गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

दीवाली : कैसे करें कैलरी कट

खूब सारे पटाखों का शोर और उस पर मिष्ठानों को खाने की होड़ में, सेहत का हाल ख़राब हो जाता है। आज हम कुछ ऐसी बातों पर चर्चा करेंगे जिसकी मदद से आप आसानी से इन कैलरी लोडेड खाने और मिठाइयों से कैलरी को कट कर पाएंगे। आइये, जानते है कैसे:

क्या आप घर में रखी मिठाई को देख कर अपने पर कण्ट्रोल नहीं कर पाते है तो हम आपको बताते कि कैसे आप दीवाली में इतनी कैलरी के बीच भी फिट रह सकते है।

मिठाइयों को बाटें : 

आपके घर पर जितने भी मिठाई के डिब्बे आते है उन्हें घर पर स्टोर करने की बजाय अन्य लोगो में बाँट दे। ताकि आप अनचाही कैलरी से बच सके। अगर आपके घर में मिठाई के डिब्बों कि भीड़ ही नहीं होगी तो आप अनचाही कैलरी का सेवन करने से भी बच जायेंगे। अगर आप सोच रहे है कि आप सभी के लिए मिठाई खरीद चुके है तो परेशान न हो। आपके घर पर काम करने वाले कर्मचारियों को घर पर आई मिठाई दे सकते है या फिर आप उन्हें गरीबों में भी बाँट सकते है।

शुगर फ्री को अपनाएं :

बाज़ार में आपको बड़ी ही आसानी से शुगर फ्री मिठाइया मिल जाएँगी। यह मिठाइयों की मिठास भी बनी रहती है और  इनमे कैलरी भी कम होती है।

समझदारी दिखाएं :

इस दिन बनने वाले व्यंजनों को तैयार करने के लिए लो फट आयल का प्रयोग करें। घी में पकवानों को न बनाये। हलके तेल जैसे सूरजमुखी का तेल या कोई अन्य रिफाइंड आयल का ही प्रयोग करें। साथ ही मिठाइयों को खाने से बेहतर है कि आप ड्राई फ्रूट्स का सेवन करें। इसमें कैलरी तो होती है मगर यह स्वास्थ्यकारी होते है।

इसके अलावा, आप पकवानो को कुछ इस तरीके से तैयार करें जिसमे कम तेल और कम फैट हो।

खूब पानी पिएं :

दीवाली के प्रदूषण से और बेकार के कचर-पचर से बचने ले लिए पानी पिए। खूब सारा पानी या तरल पदार्थ का सेवन करने से आपको लगने वाली चुटुर-पुटुर भूख मर जायेगी और आप अनचाही कैलरी का सेवन करने से बच जाएंगे।

कम खाएं :

अगर आप अपने आप पर कण्ट्रोल रख सकते है तो दीवाली पर बने पकवानो को खाने से बचे या फिर अगर आप इनका सेवन करना चाहे तो कम मात्रा में ही इनका सेवन करें। कम मात्रा में खाने से आप पकवान का स्वाद भी चख पाएंगे और कैलरी से भी बच जायेंगे।

त्यौहार मनाएं, मगर अपनी सेहत को दांव पर मत लगाये। इस साल दीवाली के दिन पटाखों के साथ साथ अपनी कैलरी को भी जलाये और फिट बन जाएं।


गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

समझे पीडियाट्रिक स्ट्रोक को

ऐसा माना जाता है कि स्ट्रोक की समस्या केवल बुजुर्गों की समस्या होती है जबकि वास्तविकता यह है कि बच्चों को भी स्ट्रोक हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि केवल बच्चे ही नहीं बल्कि नवजात शिशु भी इसके शिकार बन सकते है। बच्चों में होने वाले स्ट्रोक को पीडियाट्रिक स्ट्रोक के नाम से जाना जाता है। बच्चे अक्सर अपनी समस्याओं को व्यक्त नहीं कर पाते है जिस कारण  स्ट्रोक बच्चो को ज्यादा प्रभावित कर सकता है। आइयें इस विषय को और गंभीरता से समझते है। 

