस पर हम रोजमर्रा की, भागती दौड़ती जिंदगी में ज्यादा ध्यान नहीं देते। लेकिन ये वाकई आपकी रीढ़ की हड्डी में दर्द पैदा कर सकता है। इसके अलावा भी कई तरह की परेशानियां खड़ी कर सकता है, खासतौर से उन लोगों के लिए जो राहुल की तरह देर-देर तक कुर्सी पर बैठ कर काम करते हैं। ये तो आप जानते ही होंगे कि कैसे कमर दर्द में चलना-फिरनाए बैठना-झुकना सब मुहाल हो जाता है। ऐसे में इस दर्द से राहत पाने के लिए पहले इसके कारण समझेंगें, फिर निजात पाने के आसान तरीकों को जानेंगे।

कैसे बनता है पर्स, दर्द की वजह

जब आप पर्स को पिछली जेब में रखे हुए, कुर्सी पर बैठते हैं तो ऐसे में वो एक पत्थर की तरह काम करता है। ऐसा लगता है जैसे आप लकड़ी के एक गुटखे पर बैठे हैं। लेकिन आप काम की व्यस्तता की वजह से इस ओर ध्यान नही दे पाते। इससे आपके बैठने का बैलेंस बिगड़ जाता है। जिससे आप अपने शरीर को आरामदायक स्थिति में नही रख पाते। इससे आपको बैक पेन और रीढ की हडडी की समस्या तो होती ही है, पैरों में भी कई तरह की समस्या पैदा हो सकतीं हैं। आप अगर पर्स को पीछली जेब में रखकर गाड़ी भी ड्राइव करते हैं तो भी वो आपके लिए खतरनाक हो सकता है।

क्या होता है पर्स पर बैठने से
इबहास अस्पताल के न्यूरोफिजियोथेरेपिस्ट डाॅक्टर अनिल सारस्वत बताते हैं, जब आप पर्स पर बैठे हैं तो समझों एक लकड़ी के टुकड़े पर बैठे हैं। इससे अपकी सीएटिक नर्व सिकुड़ जाती है। जिसकी वजह से प्रिफोर्मिंग सिड्रोम को सकता है। इससे रीढ की हडडी और कमर में कई तरह की परेशानियां पैदा हो जाती हैं। इसके अलावा आपके पैरों को जाने वाली ब्लड वैसल्स पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे आपके पैरों में कई तरह की परेशानियां हो सकतीं हैं।

क्या करें क्या ना करें
डाॅक्टर अनिल बताते है कि कुछ लोगों में पर्स पिछली जेब में रखना एक पेशन सा बना गया है। इसी वजह से वो भूल जाते हैं कि बैठते वक्त पर्स को जेब से निकालना चाहिए। इसलिए आप जब भी बैठें पर्स को जेब से निकालकर ही बैठें।
ऐसे में हो सके तो पर्स को जेब की वजाय बैग में रखने की आदत डालें क्योंकि इससे आपका पर्स भी सुरक्षित रहेगा और आप भी सेफ रहेंगे।
अगर आप आॅफिस में चेयर पर बैठने जा रहे हैं तो बैठने से पहले पर्स को ड्रायर में रख दें।
कुछ लोग गाड़ी चलाते वक्त भी पर्स को पिछली जेब में ही रखते हैं। इसलिए गाड़ी चलाते वक्त पर्स को निकालकर ही गाड़ी ड्राइव करें।
इसके अलावा भी हमारी छोटी-छोटी आदतें कमर दर्द का सबब बन जाती हैं जैसे क्षमता से अधिक काम, गलत तरीके से उठना-बैठना, अधिक बोझ उठाना, काम करते समय घंटों पानी में भीगना वगैराह। इसलिए इनका भी खास ख्याल रखें।
अगर आप काम के साथ साथ कुछ ऐसी छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें तो वाकई आप अपने आप को काफी हद तक कई तरह की बीमारियों से बचा सकते हैं।




क्या आपको पता है इनसे भी है सीओपीडी का खतरा


सीओपीडी यानि क्रोनिक प्रतिरोधीय फुफूसीय रोग अब ऐसी बीमारी बन गई है जो बुजुर्गों से लेकर युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है। ये बीमारी आज दुनिया में असमय मौत की चैथी वजह बन गई है। जैसे-जैसे शहरों और कस्बों में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है वैसे-वैसे ये बीमारी और अधिक लोगों को अपने चपेट में ले रही है। घरों में खुली हवा का ना पहुंचना और पार्कों का न होना सांस की बीमारियों की बड़ी वजह बन रहा है।

16 नवंबर को सीओपीडी दिवस है। ये एक ऐसी बीमारी है जो हर उम्र के लोगों को किसी भी समय हो सकती है। ऐसे में हमें खुद का और अपनों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है। क्योंकि ये ऐसी बीमारी है जो कई दूसरे कारणों की वजह से भी आपके शरीर को अपना घर बना सकती है। तो आईए इन्हीं कुछ कारणों में से आपको बताते हैं कि क्यों बन जाते हैं ये सीओपीडी की वजह।