लक्षण:
  • नवजात शिशुओं के शरीर में अकड़न आना 
  • सिर में दर्द होना 
  • बात करने में कठिनाई का होना 
  • शब्दों का साफ़ उच्चारण करने में कठिनाई होना
  • शरीर के एक तरफ के हिस्से में कमजोरी महसूस होना 
  • आँखों की पुतलियों के तारतम्य का बिगड़ना, आदि। 
इलाज :

ऐसा माना जाता है कि स्ट्रोक का इलाज संभव नहीं है। मगर वास्तविकता है यह है कि इसका इलाज पूरी तरह से हो सकता है। स्ट्रोक की समस्या एक ऐसी समस्या है जिसके सही कारणों का पता लगा पाना संभव नहीं होता है। यहीं कारण है कि कई बार इस समस्या का पूरी तरह से इलाज नहीं हो पाता है। और जब बात बच्चों की हो तो यह और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि बच्चे अपने शरीर में होने वाली परेशानी को बयान नहीं कर पाते है। अगर समाया के कारण का पता लग जाएँ तो बड़ी ही आसानी से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। 

प्रभाव : 

स्ट्रोक का प्रभाव बच्चों और बड़ों दोनों पर ही सामान रूप से होता है। जैसे -
  • शरीर के एक तरफ के हिस्से में कमजोरी महसूस होना 
  • शरीर के एक तरफ के हिस्से में लकवा मारना 
  • बोलने में कठिनाई होना 
  • खाने में या निगलने में कठिनाई होना 
  • आँखों की पुतलियों के तारतम्य का ख़राब होना
  • मिर्गी के दौरे का आना, आदि। 
ध्यान रहें बच्चे बड़ों की तुलना में ज्यादा जल्दी इस समस्या से उबर सकते है। मगर जिन बच्चों को या नवजात शिशुओं को स्ट्रोक के बाद मिर्गी के दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है अक्सर उन बच्चों के पूरी तरह से ठीक होने की संभावनाएं थोड़ी सी कम होती है। 

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

बढ़ाएं पैरों की खूबसूरती

हमारे शरीर का आधार पैर होते हैं। और हम सभी चाहे बात पैरों के स्वास्थ्य की हो या फिर पैरों की खूबसूरती की, हम दोनों को ही बखूबी नजरंदाज करने में माहिर होते है। मगर पैरों की देखभाल करना इतना भी मुश्किल नही है. आइये आज हम जानते है की कैसे आप अपने पैरों को खुबसूरत बना सकते है। 

सबसे पहले पैरों की साफ़ सफाई को महत्त्व दे। याद रहे कोई भी चीज़ तभी खुबसूरत बनती है जब वह साफ़ हो। इसलिए पैरों का साफ़ रखें। इसके लिए आप हर 15 दिन में एक बार पेडीक्योर करा सकते है। आप चाहे तो आप घर पर भी नियमित रूप से नहाते समय  भी अपने पैरों को साफ़ कर सकते है। 

  • सप्ताह में दो बार अपने पैरों को बॉडी स्क्रब से साफ़ करें। आप चाहे तो आप बाज़ार में मिलने वाले फुट स्क्रब का भी प्रयोग कर सकते है। इसके अलावा आप चाहे तो आप घर में भी स्क्रब बना सकते है। आटे के चोकर में थोडा सा कच्चा दूध मिला कर उससे पैरों को साफ़ कर सकते है। या फिर आप चीनी में थोडा सा गुलाब जल और नीबू का रस डाल कर बने मिश्रण से पैरों को साफ़ कर सकते है। इस मिश्रण को हलके हाथो से मलना है। 
  • पैरों पर जमी गंदगी को रोज फुट क्लीनर से साफ़ करें। 
  • रात में सोते समय पैरों पर फुट क्रीम लगाकर जुराब पहन कर सोयें। 
  • घर में नंगे पैर न घूमें। 
कैसे लगाये चार चाँद :

यह तो बात रही पैरों की साफ़-सफाई की। चलिए अब बात करते है कि कैसे आप अपने पैरों को सुंदर दिखा सकते है। 
  • अपने पैरों पर किसी अच्छे ब्रांड की नेल पोलिश लगाएं। नेल पोलिश के दो कोट अवश्य लगाये। इससे नेल पोलिश का रंग भी अच्चा दिखेगा और उसकी उम्र भी। 
  • आप नेलआर्ट सिर्फ हाथों के नाखुनो पर ही नहीं बल्कि अपने पैरों की उँगलियों पर भी कर सकते है। 
  • टो रिंग यानि बिछुआ आपके पैरों की सुन्दरता को और निखरेगा। बाज़ार में बहुत से आर्टिफीशियल टोरिंग मिलते है जिनके लिए आपको बहुत पैसे भी खर्च नहीं करने पड़ेंगे और यह ट्रेंडी भी होते है। 
  • टो रिंग की ही तरह आप स्टाइलिश पायल से भी अपने पैरों को खुबसूरत बना सकते है। 
  • अंत में एक सुन्दर और आरामदायक सैंडल आपके पैरों की खूबसूरती को पूरा करता है। 
उम्मीद है की आप भी अपने पैरों का पूरा ध्यान रखेंगे और अपने पैरों की खूबसूरती से दूसरों का ध्यान अपनी और खिचेंगे। 

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

दे पहला पौष्टिक भोजन

हम सभी जानते है कि जन्म के बाद नवजात शिशु को छ: माह तक केवल मां का ही दूध देना चाहिए। और उसके बाद हलका फुलका भोजन देना शुरू करना चाहिए। आज हम उस आहार के बारें में चर्चा करेंगे जिससे इन बच्चों को पहला पौष्टिक आहार मिल सके।

दाल:

अक्सर बड़े बुजुर्ग कहते है की बच्चे के भोजन की शुरुआत उसे दाल का पानी पिला कर करनी चाहिए।  मगर वास्तविकता यह है की बच्चे को कदाल का पानी नहीं बल्कि घुली हुई दाल पिलानी चहिये. यानि दाल को कुकर में इतना पक ले की बच्चा आसानी से दाल को पी सके।  इससे आपके बच्चे को दाल के सभी पोषक तत्वों की प्राप्ति होगी।

नारियल पानी और अन्य जूस:

 नारियल पानी हल्का होता है और यह पेट के लिए भी अच्चा होता है इसलिए बच्चे को नारियल पानी पिलाया जा सकता है।  इसके अलावा आप चाहे तो आप बच्चे को घर का बना जूस भी दे सकते है।  अगर आप बच्चे को बाजार का डिब्बा बंद जूस पिलाना चाहते है तो उसे आप "नो एडेड शुगर" वाले जूस पिला सकते है।

दही :

बच्चे को दही दिया जा सकते है। आप बच्चे के स्वाद के अनुसार उसमे नमक या चीनी दाल सकते है।  पर नमक और चीनी का प्रयोग नाममात्र के लिए होना चाहिए।

केला :

केले को कुचल कर उसे अच्छे से पिस ले। आअप चाहे तोह आप केले में थोडा सा दूध मिला कर इसका शेक भी बना कर बच्चे को दे सकते है।

आटा और बेसन का हलवा :

बच्चे के लिए आटा और बेसन का हलवा पतला बनाये ताकि उसे इसे खाने में कठिनाई न हो।

सेब की खीर :

सेब को छील कर उसे कद्दुकस कर ले। अब एक पैन में दूध ले और उसे अच्छे से उबाल ले. दूध उबलने पर उसमे सेब को दाल दे और गैस बंद कर पैन को ढक दे। आप च्चे तोह आप उसमे थोड़ी सी चीनी डाल सकते है।  ठंडा होने पर इसे चम्मच की मदद से अच्छे से मिस ले और बच्चे को खिलाये।