निमोनिया 
निमोनिया दोनों फेफड़ों में होने वाला संक्रमण होता है। जो कई तरह के माईक्रोआॅर्गेनिज्म की वजह से होता है जैसे कई बैक्टीरिया, वायरस और फंजाई। निमोनिया में कफ के साथ फीवर और सांस लेने के साथ चेस्ट पेन होता है। निमोनिया में आपके डाॅक्टर आपकी चेस्ट में एबनाॅर्मल साउंड सुनता है। इसके बाद चेस्ट के एक्स-रे से निमोनिया को कन्फर्म किया जाता है। बैक्टीरिया और फंगल से होने वाले इंफेक्शन को तो एंटिबायोटिक से काबू में लाया जा सकता है, मगर वायरल इंफेक्शन के लिए डाॅक्टर दूसरे मेडिसिन का प्रयोग भी करते हैं। क्योंकि निमोनिया से ब्रोंकिट्स पर सीधा सीधा असर पड़ता है। इसकी वजह से सीओपीडी होने का बहुत बड़ा चांस रहता है।

फेफड़े का कैंसर
लंग कैंसर भी दूसरे कैंसर की तरह ही होता है। इसमें फेफड़े की कोशिकाएं अनियमित वृद्धि शुरू कर देतीं हैं। दूसरी कोशिकाओं की तरह कैंसर कोशिकाओं पर शरीर का नियंत्रण नही रहता। इसकी वजह से ये कोशिकाएं मांस यानि बढ़ी हुई कोशिकाओं का एक गुच्छा बना लेती हैं जिसे ट्यूमर कहा जाता है। कैंसर कोशिकाएं दूसरी कोश्किाओं को भी अपनी चपेट में ले लेती हैं। इसके बाद शरीर के उस भाग पर जहां ट्यूमर होता है कैंसर कोशिकाएं उस भाग पर अपना पूरा अधिकार जमा लेती हैं। जिससे वो पार्ट शरीर के अनुसार काम नही कर पाता। फेफड़े का कैंसर फेफड़े की पूरी कार्यविधि को ही डिस्टर्ब कर देता है। क्योंकि फेफड़े का प्राईमरी काम है गैस का एक्सचेंज करना। जिसमें स्वच्छ वायु को हवा से लेकर ब्लड तक पहुंचाना और अस्वच्छ वायु को शरीर से बाहर निकालना। अगर फेफड़े ही अपना काम सही से नही कर पायेंगे तो ऐसे में सांस लेने में कई तरह की परेशानियां पैदा हो सकती हैं। जिसकी वजह से आपको सीओपीडी का खतरा पैदा हो सकता है।

क्रोनिक कफ
वैसे तो डाॅक्टर क्रोनिक कफ को अपने में कोई बीमारी नही मानते। लेकिन कफ लगातार और बार बार आ रहा है तो ऐसे में परेशानी का कारण बन सकता है। क्रोनिक कफ की कई वजह हो सकती हैं जिनमें साइनस समस्या सबसे अहम है। स्टमक कंटेंट का इसोफैगस रिफलैक्स भी क्रोनकि कफ पैदा कर सकता है। इसके अलावा हवा के साथ फेफड़े में किसी बाहरी पदार्थ का पहुंचना भी एक कारण हो सकता है खास करके बच्चों में। सिगरेट का धंुआ क्रोनिक कफ की सबसे बड़ी वजह होती है। अगर क्रोनिक कफ लंबे वक्त तक रहता है तो ऐसे में सीओपीडी का खतरा पैदा हो सकता है।

चेस्ट पैन
चेस्ट पैन की कई वजह हो सकतीं हैं, जिनमें कुछ बहुत ज्यादा सीरियस नहीं होतीं। चेस्ट पैन डाइग्नोस्ट करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दिल में दर्द किस वजह से है। क्या दिल में दर्द दिल के दौरे की वजह से है या फिर पल्मौनरी वैन की कोई वजह है या दूसरा कोई कारण जो जिंदगी और मौत की वजह बन सकता है। अगर चेस्ट पैन लंबे वक्त तक रहता है तो ये जरूरी है कि इसे सही तरह से डाइग्नोंस्ट किया जाये। क्योंकि ये कई दूसरी परेशानियों का कारण भी बन सकता है। जिसमें सीओपीडी भी एक वजह हो सकती है।

अस्थमा
कई लोगों में एक काॅमन बात हो जाती है जिससे अचानक से ही सीनीजिंग और ब्रैथ छोटी होने लगती है। वैसे सांसों का छोटा होना 60 साल की उम्र में दिखाई देता है लेकिन अब ये समस्या बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों सभी में दिखाई दे रही है। जिसकी सबसे बड़ी वजह है, वायुमण्डल में बढ़ता धूंआं और स्मौकिंग की लत के अलावा खुली हवा का ना मिल पाना। जिसकी वजह होती हैं अस्थमा। क्योंकि इसे पूरी तरह से ठीक तो नही किया जा सकता इसलिए इससे कई दूसरी बीमारियां होने का भी खतरा रहता है जिनमें से सीओपीडी भी एक है।
 



बुधवार, 7 नवंबर 2012

क्या आपका पक्षी भी है अवसादग्रस्त है ?


अनीता सहगल मीडिया कर्मचारी हैं। जिनका ज्यादातर वक्त बाहर बीतता है, ऐसे में वो दिमागी रूप से भी काफी थक जाती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अनीता ने एक प्यारा सा तोता अपने घर अपना दोस्त बना रखा है। जिसे बड़ा ही प्यारा नाम दे रखा है पिंटू। उन्हें घर पर तोते से बातें करना काफी पसंद है। लेकिन अचानक से उनका पिंटू सुस्त और उबासी करने लगा। बातें करतें वक्त भी वो एनर्जेटिक दिखाई नही देता। क्योंकि पिंटू नियमित तरीके से खाना खा रहा था। ऐसे में अनीता जी को कुछ भी समझ में नही आ रहा था। जब वो उसे डाॅक्टर के पास ले गईं तो डाॅक्टर ने बताया आपका पक्षी अवसादग्रस्त है। अनीता जी सोचने लगीं क्या पक्षी भी अवसादग्रस्त होते हैं। जी हां ये आपके पक्षी के साथ भी हो सकता है। इसी को जानने के लिए कि क्यों हो जाते हैं पक्षी अवसादग्रस्त हम बता रहे हैं आपको आपने एक्सपर्ट के साथ।
ये काफी हद तक संभव है कि आपका पालतू पक्षी अवसादग्रस्त हो गया है। ये पक्षियों में काॅमन बात है जिसकी काफी वजह हो सकती हैं जैसे-

भूख की कमी-
आगर आपका पक्षी सही तरह से खाना नही खा रहा है तो ऐसे मेे उसे पूरी एनर्जी नही मिल पाती जिससे शरीर में कई सारे पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे भी आपका पक्षी सुस्त रह सकता है।
बीट में बदलाव- अगर आपके पक्षी की बीट में बदलाव दिखाई दे रहा है तो समझ लो उसे कोई ना कोई परेशानी है। ऐसे में तुरंत डाॅक्टर के पास ले जान चाहिए।

चिड़चिड़ापन- 
अगर आपको लग रहा है कि आपका पक्षी सही तरीके से व्यवहार नही कर रहा है तो ऐसे में उसे कोई परेशानी जरूर है। इसलिए तुरंत उसकी जांच कराने की जरूरत होती है।

पंखों का टूटना- 
अक्सर आपने देखा होगा पालतू पक्षियों के पंख अचानक से टूटने लगते है। पंखों का टूटना पक्षी के शरीर में कई रसायनिक तत्वों की तरफ इशारा करता है। इसलिए जरूरी है कि आपको तुरंत अपने डाॅक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इससे आपका प्यारा पक्षी कही ना कही अवसादग्रस्त हो सकता है।

क्या करें
इनमें से कोई भी लक्षण के दिखाई देने पर आप तुरंत अपने एवियन वैट चिकित्सक से फुल चैकअप का एपोंईटमेंट लें। अगर आपका डाॅक्टर पक्षी के अवसादग्रस्त होने का कोई भी चिकित्सकीय कारण बताता है तो तुरंत डाॅक्टर के बताये अनुसार अपने पक्षी का ध्यान रखें।
सबसे पहले ये देखें कि आपके पक्षी के रहने की जगह स्वच्छ और आरामदायक है। अधिकतर ऐसा होता है कि पक्षी अपने रहने की जगह के साफ ना होने की वजह से भी अवसादग्रस्त हो जाता है। ऐसे में ध्यान रहे कि नियमित तौर पर पिंजरे की सफाई की जाये। आप पिंजरे को एक ही जहग ना रहने दें। आपने अनुसार पिेंजरे की जगह को बदलते रहें।
आपको पता है अगर आपके पक्षी को खेलने कूदने के साथ पर्याप्त उत्तेजना ना मिले तो वो अवसादग्रस्त हो सकता है। इसलिए सुनिश्चित करें कि वो पूरे मजे में रहे और खेलने कूदने के उसे पर्याप्त खिलौने मिलें जिससे वो हर पल का पूरा आनंद ले सके। उसे पर्याप्त समय के लिए पिंजरे से बाहर निकाले जिससे वो हमेशा एनर्जेटिक बना रहेगा।
सुनिश्चित करें कि आपका पक्षी परिवार के साथ खेले। परिवार के सदस्य बारी बारी से उसके साथ पर्याप्त समय बितायें। इससे उसे पिंजरे से बाहर निकलने का भी पूरा वक्त मिल जायेगा और उसके व्यायाम भी हो जायेंगे।
अगर आप स्टोरी में बताई गई बातों पर ध्यान देंगे तो आप आपने पक्षी को अवसादग्रस्त होने से बचा सकते हैं।