अंडा :

एक साल का होने पर आप अपने बच्चे को अंडा खाने के लिए दे सकते है।  अंडा प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत होता है. आप अपने एक साल के बच्चे को अंडे की भुज्जी या ओम्लेट दे सकते है।

महत्वपूर्ण बात :

  • बुजुर्गों के अनुसार बच्चे मीठा खाना पसंद करते है।  उनकी इस बात को बिलकुल भी न सुने। अपने बच्चे को जितना संभव को संतुलित मात्र में मीठा खाना  दे।  ज्यादा मीठा खाना बच्चो के आने वाले दांतों और स्वास्थ्य दोनों के लिए ही ठीक नहीं होता है। 
  • ध्यान रहें की आपके बच्चे का पेट उसकी मुट्ठी के जितना ही होता है. इसलिए कभी भी बच्चे के साथ खाने के मामले में जबरदस्ती न करें।  आपकी जबरदस्ती आपके बच्चे को जिद्दी बना सकती है।

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

दिमाग शांत करता योग

हम सभी व्यस्त है और हमारी यहीं व्यस्तता अपने साथ तनाव और दिमागी अशांति अपने साथ लेकर के आती है। हममें से बहुत से लोग ऐसे है जो इस बात को बखूबी जानते है की आधे से ज्यादा स्वास्थ्य समस्याओं का कारण कुछ और नहीं बल्कि तनाव है। अब सवाल उठता है कि कैसे आप इस तनाव से लड़ते है? एक्सरसाइज एक ऐसा माध्यम है जिसकी मदद से आप काफी हद तक तनाव को अपने से दूर रख सकते है। आज हम योग कैसे तनाव को दूर कर आपको शांत कर सकता है इस पर चर्चा करेंगे। 

  • योग में सांसों के साथ शरीर का तारतम्य कायम किया जाता है। इसमें न तो अन्य एक्सरसाइज शैली की तरह तेज़ शारीरिक गतिविधियाँ होती है और न ही पसीना व थकान। इसके बावजूद इससे मिलने वाले लाभ अतुलनीय है। जब आप योग करने है तब आपको न सिर्फ शारीरिक लाभ मिलता है बल्कि इसके माध्यम से आपको मन व दिमाग की शांति भी मिलती है। 
  • योग न सिर्फ आपको शांत करता है बल्कि इसकी मदद से आपके ध्यान केन्द्रित करने की मानसिक क्षमता का भी विकास होता है। आप किसी भी चीज़ में कितना अच्छे से ध्यान लगा सकते है इस बात की जानकारी देता है की आपका दिमाग कितना शांत और दृढ संकल्पी है। योग में आप आसनों को साँसों पर ध्यान लगा कर करते है।  साथ ही ध्यान लगाने या मैडिटेशन करने की प्रक्रिया में आप अपने मन और दिमाग पर पूरा नियंत्रण रख कर योग करते है।  यह न सिर्फ आपको अपने ऊपर नियंत्रण कायम करने में मदद करता है बल्कि ये आपको विपरीत परिस्थितियों या कहें की आपको तनाव भरी स्थितियों से भी बाहर निकालने में सहायक होता है।
  • हर उम्र का व्यक्ति बड़ी ही आसानी से इसे कर सकता है।  ऐसा इसलिए है क्योंकि योग में अन्य एक्सरसाइज शैली की तरह उछलना या कूदना नहीं होता है। 
  • यह आपके दिमाग के तनाव के साथ शरीर की मांसपेशियों केतनाव को भी कम करने में सहायक होता है। योग करने से शरीर में लचीलापन बढ़ता है और आपके जॉइंट्स ज्यादा अच्छे ढंग से कार्य कर पाते है। 
किससे करें शुरुआत :
  • प्राणायाम के माध्यम से आप अपनी साँसों के तारतम्य को ठीक आकर सकते है।  आपको यकीं नहीं होगा मगर हम्मे से बहुत से ऐसे लोग है जो गलत ढंग इ सांस लेते है।  जिस कारण वे हमेशा एक तरह की थकान और दबाव महसूस करते है। प्राणायाम की मदद से इस समस्या से निपटा जा सकता है।  सबसे बड़ी बात है की इसे कोई भी आसानी से सिख सकता है। 
ध्यान दे :

योग से बहुत से लाभ मिल सकते है मगर केवल तब जब आप इसे सही ढंग से करें।  गलत तरीके से किये गए योग आपके शरीर को नुकसान पंहुचा सकते है। इसलिए शुरुआत में किसी प्रशिक्षित की मदद ले। उसके बाद आप स्वयं इसे कर सकते है।

हमें उम्मीद है की आप योग क्र अपने दिमाग के तनाव का मुकाबला करने में सफल रहेंगे।  

ब्रैस्ट कैंसर : शुरूआती रोकथाम ही बचाव

ब्रैस्ट कैंसर से बचने का केवल एक ही तरीका है, समय पर इस समस्या का पता चलना। जितना जल्दी इसके होने का पता चल जाये आपके इससे बचने की संभावनाएं भी उतनी ही बढ़ जाती है। हमारे देश में महिलाओं को शिकार बनाने वाले कैंसर के सभी प्रकारों में से ब्रैस्ट कैंसर पहले दो नंबरों में आता है।  

कैसे करें बचाव :

मैमोग्राफी :

यह एक प्रकार का ब्रेस्ट का एक्स रे होता है। इसमें आपके ब्रेस्ट में बन रहे या भीतर हो रहे बदलावों का पता समय रहते चल जाता है।  आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मैमोग्राफी की मदद से कैंसर का पता आपके या आपके डॉक्टर को पता चलने के करीब दो साल पहले ही इसके होने की जानकारी दे देता है। यानि यदि आप नियमित रूप से मैमोग्राफी करते है तो आपको ब्रैस्ट कैंसर का पता बहुत पहले जी लग सकता है। 

40 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को साल में एक बार मैमोग्राफी अवश्य करानी चहिये. मगर यदि आपके परिवार में ब्रैस्ट कैंसर की समस्या बहुत पहले से है तो 30 के बाद से ही आपको मैमोग्राफी और एम आर आई करानी चाहियें। 

क्लिनिकल ब्रैस्ट एग्जाम :

इस में डॉक्टर इस बात की जांच करते है कि आपके ब्रैस्ट में किसी प्रकार की गिल्टी तो नही है या फिर ब्रैस्ट से किसी प्रकार का डिस्चार्ज तो नही हो रहा है, ब्रैस्ट का आकर सामान्य है या नहीं आदि। 

20  से 30  साल की उम्र वाली महिलाओं को हर 3  साल में इसे एक बार कराना चाहिए। 

ब्रैस्ट सेल्फ एग्जाम :

नाम से ही आपको समझ आ रहा होगा कि इसमें आप स्वयं अपने ब्रैस्ट की जाँच कर सकते है। आप ब्रैस्ट सेल्फ एग्जाम की सही तकनीक की जनकारी अपने डॉक्टर से ले सकती है। 20 साल की उम्र से ही आप इसे कर सकती है। 

याद रहें की क्लिनिकल ब्रैस्ट एग्जाम और ब्रैस्ट सेल्फ एग्जाम कभी भी मैमोग्राफी का स्थान नहीं ले सकती है। इसलिए यह सोच कर मैमोग्राफी को नजर अंदाज न करें कि आप क्लिनिकल ब्रैस्ट एग्जाम और ब्रैस्ट सेल्फ एग्जाम तो करती है। 

महत्वपूर्ण बात :
  • यदि आपके परिवार में ब्रैस्ट कैंसर का इतिहास रहा है तो आपके ब्रैस्ट कैंसर के होने की आशंकाएं बढ़ जाती है इसलिए नियमित जाँच कराएँ और समय रहते अपना बचाव करें।